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परमेश्‍वर के वचन से अपनी और दूसरों की मदद कीजिए

परमेश्‍वर के वचन से अपनी और दूसरों की मदद कीजिए

“मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूं।”—भज. 119:128.

1. हमें परमेश्‍वर के वचन पर पूरा भरोसा क्यों रखना चाहिए?

 जब प्राचीन इस बारे में गौर करते हैं कि एक बाइबल विद्यार्थी, राज का प्रचारक बनने के लिए तैयार है या नहीं, तब वे खुद से पूछते हैं, ‘क्या विद्यार्थी की बातों से पता लगता है कि वह बाइबल को परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा वचन मानता है?’ * दरअसल परमेश्‍वर के सभी सेवकों को अपनी बातों और कामों से दिखाना चाहिए कि वे बाइबल को परमेश्‍वर का वचन मानते हैं। अगर हम परमेश्‍वर के वचन पर पूरा भरोसा रखें और प्रचार में इसका अच्छा इस्तेमाल करें, तो हम दूसरों को यहोवा के बारे में जानने और हमेशा की ज़िंदगी पाने में मदद दे पाएँगे।

2. हमें क्यों ‘उन बातों पर कायम रहना चाहिए जो हमने सीखी हैं’?

2 प्रेषित पौलुस ने परमेश्‍वर के वचन की अहमियत पर ज़ोर देते हुए तीमुथियुस को लिखा, “जो बातें तू ने सीखी हैं और जिनका तुझे दलीलें देकर यकीन दिलाया गया था, उन्हीं बातों पर कायम रह।” “जो बातें” तीमुथियुस ने सीखी थीं, वे बाइबल की सच्चाइयाँ थीं, जिनसे उसे राज की खुशखबरी पर विश्‍वास करने में मदद मिली। इन सच्चाइयों का आज हम पर भी वही असर हुआ है, और ये हमें “उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान” बने रहने में मदद देती हैं। (2 तीमु. 3:14, 15) इसके बाद पौलुस ने जो शब्द कहे, हम अकसर उनका इस्तेमाल यह साबित करने के लिए करते हैं कि बाइबल परमेश्‍वर की तरफ से है। लेकिन 2 तीमुथियुस 3:16 में लिखे शब्दों से हम कुछ और भी सीख सकते हैं। (पढ़िए।) आइए इस आयत पर गहराई से चर्चा करें। ऐसा करने से हमारा विश्‍वास और मज़बूत होगा कि यहोवा की सभी शिक्षाएँ “ठीक” हैं।—भज. 119:128.

‘सिखाने के लिए फायदेमंद’

3-5. (क) पिन्तेकुस्त के दिन पतरस का भाषण सुनने के बाद भीड़ ने कैसा रवैया दिखाया और क्यों? (ख) थिस्सलुनीके में बहुत-से लोगों ने सच्चाई क्यों कबूल की? (ग) हमारे प्रचार काम के बारे में क्या बात लोगों को भा जाती है?

3 यीशु ने इसराएल राष्ट्र से कहा था, “मैं तुम्हारे पास भविष्यवक्‍ताओं और बुद्धिमानों और लोगों को सिखानेवाले उपदेशकों को भेज रहा हूँ।” (मत्ती 23:34) यीशु यहाँ अपने चेलों के बारे में बात कर रहा था, जिन्हें उसने प्रचार में शास्त्र का इस्तेमाल करना सिखाया था। ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, इनमें से एक ‘उपदेशक,’ प्रेषित पतरस ने यरूशलेम में इकट्ठा हुई एक बड़ी भीड़ को भाषण दिया। इस भाषण में उसने इब्रानी शास्त्र की कई आयतों का हवाला दिया। जब प्रेषित पतरस ने उन्हें इन आयतों का मतलब समझाया, तो बहुत-से लोगों का “दिल उन्हें बेहद कचोटने लगा।” उन्होंने अपने पापों के लिए पश्‍चाताप किया और परमेश्‍वर से माफी माँगी। उस दिन करीब तीन हज़ार लोग मसीही बन गए।—प्रेषि. 2:37-41.

