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“जन-सेवा करनेवाले स्वर्गदूत”

“जन-सेवा करनेवाले स्वर्गदूत”

“जन-सेवा करनेवाले स्वर्गदूत”

“क्या ये सब जन-सेवा करनेवाले स्वर्गदूत नहीं, जिन्हें उनकी सेवा के लिए भेजा जाता है जो उद्धार पाएँगे?”—इब्रा. 1:14.

1. मत्ती 18:10 और इब्रानियों 1:14 से हमें क्या दिलासा मिलता है?

 अपने भाई को ठोकर खिलानेवाले को यीशु मसीह ने चिताते हुए कहा: “ध्यान रहे कि तुम इन छोटों में से किसी को भी तुच्छ न समझो; इसलिए कि मैं तुमसे कहता हूँ कि स्वर्ग में इनके स्वर्गदूत हमेशा मेरे स्वर्गीय पिता के मुख के सामने रहते हैं।” (मत्ती 18:10) धर्मी स्वर्गदूतों का ज़िक्र करते हुए प्रेषित पौलुस ने लिखा: “क्या ये सब जन-सेवा करनेवाले स्वर्गदूत नहीं, जिन्हें उनकी सेवा के लिए भेजा जाता है जो उद्धार पाएँगे?” (इब्रा. 1:14) इन आयतों से हमें भरोसा और दिलासा मिलता है कि परमेश्‍वर अपने स्वर्गदूतों के ज़रिए हम इंसानों की मदद करता है। बाइबल स्वर्गदूतों के बारे में क्या कहती है? वे हमारी मदद कैसे करते हैं? उनकी मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?

2, 3. स्वर्गदूत कौन-से अलग-अलग काम करते हैं?

2 स्वर्ग में लाखों-लाख वफादार स्वर्गदूत हैं। ये सभी ‘बड़े वीर हैं, और परमेश्‍वर के वचन को पूरा करते हैं।’ (भज. 103:20; प्रकाशितवाक्य 5:11 पढ़िए।) परमेश्‍वर के इन पुत्रों की अपनी शख्सियत है, इनमें परमेश्‍वर के गुण हैं और इनके पास आज़ाद मरज़ी है। इन्हें बहुत ही बढ़िया तरीके से संगठित किया गया है और परमेश्‍वर के संगठन में इन सबका विशेष स्थान है, जिनमें मीकाएल (यीशु का स्वर्ग का नाम) प्रधान स्वर्गदूत है। (दानि. 10:13; यहू. 9) वह “सारी सृष्टि में पहलौठा है।” वह “वचन” यानी परमेश्‍वर की तरफ से बोलनेवाला है और उसी के ज़रिए यहोवा ने सारी सृष्टि की है।—कुलु. 1:15-17; यूह. 1:1-3.

3 प्रधान स्वर्गदूत के अधीन हैं साराप, जो यहोवा की पवित्रता का ऐलान करते हैं और उसके लोगों को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध बने रहने में मदद देते हैं। और करूब भी हैं जो परमेश्‍वर की सत्ता की पैरवी करते हैं। (उत्प. 3:24; यशा. 6:1-3, 6, 7) इनके अलावा, दूसरे स्वर्गदूत या संदेशवाहक हैं, जो अलग-अलग कामों के ज़रिए परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करते हैं।—इब्रा. 12:22, 23.

4. (क) जब धरती की रचना की गयी तो स्वर्गदूतों ने कैसा महसूस किया? (ख) अगर आज़ाद मरज़ी का सही इस्तेमाल किया गया होता तो इंसानों को क्या फायदा होता?

4 जब ‘पृथ्वी की नेव डाली गयी’ तो सभी स्वर्गदूत बेहद खुश हुए और जिस दरमियान अंतरिक्ष के इस अनोखे नगीने को इंसान का घर बनाया जा रहा था, ये स्वर्गदूत अपना काम खुशी-खुशी कर रहे थे। (अय्यू. 38:4, 7) हालाँकि यहोवा ने इंसानों को “स्वर्गदूतों से कुछ कमतर बनाया,” मगर उन्हें अपने “स्वरूप” में बनाया। इस वजह से इंसान अपने बनानेवाले के महान गुणों को ज़ाहिर करते हैं। (इब्रा. 2:7; उत्प. 1:26) अगर आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर से मिली आज़ाद मरज़ी का सही इस्तेमाल किया होता, तो वे और उनके वंशज धरती पर फिरदौस में ज़िंदगी का लुत्फ उठाते और स्वर्गदूतों से बने परमेश्‍वर के विश्‍वव्यापी परिवार का हिस्सा होते।

5, 6. स्वर्ग में क्या बगावत हुई और इस पर परमेश्‍वर ने कौन-सा कदम उठाया?

