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अध्याय 15

अपनी मेहनत के कामों से खुशी पाइए

अपनी मेहनत के कामों से खुशी पाइए

‘वह अपनी मेहनत के सब कामों से खुशी पाए।’—सभोपदेशक 3:13.

1-3. (क) कई लोग अपनी नौकरी के बारे में कैसा महसूस करते हैं? (ख) बाइबल, काम के बारे में किस तरह का नज़रिया रखने का बढ़ावा देती है? इस अध्याय में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

आज की दुनिया में ज़्यादातर लोगों को अपने काम से कुछ और मिले या न मिले, मगर खुशी तो हरगिज़ नहीं मिलती। इस खयाल से ही उनका जी उचटता है कि आज फिर उन्हें काम पर जाना है। वे यह सोचकर परेशान होने लगते हैं कि उन्हें फिर घंटों मेहनत करनी है और वह भी ऐसे काम में जो उन्हें ज़रा भी पसंद नहीं। जिनके मन में काम के बारे में ऐसा रवैया घर कर चुका है, उन्हें कैसे उभारा जाए जिससे काम में उनका मन लगे, यहाँ तक कि उन्हें अपने काम से खुशी मिलने लगे?

2 बाइबल बढ़ावा देती है कि हम कड़ी मेहनत के बारे में सही नज़रिया रखें। यह बताती है कि काम करना और उसका फल पाना एक आशीष है। सुलैमान ने लिखा, “[इंसान] खाए-पीए और अपनी मेहनत के सब कामों से खुशी पाए। यह परमेश्‍वर की देन है।” (सभोपदेशक 3:13) यहोवा हमसे प्यार करता है और हमेशा हमारे भले की सोचता है। वह चाहता है कि हम अपने काम से संतोष पाएँ और अपनी मेहनत के फल का मज़ा लें। उसके प्यार के लायक बने रहने के लिए, ज़रूरी है कि हम काम के बारे में उसी का नज़रिया अपनाएँ और उसके सिद्धांतों पर चलें।—सभोपदेशक 2:24; 5:18 पढ़िए।

3 इस अध्याय में हम चार सवालों पर गौर करेंगे: हम अपनी कड़ी मेहनत से खुशी कैसे पा सकते हैं? सच्चे मसीही किस किस्म की नौकरी या काम नहीं करते? हम अपनी नौकरी और उपासना से जुड़े कामों के बीच कैसे तालमेल बिठा सकते हैं? सबसे ज़्यादा अहमियत रखनेवाला काम क्या है जो हम सबको करना चाहिए? मगर इन सवालों के जवाब जानने से पहले आइए हम दुनिया के दो सबसे बड़े और मेहनती कारीगरों की मिसाल पर गौर करें। वे हैं, यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह।

सबसे महान कारीगर और उसका कुशल कारीगर

4, 5. बाइबल कैसे दिखाती है कि यहोवा बहुत सारा और बढ़िया काम करता है?

4 यहोवा सबसे महान कारीगर है। उत्पत्ति 1:1 कहता है, “शुरूआत में परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” जब परमेश्‍वर ने धरती पर सृष्टि का काम पूरा किया तो उसने अपना काम देखकर कहा कि “सबकुछ बहुत बढ़िया” है। (उत्पत्ति 1:31) दूसरे शब्दों में कहें तो धरती पर उसने जो कुछ बनाया था, उससे वह पूरी तरह संतुष्ट था। यहोवा “आनंदित परमेश्‍वर” है और उसने बेशक अपनी कड़ी मेहनत और बेहतरीन काम से बेइंतहा खुशी पायी।—1 तीमुथियुस 1:11.

