श्रेष्ठगीत 8:1-14
8 काश! तू मेरे भाई जैसा होता,काश! तूने मेरी ही माँ का दूध पीया होता,
फिर तो बाहर मिलने पर मैं तुझे चूम लेती+और कोई मुझे नीची नज़रों से न देखता।
2 मैं तुझे अपनी माँ के घर ले जाती,+उसके घर, जिसने मुझे शिक्षा दी।
मैं तुझे मसालेवाली दाख-मदिरा देती,अनार का ताज़ा रस पिलाती।
3 उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे होताऔर दाएँ हाथ से वह मुझे बाँहों में भर लेता।+
4 हे यरूशलेम की बेटियो, कसम खाओ,
जब तक प्यार खुद मेरे अंदर न जागे, तुम उसे जगाने की कोशिश नहीं करोगी।”+
5 “यह कौन है जो अपने साजन की बाँहों में बाँहें डाले वीराने से चली आ रही है?”
“सेब के पेड़ के नीचे मैंने तुझे जगाया था,उसी जगह जहाँ तेरी माँ को प्रसव-पीड़ा उठी थीऔर जहाँ उस पीड़ा में उसने तुझे जन्म दिया था।
6 मुझे मुहर की तरह अपने दिल पर लगा ले,अपने बाज़ू पर मुझे मुहर कर ले।
क्योंकि प्यार में मौत की तरह ज़बरदस्त ताकत होती है,+सच्ची वफा* कब्र* की तरह किसी के आगे नहीं झुकती।
इसकी लपटें धधकती आग की लपटें हैं,हाँ, याह* की लपटें हैं।+
7 न उफनती लहरें प्यार को बुझा सकती हैं,+न नदियाँ इसे बहाकर ले जा सकती हैं।+
अगर कोई अपनी सारी दौलत देकर इसे खरीदना चाहे,तो भी वह दौलत* ठुकरा दी जाएगी।”
8 “हमारी एक छोटी बहन है,+उसकी छाती अभी तक उभरी नहीं है।
जिस दिन कोई उसका हाथ माँगने आएगा,उस दिन हम अपनी बहन के लिए क्या करेंगे?”
9 “अगर वह एक दीवार होगी,तो हम उसकी मुँडेर को चाँदी से सजाएँगे।लेकिन अगर वह एक दरवाज़ा होगी,तो हम देवदार का तख्ता ठोंककर उसे बंद कर देंगे।”
10 “मैं एक दीवार हूँऔर मेरे स्तन मीनारों के समान हैं।
इसलिए मेरा साजन देख सकता है कि मुझे मन का सुकून है।
11 बाल-हमोन में सुलैमान का अंगूरों का बाग है,+
जिसकी देखभाल का ज़िम्मा उसने रखवालों को दिया है
और हर रखवाला फलों के लिए उसे चाँदी के एक हज़ार टुकड़े देता है।
12 ऐ सुलैमान, तेरे चाँदी के हज़ार टुकड़े* तुझे मुबारक,
तेरे रखवालों को उनकी मेहनत के दो सौ टुकड़े मुबारक,पर मैं अपने अंगूरों के बाग से खुश हूँ।”
13 “ऐ बागों में रहनेवाली,+मेरे साथी तेरी आवाज़ सुनना चाहते हैं,
मैं भी तेरी आवाज़ सुनना चाहता हूँ।”+
14 “मेरे साजन, जल्दी आ,चिकारे की तरह, जवान हिरन की तरह फुर्ती कर,+खुशबूदार पौधों के पहाड़ों को फाँदते हुए चला आ।”
कई फुटनोट
^ “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।
^ शा., “सच्ची भक्ति।”
^ या शायद, “वह आदमी।”
^ शा., “तेरे हज़ार।”