5 बेशक, उस वक्‍त पवित्र स्वर्गदूतों को बड़ी ठेस पहुँची होगी जब उन्होंने पहले-पहल अपने ही परिवार से एक स्वर्गदूत को यहोवा के खिलाफ बगावत करते देखा। वह स्वर्गदूत यहोवा की महिमा करने से कतई खुश नहीं था, बल्कि उस पर खुद की उपासना करवाने का जुनून सवार था। अपनी सत्ता जमाने के लिए उसने ढिठाई से अपनी करतूतों को अंजाम दिया और यहोवा के हुकूमत करने के हक पर उँगली उठायी। इस तरह उसने खुद को शैतान (मतलब “विरोधी”) बना लिया। बाइबल बताती है कि शैतान ने झूठ बोलकर पहले इंसानी जोड़े को उनके प्यारे सिरजनहार के खिलाफ भड़काया और अपनी बगावत में शामिल कर लिया। यह इतिहास का सबसे पहला झूठ है।—उत्प. 3:4, 5; यूह. 8:44.

6 यहोवा ने तुरंत शैतान के खिलाफ न्यायदंड सुनाया जो कि बाइबल की पहली भविष्यवाणी है: “मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्‍न करुंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” (उत्प. 3:15) यह दिखाता है कि शैतान और परमेश्‍वर की “स्त्री” के बीच दुश्‍मनी बनी रहती। जी हाँ, यहोवा ने वफादार स्वर्गदूतों से बने अपने स्वर्गीय संगठन को एक प्यारी पत्नी के नज़रिए से देखा। इस पहली भविष्यवाणी से हमें भविष्य की एक पक्की आशा मिलती है। लेकिन यह भविष्यवाणी धीरे-धीरे पूरी होती, इसलिए इसकी हर छोटी-से-छोटी बात तब तक “पवित्र रहस्य” बनी रही, जब तक कि वह पूरी न हुई। परमेश्‍वर का मकसद था कि उसके स्वर्गीय संगठन में से ही कोई एक उन बागियों का नाश करे और फिर वही शख्स “स्वर्ग की चीज़ें हों या धरती की” सबकुछ इकट्ठा करे।—इफि. 1:8-10.

7. नूह के दिनों में कुछ स्वर्गदूतों ने क्या किया और उन्हें उसका क्या अंजाम भुगतना पड़ा?

7 नूह के दिनों में बहुत-से स्वर्गदूतों ने “अपने रहने की सही जगह छोड़ दी” और अपनी हवस पूरी करने के लिए शरीर धारण कर धरती पर उतर आए। (यहू. 6; उत्प. 6:1-4) यहोवा ने उन बागी स्वर्गदूतों को घोर अंधकार में फेंक दिया और वे शैतान के साथ मिल गए और ‘दुष्ट दूत’ बन गए। इस तरह वे भी परमेश्‍वर के सेवकों के जानी दुश्‍मन बन गए।—इफि. 6:11-13; 2 पत. 2:4.

स्वर्गदूत हमारी मदद कैसे करते हैं?

8, 9. यहोवा ने किस तरह स्वर्गदूतों के ज़रिए हम इंसानों की मदद की है?

8 स्वर्गदूतों ने परमेश्‍वर के बहुत-से सेवकों की मदद की है जिनमें से कुछ हैं, अब्राहम, याकूब, मूसा, यहोशू, यशायाह, दानिय्येल, यीशु, पतरस, यूहन्‍ना और पौलुस। धर्मी स्वर्गदूतों ने परमेश्‍वर का न्यायदंड सुनाया, उसकी तरफ से भविष्यवाणियाँ करवायीं, निर्देशन दिए जिनमें मूसा की व्यवस्था भी शामिल है। (2 राजा 19:35; दानि. 10:5, 11, 14; प्रेषि. 7:53; प्रका. 1:1) आज परमेश्‍वर का संदेश हम तक पहुँचाने के लिए शायद स्वर्गदूतों की ज़रूरत न पड़े, क्योंकि हमारे पास परमेश्‍वर का पूरा वचन है। (2 तीमु. 3:16, 17) लेकिन फिर भी स्वर्गदूत परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने और उसके सेवकों की मदद करने में पूरी तरह व्यस्त हैं, भले ही वे हमें दिखायी न दें।