5 हमारा मेहनती परमेश्‍वर कभी काम करना बंद नहीं करता। गौर कीजिए कि सृष्टि का काम पूरा होने के हज़ारों साल बाद भी यीशु ने क्या बताया। उसने कहा, “मेरा पिता अब तक काम कर रहा है।” (यूहन्‍ना 5:17) उसका पिता क्या काम करता आया है? यहोवा स्वर्ग में है, मगर वह धरती पर इंसानों को सही राह दिखाने और उनकी देखभाल करने में व्यस्त रहा है। उसने एक “नयी सृष्टि” की है यानी ऐसे मसीहियों का समूह तैयार किया है, जिनका पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किया जाता है और जो आगे चलकर यीशु के साथ स्वर्ग से राज करेंगे। (2 कुरिंथियों 5:17) इतना ही नहीं, यहोवा ने शुरूआत में इंसान के लिए जो मकसद रखा था, उसे पूरा करने के लिए वह काम करता रहा है। उसका मकसद है कि उससे प्यार करनेवाले सभी इंसान नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाएँ। (रोमियों 6:23) यहोवा अपने इस काम के बढ़िया नतीजे देखकर ज़रूर बहुत खुश होता होगा। लाखों लोगों ने उसके राज का संदेश सुनकर विश्‍वास किया है और परमेश्‍वर उन्हें अपने पास खींच लाया है। अब वे उसके प्यार के लायक बने रहने के लिए अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव कर रहे हैं।—यूहन्‍ना 6:44.

6, 7. लंबे अरसे से यीशु ने कड़ी मेहनत करने में क्या मिसाल कायम की है?

6 यीशु ने भी एक लंबे अरसे से कड़ी मेहनत करने में मिसाल कायम की है। इंसान के रूप में पैदा होने से पहले उसने ‘स्वर्ग और धरती’ की चीज़ें बनाने में परमेश्‍वर का “कुशल कारीगर” बनकर काम किया। (कुलुस्सियों 1:15-17; नीतिवचन 8:22-31) धरती पर आने के बाद भी यीशु कड़ी मेहनत करता रहा। छोटी उम्र से ही, उसने बढ़ई का काम इतनी अच्छी तरह सीख लिया कि लोग उसे “बढ़ई” पुकारते थे। * (मरकुस 6:3) इस काम में कमर-तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी और अलग-अलग किस्म के हुनर की ज़रूरत होती थी। उस ज़माने में न तो आरा-मिलें थीं, न लकड़ी के गोदाम थे जहाँ से कटी-कटाई लकड़ी खरीदी जा सके और न ही बिजली से चलनेवाले उपकरण थे, जिनसे झटपट काम निपटाया जा सके। कल्पना कीजिए कि यीशु कंधे पर कुल्हाड़ा लिए अपने काम के लिए लकड़ी का इंतज़ाम करने जा रहा है। सही पेड़ तलाशने के बाद, वह पेड़ काटने के लिए अपने कुल्हाड़े से उस पर चोट-पर-चोट कर रहा है और फिर शहतीरों को ढो-ढोकर उस जगह तक ले जा रहा है जहाँ उसका काम चल रहा है। क्या आप देख सकते हैं कि यीशु घर बनाने में लगा हुआ है? वह कड़ियाँ तैयार करता है और इसके बाद वह उन्हें छत पर लगा रहा है, दरवाज़े बना रहा है और घर का फर्नीचर तैयार कर रहा है। बेशक, यीशु अपने तजुरबे से जानता था कि हुनर और कड़ी मेहनत के साथ किया गया अच्छा काम मन को कितना संतोष देता है।

7 यीशु ने न सिर्फ बढ़ई का काम किया था, बल्कि जब उसने प्रचार करना शुरू किया, तो उसमें भी पूरे जी-जान से मेहनत की। साढ़े तीन साल तक वह इस बेहद ज़रूरी काम में पूरी तरह लगा रहा। वह चाहता था कि राज का संदेश ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक पहुँचे, इसलिए उसने अपना वक्‍त बिलकुल भी ज़ाया नहीं किया। वह तड़के उठ जाता और देर रात तक काम करता था। (लूका 21:37, 38; यूहन्‍ना 3:2) वह “शहर-शहर और गाँव-गाँव गया और लोगों को प्रचार करता और परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाता गया।” (लूका 8:1) धूल भरी सड़कों पर पैदल सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करते हुए यीशु ने लोगों को खुशखबरी सुनायी।

8, 9. यीशु ने कैसे अपनी कड़ी मेहनत से खुशी पायी?

