प्रेषितों के काम 14:1-28

14  अब पौलुस और बरनबास इकुनियुम में एक-साथ यहूदियों के सभा-घर में गए और वहाँ उन्होंने इतने बढ़िया ढंग से बात की कि बहुत-से यहूदी और यूनानी विश्‍वासी बन गए।  मगर जिन यहूदियों ने विश्‍वास नहीं किया, उन्होंने गैर-यहूदियों को भड़काया और भाइयों के खिलाफ उनके मन में कड़वाहट भर दी।+  इसलिए पौलुस और बरनबास ने वहाँ काफी समय बिताया। और यहोवा* से मिले अधिकार की वजह से वे निडर होकर उसका वचन सुनाते रहे। परमेश्‍वर उनके हाथों चमत्कार और आश्‍चर्य के काम करवाता रहा ताकि साबित हो कि परमेश्‍वर की महा-कृपा का जो संदेश वे सुना रहे हैं, वह उसी की तरफ से है।+  मगर शहर के लोगों में फूट पड़ गयी और कुछ यहूदियों की तरफ हो गए, तो कुछ प्रेषितों की तरफ।  गैर-यहूदी और यहूदी अपने अधिकारियों के साथ मिलकर पौलुस और बरनबास को बेइज़्ज़त करने और उन्हें पत्थरों से मार डालने की कोशिश करने लगे।+  मगर पौलुस और बरनबास को इसकी खबर मिल गयी, इसलिए वे वहाँ से भाग गए और लुकाउनिया के लुस्त्रा और दिरबे शहर में और आस-पास के इलाकों में चले गए।+  वहाँ वे खुशखबरी का ऐलान करते चले।  लुस्त्रा में एक आदमी था जो पाँवों से लाचार था। वह जन्म से ही लँगड़ा था और कभी नहीं चला था।  यह आदमी पौलुस की बातें ध्यान से सुन रहा था। पौलुस ने उसे गौर से देखा और जान गया कि उस आदमी में विश्‍वास है और उसे यकीन भी है कि वह ठीक हो सकता है।+ 10  इसलिए पौलुस ने ऊँची आवाज़ में कहा, “अपने पाँवों के बल सीधा खड़ा हो जा।” तब वह उछलकर खड़ा हो गया और चलने लगा।+ 11  जब लोगों ने पौलुस का यह काम देखा, तो लुकाउनिया की भाषा में चिल्लाने लगे, “देवता, इंसान बनकर हमारे बीच उतर आए हैं!”+ 12  वे बरनबास को ज़्यूस देवता मगर पौलुस को हिरमेस देवता कहने लगे क्योंकि बात करने में पौलुस ही आगे था। 13  और शहर के सामने जो ज़्यूस का मंदिर था, वहाँ का पुजारी बैल और फूलों के हार* लेकर फाटक के पास आया। वह लोगों के साथ मिलकर पौलुस और बरनबास के आगे बलि चढ़ाना चाहता था। 14  मगर जब प्रेषित बरनबास और प्रेषित पौलुस ने इस बारे में सुना, तो उन्होंने अपने कपड़े फाड़े और भीड़ में कूद पड़े और चिल्लाकर कहने लगे, 15  “हे लोगो, तुम यह सब क्यों कर रहे हो? हम भी तुम्हारी तरह मामूली इंसान हैं+ और तुम्हें एक खुशखबरी सुना रहे हैं ताकि तुम इन बेकार की चीज़ों को छोड़कर जीवित परमेश्‍वर के पास आओ, जिसने आकाश, पृथ्वी और समुंदर को और जो कुछ उनमें है सब बनाया है।+ 16  बीते समय में उसने सब राष्ट्रों को अपनी-अपनी राह चलने दिया,+ 17  फिर भी वह भलाई करता रहा और इस तरह अपने बारे में गवाही देता रहा।+ वह तुम्हें आकाश से बरसात और अच्छी पैदावार के मौसम देता रहा+ और तुम्हें जी-भरकर खाना देता रहा और तुम्हारे दिलों को आनंद से भरता रहा।”+ 18  यह सब कहने के बाद भी वे बड़ी मुश्‍किल से भीड़ को उनके आगे बलिदान चढ़ाने से रोक पाए। 19  मगर अंताकिया और इकुनियुम से यहूदी वहाँ आ धमके और उन्होंने लोगों को अपनी तरफ कर लिया।+ तब लोगों ने पौलुस को पत्थरों से मारा और उसे मरा समझकर शहर के बाहर घसीटकर ले गए।+ 20  मगर जब चेले उसके चारों तरफ आ खड़े हुए, तो वह उठा और शहर में गया। दूसरे दिन वह बरनबास के साथ दिरबे चला गया।+ 21  वे उस शहर में खुशखबरी सुनाने और कई चेले बनाने के बाद लुस्त्रा, इकुनियुम और अंताकिया लौट गए। 22  वहाँ उन्होंने चेलों की हिम्मत बँधायी+ और यह कहकर उन्हें अपना विश्‍वास मज़बूत बनाए रखने का बढ़ावा दिया, “हमें बहुत तकलीफें झेलकर ही परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना है।”+ 23  इसके अलावा, उन्होंने हर मंडली में उनके लिए प्राचीन ठहराए,+ उपवास रखा और प्रार्थना की+ और प्राचीनों को यहोवा* के हाथ में सौंप दिया जिन्हें परमेश्‍वर पर पूरा विश्‍वास था। 24  फिर वे पिसिदिया के इलाके से होते हुए पमफूलिया पहुँचे+ 25  और पिरगा में वचन सुनाने के बाद वे अत्तलिया आए। 26  वहाँ से वे जहाज़ पर चढ़कर अंताकिया गए। यह वही जगह थी जहाँ भाइयों ने उन्हें परमेश्‍वर की महा-कृपा के भरोसे सौंपा था। और अब वे यह काम पूरा कर चुके थे।+ 27  जब वे अंताकिया पहुँचे, तो उन्होंने मंडली को इकट्ठा किया और उन्हें बताने लगे कि परमेश्‍वर ने उनके ज़रिए कैसे-कैसे काम किए और किस तरह उसने गैर-यहूदियों के लिए विश्‍वास अपनाने का रास्ता खोल दिया है।+ 28  और उन्होंने वहाँ चेलों के साथ काफी वक्‍त बिताया।

कई फुटनोट

अति. क5 देखें।
या “फूलों के ताज।”
अति. क5 देखें।

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो