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बाइबल में बतायी गयी औरतों से हम क्या सीख सकते हैं?

बाइबल में बतायी गयी औरतों से हम क्या सीख सकते हैं?

बाइबल का जवाब

 बाइबल में ऐसी कई औरतों के बारे में लिखा है जिनसे हमें ज़िंदगी के लिए अच्छी सीख मिलती है। (रोमियों 15:4; 2 तीमुथियुस 3:16, 17) इस लेख में उनमें से कुछ औरतों के बारे में बताया गया है। इनमें से ज़्यादातर औरतों से हम अच्छी बातें सीख सकते हैं। और कुछ औरतों से हमें सबक मिलता है कि हमें क्या नहीं करना चाहिए।​—1 कुरिंथियों 10:11; इब्रानियों 6:12.

  अबीगैल

 अबीगैल कौन थी? अबीगैल नाबाल नाम के एक आदमी की पत्नी थी। नाबाल बहुत अमीर था और बड़ा ही कठोर इंसान था। मगर अबीगैल एक नम्र औरत थी और बड़ी अक्लमंद थी। वह बहुत खूबसूरत थी और उसमें कई अच्छे गुण थे इसलिए वह अंदर से भी खूबसूरत थी।​—1 शमूएल 25:3.

 उसने क्या किया? अबीगैल ने अपने परिवार को एक बड़ी मुसीबत से बचाने के लिए अक्लमंदी से काम लिया। वह अपने पति नाबाल के साथ जिस इलाके में रहती थी वहीं पर दाविद छिपने के लिए आया था। दाविद आगे चलकर इसराएल देश का राजा बननेवाला था। वह एक भगोड़े की तरह उस इलाके में भटक रहा था। उसी दौरान दाविद और उसके आदमियों ने नाबाल की भेड़ों को लुटेरों से बचाया था। मगर एक दिन जब दाविद ने नाबाल से खाना माँगने के लिए उसके पास कुछ आदमी भेजे, तो नाबाल ने उनकी बेइज़्ज़ती की और कह दिया कि वह खाना नहीं देगा। तब दाविद को इतना गुस्सा आया कि उसने सोच लिया कि वह नाबाल और उसके घराने के सभी आदमियों को मार डालेगा। इसलिए वह उन सबको मार डालने के लिए अपने आदमियों के साथ निकल पड़ा।​—1 शमूएल 25:10-12, 22.

 जब अबीगैल को पता चला कि नाबाल ने क्या किया, तो उसने अपने पति को और पूरे घराने को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाया। उसने अपने सेवकों के हाथ दाविद और उसके आदमियों के लिए बहुत सारा खाना भेजा। और उनके पीछे-पीछे वह खुद भी गयी ताकि वह दाविद से बिनती करे कि वह नाबाल और उसके घराने पर दया करे और उन्हें छोड़ दे। (1 शमूएल 25:14-19, 24-31) अबीगैल ने दाविद से मिलने पर उसे एक अच्छी सलाह भी दी। जब दाविद ने देखा कि अबीगैल ने उसके लिए और उसके आदमियों के लिए कितना कुछ भेजा है, वह कितनी नम्र है और उसने कितनी अच्छी सलाह दी है, तो वह समझ गया कि यह सब परमेश्‍वर की तरफ से है। वह जान गया कि परमेश्‍वर ने अबीगैल को भेजकर उसे पाप करने से बचाया है। (1 शमूएल 25:32, 33) इस घटना के कुछ समय बाद नाबाल की मौत हो गयी। फिर दाविद ने अबीगैल को अपनी पत्नी बना लिया।​—1 शमूएल 25:37-41.

 अबीगैल से हम क्या सीखते हैं? अबीगैल बहुत अमीर थी और बहुत सुंदर थी, फिर भी वह घमंडी नहीं थी। हालाँकि गलती उसकी नहीं थी, फिर भी उसने माफी माँगी। नाबाल की वजह से ऐसी मुसीबत खड़ी हो गयी थी जिसका सामना करना आसान नहीं था। ऐसे में कोई भी तनाव में आ सकता है। मगर अबीगैल ने शांत मन से सबकुछ सँभाला। उसने होशियारी और हिम्मत से काम लिया।

  इज़ेबेल

 इज़ेबेल कौन थी? वह इसराएल के राजा अहाब की पत्नी थी। वह इसराएली नहीं थी और यहोवा की उपासना नहीं करती थी। वह कनान देश के देवता बाल की पूजा करती थी।

 उसने क्या किया? रानी इज़ेबेल सब पर रौब जमाती थी। वह बेरहम और खूँखार थी। उसने बाल की उपासना को और उसमें होनेवाले अनैतिक कामों को बढ़ावा दिया। साथ ही उसने लोगों को सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की उपासना करने से रोकने की कोशिश की।​—1 राजा 18:4, 13; 19:1-3.

 इज़ेबेल जो चाहती उसे करने के लिए वह झूठ बोलती थी और लोगों को मरवा देती थी। (1 राजा 21:8-16) आखिर में वह एक बुरी मौत मरी और उसे दफनाया भी नहीं गया। परमेश्‍वर ने पहले ही बताया था कि उसके साथ ऐसा होगा।​—1 राजा 21:23; 2 राजा 9:10, 32-37.

 इज़ेबेल से हमें क्या सबक मिलता है? इज़ेबेल एक बुरी औरत थी और उससे हमें सबक लेना चाहिए। वह बदचलन थी और वह जो चाहे उसे पाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती थी। वह इतनी बदनाम थी कि ऐसी हर औरत को इज़ेबेल कहा जाने लगा जो उसकी तरह बेशर्म और बदचलन होती और बेधड़क होकर जो चाहे वह करती।

  एस्तेर

 एस्तेर कौन थी? वह एक यहूदी थी और उसे फारसी राजा अहश-वेरोश ने अपनी रानी बनाया था।

 उसने क्या किया? उसने अपने यहूदी लोगों को मिटने से बचाने के लिए कदम उठाया। राजा अहश-वेरोश के दरबार के सबसे खास मंत्री हामान ने एक आदेश जारी करवाया था कि फलाँ दिन फारसी साम्राज्य में रहनेवाले सभी यहूदियों को मार डाला जाए। (एस्तेर 3:13-15; 4:1, 5) जब एस्तेर को यह बात पता चली, तो उसने अपने भाई मोर्दकै की मदद से राजा अहश-वेरोश को बता दिया कि दुष्ट हामान ने यहूदियों को मार डालने के लिए एक चाल चली है। एस्तेर ने अहश-वेरोश को यह बात बताने के लिए अपनी जान खतरे में डाल दी। (एस्तेर 4:10-16; 7:1-10) तब अहश-वेरोश ने एस्तेर और मोर्दकै से एक और आदेश जारी करवाया कि यहूदी अपनी जान बचाने के लिए कदम उठाएँ। फिर यहूदियों ने अपने दुश्‍मनों को पूरी तरह हरा दिया।​—एस्तेर 8:5-11; 9:16, 17.

 एस्तेर से हम क्या सीखते हैं? रानी एस्तेर बहुत नम्र थी और उसने हिम्मत से काम लिया। उसने घमंड नहीं किया कि वह बहुत सुंदर है और एक रानी है। (भजन 31:24; फिलिप्पियों 2:3) इसके बजाय, उसने मोर्दकै से सलाह और मदद माँगी। उसने अपने पति से सोच-समझकर और आदर से बात की। पर उसने हिम्मत करके वह बात कह दी जो वह कहना चाहती थी। जब सभी यहूदियों की जान खतरे में थी, तब उसने हिम्मत से बताया कि वह भी एक यहूदी है।

  दबोरा

 दबोरा कौन थी? वह एक भविष्यवक्‍तिन थी। इसराएल का परमेश्‍वर यहोवा उसे अपनी मरज़ी के बारे में बताता था और वह ये बातें लोगों को बताती थी। परमेश्‍वर ने उसे लोगों के मामले सुलझाने की ज़िम्मेदारी भी दी थी।​—न्यायियों 4:4, 5.

 उसने क्या किया? दबोरा ने हिम्मत से परमेश्‍वर के लोगों का साथ दिया। परमेश्‍वर की आज्ञा मानकर दबोरा ने बाराक से कहा कि वह इसराएल की सेना लेकर कनानी लोगों से युद्ध करे, क्योंकि कनानी लोग इसराएलियों पर ज़ुल्म करते थे। (न्यायियों 4:6, 7) जब बाराक ने दबोरा से कहा कि वह भी उसके साथ चले तो उसने डरकर ना नहीं कह दिया बल्कि वह उसके साथ गयी।​—न्यायियों 4:8, 9.

 परमेश्‍वर ने इसराएलियों को बहुत बड़ी जीत दिलायी। इस जीत की खुशी में दबोरा और बाराक ने एक गाना गाया। गाने के कुछ बोल दबोरा ने रचे थे। इस गाने में उसने याएल और दूसरी औरतों का ज़िक्र किया जिन्होंने कनानियों को हराने में साथ दिया था।​—न्यायियों, अध्याय 5.

 दबोरा से हम क्या सीखते हैं? दबोरा ने अपनी जान की परवाह नहीं की और हिम्मत से काम लिया। उसने दूसरों की भी हिम्मत बँधायी कि वे वही करें जो यहोवा की नज़र में सही है। और जब लोगों ने ऐसा किया तो उसने दिल खोलकर उनकी तारीफ की।

  दलीला

 दलीला कौन थी? दलीला ही वह औरत थी जिससे इसराएल के न्यायी शिमशोन को प्यार हो गया था।​—न्यायियों 16:4, 5.

 उसने क्या किया? उसने शिमशोन को धोखा दिया। यहोवा शिमशोन के ज़रिए इसराएलियों को पलिश्‍तियों से छुड़ाता था। पलिश्‍ती शिमशोन को पकड़ नहीं पा रहे थे, क्योंकि परमेश्‍वर ने शिमशोन को ऐसी ताकत दी थी जो आम तौर पर इंसानों में नहीं होती। इसलिए पलिश्‍तियों के बड़े आदमियों ने दलीला से कहा कि अगर वह शिमशोन को उनके हाथ पकड़वा देगी तो वे उसे पैसा देंगे। और दलीला मान गयी।​—न्यायियों 13:5.

 पलिश्‍तियों ने दलीला से कहा कि वह पता लगाए कि शिमशोन के पास इतनी ताकत कहाँ से आयी। दलीला पैसों के लालच में आ गयी और यह जानने के लिए शिमशोन के पीछे पड़ गयी। उसने शिमशोन से पता लगा ही लिया कि उसके पास इतनी ताकत कहाँ से आयी। (न्यायियों 16:15-17) फिर उसने जाकर यह बात पलिश्‍तियों को बता दी। तब पलिश्‍तियों ने आकर शिमशोन को पकड़ लिया और उसे कैद में डाल दिया।​—न्यायियों 16:18-21.

 दलीला से हमें क्या सबक मिलता है? दलीला बहुत मतलबी थी। उसने पैसों के लालच में आकर परमेश्‍वर के सेवक शिमशोन को धोखा दिया।

  मरियम (मारथा और लाज़र की बहन)

 मरियम कौन थी? वह मारथा और लाज़र की बहन थी। ये तीनों यीशु के अच्छे दोस्त थे।

 उसने क्या किया? मरियम को विश्‍वास था कि यीशु परमेश्‍वर का बेटा है और उसके दिल में यीशु के लिए गहरा आदर था। उसने कहा कि अगर यीशु होता, तो उसके भाई लाज़र की मौत नहीं होती। जब यीशु ने लाज़र को ज़िंदा किया, तब मरियम भी वहाँ थी। एक बार जब मरियम घर के काम में हाथ बँटाने के बजाय यीशु की बातें सुन रही थी, तो उसकी बहन मारथा को यह ठीक नहीं लगा। लेकिन यीशु ने मरियम की तारीफ की, क्योंकि मरियम ने दूसरी बातों से ज़्यादा परमेश्‍वर की बातों को अहमियत दी।​—लूका 10:38-42.

 एक बार मरियम ने यीशु की खातिरदारी में बहुत सारा पैसा खर्च किया। वह एक ‘खुशबूदार तेल की बोतल लायी जो बहुत महँगा था’ और उसने पूरी बोतल यीशु के सिर और पैरों पर उँडेल दी। (मत्ती 26:6, 7) तब कुछ लोगों ने कहा कि मरियम ने बेकार में पैसे बरबाद कर दिए। मगर यीशु ने कहा कि मरियम ने सही किया है। उसने यह भी कहा, “सारी दुनिया में जहाँ कहीं [परमेश्‍वर के राज की] खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा, वहाँ इस औरत की याद में इसके काम की चर्चा की जाएगी।”​—मत्ती 24:14; 26:8-13.

 मरियम से हम क्या सीखते हैं? उसका विश्‍वास बहुत मज़बूत था। उसने परमेश्‍वर की उपासना को अहमियत दी, न कि उन बातों को जो इतनी ज़रूरी नहीं हैं। उसने यीशु का सम्मान करने के लिए बहुत सारा पैसा खर्च किया।

  मरियम (यीशु की माँ)

 मरियम कौन थी? वह एक जवान यहूदी लड़की थी। शादी से पहले वह परमेश्‍वर के चमत्कार से गर्भवती हुई और उसने परमेश्‍वर के बेटे यीशु को जन्म दिया।

 उसने क्या किया? उसने नम्रता से परमेश्‍वर की बात मानी। एक स्वर्गदूत ने उसे बताया कि वह गर्भवती होगी और मसीहा को जन्म देगी। तब तक मरियम की शादी नहीं हुई थी और यूसुफ से सगाई हो चुकी थी। (लूका 1:26-33) फिर भी उसने कहा कि जैसा परमेश्‍वर चाहता है वैसा हो। यीशु के पैदा होने के बाद मरियम और यूसुफ के और भी बेटे-बेटियाँ हुईं। बाइबल में उनके चार बेटों और दो बेटियों का ज़िक्र मिलता है। इससे पता चलता है कि मरियम सारी ज़िंदगी कुँवारी नहीं थी। (मत्ती 13:55, 56) हालाँकि उसे यीशु को जन्म देने की अनोखी आशीष मिली थी, फिर भी उसने कभी लोगों से खास सम्मान पाने की कोशिश नहीं की। और लोगों ने भी उसे ऐसा सम्मान नहीं दिया। जब यीशु धरती पर था और जब बाद में मसीही मंडली बनी, तब भी मरियम ने सबमें खास दिखने की कोशिश नहीं की।

 मरियम से हम क्या सीखते हैं? मरियम हमेशा परमेश्‍वर की बात मानती थी। इसलिए जब परमेश्‍वर ने उसे यीशु की माँ बनने की बड़ी ज़िम्मेदारी दी, तो उसने हाँ कहा। वह शास्त्र में लिखी बातें बहुत अच्छे से जानती थी। लूका 1:46-55 में मरियम के कहे कुछ शब्द लिखे हुए हैं। उन आयतों में उसने कम-से-कम 20 बार शास्त्र में लिखी बातें कहीं।

  मरियम मगदलीनी

 मरियम मगदलीनी कौन थी? वह यीशु की एक शिष्या थी। उसने हमेशा यीशु का साथ दिया।

 उसने क्या किया? मरियम मगदलीनी उन औरतों में से एक थी जो यीशु और उसके चेलों के साथ दूर-दूर सफर करते थे। उसने यीशु और उसके चेलों की खाने-पहनने की ज़रूरतें पूरी करने के लिए खूब सारा पैसा खर्च किया। (लूका 8:1-3) यीशु ने धरती पर जितने समय सेवा की, उतने समय मरियम ने यीशु का साथ दिया। जब यीशु को मार डाला गया, तब भी वह पास में थी। यीशु अपनी मौत के बाद जब ज़िंदा हुआ, तो कुछ लोगों को सबसे पहले यीशु को देखने का मौका मिला था। उनमें मरियम मगदलीनी भी एक थी।​—यूहन्‍ना 20:11-18.

 मरियम मगदलीनी से हम क्या सीखते हैं? उसने यीशु के लिए दिल खोलकर पैसा खर्च किया ताकि यीशु अच्छे से सेवा कर सके। उसने हमेशा यीशु का साथ दिया।

  मारथा

 मारथा कौन थी? वह लाज़र और मरियम की बहन थी। वे तीनों यरूशलेम के पास बैतनियाह गाँव में रहते थे।

 उसने क्या किया? मारथा, उसकी बहन मरियम और उसका भाई लाज़र यीशु के अच्छे दोस्त थे। यीशु उन तीनों से बहुत प्यार करता था। (यूहन्‍ना 11:5) मारथा मेहमानों का अच्छा खयाल रखती थी। एक बार जब यीशु उनके घर आया, तो मारथा यीशु के खाने के लिए बहुत सारी चीज़ें बनाने में लग गयी। लेकिन मरियम यीशु के पास बैठकर उसकी बातें सुनने लगी। मारथा ने यीशु से शिकायत की कि मरियम उसकी मदद नहीं कर रही है। तब यीशु ने मारथा को प्यार से समझाया कि मरियम जो कर रही है वह सही है।​—लूका 10:38-42.