8 क्या यीशु को प्रचार में कड़ी मेहनत करने से खुशी मिली? बिलकुल मिली! उसने राज की सच्चाई के बीज बोए और कटाई के लिए पकी फसल तैयार की। परमेश्‍वर का काम यीशु को इतनी ताकत देता था और उसमें ऐसी जान फूँक देता था कि वह इस काम को पूरा करने के लिए खाना तक छोड़ने के लिए तैयार था। (यूहन्‍ना 4:31-38) ज़रा सोचिए कि यीशु को कितना संतोष हुआ होगा जब वह धरती पर अपनी सेवा के आखिर में पूरी ईमानदारी के साथ अपने पिता से कह सका, “जो काम तूने मुझे दिया है उसे पूरा करके मैंने धरती पर तेरी महिमा की है।”—यूहन्‍ना 17:4.

9 वाकई, यहोवा और यीशु कड़ी मेहनत से खुशी पानेवालों की सबसे उम्दा मिसालें हैं। इसलिए यहोवा के लिए हमारा प्यार हमें उभारता है कि हम “उसकी मिसाल पर” चलें। (इफिसियों 5:1) और यीशु के लिए हमारा प्यार हमें उभारता है कि हम ‘उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलें।’ (1 पतरस 2:21) इसलिए आइए देखें कि हम भी कैसे अपनी कड़ी मेहनत से खुशी पा सकते हैं।

कड़ी मेहनत से खुशी कैसे पाएँ

बाइबल के सिद्धांतों पर अमल करने से आप अपनी कड़ी मेहनत से खुशी पाएँगे

10, 11. काम की तरफ सही नज़रिया पैदा करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

10 रोज़ी-रोटी के लिए नौकरी करना सच्चे मसीहियों की ज़िंदगी का एक ज़रूरी हिस्सा है। जहाँ तक हो सके, हम अपने काम से संतोष और सुख पाना चाहते हैं। लेकिन हम जो काम करते हैं उसमें अगर हमें बहुत दिक्कत आती है या वह हमें पसंद नहीं, तो ऐसे काम से संतोष पाना हमारे लिए बेहद मुश्‍किल हो सकता है। ऐसे हालात में अपने काम से खुशी पाना कैसे मुमकिन है?

11 सही नज़रिया पैदा कीजिए। अपने हालात को बदलना शायद हमेशा मुमकिन न हो, मगर इन हालात की तरफ हम अपना नज़रिया ज़रूर बदल सकते हैं। परमेश्‍वर, काम के बारे में कैसा नज़रिया रखता है, इस पर गहराई से सोचने से काम के बारे में सही नज़रिया पैदा करने में हमें मदद मिलती है। मिसाल के लिए, अगर आप परिवार के मुखिया हैं, तो यह सोचिए कि आपकी नौकरी चाहे कम दर्जे की या उबाऊ लगती हो, फिर भी इससे आप अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर पाते हैं। इस तरह अपने परिवार की देखभाल करना परमेश्‍वर की नज़र में कोई मामूली बात नहीं है। उसका वचन कहता है कि जो अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी नहीं करता वह “अविश्‍वासी से भी बदतर है।” (1 तीमुथियुस 5:8) अगर आप यह बात मन में रखें कि आपकी नौकरी एक ज़रिया है जो आपके लिए परमेश्‍वर की दी हुई ज़िम्मेदारी निभाना मुमकिन बनाती है, तो आपको अपने काम से काफी हद तक सुकून मिल सकेगा और आप उसे करने का मकसद देख सकेंगे जो शायद आपके साथ काम करनेवाले न देख सकें।

12. मेहनत और ईमानदारी से काम करने से क्या-क्या फायदे मिलते हैं?

12 मेहनत और ईमानदारी से काम कीजिए। मेहनत करने और अपना काम अच्छी तरह सीखने से कई फायदे मिल सकते हैं। अकसर मालिक, मेहनती और हुनरमंद लोगों की बहुत कदर करते हैं। (नीतिवचन 12:24; 22:29) सच्चे मसीही होने के नाते, हमें ईमानदार भी होना चाहिए। हमें मालिक के पैसे, सामान या वक्‍त की चोरी नहीं करनी चाहिए। (इफिसियों 4:28) जैसे हमने पिछले अध्याय में देखा, ईमानदारी के कई फायदे होते हैं। जो कर्मचारी अपनी ईमानदारी के लिए जाना जाता है, उस पर मालिक ज़्यादातर भरोसा करते हैं। और चाहे हमारा मालिक हमारे मेहनती होने की कदर करे या न करे, हमारे दिल को इस बात से चैन मिल सकता है कि “हमारा ज़मीर साफ है” और हम अपने प्यारे परमेश्‍वर को खुश कर रहे हैं।—इब्रानियों 13:18; कुलुस्सियों 3:22-24.