9 बाइबल भरोसा दिलाती है: “यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है।” (भज. 34:7; 91:11) लेकिन आज अगर हम पर आज़माइशें आती हैं तो इसलिए क्योंकि इंसान की खराई का मसला खड़ा किया गया था, जिसकी वजह से यहोवा ने शैतान को हमारी परीक्षा लेने की छूट दी। (लूका 21:16-19) मगर परमेश्‍वर यह भी जानता है कि हममें किस हद तक सहने की ताकत है, इसलिए वह एक सीमा तक ही हमारी खराई की परीक्षा होने देता है। (1 कुरिंथियों 10:13 पढ़िए।) और स्वर्गदूत, परमेश्‍वर की इच्छा के मुताबिक कदम उठाने के लिए हरदम तैयार रहते हैं। उन्होंने शद्रक, मेशक, अबेदनगो, दानिय्येल और पतरस की जान बचायी। मगर जहाँ तक स्तिफनुस और याकूब की बात है, उन्हें मौत के मुँह में जाने से नहीं बचाया। (दानि. 3:17, 18, 28; 6:22; प्रेषि. 7:59, 60; 12:1-3, 7, 11) दोनों मामलों में हालात और मसले अलग थे। उसी तरह आज भी नात्ज़ी यातना शिविरों में हमारे कुछ भाइयों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, मगर दूसरी तरफ यहोवा ने बहुतों की जान बचायी।

10. हमें स्वर्गदूतों की मदद के अलावा और किन तरीकों से मदद मिलती है?

10 बाइबल यह नहीं सिखाती कि धरती के हर इंसान की हिफाज़त के लिए एक स्वर्गदूत ठहराया गया है। फिर भी, हम इस बात का यकीन रखते हैं कि “हम [परमेश्‍वर की] मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।” (1 यूह. 5:14) बेशक, हमारी मदद के लिए यहोवा स्वर्गदूत भेज सकता है, मगर वह हमें अलग-अलग तरीकों से मदद देता है। हमें सहारा और दिलासा देने के लिए वह हमारे भाई-बहनों को उकसा सकता है। कभी-कभी हम पर कोई ऐसी मुसीबत आती है, जो ‘शरीर में एक काँटे’ की तरह होती है। इससे इतनी तकलीफ हो सकती है, मानो “शैतान का एक दूत” थप्पड़ मार रहा हो। ऐसे समय पर परमेश्‍वर हमें बुद्धि और ताकत देता है।—2 कुरिं. 12:7-10; 1 थिस्स. 5:14.

यीशु की मिसाल पर चलिए

11. (क) यीशु के मामले में स्वर्गदूतों को कैसे इस्तेमाल किया गया? (ख) परमेश्‍वर के वफादार रहकर यीशु ने किस बात का सबूत दिया?

11 गौर कीजिए कि यीशु के मामले में कैसे यहोवा ने स्वर्गदूतों का इस्तेमाल किया। स्वर्गदूतों ने यीशु के जन्म और पुनरुत्थान का ऐलान किया और जब वह धरती पर था तब उसकी सेवा-टहल की। स्वर्गदूत चाहते तो उसे गिरफ्तार होने और दर्दनाक मौत से बचा सकते थे। लेकिन ऐसा करने के बजाय एक स्वर्गदूत को उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए भेजा गया। (मत्ती 28:5, 6; लूका 2:8-11; 22:43) यीशु ने यहोवा के मकसद के मुताबिक अपनी कुरबानी देकर इस बात का सबूत दिया कि सिद्ध इंसान यहोवा के प्रति अपनी खराई बनाए रख सकते हैं, फिर चाहे उनकी वफादारी की कितनी ही कड़ी परीक्षा क्यों न हो। इसलिए यहोवा ने यीशु को फिर ज़िंदा कर स्वर्ग में अमर जीवन दिया। उसे “सारा अधिकार” दिया, यहाँ तक कि स्वर्गदूतों को भी उसके अधीन कर दिया। (मत्ती 28:18; प्रेषि. 2:32; 1 पत. 3:22) इस तरह यीशु, परमेश्‍वर की “स्त्री” के “वंश” का अहम हिस्सा साबित हुआ।—उत्प. 3:15; गला. 3:16.

