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अध्याय 4

अधिकार रखनेवालों का आदर क्यों करें?

अधिकार रखनेवालों का आदर क्यों करें?

“हर किस्म के इंसान का आदर करो।”—1 पतरस 2:17.

1, 2. (क) अधिकार रखनेवालों के मामले में हम किस मुश्‍किल का सामना करते हैं? (ख) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

क्या आपने गौर किया है कि जब किसी छोटे बच्चे से ऐसा काम करने के लिए कहा जाता है जिसे वह नहीं करना चाहता, तो वह कैसा मुँह बनाता है? उसके दिल में क्या चल रहा है, यह आप उसके चेहरे से साफ पढ़ सकते हैं। वह सुन रहा है कि उसके माँ-बाप उससे कुछ कह रहे हैं और वह जानता है कि उसे उनकी बात माननी चाहिए। मगर वह है कि बात मानना ही नहीं चाहता। बच्चे की यह आना-कानी हमारे सामने एक सच्चाई पेश करती है। वह क्या है?

2 अधिकार रखनेवालों का आदर करना हमारे लिए हमेशा आसान नहीं होता। जिन्हें आप पर कोई अधिकार दिया गया है, क्या उनका आदर करना कभी-कभी आपको भी मुश्‍किल लगता है? ऐसा करना हम सबको मुश्‍किल लग सकता है। आज हम उस दौर में जी रहे हैं जब लोगों के दिल में अधिकार रखनेवालों के लिए बिलकुल इज़्ज़त नहीं रह गयी। मगर बाइबल कहती है कि हमें उनका आदर करना चाहिए जिन्हें हम पर अधिकार दिया गया है। (नीतिवचन 24:21) दरअसल ऐसा करना ज़रूरी है, तभी हम परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहेंगे। अगर ऐसी बात है तो हमारे मन में कुछ सवाल उठते हैं। अधिकार रखनेवालों का आदर करना हमें मुश्‍किल क्यों लग सकता है? यहोवा ने यह माँग क्यों रखी है कि हम अधिकार रखनेवालों का आदर करें और क्या बात हमें उनका आदर करने में मदद देगी? किन-किन तरीकों से हम उनका आदर कर सकते हैं?

यह एक चुनौती क्यों है

3, 4. पाप की शुरूआत कैसे हुई? पापी होने की वजह से अधिकार रखनेवालों का आदर करना कैसे मुश्‍किल हो जाता है?

3 अधिकार रखनेवालों का आदर करना हमारे लिए इतना मुश्‍किल क्यों हो सकता है? इसकी दो वजहों पर गौर कीजिए। पहली वजह तो यह कि हम सब पापी हैं और दूसरी वजह, हम पर अधिकार रखनेवाले इंसान भी पापी हैं। इंसान के अंदर पाप की शुरूआत बहुत पहले अदन बाग में हुई थी। हमारे पहले माता-पिता आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर के अधिकार के खिलाफ बगावत की और इस तरह पाप किया। तो बगावत से ही पाप की शुरूआत हुई। इसलिए आज तक हमारे अंदर बगावत करने की यह पैदाइशी फितरत है।—उत्पत्ति 2:15-17; 3:1-7; भजन 51:5; रोमियों 5:12.