 जब लाज़र बीमार हो गया, तो मारथा और उसकी बहन ने यीशु को बुलाने के लिए किसी को भेजा। उन्हें पूरा विश्‍वास था कि यीशु लाज़र को ठीक कर सकता है। (यूहन्‍ना 11:3, 21) जब लाज़र की मौत हो गयी, तो मारथा को विश्‍वास था कि भविष्य में एक दिन उसका भाई ज़रूर ज़िंदा होगा। उसे यह भी विश्‍वास था कि यीशु के पास उसी वक्‍त लाज़र को ज़िंदा करने की ताकत है।​—यूहन्‍ना 11:20-27.

 मारथा से हम क्या सीखते हैं? वह मेहमानों की अच्छी देखभाल करती थी। एक बार जब यीशु ने उसे समझाया कि वह जो सोच रही है वह गलत है, तो उसने अपनी गलती मानी। वह अपने दिल की बात खुलकर बताती थी और वह जो विश्‍वास करती थी वह भी खुलकर बताती थी।

  •  मारथा के बारे में ज़्यादा जानने के लिए यह लेख पढ़िए: “मुझे यकीन है।

  मिरयम

 मिरयम कौन थी? वह मूसा और हारून की बहन थी। मिरयम वह पहली औरत है जिसे बाइबल में भविष्यवक्‍तिन कहा गया है।

 उसने क्या किया? एक भविष्यवक्‍तिन होने की वजह से वह परमेश्‍वर का संदेश लोगों को बताती थी। इसराएली उसकी बहुत इज़्ज़त करते थे। लाल सागर में मिस्र की सेना के नाश के बाद जब इसराएली आदमी जीत की खुशी में गीत गाने लगे, तो मिरयम ने भी उनके साथ गाया।​—निर्गमन 15:1, 20, 21.

 कुछ समय बाद मिरयम और हारून ने मूसा के बारे में बुरा-भला कहा। शायद उनमें घमंड आ गया था और वे जलन से भर गए थे। उन्होंने मूसा के खिलाफ जो भी बातें कीं, वह ‘सब यहोवा सुन रहा था।’ (गिनती 12:1-9) उसने मिरयम और हारून को कड़े शब्दों में फटकारा। फिर यहोवा ने मिरयम को कोढ़ से पीड़ित कर दिया, क्योंकि शायद मिरयम ने ही पहले मूसा के बारे में गलत बातें की थीं। मूसा ने यहोवा से बिनती की कि वह मिरयम को ठीक कर दे। तब परमेश्‍वर ने उसे ठीक कर दिया। कोढ़ की वजह से मिरयम को सात दिन तक इसराएलियों की छावनी से दूर अलग रहना पड़ा। फिर इसके बाद उसे छावनी में आने दिया गया।​—गिनती 12:10-15.

 जब परमेश्‍वर ने मिरयम को सज़ा दी, तो उसने अपनी गलती मान ली। यह हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि सदियों बाद परमेश्‍वर ने मिरयम के बारे में एक अच्छी बात कही। उसने इसराएलियों को याद दिलाया कि मिरयम को एक अनोखी ज़िम्मेदारी मिली थी। यहोवा ने कहा, ‘मैंने मूसा, हारून और मिरयम को तुम्हारे आगे-आगे भेजा।’​—मीका 6:4.

 मिरयम से हमें क्या सबक मिलता है? मिरयम की कहानी से हम सीखते हैं कि जब परमेश्‍वर के लोग आपस में बातें करते हैं या एक-दूसरे के बारे में बात करते हैं, तो परमेश्‍वर ध्यान से सुनता है। हमें यह सबक भी मिलता है कि हमें घमंड नहीं करना चाहिए और किसी से जलना नहीं चाहिए, वरना हम दूसरों का नाम खराब कर सकते हैं।

  याएल

 याएल कौन थी? वह हेबेर नाम के एक आदमी की पत्नी थी। हेबेर इसराएली नहीं था। याएल ने परमेश्‍वर के लोगों की मदद करने के लिए हिम्मत से काम लिया।

 उसने क्या किया? जब कनानी लोगों का सेनापति सीसरा इसराएलियों से युद्ध हार गया और छिपने के लिए याएल के तंबू के पास आया, तो याएल ने फौरन समझदारी से काम लिया। उसने सीसरा को अपने तंबू में आकर आराम करने दिया। जब वह सो रहा था, तो याएल ने उसे मार डाला।​—न्यायियों 4:17-21.

 याएल ने जो किया उससे दबोरा की भविष्यवाणी पूरी हुई कि “यहोवा एक औरत के हाथों सीसरा को मरवाएगा।” (न्यायियों 4:9) याएल की तारीफ में कहा गया कि वह “सब औरतों में धन्य है।”​—न्यायियों 5:24.