12. हम कैसे यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं?

12 यीशु ने कभी बेवजह खुद को मुसीबत में डालकर यह उम्मीद नहीं की कि स्वर्गदूत आकर उसकी मदद करेंगे। क्योंकि वह जानता था कि इस तरह यहोवा की परीक्षा लेना गलत है। (मत्ती 4:5-7 पढ़िए।) तो आइए हम “स्वस्थ मन” यानी सूझ-बूझ से काम लेते हुए यीशु के नक्शे-कदम पर चलें और बेमतलब खतरा मोल न लें, लेकिन अगर हम पर कोई आज़माइश आती है तो उसका डटकर सामना करें।—तीतु. 2:12.

हम वफादार स्वर्गदूतों से क्या सीख सकते हैं

13. दूसरे पतरस 2:9-11 में बताए धर्मी स्वर्गदूतों से हम क्या सीखते हैं?

13 मंडली में जो लोग यहोवा के अभिषिक्‍त सेवकों के बारे में “बुरी-बुरी बातें बोलते” थे, उन्हें झिड़कते हुए प्रेषित पतरस ने धर्मी स्वर्गदूतों का बढ़िया उदाहरण दिया। हालाँकि ये स्वर्गदूत बड़े शक्‍तिशाली हैं मगर उन्होंने दूसरों पर दोष लगाने से खुद को रोका, क्योंकि वे “यहोवा का आदर करते” हैं। (2 पतरस 2:9-11 पढ़िए।) आइए हम भी बेवजह दूसरों का न्याय करने से अपने आपको रोकें। मंडली में जिन्हें निगरानी का काम सौंपा गया है, उनका आदर करें और मामले को सबसे बड़े न्यायी यहोवा के हाथ में छोड़ दें।—रोमि. 12:18, 19; इब्रा. 13:17.

14. नम्रता के मामले में स्वर्गदूत कैसे हमारे लिए अच्छी मिसाल हैं?

14 नम्रता के मामले में भी यहोवा के स्वर्गदूत हमारे लिए अच्छी मिसाल हैं। कुछ स्वर्गदूतों ने इंसानों पर अपना नाम तक ज़ाहिर नहीं होने दिया। (उत्प. 32:29; न्यायि. 13:17, 18) हालाँकि स्वर्ग में लाखों स्वर्गदूत हैं मगर बाइबल में सिर्फ मीकाएल और जिब्राईल दो स्वर्गदूतों के नाम मिलते हैं। इसलिए हम स्वर्गदूतों को हद-से-ज़्यादा आदर-सम्मान देने से बचे रहते हैं। (लूका 1:26; प्रका. 12:7) जब प्रेषित यूहन्‍ना उपासना के लिए एक स्वर्गदूत के पैरों पर गिरा, तब उसने यूहन्‍ना से कहा: “खबरदार! ऐसा मत कर! मैं तो तेरे और तेरे भाइयों की तरह . . . सिर्फ एक दास हूँ।” (प्रका. 22:8, 9) जी हाँ, हमारी उपासना जिसमें हमारी प्रार्थनाएँ भी शामिल हैं, सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर को जानी चाहिए।—मत्ती 4:8-10 पढ़िए।

15. स्वर्गदूत कैसे धीरज धरने के मामले में हमारे लिए अच्छी मिसाल हैं?

15 स्वर्गदूत धीरज धरने के मामले में भी अच्छी मिसाल रखते हैं। उन्हें परमेश्‍वर के पवित्र रहस्य की सारी बातों की जानकारी नहीं है और वे उन्हें जानने के लिए बड़े उत्सुक रहते हैं, जैसा कि बाइबल कहती है: “स्वर्गदूत भी इन बातों में झाँककर इन्हें बहुत करीब से देखने की तमन्‍ना रखते हैं।” (1 पत. 1:12) फिर भी, वे परमेश्‍वर के समय का धीरज से तब तक इंतज़ार करते हैं, जब तक कि “मंडली के ज़रिए . . . परमेश्‍वर की बुद्धि के अलग-अलग अनगिनत पहलू बताए” नहीं जाते।—इफि. 3:10, 11.

16. हमारे जीने के तरीके का स्वर्गदूतों पर क्या असर होता है?