4 पाप हमारे अंदर रचा-बसा है, इसलिए हममें से कोई भी बड़ी आसानी से घमंडी या मगरूर बन सकता है। मगर जो गुण हमें पैदा करने की ज़रूरत है, वह है नम्रता। यह गुण आज बहुत कम लोगों में पाया जाता है। यह अनमोल गुण बढ़ाने और कायम रखने के लिए हमें जी-तोड़ मेहनत करनी होगी। बरसों तक वफादारी से यहोवा की सेवा करने के बावजूद, हो सकता है कि हम ढीठ और घमंडी हो जाएँ। कोरह को याद कीजिए। उसने यहोवा के लोगों के साथ तरह-तरह की दुख-तकलीफें झेली थीं, फिर भी वह यहोवा का वफादार बना रहा। मगर बरसों-बरस परमेश्‍वर की सेवा करने के बावजूद कोरह के मन में और ज़्यादा अधिकार पाने का लालच बढ़ने लगा। उसने बड़ी बेशर्मी से मूसा के खिलाफ बगावत की, जो उस ज़माने का सबसे नम्र इंसान था। (गिनती 12:3; 16:1-3) राजा उज्जियाह को भी याद कीजिए। वह घमंड से इतना चूर हो गया कि यहोवा के मंदिर में घुस गया और उसने वह पवित्र सेवा करने की जुर्रत की, जिसे करने की इजाज़त सिर्फ याजकों को थी। (2 इतिहास 26:16-21) इन लोगों को अपनी बगावत की भारी कीमत चुकानी पड़ी। उनकी ये बुरी मिसालें हमारे लिए एक सबक हैं। हमें अपने अंदर से घमंड निकालने के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा क्योंकि घमंडी होने से हमें अधिकार रखनेवालों का आदर करना मुश्‍किल लगेगा।

5. पापी इंसानों ने अपने अधिकार का कैसे गलत इस्तेमाल किया है?

5 दूसरी तरफ, अधिकार के पद पर रहनेवाले पापी इंसानों की करतूतों की वजह से लोगों के दिल में उनके लिए इज़्ज़त नहीं रही। इनमें से कई बड़े बेरहम, ज़ुल्म ढानेवाले, यहाँ तक कि तानाशाह रहे हैं। दरअसल, इतिहास दिखाता है कि इंसान ने शुरू से ही ताकत का गलत इस्तेमाल किया है। (सभोपदेशक 8:9 पढ़िए।) मिसाल के लिए, जिस वक्‍त यहोवा ने शाऊल को राजा बनने के लिए चुना, तब वह एक नम्र और भला इंसान था। मगर बाद में वह घमंड और जलन का शिकार हो गया और फिर परमेश्‍वर के वफादार सेवक दाविद पर ज़ुल्म ढाने लगा। (1 शमूएल 9:20, 21; 10:20-22; 18:7-11) दाविद की ही बात लें तो वह इसराएल के सबसे बेहतरीन राजाओं में से एक था। मगर उसने भी अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल किया क्योंकि उसने हित्ती उरियाह की पत्नी के साथ नाजायज़ संबंध रखे और उस निर्दोष आदमी को लड़ाई में सबसे आगे भेजकर मरवा डाला। (2 शमूएल 11:1-17) जी हाँ, पाप करने की कमज़ोरी होने की वजह से इंसान के लिए अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करना मुश्‍किल हो जाता है। और अगर अधिकार रखनेवाले यहोवा का आदर नहीं करते तो वे और ज़्यादा ज़ुल्म ढाते हैं। ब्रिटेन के एक नेता ने बताया कि कैथोलिक धर्म के कुछ पोप ने लोगों पर अत्याचार करवाने के लिए कैसे-कैसे खौफनाक तरीके अपनाए। फिर उसने लिखा, “ताकत इंसान को भ्रष्ट कर देती है। जिसके पास जितनी ज़्यादा ताकत है, वह उतना ही भ्रष्ट होता है।” इस बात को ध्यान में रखते हुए आइए इस सवाल पर गौर करें: हमें अधिकार रखनेवालों का आदर क्यों करना चाहिए?

अधिकार रखनेवालों का आदर क्यों करना चाहिए?

6, 7. (क) यहोवा के लिए प्यार हमें क्या करने के लिए उभारता है? और क्यों? (ख) अधीन रहने के लिए हमारा नज़रिया कैसा होना चाहिए? हम अधीनता कैसे दिखा सकते हैं?