4 लोगों को सिखानेवाले एक और उपदेशक, प्रेषित पौलुस ने यरूशलेम के बाहर भी खुशखबरी का प्रचार किया। मिसाल के लिए, मकिदुनिया ज़िले के थिस्सलुनीके शहर में उसने उन यहूदियों से बात की जो सभा-घर में उपासना कर रहे थे। तीन सब्त तक पौलुस ने उन “यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क किया, और वह शास्त्र से हवाले दे-देकर समझाता रहा और इस बात का सबूत देता रहा कि मसीह के लिए दुःख उठाना और मरे हुओं में से जी उठना ज़रूरी था।” इसका क्या नतीजा हुआ? “उनमें से कुछ [यहूदी] विश्‍वासी बन गए” ठीक जैसे “यूनानियों की एक बड़ी भीड़” भी विश्‍वासी बन गयी।—प्रेषि. 17:1-4.

5 आज परमेश्‍वर के सेवक जिस तरह प्रचार में बाइबल का इस्तेमाल करते हैं, वह कई लोगों को भा जाता है। जब स्विट्‌ज़रलैंड में एक बहन ने घर-मालिक को बाइबल की एक आयत पढ़कर सुनायी तो उसने पूछा, “आप लोग कौन हैं?” बहन ने जवाब दिया, “मैं और मेरी दोस्त यहोवा के साक्षी हैं।” इस पर उसने कहा, “मुझे पता होना चाहिए था। यहोवा के साक्षियों के अलावा और कौन मेरे घर आकर बाइबल से आयतें पढ़कर सुनाएगा?”

6, 7. (क) जो मंडली में सिखाते हैं, वे बाइबल का अच्छी तरह इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? (ख) बाइबल अध्ययन चलाते वक्‍त शास्त्र का असरदार तरीके से इस्तेमाल करना क्यों ज़रूरी है?

6 लोगों को सिखाते वक्‍त हम बाइबल का अच्छी तरह इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? अगर आपको स्टेज से मंडली को सिखाने का सम्मान मिला है, तो बाइबल की आयतों का हवाला दीजिए। खास आयतों को अपने शब्दों में समझाने के बजाय, या आयतों का कंप्यूटर से प्रिंट निकालकर या फिर किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से पढ़ने के बजाय, बाइबल खोलिए और उससे पढ़िए। हाज़िर लोगों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दीजिए। साथ ही, आयतों का मतलब समझाइए और बताइए कि कैसे वे आयतें उन्हें यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करने में मदद दे सकती हैं। भाषण में मुश्‍किल उदाहरण देने के बजाय या फिर ऐसे अनुभव बताने के बजाय जिनसे लोगों को हँसी आए, परमेश्‍वर का वचन समझाइए।

7 बाइबल अध्ययन चलाते वक्‍त हमें क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए? जब हम किसी के साथ बाइबल अध्ययन कर रहे होते हैं, तब हमें साहित्य में दिए गए बाइबल के हवाले यूँ ही छोड़कर आगे नहीं बढ़ जाना चाहिए। हमें बाइबल विद्यार्थी को बढ़ावा देना चाहिए कि वह आयतों के हवाले खोलकर पढ़े और फिर हमें उनका मतलब समझाना चाहिए। ऐसा करते वक्‍त हमें विद्यार्थी को लंबा-चौड़ा भाषण नहीं देना चाहिए बल्कि उसे आयत पर अपनी राय बताने का मौका देना चाहिए। यह बताने के बजाय कि उसे क्या मानना चाहिए या कैसे पेश आना चाहिए, हम उससे कुछ ऐसे सवाल पूछ सकते हैं जिससे सही नतीजे पर पहुँचने में उसे मदद मिले। *

‘ताड़ना देने के लिए फायदेमंद’

8. पौलुस ने किस तरह अपने अंदर चल रहे संघर्ष का सामना किया?

8 हम अकसर सोचते हैं कि ‘ताड़ना देना’ तो मसीही प्राचीनों का काम है। और इसमें कोई दो राय नहीं कि ‘जो पाप में लगे रहते हैं, उन्हें ताड़ना देने’ की ज़िम्मेदारी निगरानों को दी गयी है। (1 तीमु. 5:20; तीतु. 1:13) लेकिन खुद को ताड़ना देना भी ज़रूरी है। पौलुस के उदाहरण पर गौर कीजिए। वह सभी मसीहियों के लिए एक उम्दा मिसाल था। उसका ज़मीर साफ था। (2 तीमु. 1:3) फिर भी, उसने लिखा, “मैं अपने अंगों में दूसरे कानून को काम करता हुआ पाता हूँ, जो मेरे सोच-विचार पर राज करनेवाले कानून से लड़ता है और मुझे पाप के उस कानून का गुलाम बना लेता है।” इन शब्दों के आस-पास की आयतों का अध्ययन करके हम और अच्छी तरह समझ पाएँगे कि अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाने के लिए पौलुस को किस तरह की लड़ाई लड़नी पड़ी थी।—रोमियों 7:21-25 पढ़िए।

9, 10. (क) पौलुस को शायद किन कमज़ोरियों का सामना करना पड़ा होगा? (ख) अपनी कमज़ोरियों से लड़ने के लिए पौलुस ने क्या किया होगा?

9 पौलुस किस तरह की कमज़ोरियों पर काबू पाने के लिए संघर्ष कर रहा था? उसने साफ शब्दों में तो उनका ज़िक्र नहीं किया लेकिन उसने तीमुथियुस को बताया कि वह एक “गुस्ताख” था। (1 तीमु. 1:13) मसीही बनने से पहले पौलुस, यीशु के चेलों पर कड़ा अत्याचार करता था। उनके बारे में वह कैसा महसूस करता था, इस बारे में उसने खुद कहा, ‘मैं उनके खिलाफ गुस्से से पागल हो गया था।’ (प्रेषि. 26:11) पौलुस ने अपने गुस्से पर काबू करना सीखा। मगर कई बार उसे अपनी भावनाओं और बोली को काबू में रखने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ी होगी। (प्रेषि. 15:36-39) किस बात से उसे मदद मिली?

10 कुरिंथ के मसीहियों को लिखते वक्‍त पौलुस ने बताया कि वह खुद को कैसे ताड़ना देता था। (1 कुरिंथियों 9:26, 27 पढ़िए।) अपनी कमज़ोरियों से लड़ने के लिए उसने कुछ ठोस कदम उठाए। ज़रूर उसने शास्त्र में इस बारे में दी सलाह पर खोजबीन की होगी, यहोवा से प्रार्थना करके मदद माँगी होगी ताकि वह उन सलाहों को मान सके और सुधार करने में मेहनत की होगी। * हम पौलुस की मिसाल से बहुत कुछ सीख सकते हैं क्योंकि हम भी अपनी कमज़ोरियों के खिलाफ एक लड़ाई लड़ रहे हैं।

11. हम कैसे खुद को ‘जाँचते रह’ सकते हैं ताकि जान सकें कि हम सच्चाई की राह पर चल रहे हैं या नहीं?

11 हमें अपनी कमज़ोरियों के खिलाफ लड़ते रहना चाहिए। हमें खुद को ‘जाँचते रहना’ चाहिए ताकि हम जान सकें कि हम वाकई सच्चाई की राह पर चल रहे हैं या नहीं। (2 कुरिं. 13:5) जब हम कुलुस्सियों 3:5-10 जैसी आयतें पढ़ते हैं, तो हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा हूँ या फिर क्या मैं नैतिक स्तरों पर चलने में ढीला पड़ जाता हूँ? इंटरनेट का इस्तेमाल करते वक्‍त अगर अचानक कोई अश्‍लील वेब साइट सामने आ जाए तो क्या मैं तुरंत उसे बंद कर देता हूँ? या फिर क्या मैं ऐसी वेब साइट ढूँढ़ने की कोशिश करता हूँ जो मसीहियों को नहीं देखनी चाहिए?’ परमेश्‍वर के वचन में दी सलाह अपनी ज़िंदगी में लागू करने से हमें ‘जागते रहने और होश-हवास बनाए रखने’ में मदद मिलेगी।—1 थिस्स. 5:6-8.

‘टेढ़ी बातों को सीध में लाने के लिए फायदेमंद’

12, 13. (क) “टेढ़ी बातों को सीध में लाने” का क्या मतलब है? (ख) बिगड़े मामले को सीध में लाने के लिए हमें दूसरों से किस तरह बात नहीं करनी चाहिए?