13. काम की जगह पर हमारे अच्छे चालचलन के क्या नतीजे हो सकते हैं?

13 याद रखिए कि आपके चालचलन से परमेश्‍वर की तारीफ हो सकती है। मसीही होने के नाते जब आप काम की जगह पर चालचलन के ऊँचे स्तरों का पालन करते हैं, तो यह ज़रूर लोगों की नज़र में आएगा। इसका नतीजा क्या होगा? आप “हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की शिक्षा की शोभा बढ़ा” रहे होंगे। (तीतुस 2:9, 10) जी हाँ, आपके बढ़िया चालचलन से दूसरे देख पाएँगे कि आपका उपासना का तरीका कितना शानदार है और वे भी इसकी तरफ आकर्षित होंगे। ज़रा सोचिए, यह जानकर आपको कितनी खुशी होगी कि आपके अच्छे चालचलन की वजह से आपके साथ काम करनेवाला कोई व्यक्‍ति सच्चाई सीखना चाहता है! जो बात सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है, वह इस बात का एहसास है कि आपके बढ़िया चालचलन से यहोवा की तारीफ होती है और उसका दिल खुश होता है। क्या इससे बड़ा कोई और इनाम हो सकता है?—नीतिवचन 27:11; 1 पतरस 2:12 पढ़िए।

नौकरी का चुनाव करने में समझदारी से काम लीजिए

14-16. नौकरी के बारे में फैसले करते वक्‍त हमें किन ज़रूरी सवालों पर गौर करना चाहिए?

14 एक मसीही को कैसी नौकरी करनी चाहिए और कैसी नहीं, बाइबल इस बारे में ढेर सारे कायदे-कानून नहीं देती। इसका मतलब यह नहीं कि हम किसी भी तरह की नौकरी कर सकते हैं, फिर चाहे हमें इसमें कुछ भी करना पड़े। परमेश्‍वर के वचन की मदद से हम ऐसी नौकरी का चुनाव कर सकते हैं, जिसमें हम ईमानदारी से अच्छा काम करें और जिससे परमेश्‍वर खुश हो। साथ ही, यह हमें ऐसी नौकरी से दूर रहने में मदद देता है जिससे परमेश्‍वर नाराज़ होता है। (नीतिवचन 2:6) नौकरी चुनते वक्‍त हमें दो ज़रूरी सवालों पर गौर करना चाहिए।

15 क्या यह नौकरी ऐसा काम है जिसे बाइबल सीधे तौर पर गलत बताती है? परमेश्‍वर का वचन साफ बताता है कि चोरी करना, झूठ बोलना और मूरतें बनाना गलत है। (निर्गमन 20:4; प्रेषितों 15:29; इफिसियों 4:28; प्रकाशितवाक्य 21:8) अगर किसी नौकरी में हमें यह सब करना पड़े तो हम वह नौकरी हरगिज़ नहीं करेंगे। यहोवा के लिए प्यार हमें कभी ऐसी कोई नौकरी करने या ऐसा कोई काम हाथ में लेने की इजाज़त नहीं देगा जिसे करना उसकी आज्ञाएँ तोड़ना होगा।—1 यूहन्‍ना 5:3 पढ़िए।

16 क्या यह नौकरी मुझे किसी गलत काम का साझेदार या उसे बढ़ावा देनेवाला बनाती है? एक मिसाल लीजिए। रिसेप्शनिस्ट की नौकरी करना अपने आप में गलत नहीं है। लेकिन अगर एक मसीही को गर्भपात केंद्र में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी दी जाए तब क्या? माना कि उसका काम ऐसा है कि वह शायद गर्भपात करवाने में सीधे-सीधे हाथ न बँटाए। फिर भी, उसका काम उस केंद्र को चलाने में मददगार होता है जहाँ गर्भपात किए जाते हैं। परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक गर्भपात करना गलत है। (निर्गमन 21:22-24) यहोवा से प्यार करने की वजह से हम ऐसे किसी भी काम से जुड़े रहना नहीं चाहेंगे जो बाइबल के हिसाब से गलत है।