6 अधिकार रखनेवालों का आदर करने की सबसे अच्छी वजह है, प्यार—यहोवा के लिए प्यार, अपने संगी-साथियों के लिए प्यार, यहाँ तक कि खुद से प्यार। हम सबसे बढ़कर यहोवा से प्यार करते हैं, इसलिए हम उसका दिल खुश करना चाहते हैं। (नीतिवचन 27:11; मरकुस 12:29, 30 पढ़िए।) हम जानते हैं कि दुनिया की शुरूआत में ही अदन के बाग में परमेश्‍वर के हुकूमत करने के हक पर सवाल उठाया गया। तब से लेकर आज तक ज़्यादातर इंसानों ने शैतान का पक्ष लिया है और यहोवा की हुकूमत को ठुकराया है। लेकिन हमने खुशी-खुशी यहोवा की हुकूमत का समर्थन करने का फैसला किया है। प्रकाशितवाक्य 4:11 में परमेश्‍वर की शान का बखान पढ़ते वक्‍त हमारे दिल के तार भी बज उठते हैं। हमारे मन में शक की कोई गुंजाइश नहीं कि पूरे जहान पर हुकूमत करने का हक सिर्फ यहोवा को है! हम यहोवा की हुकूमत का समर्थन करते हैं और रोज़मर्रा ज़िंदगी में उसकी आज्ञा मानकर दिखाते हैं कि यहोवा हमारा राजा है।

7 यहोवा के अधिकार का आदर करने में क्या शामिल है? हम ऐसे मामलों में खुशी-खुशी आज्ञा मानते हैं जिनकी वजह हमें मालूम होती है। मगर ऐसे हालात भी ज़रूर आएँगे, जिनमें आज्ञा मानना हमारे लिए बेहद मुश्‍किल हो और शायद जिनकी वजह हमें समझ न आए। ऐसे में, हमें उस छोटे बच्चे की तरह अधीनता सीखने की ज़रूरत होगी, जिसका शुरू में ज़िक्र किया गया था। याद कीजिए कि यीशु ने ऐसे मौके पर भी खुद को अपने पिता की मरज़ी के अधीन किया, जब ऐसा करना उसके लिए आसान नहीं था। उसने अपने पिता से कहा, “मेरी मरज़ी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।”—लूका 22:42.

8. (क) आज यहोवा के अधिकार के अधीन रहने का क्या मतलब है? इस मामले में यहोवा की भावनाओं के बारे में हम किस किस्से से जान सकते हैं? (ख) जब हमें सुधारने के लिए सलाह दी जाती है, तो उसे स्वीकार करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? (“ सलाह को सुन और शिक्षा कबूल कर” नाम का बक्स देखिए।)

8 बेशक आज यहोवा अपने हर सेवक से निजी तौर पर बात नहीं करता। इसके बजाय, वह अपने वचन बाइबल और धरती पर अपने प्रतिनिधियों के ज़रिए हमसे बात करता है। इसलिए आज यहोवा के अधिकार के अधीन रहने का मतलब यह है कि हम उन इंसानों का आदर करें जिन्हें उसने हमारे ऊपर ठहराया है या जिन्हें उसने अधिकार के पद पर रहने की इजाज़त दी है। अगर हम इन इंसानों के खिलाफ बगावत करें, यानी जब वे हमें बाइबल से सलाह देते हैं या हमें सुधारते हैं तब अगर हम उनकी सलाह मानने से इनकार कर दें, तो हम अपने परमेश्‍वर को नाराज़ करेंगे। याद कीजिए कि जब इसराएली मूसा पर कुड़कुड़ाए और उसके खिलाफ बगावत की, तो यहोवा ने इसे खुद अपने खिलाफ बगावत माना।—गिनती 14:26, 27.

9. अपने संगी-साथियों के लिए प्यार, हमें अधिकार रखनेवालों का आदर करने के लिए क्यों उभारेगा? मिसाल दीजिए।