16 परीक्षा से गुज़रनेवाले मसीही ‘स्वर्गदूतों के लिए तमाशा’ ठहरते हैं। (1 कुरिं. 4:9) किस तरह? उन्हें यह देखकर बड़ा संतोष मिलता है कि मसीही आज़माइशों के बावजूद वफादार बने रहते हैं। इसके अलावा, जब एक पापी पश्‍चाताप करके लौटता है तब भी वे खुशियाँ मनाते हैं। (लूका 15:10) जब मसीही स्त्री परमेश्‍वर के स्तरों पर चलती है तो स्वर्गदूत उस पर गौर करते हैं। बाइबल कहती है: “स्वर्गदूतों की वजह से एक स्त्री को चाहिए कि वह अपने सिर पर अधीनता की निशानी रखे।” (1 कुरिं. 11:3, 10) जी हाँ, स्वर्गदूत यह देखकर बहुत खुश होते हैं कि मसीही स्त्रियाँ और परमेश्‍वर के धरती पर के सारे सेवक उसके कायदे-कानून और उसके मुखियापन का आदर करते हैं। जब परमेश्‍वर के नियमों का पालन किया जाता है तो यह बात परमेश्‍वर के स्वर्गीय पुत्रों के लिए एक बेहतरीन मिसाल ठहरती है।

स्वर्गदूत प्रचार काम में पूरी तरह हमारी मदद करते हैं

17, 18. हम क्यों कह सकते हैं कि स्वर्गदूत प्रचार काम में हमारी मदद कर रहे हैं?

17 “प्रभु के दिन” में जो अद्‌भुत काम हो रहे हैं, उनमें से कुछ में स्वर्गदूत भी हिस्सा ले रहे हैं। इनमें से एक है, सन्‌ 1914 में राज का जन्म और “मीकाएल और उसके स्वर्गदूतों” द्वारा शैतान और उसके पिशाचों का स्वर्ग से खदेड़ा जाना। (प्रका. 1:10; 11:15; 12:5-9) प्रेषित यूहन्‍ना ने एक “स्वर्गदूत को देखा जो आकाश के बीचों-बीच उड़ रहा था, और उसके पास सदा तक कायम रहनेवाली खुशखबरी थी, ताकि वह धरती पर रहनेवालों को . . . खुशी का यह संदेश सुनाए।” उस स्वर्गदूत ने ऐलान किया: “परमेश्‍वर से डरो और उसकी महिमा करो, क्योंकि उसके न्याय करने का वक्‍त आ गया है। इसलिए उसकी उपासना करो जिसने यह आकाश और यह धरती और समुद्र और पानी के सोते बनाए।” (प्रका. 14:6, 7) इससे यहोवा के सेवकों को इस बात का भरोसा मिलता है कि स्थापित राज के प्रचार काम में स्वर्गदूत भी उनके साथ हैं, फिर चाहे शैतान उनके काम का कितना ही विरोध क्यों न करे।—प्रका. 12:13, 17.

18 आज स्वर्गदूत हमें नेकदिल लोगों तक पहुँचाने के लिए आमने-सामने आकर बात नहीं करते, जैसा कि एक स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस के मामले में किया था और उसे इथियोपिया के खोजे तक जाने का मार्गदर्शन दिया था। (प्रेषि. 8:26-29) लेकिन बहुत-से उदाहरणों से यह सबूत मिलता है कि स्वर्गदूत प्रचार में और “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन” रखनेवालों तक पहुँचने में हमारी मदद कर रहे हैं, फिर चाहे वे हमें नज़र न आएँ। * (प्रेषि. 13:48) तो यह कितना ज़रूरी है कि हम नियम से प्रचार में जाएँ ताकि उन लोगों को ढूँढ़ने में अपना भाग अदा कर सकें, जो “पिता की उपासना उसकी पवित्र शक्‍ति से और सच्चाई से” करना चाहते हैं।—यूह. 4:23, 24.

19, 20. “दुनिया की व्यवस्था के आखिर में” होनेवाली घटनाओं में स्वर्गदूत क्या भूमिका निभाते हैं?