17. (क) नौकरी के बारे में फैसला करते वक्‍त हम किन बातों पर अच्छी तरह सोच सकते हैं? (“ क्या मुझे यह नौकरी करनी चाहिए?” नाम का बक्स देखिए।) (ख) हमारा ज़मीर किस तरह हमें ऐसे फैसले करने में मदद दे सकता है जिनसे परमेश्‍वर खुश हो?

17 पैराग्राफ 15 और 16 में दिए गए दो ज़रूरी सवालों के जवाबों की अच्छी तरह जाँच करने पर हम नौकरी को लेकर उठनेवाले ज़्यादातर मामलों में सही फैसला कर पाएँगे। इनके अलावा, नौकरी या काम चुनने में कुछ और बातें भी हैं जिन पर हमें बहुत अच्छी तरह सोचने की ज़रूरत है। * हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि इस मामले में उठनेवाले हर तरह के हालात पर विश्‍वासयोग्य दास नियम बनाए। ऐसे में हमें समझ का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होगी। जैसे हमने अध्याय 2 में सीखा, हमें अपने ज़मीर को सिखाने और प्रशिक्षण देने की ज़रूरत है। हमें परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए ताकि हम उसके सिद्धांतों को अपनी रोज़ाना ज़िंदगी में लागू करना सीखें। जब हम “अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करते-करते” इसे प्रशिक्षित कर लेते हैं, तो हमारा ज़मीर हमें ऐसा फैसला करने में मदद दे सकता है जिससे परमेश्‍वर खुश हो और हम उसके प्यार के लायक बने रहें।—इब्रानियों 5:14.

काम को अपनी जगह, मगर परमेश्‍वर की सेवा को पहली जगह

18. नौकरी करने के साथ-साथ परमेश्‍वर की सेवा को पहली जगह देना क्यों मुश्‍किल हो सकता है?

18 हम “आखिरी दिनों” में जी रहे हैं जब “संकटों से भरा ऐसा वक्‍त” चल रहा है “जिसका सामना करना मुश्‍किल” है। (2 तीमुथियुस 3:1) इसलिए कभी-कभी ऐसे फैसले करना मुश्‍किल हो सकता है जिससे परमेश्‍वर खुश हो। नौकरी ढूँढ़ना और मिलने पर उसे बरकरार रखना बड़ी चुनौती हो सकता है। सच्चे मसीही होने के नाते हमें इस बात का एहसास है कि अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी है। लेकिन अगर हम चौकन्‍ने न रहें तो अपनी नौकरी की जगह पर काम का दबाव, परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े हमारे कामों में रुकावट बन सकता है। या फिर दुनिया की तरह ज़्यादा पैसा या सहूलियतें हासिल करने की चाहत हम पर इतनी हावी हो सकती है कि हम परमेश्‍वर की सेवा में ढीले पड़ सकते हैं। (1 तीमुथियुस 6:9, 10) आइए देखें कि हम काम के बारे में सही नज़रिया कैसे रख सकते हैं ताकि हम ‘ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों’ पर ध्यान दे सकें।—फिलिप्पियों 1:10.

19. यहोवा क्यों पूरी तरह भरोसे के लायक है? ऐसा भरोसा होने की वजह से हम क्या नहीं करेंगे?