9 अधिकार रखनेवालों का आदर हम इसलिए भी करते हैं क्योंकि हम अपने संगी-साथियों से प्यार करते हैं। इसका क्या मतलब है? मान लीजिए कि आप एक फौजी हैं। एक फौज की कामयाबी, यहाँ तक कि उसका वजूद इस बात पर निर्भर करता है कि हर फौजी अपने-अपने कप्तान को सहयोग दे, उसका आदर करे और उसका हुक्म माने। अगर आप हुक्म न मानें और उस इंतज़ाम के खिलाफ बगावत कर दें, तो आपके सभी साथी फौजियों की जान खतरे में पड़ सकती है। माना कि दुनिया में इंसानों की बनायी फौजें अकसर तबाही मचाती हैं। लेकिन यहोवा के पास जो फौज है, वह सिर्फ दूसरों के अच्छे के लिए काम करती है। बाइबल में परमेश्‍वर को सैकड़ों बार ‘सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा’ कहा गया है। (1 शमूएल 1:3) वह लाखों-करोड़ों शक्‍तिशाली स्वर्गदूतों की फौज का सेनापति है। यहोवा ने कई बार धरती पर अपने सेवकों की तुलना एक फौज से की है। (भजन 68:11; यहेजकेल 37:1-10) अगर हम उन इंसानों के खिलाफ बगावत करें जिन्हें यहोवा ने हम पर अधिकार दिया है, तो क्या हम परमेश्‍वर की सेवा में अपने साथी फौजियों की जान खतरे में नहीं डालेंगे? जब एक मसीही, ठहराए गए प्राचीनों के खिलाफ बगावत करता है, तो मंडली के दूसरे लोगों को भी इसका अंजाम भुगतना पड़ सकता है। (1 कुरिंथियों 12:14, 25, 26) जब एक बच्चा माँ-बाप के खिलाफ बगावत करता है तो पूरे परिवार को दुख उठाना पड़ सकता है। इसलिए हम अधिकार रखनेवालों का आदर करने और उन्हें सहयोग देने की भावना बढ़ाने से दिखाएँगे कि हम अपने संगी-साथियों से प्यार करते हैं।

10, 11. अगर हम अपनी भलाई चाहते हैं, तो हम क्यों अधिकार रखनेवालों का आदर करेंगे?

10 हम अधिकार रखनेवालों का आदर इसलिए भी करते हैं क्योंकि ऐसा करने में हमारी अपनी भलाई है। यहोवा जब हमसे अधिकार रखनेवालों का आदर करने के लिए कहता है, तो वह अकसर इसके फायदे भी बताता है। मिसाल के लिए, वह बच्चों से कहता है कि अगर वे माता-पिता का कहना मानेंगे तो वे लंबी उम्र और खुशहाल ज़िंदगी पाएँगे। (व्यवस्थाविवरण 5:16; इफिसियों 6:2, 3) यहोवा हमसे कहता है कि हम मंडली के प्राचीनों का आदर करें, क्योंकि ऐसा न करने पर उसके साथ हमारा रिश्‍ता खतरे में पड़ सकता है। (इब्रानियों 13:7, 17) और वह हमसे दुनियावी अधिकारियों की आज्ञा मानने के लिए कहता है, क्योंकि यह हमारी अपनी हिफाज़त के लिए है।—रोमियों 13:4.

11 यहोवा किस वजह से हमें अधिकार रखनेवालों की आज्ञा मानने के लिए कह रहा है, यह जानना उनका आदर करने में हमारी मदद करता है। बेशक, आप भी इस बात से सहमत होंगे। तो फिर आइए देखें कि ज़िंदगी के तीन खास पहलुओं में हम किस तरह अधिकार रखनेवालों का आदर कर सकते हैं।

परिवार में आदर करना

12. यहोवा ने परिवार में पति को क्या ज़िम्मेदारी दी है? और पति यह ज़िम्मेदारी कैसे निभा सकता है?

12 परिवार एक ऐसा इंतज़ाम है जिसकी रचना खुद यहोवा परमेश्‍वर ने की थी। उसके हर काम में व्यवस्था है। इसलिए उसने परिवार में हरेक की ज़िम्मेदारी ठहरायी है ताकि घर-गृहस्थी अच्छी तरह चल सके। (1 कुरिंथियों 14:33) उसने पति को परिवार का मुखिया होने का अधिकार दिया है। पति अपने मुखिया यानी मसीह यीशु के अधिकार का आदर करता है। कैसे? जब वह अपनी ज़िम्मेदारी उसी तरह निभाता है जिस तरह यीशु मसीह, मंडली का मुखिया होने की ज़िम्मेदारी निभाता है। (इफिसियों 5:23) इसलिए पति को अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए, बल्कि मरदानगी के साथ उसे निभाना चाहिए। पति को तानाशाह या कठोर नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, उसे प्यार करनेवाला, लिहाज़ करनेवाला और नर्मदिल होना चाहिए। वह हमेशा यह बात याद रखता है कि उसके अधिकार की एक हद है और यह अधिकार यहोवा के अधिकार से कभी बड़ा नहीं हो सकता।