19 हमारे दिनों का ज़िक्र करते हुए यीशु ने कहा कि “दुनिया की व्यवस्था के आखिर में” स्वर्गदूत “दुष्टों को नेक जनों से अलग करेंगे।” (मत्ती 13:37-43, 49) स्वर्गदूत अभिषिक्‍त जनों को इकट्ठा करने और उन पर मुहर लगाने में हिस्सा लेते हैं। (मत्ती 24:31 पढ़िए; प्रका. 7:1-3) इतना ही नहीं, वे “भेड़ों को बकरियों से अलग” करने में भी यीशु का साथ देते हैं।—मत्ती 25:31-33, 46.

20 “जब प्रभु यीशु अपने शक्‍तिशाली दूतों के साथ . . . स्वर्ग से प्रकट होगा,” तब वे सभी नाश किए जाएँगे “जो परमेश्‍वर को नहीं जानते और हमारे प्रभु यीशु के बारे में खुशखबरी को नहीं मानते।” (2 थिस्स. 1:6-10) जब यूहन्‍ना ने इस घटना का एक दर्शन देखा तब उसने इसका वर्णन करते हुए कहा कि यीशु और स्वर्ग की उसकी सेना सफेद घोड़ों पर सवार होकर धर्म का युद्ध करने के लिए निकल पड़ी।—प्रका. 19:11-14.

21. जिस स्वर्गदूत के पास “अथाह-कुंड की चाबी और हाथ में एक बड़ी ज़ंजीर” है, वह शैतान और दुष्ट आत्माओं के खिलाफ क्या कदम उठाएगा?

21 यूहन्‍ना ने “एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा जिसके पास अथाह-कुंड की चाबी और हाथ में एक बड़ी ज़ंजीर थी।” यह कोई और नहीं बल्कि प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल है, जो शैतान और दुष्टात्माओं को बाँधकर अथाह कुंड में डाल देगा। फिर मसीह के हज़ार साल के राज के अंत में उन्हें कुछ समय के लिए छोड़ा जाएगा, तब सिद्ध मानवजाति की आखिरी परीक्षा होगी। उसके बाद शैतान और उसका साथ देनेवालों का पूरी तरह खात्मा कर दिया जाएगा। (प्रका. 20:1-3, 7-10; 1 यूह. 3:8) जी हाँ, परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत करनेवालों का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा।

22. बहुत जल्द जो होनेवाला है, उसमें स्वर्गदूत क्या भूमिका अदा करेंगे और उनकी भूमिका के बारे में हमें कैसा महसूस करना चाहिए?

22 शैतान की दुष्ट व्यवस्था से शानदार छुटकारा बहुत निकट है। इतिहास बदलकर रख देनेवाले इस काम में स्वर्गदूत एक अहम भूमिका निभाएँगे। उस दौरान यहोवा की हुकूमत बुलंद की जाएगी, साथ ही धरती और मानवजाति के लिए उसका ठहराया मकसद पूरा होगा। वाकई धर्मी स्वर्गदूत ‘जन-सेवा करनेवाले स्वर्गदूत हैं, जिन्हें उनकी सेवा के लिए भेजा जाता है जो उद्धार पाएँगे।’ तो आइए परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने और हमेशा की ज़िंदगी पाने में हमें स्वर्गदूतों के ज़रिए जो मदद मिल रही है, उसके लिए यहोवा का तहेदिल से शुक्रिया अदा करें।

[फुटनोट]

^ किताब यहोवा के साक्षी—परमेश्‍वर के राज्य की घोषणा करनेवाले (अँग्रेज़ी) के पेज 549-551 देखिए।

आप क्या जवाब देंगे?

• स्वर्गदूतों को किस तरह संगठित किया गया है?

• नूह के दिनों में कुछ स्वर्गदूतों ने क्या किया?

• परमेश्‍वर ने किस तरह स्वर्गदूतों के ज़रिए हमारी मदद की है?

• धर्मी स्वर्गदूत हमारे दिनों में कौन-सी भूमिका अदा करते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीर]

स्वर्गदूतों को परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने से खुशी मिलती है

[पेज 23 पर तसवीर]

जैसा कि दानिय्येल के मामले में हुआ, स्वर्गदूत परमेश्‍वर की इच्छा के मुताबिक कदम उठाने के लिए हरदम तैयार रहते हैं

[पेज 24 पर तसवीरें]

हिम्मत रखिए क्योंकि राज के प्रचार काम में स्वर्गदूत हमें पूरा साथ दे रहे हैं!

[चित्र का श्रेय]

Globe: NASA photo