19 आपका पूरा भरोसा यहोवा पर हो। (नीतिवचन 3:5, 6 पढ़िए।) क्या यहोवा ऐसे भरोसे के लायक नहीं? आखिर वही तो है जो हमारी परवाह करता है। (1 पतरस 5:7) वह हमसे बेहतर हमारी ज़रूरतें जानता है। और ऐसा कभी नहीं हुआ कि अपने सेवकों की देखभाल करने में यहोवा नाकाम रहा हो। (भजन 37:25) इसलिए हमें उसके वचन में लिखी यह बात माननी चाहिए: “तुम्हारे जीने का तरीका दिखाए कि तुम्हें पैसे से प्यार नहीं और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो। क्योंकि परमेश्‍वर ने कहा है, ‘मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।’” (इब्रानियों 13:5) जिन भाई-बहनों ने पूरे समय की सेवा की है, वे इस बात की गवाही दे सकते हैं कि परमेश्‍वर अपने सेवकों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के काबिल है। अगर हम पूरा भरोसा रखें कि यहोवा हमारी देखभाल करेगा तो हम परिवार के लिए रोज़ी-रोटी कमाने के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करेंगे। (मत्ती 6:25-32) हम नौकरी के लिए इतना ज़्यादा वक्‍त नहीं देंगे कि उसकी वजह से परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े काम नज़रअंदाज़ करने पड़ें, जैसे लोगों को राज की खुशखबरी सुनाना और सभाओं में जाना।—मत्ती 24:14; इब्रानियों 10:24, 25.

20. अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रखने का मतलब क्या है? आप यह कैसे कर सकते हैं?

20 अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रखिए। (मत्ती 6:22, 23 पढ़िए।) अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रखने का मतलब है, अपनी ज़िंदगी में सादगी बनाए रखना। जिस मसीही की आँख एक ही चीज़ पर टिकी है, उसकी ज़िंदगी का सिर्फ एक ही मकसद होता है, परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना। अगर हमारी आँख इस एक मकसद पर टिकी है, तो हम दिन-रात इस फिराक में नहीं रहेंगे कि हमें और भी मोटी तनख्वाहवाली नौकरी मिल जाए और हम ज़्यादा ऐशो-आराम से जी सकें। न ही हम नए-से-नए मॉडल की और सबसे बढ़िया चीज़ें खरीदने की होड़ में शामिल होंगे, जिसका कोई अंत नहीं है। क्योंकि व्यापार जगत तो आए दिन नयी-नयी चीज़ों का विज्ञापन दिखाकर हमें यकीन दिलाने की कोशिश करता रहेगा कि इन चीज़ों के बिना हम खुश नहीं रह सकते। मगर हम उसके झाँसे में नहीं आएँगे। तो फिर आप कैसे अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रख सकते हैं? बेवजह अपने सिर पर कर्ज़ा मत चढ़ाइए। ढेरों साज़ो-सामान मत बटोरिए जिसकी देखरेख करने और जिसे सँभालने में आपका बहुत सारा वक्‍त खर्च हो सकता है। बाइबल की इस सलाह को मानिए कि अगर हमारे पास “खाने और पहनने को है” तो हमें उसी में संतोष करना चाहिए। (1 तीमुथियुस 6:8) जहाँ तक हो सके, सादा जीवन बिताने की कोशिश कीजिए।

21. हमें क्यों तय करना चाहिए कि कौन-सी बातें हमारे लिए ज़्यादा अहमियत रखती हैं? किस बात को हमारी ज़िंदगी में पहली जगह मिलनी चाहिए?

21 परमेश्‍वर की सेवा को पहली जगह दीजिए और अपने फैसले पर डटे रहिए। हर दिन हमारे पास चौबीस घंटे ही होते हैं, न ज़्यादा, न कम। इसलिए यह तय करना ज़रूरी है कि हम किन बातों को पहली जगह देंगे। वरना जो बातें इतनी ज़रूरी नहीं हैं, उनमें हमारा कीमती वक्‍त बरबाद हो सकता है। और फिर ज़्यादा ज़रूरी बातों के लिए हमारे पास वक्‍त नहीं बचेगा। किस बात को हमारी ज़िंदगी में पहली जगह मिलनी चाहिए? दुनिया में बहुत-से लोग बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ हासिल करने पर ज़्यादा ज़ोर देते हैं ताकि उन्हें ऐसा करियर हासिल हो जिसमें उन्हें खूब पैसा और शोहरत मिले। लेकिन यीशु ने अपने चेलों को बढ़ावा दिया कि वे ‘पहले राज की खोज में लगे रहें।’ (मत्ती 6:33) जी हाँ, सच्चे मसीही होने के नाते हम अपनी ज़िंदगी में परमेश्‍वर के राज को पहली जगह देते हैं। हमारा जीने का तरीका, यानी हम जो चुनाव करते हैं, जो लक्ष्य रखते हैं और जिन कामों में लगे रहते हैं, उनसे यह दिखायी देना चाहिए कि परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना और उसके राज के लिए काम करना हमारे लिए सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है, न कि पैसा और ऐशो-आराम की चीज़ें हासिल करना और नौकरी और काम-धंधे में लगे रहना।