 याएल से हम क्या सीखते हैं? याएल ने खुद आगे बढ़कर कदम उठाया और हिम्मत से काम लिया। उसकी कहानी से पता चलता है कि यहोवा अपनी भविष्यवाणी किसी भी तरह पूरी करवा सकता है।

  राहाब

 राहाब कौन थी? वह एक वेश्‍या थी जो कनानी लोगों के शहर यरीहो में रहती थी। बाद में वह झूठी उपासना छोड़कर यहोवा की उपासना करने लगी।

 उसने क्या किया? उसने उन दो इसराएली जासूसों को छिपा दिया जो कनान देश की जासूसी करने आए थे। उसने जासूसों की मदद इसलिए की क्योंकि उसने सुना था कि यहोवा ने कैसे इसराएलियों को मिस्र से छुड़ाया था और बाद में कैसे एमोरी लोगों से बचाया था।

 राहाब ने जासूसों की मदद करने के बाद उनसे बिनती की कि जब वे यरीहो का नाश करने आएँगे, तो वे उसे और उसके परिवार को छोड़ दें। जासूस मान गए, मगर उन्होंने राहेल के सामने कुछ शर्तें रखीं। राहेल किसी को न बताए कि वे जासूसी करने आए थे, जब इसराएली यरीहो पर हमला करने आएँगे, तो राहाब और उसका परिवार घर के अंदर ही रहें और राहाब अपने घर की खिड़की से एक लाल रस्सी बाहर लटकाए ताकि इसराएली उस घर को पहचान सकें। राहाब ने जासूसों की हर बात मानी, इसलिए वह और उसका परिवार यरीहो के नाश से बच गए।

 बाद में राहेल ने एक इसराएली आदमी से शादी की। वह राजा दाविद और यीशु मसीह की पुरखिन बनी।​—यहोशू 2:1-24; 6:25; मत्ती 1:5, 6, 16.

 राहाब से हम क्या सीखते हैं? बाइबल में राहाब को विश्‍वास की एक बेहतरीन मिसाल बताया गया है। (इब्रानियों 11:30, 31; याकूब 2:25) उसकी कहानी से पता चलता है कि जो लोग गलत रास्ता छोड़ देते हैं, उन्हें यहोवा माफ करता है और किसी के साथ भेदभाव नहीं करता। एक इंसान चाहे किसी भी देश या भाषा का हो, अगर वह यहोवा पर भरोसा रखे तो यहोवा उसे आशीष देता है।

राहेल

   राहेल कौन थी? राहेल लाबान की बेटी और याकूब की पत्नी थी। याकूब अपनी दोनों पत्नियों में राहेल से ज़्यादा प्यार करता था।

 उसने क्या किया? याकूब से उसके दो बेटे हुए। ये दोनों बेटे इसराएल के 12 गोत्रों में से दो गोत्रों के मुखिया बने। राहेल याकूब से पहली बार तब मिली जब वह अपने पिता की भेड़ें चरा रही थी। (उत्पत्ति 29:9, 10) वह अपनी बड़ी बहन लिआ से ज़्यादा ‘खूबसूरत थी और उसका रंग-रूप देखते ही बनता था।’​—उत्पत्ति 29:17.

 याकूब को राहेल से प्यार हो गया था और वह राहेल से शादी करने के लिए सात साल काम करने को राज़ी हो गया। (उत्पत्ति 29:18) लेकिन लाबान ने याकूब को धोखा दिया और उसकी शादी अपनी बड़ी बेटी लिआ से करा दी। बाद में लाबान ने राहेल से भी उसकी शादी करवायी।​—उत्पत्ति 29:25-27.

 याकूब राहेल और उसके दोनों बेटों को लिआ और उसके बच्चों से ज़्यादा प्यार करता था। (उत्पत्ति 37:3; 44:20, 27-29) इसलिए राहेल और लिआ के बीच हमेशा तकरार होती थी।​—उत्पत्ति 29:30; 30:1, 15.

 राहेल से हम क्या सीखते हैं? राहेल के परिवार में हमेशा कोई-न-कोई परेशानी रहती थी। फिर भी उसने उम्मीद नहीं छोड़ी कि परमेश्‍वर उसकी प्रार्थना ज़रूर सुनेगा। (उत्पत्ति 30:22-24) उसकी कहानी से पता चलता है कि जो एक-से-ज़्यादा शादियाँ करते हैं, उनके परिवार में शांति नहीं रहती। परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा के समय जो कहा था उसे मानना ही अक्लमंदी है कि एक आदमी की एक ही पत्नी होनी चाहिए।​—मत्ती 19:4-6.

  रिबका

 रिबका कौन थी? रिबका इसहाक की पत्नी थी। उनके दो जुड़वाँ बेटे थे एसाव और याकूब।

 उसने क्या किया? रिबका ने हमेशा वही किया जो परमेश्‍वर ने उससे चाहा था। जब ऐसा करना मुश्‍किल था, तब भी उसने किया। जब वह एक कुएँ से पानी भर रही थी, तो एक आदमी ने उससे पीने के लिए थोड़ा पानी माँगा। उसने फौरन उस आदमी को पानी दिया और उसके ऊँटों को भी पानी पिलाया। (उत्पत्ति 24:15-20) वह आदमी अब्राहम का एक सेवक था। वह इसहाक के लिए लड़की ढूँढ़ने काफी दूर से आया था। (उत्पत्ति 24:2-4) उस आदमी ने परमेश्‍वर से मदद के लिए प्रार्थना भी की थी। जब उसने देखा कि रिबका कितनी मेहनती है और उसने उस आदमी के साथ कितना अच्छा व्यवहार किया, तो वह समझ गया कि परमेश्‍वर ने उसकी प्रार्थना का जवाब दे दिया है। परमेश्‍वर ने एक तरह से बता दिया कि रिबका इसहाक के लिए सही रहेगी।​—उत्पत्ति 24:10-14, 21, 27.