एक मसीही पिता, मुखिया की ज़िम्मेदारी उसी तरह निभाता है जिस तरह मसीह निभाता है

13. एक पत्नी परिवार में अपनी ज़िम्मेदारी कैसे पूरी कर सकती है, जिससे यहोवा खुश हो?

13 पत्नी को अपने पति की मददगार और उसका साथी होने के लिए बनाया गया था। इसलिए एक माँ को भी परिवार में अधिकार दिया गया है, क्योंकि बाइबल में “माँ से मिलनेवाली सीख” का ज़िक्र किया गया है। (नीतिवचन 1:8) बेशक उसका अधिकार पति के अधिकार के अधीन होता है। परमेश्‍वर की सेवा करनेवाली औरत अपने पति को मुखिया की ज़िम्मेदारी निभाने में मदद देती है और इस तरह वह उसके अधिकार का आदर करती है। वह उसकी बेइज़्ज़ती नहीं करती, चालाकी से अपनी बात नहीं मनवाती या पति की जगह मुखियापन की बागडोर खुद अपने हाथों में नहीं लेती। इसके बजाय, वह पति के फैसलों का समर्थन करती है और उसे सहयोग देती है। अगर वह पति के फैसले से सहमत नहीं है तो वह आदर के साथ उसे बताती है कि वह क्या सोचती है, मगर साथ ही वह पति के अधीन रहती है। अगर पति सच्चाई में नहीं है, तो पत्नी को शायद कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़े, मगर फिर भी वह पति के अधीन रहती है। उसकी ऐसी अधीनता देखकर हो सकता है कि अविश्‍वासी पति के दिल में भी यहोवा को जानने की इच्छा जागे।—1 पतरस 3:1, 2 पढ़िए।

14. बच्चे किस तरह अपने माँ-बाप का और यहोवा का दिल खुश कर सकते हैं?

14 जब बच्चे माँ-बाप का कहना मानते हैं तो वे यहोवा का दिल खुश करते हैं। साथ ही, उनके माँ-बाप की इज़्ज़त बढ़ती है और उन्हें खुशी मिलती है। (नीतिवचन 10:1) जिस परिवार में अकेली माँ या सिर्फ पिता बच्चों की देखभाल करता है, उन बच्चों को भी अपनी माँ या पिता का कहना मानना चाहिए। उन्हें इस बात का खास तौर पर एहसास होना चाहिए कि अकेले होने की वजह से उनकी माँ या पिता को उनके सहयोग और उनकी मदद की ज़्यादा ज़रूरत है। परमेश्‍वर ने परिवार के हर सदस्य की ज़िम्मेदारी ठहरायी है। इसलिए जिन परिवारों में हर कोई अपनी यह ज़िम्मेदारी पूरी करता है, उन परिवारों में भरपूर सुख-शांति होती है। इससे सभी परिवारों की शुरूआत करनेवाले, परमेश्‍वर यहोवा की महिमा होती है।—इफिसियों 3:14, 15.

मंडली में आदर करना

15. (क) मंडली में हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यहोवा के अधिकार का आदर करते हैं? (ख) अपने अगुवों की आज्ञा मानने में कौन-से सिद्धांत हमारी मदद कर सकते हैं? (“ जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानो” नाम का बक्स देखिए।)

15 यहोवा ने अपने बेटे यीशु को मसीही मंडली का राजा ठहराया है। (कुलुस्सियों 1:13) और यीशु ने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को यह ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वह धरती पर परमेश्‍वर के लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करे। (मत्ती 24:45-47) यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय ही वह “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” है। जैसे पहली सदी में था, आज भी मंडली के प्राचीनों को या तो सीधे तौर पर या सफरी निगरानों जैसे प्रतिनिधियों के ज़रिए शासी निकाय से हिदायतें और सलाह मिलती है। जब हममें से हरेक जन मंडली के प्राचीनों के अधिकार का आदर करता है, तो वह असल में यहोवा की आज्ञा मान रहा होता है।—1 थिस्सलुनीकियों 5:12; इब्रानियों 13:17 पढ़िए।

16. किस मायने में प्राचीन पवित्र शक्‍ति के ज़रिए ठहराए जाते हैं?