प्रचार में कड़ी मेहनत कीजिए

प्रचार काम को अपनी ज़िंदगी में सबसे पहली जगह देकर हम दिखाते हैं कि हम यहोवा से प्यार करते हैं

22, 23. (क) सच्चे मसीहियों का सबसे खास काम क्या है? हम कैसे दिखा सकते हैं कि यह काम हमारे लिए बहुत अहमियत रखता है? (“ मेरे फैसले ने मुझे खुशी और संतोष की ज़िंदगी दी” नाम का बक्स देखिए।) (ख) नौकरी-धंधे के बारे में आपने क्या ठाना है?

22 यह जानते हुए कि हम आखिरी दिनों की अंतिम घड़ियों में जी रहे हैं, हम अपना पूरा ध्यान प्रचार करने और चेला बनाने के काम पर लगाए रहते हैं। यह सच्चे मसीहियों का सबसे खास काम है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) हमारे आदर्श, यीशु की तरह हम इस काम में पूरी तरह लगे रहना चाहते हैं क्योंकि इससे लोगों की जानें बच सकती हैं। हम कैसे दिखा सकते हैं कि यह काम हमारे लिए बहुत अहमियत रखता है? परमेश्‍वर के ज़्यादातर लोग मंडली के प्रचारकों के नाते पूरे दिल से इस काम में लगे रहते हैं। कुछ लोगों ने पायनियर या मिशनरी सेवा करने के लिए निजी ज़िंदगी में बदलाव किए हैं। बहुत-से माँ-बाप ने इस बात की अहमियत समझी है कि अपने बच्चों के आगे परमेश्‍वर की सेवा में और ज़्यादा करने का लक्ष्य रखें। ये सभी जो राज का संदेश सुनाने का काम पूरे जोश के साथ करते हैं, क्या उन्हें अपनी मेहनत से खुशी मिलती है? बेशक मिलती है! जो इंसान अपना तन-मन लगाकर यहोवा की सेवा करता है, वह अपनी ज़िंदगी में खुशी, संतोष और बेहिसाब आशीषें पाएगा।—नीतिवचन 10:22 पढ़िए।

23 हममें से बहुतों को अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए नौकरी में घंटों बिताने पड़ते हैं। याद रखिए कि यहोवा चाहता है कि हम अपनी मेहनत के कामों से खुशी पाएँ। काम के बारे में परमेश्‍वर की सोच और उसके सिद्धांतों के मुताबिक अगर हम अपना नज़रिया और काम करने का तरीका बदलें, तो हमें अपने काम में संतोष मिल सकता है। लेकिन आइए यह ठान लें कि हम अपने नौकरी-धंधे में कभी इस कदर नहीं उलझेंगे कि हम अपने सबसे खास काम को भूल जाएँ। वह है, परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाना। इस काम को अपनी ज़िंदगी में सबसे पहली जगह देने से हम दिखाते हैं कि हम यहोवा से प्यार करते हैं और इस तरह हम उसके प्यार के लायक बने रहते हैं।

^ पैरा. 6 जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “बढ़ई” किया गया है, वह “लकड़ी का काम करनेवाले कारीगर के लिए एक आम शब्द है, फिर चाहे वह मकान बनाता हो या घर का फर्नीचर या किसी और किस्म की लकड़ी की चीज़ें।”

^ पैरा. 17 नौकरी का चुनाव करते वक्‍त किन-किन बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है, इसकी ब्यौरेदार जानकारी के लिए 15 अप्रैल, 1999 की प्रहरीदुर्ग के पेज 28-30 देखिए।