 जब रिबका को पता चला कि अब्राहम का सेवक उसे इसहाक के लिए ले जाना चाहता है, तो वह मान गयी। वह उस आदमी के साथ इसहाक के पास चली गयी और उसकी पत्नी बन गयी। (उत्पत्ति 24:57-59) रिबका के दो जुड़वाँ लड़के हुए। यहोवा ने रिबका को बताया कि उसका बड़ा बेटा एसाव छोटे बेटे याकूब की सेवा करेगा। (उत्पत्ति 25:23) जब इसहाक पहलौठे की आशीष एसाव को देनेवाला था, तो रिबका ने वह आशीष याकूब को दिलवाने के लिए सारे इंतज़ाम किए। वह जानती थी कि परमेश्‍वर की यही मरज़ी है कि आशीष याकूब को मिले।​—उत्पत्ति 27:1-17.

 रिबका से हम क्या सीखते हैं? रिबका अपनी हद में रहती थी और बहुत मेहनती थी। वह मेहमानों के साथ अच्छा व्यवहार करती थी। इन्हीं गुणों की वजह से उसने एक पत्नी और माँ की ज़िम्मेदारी अच्छे से निभायी और परमेश्‍वर की उपासना सही तरह से कर पायी।

  रूत

 रूत कौन थी? रूत एक मोआबी औरत थी। उसने यहोवा की उपासना करने के लिए अपने देवी-देवताओं और अपने देश को छोड़ दिया और इसराएल आ गयी।

 उसने क्या किया? वह अपनी सास नाओमी से बहुत प्यार करती थी और उसने नाओमी के लिए बहुत त्याग किया। बहुत पहले जब एक बार इसराएल देश में खाने-पीने की चीज़ें नहीं मिल रही थीं, तो नाओमी अपने पति और दोनों बेटों के साथ मोआब चली गयी थी। वहाँ उसके बेटों ने रूत और ओरपा नाम की मोआबी औरतों से शादी कर ली। लेकिन कुछ समय बाद नाओमी का पति और उसके दोनों बेटे मर गए। नाओमी, रूत और ओरपा, तीनों विधवा हो गयीं।

 फिर नाओमी ने फैसला किया कि वह इसराएल देश लौट जाएगी, क्योंकि अब वहाँ खाने-पीने की चीज़ें मिल रही थीं। रूत और ओरपा भी उसके साथ जाना चाहती थीं। मगर नाओमी ने उनसे कहा कि वे उसके साथ न आएँ और अपने रिश्‍तेदारों के यहाँ लौट जाएँ। तब ओरपा लौट गयी। (रूत 1:1-6, 15) लेकिन रूत ने नाओमी का साथ नहीं छोड़ा। वह अपनी सास से बहुत प्यार करती थी और उसके परमेश्‍वर यहोवा की उपासना करना चाहती थी।​—रूत 1:16, 17; 2:11.

 रूत अपनी सास नाओमी के साथ उसके नगर बेतलेहेम चली गयी। वहाँ कुछ ही समय के अंदर रूत ने अच्छा नाम कमाया, क्योंकि वह काफी मेहनती थी और अपनी सास की अच्छी देखभाल करती थी। बोअज़ नाम के एक ज़मींदार को रूत का स्वभाव बहुत अच्छा लगा और उसने रूत और नाओमी के लिए खूब सारा अनाज दिया। (रूत 2:5-7, 20) बाद में बोअज़ ने रूत से शादी की और रूत राजा दाविद और यीशु मसीह की पुरखिन बनी।​—मत्ती 1:5, 6, 16.

 रूत से हम क्या सीखते हैं? रूत नाओमी और यहोवा से इतना प्यार करती थी कि उसने अपना देश और अपने रिश्‍तेदारों को छोड़ दिया। वह बहुत मेहनती थी और उसे यहोवा से बहुत लगाव था। उसने मुश्‍किलों में भी नाओमी का साथ नहीं छोड़ा।

  लिआ

 लिआ कौन थी? लिआ कुलपिता याकूब की पहली पत्नी थी। उसकी छोटी बहन राहेल याकूब की दूसरी पत्नी थी।​—उत्पत्ति 29:20-29.

 उसने क्या किया? लिआ से याकूब के छ: बेटे हुए। (रूत 4:11) याकूब असल में राहेल से शादी करना चाहता था, लिआ से नहीं। लिआ और राहेल के पिता लाबान ने याकूब को धोखा दिया और उसकी शादी लिआ से करवा दी। जब याकूब ने लाबान से पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया, तो लाबान ने कहा कि उनके यहाँ दस्तूर है कि छोटी से पहले बड़ी बेटी की शादी करानी होती है। एक हफ्ते बाद याकूब ने राहेल से भी शादी की।​—उत्पत्ति 29:26-28.

 याकूब लिआ से ज़्यादा राहेल से प्यार करता था। (उत्पत्ति 29:30) इसलिए लिआ राहेल से जलती थी और कोशिश करती थी कि याकूब राहेल से ज़्यादा उससे प्यार करे। जब यहोवा ने देखा कि लिआ पर क्या बीत रही है, तो उसने लिआ को सात और बच्चे पैदा करने की आशीष दी। उसके एक बेटी और छ: बेटे हुए।​—उत्पत्ति 29:31.

 लिआ से हम क्या सीखते हैं? लिआ के परिवार में बहुत-सी परेशानियाँ थीं। फिर भी उसने परमेश्‍वर पर भरोसा रखा और प्रार्थना करके उससे मदद माँगी। (उत्पत्ति 29:32-35; 30:20) लिआ की कहानी से साफ पता चलता है कि एक-से-ज़्यादा शादी करने से घर में शांति नहीं रहेगी। परमेश्‍वर ने कुछ समय के लिए अपने सेवकों को एक-से-ज़्यादा शादी करने की इजाज़त दी थी, मगर शुरू से उसका नियम था कि एक आदमी की एक ही पत्नी हो।​—मत्ती 19:4-6.