16 प्राचीन और सहायक सेवक परिपूर्ण नहीं हैं। उनमें भी कमियाँ हैं, जैसे हम सब में होती हैं। फिर भी प्राचीन “आदमियों के रूप में तोहफे” हैं। (इफिसियों 4:8) यहोवा ने ये तोहफे इसलिए दिए हैं ताकि ये भाई मंडली के सभी सदस्यों को यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत बनाए रखने में मदद दें। प्राचीनों को पवित्र शक्‍ति के ज़रिए ठहराया जाता है। (प्रेषितों 20:28) वह कैसे? पवित्र शक्‍ति की प्रेरणा से लिखे गए परमेश्‍वर के वचन में इन भाइयों के लिए योग्यताएँ साफ-साफ दर्ज़ की गयी हैं। इसलिए सबसे पहले तो इन भाइयों को इन योग्यताओं पर पूरा उतरना होता है। (1 तीमुथियुस 3:1-7, 12; तीतुस 1:5-9) साथ ही, जो प्राचीन इस बात की जाँच करते हैं कि एक भाई इन योग्यताओं पर पूरा उतरा है या नहीं, वे पवित्र शक्‍ति की मदद के लिए सच्चे दिल से यहोवा से बिनती करते हैं ताकि सही फैसला कर सकें।

17. मंडली के कुछ काम करते वक्‍त, कभी-कभी मसीही बहनें सिर क्यों ढकती हैं?

17 कभी-कभी मंडली में ऐसा भी हो सकता है कि आम तौर पर जो काम प्राचीन या सहायक सेवक करते हैं, उसे करने के लिए वे मौजूद न हों। जैसे, प्रचार की सभा चलाना। ऐसे में दूसरे भाई, जिनका बपतिस्मा हो चुका है, इस ज़िम्मेदारी को पूरा कर सकते हैं। अगर कोई भी भाई मौजूद नहीं है, तब आध्यात्मिक तौर पर काबिल मसीही बहनें ये काम कर सकती हैं। लेकिन जो काम, आम तौर पर बपतिस्मा-शुदा भाइयों को दिए जाते हैं, अगर उस ज़िम्मेदारी को एक बहन पूरा कर रही है, तो उसे अपना सिर ढकना चाहिए। * (1 कुरिंथियों 11:3-10) सिर ढकने की माँग का यह मतलब नहीं कि औरतों का दर्जा कम है। इसके बजाय, सिर ढकने से बहनों को यह दिखाने का मौका मिलता है कि वे परिवार में और मंडली में, यहोवा के ठहराए मुखियापन के इंतज़ाम का आदर करती हैं।

दुनियावी अधिकारियों का आदर करना

18, 19. (क) रोमियों 13:1-7 में बताए सिद्धांतों का मतलब क्या है? (ख) हम दुनियावी अधिकारियों का कैसे आदर करते हैं?

18 सच्चे मसीही रोमियों 13:1-7 (पढ़िए) में बताए सिद्धांतों पर पूरी ईमानदारी से चलने की कोशिश करते हैं। इन आयतों को पढ़ने से आप समझ सकते हैं कि इनमें बताए ‘ऊँचे अधिकारी’ दुनिया की सरकारें हैं। यहोवा ने कुछ वक्‍त के लिए इंसान की इन सरकारों को रहने दिया है और ये कई ज़रूरी काम करती हैं, जैसे कुछ हद तक व्यवस्था बनाए रखना और जनता को ज़रूरी सेवाएँ देना। हम कायदे-कानूनों को मानकर इन अधिकारियों का आदर करते हैं। हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि हम पर जो भी टैक्स बनता है वह हम पूरा अदा करें। सरकार अगर कोई फॉर्म या दस्तावेज़ भरने की माँग करती है तो उसमें सही जानकारी भरकर दें और ऐसा हर कानून मानें जो हम पर, हमारे परिवार पर, हमारे बिज़नेस पर या हमारी धन-संपत्ति के मामले में लागू होता है। लेकिन अगर ये अधिकारी हमें परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ने के लिए कहते हैं तो हम उनके आगे नहीं झुकेंगे। तब हमारा जवाब वही होगा जो पहली सदी के प्रेषितों का था, “इंसानों के बजाय परमेश्‍वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है।”—प्रेषितों 5:28, 29; “ मुझे किसका अधिकार मानना चाहिए?” नाम का बक्स देखिए।

19 हम अपने व्यवहार से भी दुनियावी अधिकारियों का आदर करते हैं। हो सकता है कि हमें कभी सरकारी अधिकारियों से मिलना पड़े। प्रेषित पौलुस को राजा हेरोदेस अग्रिप्पा और राज्यपाल फेस्तुस जैसे अधिकारियों के सामने हाज़िर होना पड़ा था। इन आदमियों में बड़ी-बड़ी बुराइयाँ थीं मगर फिर भी पौलुस ने उनके साथ इज़्ज़त से बात की। (प्रेषितों 26:2, 25) हम भी पौलुस की मिसाल पर चलते हैं, फिर चाहे हम किसी बड़े अधिकारी से बात कर रहे हों या अपने इलाके के किसी पुलिसवाले से। स्कूल में नौजवान मसीही, टीचरों, अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ इसी तरह इज़्ज़त से पेश आते हैं। ऐसा नहीं कि हम सिर्फ उन्हीं का आदर करते हैं जो हमारी धार्मिक शिक्षाओं को पसंद करते हैं, बल्कि उनका भी आदर करते हैं जो हम यहोवा के साक्षियों का विरोध करते हैं। दरअसल, सभी बाहरवालों को यह साफ पता लगना चाहिए कि हम उनका आदर करते हैं।—रोमियों 12:17, 18 पढ़िए; 1 पतरस 3:15.

20, 21. सही मायनों में अधिकार का आदर करने से क्या-क्या आशीषें मिलती हैं?

20 तो आइए हम दूसरों का आदर करने में कंजूसी न करें। प्रेषित पतरस ने लिखा, “हर किस्म के इंसान का आदर करो।” (1 पतरस 2:17) जब लोग देखते हैं कि हम दिल से उनकी इज़्ज़त करते हैं, तो इस बात का उन पर गहरा असर हो सकता है। याद रखिए कि आज लोगों में यह गुण बहुत कम देखने को मिलता है, यहाँ तक कि खत्म होता जा रहा है। इसलिए आदर करना एक और तरीका है जिससे हम यीशु की इस आज्ञा को मानते हैं: “तुम्हारी रौशनी लोगों के सामने चमके ताकि वे तुम्हारे भले काम देखकर स्वर्ग में रहनेवाले तुम्हारे पिता की महिमा करें।”—मत्ती 5:16.

21 इस अंधकार-भरी दुनिया में नेकदिल लोग सच्चाई की रौशनी की तरफ आकर्षित होते हैं। इसलिए जब हम अपने परिवार के लोगों, मंडली के भाई-बहनों और दुनिया के लोगों के साथ आदर से पेश आते हैं तो हमें देखनेवालों पर इसका अच्छा असर हो सकता है। उनमें भी यह इच्छा जाग सकती है कि हमारे साथ सच्चाई की रौशनी में चलें। अगर ऐसा हो तो कितना बढ़िया होगा! अगर ऐसा न हो तो भी एक बात पक्की है। जब हम इंसानों का आदर करते हैं तो यहोवा परमेश्‍वर खुश होता है और हम उसके प्यार के लायक बने रहते हैं। इससे बड़ा इनाम और क्या हो सकता है?

^ पैरा. 17सिर ढकना—कब और क्यों?” नाम के अतिरिक्‍त लेख में बताया गया है कि इस सिद्धांत को किन-किन हालात में लागू किया जा सकता है।