  लूत की पत्नी

 लूत की पत्नी कौन थी? बाइबल में उसका नाम नहीं लिखा है। मगर यह लिखा है कि उसकी दो बेटियाँ थीं। उसका परिवार सदोम शहर में रहता था और वहाँ उनका एक घर था।​—उत्पत्ति 19:1, 15.

 उसने क्या किया? उसने परमेश्‍वर की बात नहीं मानी। परमेश्‍वर ने कहा था कि वह सदोम और आस-पास के शहरों का नाश कर देगा, क्योंकि वहाँ के लोग बहुत गंदे काम करते थे। मगर लूत एक नेक इंसान था। यहोवा उससे और उसके परिवार से प्यार करता था। इसलिए यहोवा ने उन्हें सदोम के नाश से बचाने के लिए उनके पास दो स्वर्गदूतों को भेजा।​—उत्पत्ति 18:20; 19:1, 12, 13.

 स्वर्गदूतों ने लूत और उसके परिवार से कहा कि वे सदोम और आस-पास का इलाका छोड़कर कहीं दूर भाग जाएँ और पीछे मुड़कर न देखें, नहीं तो मर जाएँगे। (उत्पत्ति 19:17) मगर लूत की पत्नी “मुड़कर देखने लगी इसलिए वह नमक का खंभा बन गयी।”​—उत्पत्ति 19:26

 लूत की पत्नी से हमें क्या सबक मिलता है? उसकी कहानी से हम सीखते हैं कि अगर हम धन-दौलत से बहुत प्यार करें और परमेश्‍वर की बात न मानें, तो हमारे साथ बहुत बुरा होगा। यीशु ने भी कहा था कि हमें लूत की पत्नी से सबक लेना चाहिए। उसने कहा “लूत की पत्नी को याद रखो।”​—लूका 17:32.

  शूलेम्मिन लड़की

 शूलेम्मिन लड़की कौन थी? वह किसी देहात में रहनेवाली एक खूबसूरत लड़की थी। बाइबल की श्रेष्ठगीत नाम की किताब में उसी की कहानी लिखी है। लेकिन यह नहीं लिखा है कि उस लड़की का नाम क्या था।

 उसने क्या किया? शूलेम्मिन लड़की एक चरवाहे से प्यार करती थी और वह उसकी वफादार रही। (श्रेष्ठगीत 2:16) जब राजा सुलैमान ने देखा कि वह लड़की बहुत खूबसूरत है, तो उसने उसे पाने की बहुत कोशिश की। (श्रेष्ठगीत 7:6) कुछ लोगों ने शूलेम्मिन लड़की से बहुत कहा कि वह भी सुलैमान से प्यार करे। मगर लड़की ने इनकार कर दिया, इसके बावजूद कि सुलैमान बहुत अमीर था। वह उस गरीब चरवाहे से ही प्यार करती थी और उसकी वफादार रही।​—श्रेष्ठगीत 3:5; 7:10; 8:6.

 शूलेम्मिन लड़की से हम क्या सीखते हैं? वह बहुत सुंदर थी और सब लोग उसकी तारीफ करते थे, फिर भी उसने घमंड नहीं किया। वह लोगों की बातों में नहीं आयी और उसने दौलत पाने और मशहूर होने का मौका ठुकरा दिया, क्योंकि वह अपने चरवाहे की वफादार रहना चाहती थी। उसने खुद को काबू में रखा और अपने चरित्र पर दाग नहीं लगने दिया।

  सारा

 सारा कौन थी? सारा अब्राहम की पत्नी और इसहाक की माँ थी।

 उसने क्या किया? सारा ऊर नाम के एक फलते-फूलते शहर में रहती थी। वहाँ उसे किसी चीज़ की कमी नहीं थी। परमेश्‍वर ने उसके पति अब्राहम से कहा था कि वे ऊर छोड़कर कनान देश चले जाएँ। परमेश्‍वर ने वादा किया कि वह उन्हें आशीष देगा और उनकी संतान से एक बड़ा राष्ट्र बनाएगा। (उत्पत्ति 12:1-5) तब सारा ने अपने पति के साथ ऊर शहर छोड़ दिया, क्योंकि उसे पक्का विश्‍वास था कि परमेश्‍वर अपना वादा ज़रूर पूरा करेगा। उस समय सारा की उम्र 60 से ज़्यादा थी। ऊर छोड़ने के बाद सारा और अब्राहम जगह-जगह तंबुओं में रहने लगे।

 जगह-जगह तंबुओं में रहने की वजह से सारा को कई खतरों का सामना करना पड़ा था। फिर भी वह अपने पति का साथ देती रही, ताकि उसका पति वही करे जो परमेश्‍वर ने कहा है। (उत्पत्ति 12:10, 15) कई साल तक सारा का कोई बच्चा नहीं हुआ, इसलिए वह बहुत दुखी रहती थी। लेकिन परमेश्‍वर ने बहुत पहले वादा किया था कि अब्राहम की संतान को वह आशीष देगा। (उत्पत्ति 12:7; 13:15; 15:18; 16:1, 2, 15) फिर कुछ समय बाद परमेश्‍वर ने वादा किया कि सारा से अब्राहम का एक बच्चा होगा। परमेश्‍वर ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ। हालाँकि सारा की बच्चे पैदा करने की उम्र बीत गयी थी, फिर भी उसने एक बच्चे को जन्म दिया। उस वक्‍त वह 90 साल की थी और अब्राहम 100 साल का था। (उत्पत्ति 17:17; 21:2-5) उन्होंने अपने बच्चे का नाम इसहाक रखा।

 सारा से हम क्या सीखते हैं? सारा से हम सीखते हैं कि हम परमेश्‍वर पर भरोसा रख सकते हैं कि वह अपना हर वादा पूरा करेगा। यहाँ तक कि वे वादे भी पूरा करेगा जो हमें नामुमकिन लग सकते हैं। (इब्रानियों 11:11) सारा से हम यह भी सीखते हैं कि एक पत्नी को क्यों अपने पति का आदर करना चाहिए।​—1 पतरस 3:5, 6.

  हन्‍ना

 हन्‍ना कौन थी? वह एलकाना की पत्नी और शमूएल की माँ थी। शमूएल इसराएल देश का एक जाना-माना भविष्यवक्‍ता बना।​—1 शमूएल 1:1, 2, 4-7.

 हन्‍ना ने क्या किया? हन्‍ना की शादी के कई साल तक उसका कोई बच्चा नहीं हुआ। उसके पति एलकाना की एक और पत्नी थी, पनिन्‍ना। पनिन्‍ना के कई बच्चे थे। वह हन्‍ना को ताने मारती थी। हन्‍ना बहुत दुखी रहती थी, इसलिए उसने परमेश्‍वर से मन की शांति के लिए प्रार्थना की। उसने अपना दुख परमेश्‍वर को बताया और उससे मन्‍नत मानी कि अगर उसका एक बेटा हुआ, तो वह उसे पवित्र डेरे में सेवा करने के लिए दे देगी जहाँ इसराएली परमेश्‍वर की उपासना करते थे।​—1 शमूएल 1:11.

 परमेश्‍वर ने हन्‍ना की प्रार्थना सुन ली और उसे एक बेटा दिया। हन्‍ना ने अपना वादा निभाया और जब शमूएल छोटा बच्चा था तभी वह उसे पवित्र डेरे में सेवा करने के लिए ले गयी। (1 शमूएल 1:27, 28) हन्‍ना हर साल बिन आस्तीन का एक छोटा-सा बागा बनाकर शमूएल के लिए ले जाती थी। बाद में परमेश्‍वर की आशीष से हन्‍ना के पाँच और बच्चे हुए। तीन बेटे और दो बेटियाँ।​—1 शमूएल 2:18-21.

 हन्‍ना से हम क्या सीखते हैं? हन्‍ना ने प्रार्थना करके अपने दिल का सारा हाल यहोवा को बताया। इसलिए वह अपना दुख सह पायी। बाद में उसने परमेश्‍वर को धन्यवाद देने के लिए एक प्रार्थना की जो 1 शमूएल 2:1-10 में लिखी हुई है। हन्‍ना की उस प्रार्थना से हम जान सकते हैं कि उसे परमेश्‍वर पर कितना विश्‍वास था।

  हव्वा

 हव्वा कौन थी? वह दुनिया की सबसे पहली औरत थी। अगर औरतों की बात की जाए, तो बाइबल में सबसे पहले हव्वा का ज़िक्र आता है।

 उसने क्या किया? उसने परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ दी। हव्वा और उसके पति आदम को परिपूर्ण बनाया गया था। उन्हें अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी गयी थी और परमेश्‍वर के जैसे गुण दिखाने के काबिल बनाया गया था। जैसे प्यार और बुद्धि। (उत्पत्ति 1:27) परमेश्‍वर ने आदम को साफ-साफ बताया था कि अगर वे फलाँ पेड़ का फल खाएँगे, तो मर जाएँगे। हव्वा यह बात जानती थी। मगर शैतान ने उसे बहका दिया कि फल खाने से वह नहीं मरेगी बल्कि और भी खुश रहेगी। इसलिए उसने वह फल खा लिया और अपने पति को भी खिलाया।​—उत्पत्ति 3:1-6; 1 तीमुथियुस 2:14.

 हव्वा से हमें क्या सबक मिलता है? परमेश्‍वर ने उसे साफ शब्दों में एक आज्ञा दी थी, मगर उसने वह आज्ञा तोड़ दी और जिसे पाने का उसे हक नहीं था उसके लिए वह ललचाने लगी। हव्वा से हमें सबक मिलता है कि अगर हम अपने अंदर बुरी इच्छाओं को बढ़ने देंगे, तो हम खतरे में पड़ सकते हैं।​—उत्पत्ति 3:6; 1 यूहन्‍ना 2:16.

 ये औरतें किस ज़माने की थीं?

  1.  हव्वा

  2. जलप्रलय (ईसा पूर्व 2370)

  3.  सारा

  4.  लूत की पत्नी

  5.  रिबका

  6.  लिआ

  7.  राहेल

  8. इसराएली मिस्र से निकले (ईसा पूर्व 1513)

  9.  मिरयम

  10.  राहाब

  11.  रूत

  12.  दबोरा

  13.  याएल

  14.  दलीला

  15.  हन्‍ना

  16. इसराएल का पहला राजा (ईसा पूर्व 1117)

  17.  अबीगैल

  18.  शूलेम्मिन लड़की

  19.  इज़ेबेल

  20.  एस्तेर

  21.  मरियम (यीशु की माँ)

  22. यीशु का बपतिस्मा (ईसवी सन्‌ 29)

  23.  मारथा

  24.  मरियम (मारथा और लाज़र की बहन)

  25.  मरियम मगदलीनी

  26. यीशु की मौत (ईसवी सन्‌ 33)