12 जिस यूनानी शब्द का अनुवाद, ‘टेढ़ी बातों को सीध में लाना’ किया गया है, उसका मतलब है बिगड़ी बात सुधारना या उसे दोबारा ठीक करना। कई बार जब लोग हमारे किसी काम या हमारी बात को गलत समझते हैं, तो हमें उनकी गलत सोच सुधारने के लिए कदम उठाना पड़ता है। मिसाल के लिए, एक बार जब यहूदी धर्मगुरुओं ने यीशु की नुक्‍ताचीनी की कि वह “कर-वसूलनेवालों और पापियों” के साथ अच्छी तरह पेश आता है, तो यीशु ने उनकी गलत सोच सुधारी और उन्हें समझाया, “जो सेहतमंद हैं, उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। इसलिए जाओ और इस बात का मतलब सीखो, ‘मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ।’” (मत्ती 9:11-13) साथ ही, यीशु ने इस बारे में सही समझ दी कि यहोवा किस तरह का परमेश्‍वर है। उसने धीरज और प्यार से लोगों को सिखाया कि यहोवा “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य” परमेश्‍वर है। (निर्ग. 34:6) यीशु ने “टेढ़ी बातों को सीध में लाने” के लिए जो मेहनत की उसका अच्छा नतीजा निकला। बहुत-से नम्र लोग खुशखबरी पर विश्‍वास कर पाए।

13 यीशु के उदाहरण से हम सीखते हैं कि जब किसी को हमारे बारे में गलतफहमी हो जाती है तो हम उसकी गलतफहमी दूर करने और मामले को सीध में लाने के लिए क्या कर सकते हैं। अगर किसी ने हमें ठेस पहुँचायी है तो उससे मामला निपटाते वक्‍त रूखे स्वर में बात करना सही नहीं होगा। दूसरा तीमुथियुस 3:16 हमें ऐसा करने की इजाज़त नहीं देता। शास्त्र हमसे यह नहीं कहता कि हम दूसरों की भावनाओं की फिक्र किए बिना, उनसे जो चाहे कह दें। अगर हम कड़े शब्दों में उनकी गलती सुधारें तो हमारे शब्द उन्हें “तलवार की नाई चुभ” सकते हैं और इससे काफी नुकसान हो सकता है!—नीति. 12:18.

14-16. (क) जब दूसरों को मदद की ज़रूरत होती है, तब प्राचीन किस तरह “टेढ़ी बातों को सीध में ला” सकते हैं? (ख) अपने बच्चों के मामले में “टेढ़ी बातों को सीध में लाने” के लिए बाइबल के सिद्धांतों को अपनाना क्यों ज़रूरी है?

14 अब सवाल यह है कि “टेढ़ी बात को सीध में लाने” के लिए हम कैसे दूसरों के साथ प्यार से पेश आ सकते हैं और धीरज से काम ले सकते हैं? कल्पना कीजिए कि एक शादी-शुदा जोड़े के बीच अकसर बहस होती रहती है। वे एक मसीही प्राचीन से मदद माँगते हैं। वह उन दोनों में से किसी का पक्ष नहीं लेगा, न ही वह उन्हें इस बारे में अपनी राय देगा। इसके बजाय, वह बाइबल के सिद्धांतों की मदद से उन्हें समझाएगा। इसके लिए वह पारिवारिक सुख का रहस्य किताब के अध्याय 3 में दिए सिद्धांत इस्तेमाल कर सकता है। जब प्राचीन उनके साथ इस बारे में चर्चा करता है, तो शायद पति-पत्नी समझ पाएँ कि उन्हें किस सलाह को और अच्छी तरह लागू करने की ज़रूरत है। कुछ समय बाद, प्राचीन उस जोड़े से पूछ सकता है कि अब हालात कैसे हैं और अगर ज़रूरत हो, तो वह उनसे कह सकता है कि उसे उनकी मदद करने में खुशी होगी।

 15 माता-पिता कैसे अपने बच्चों के मामले में “टेढ़ी बातों को सीध में” ला सकते हैं ताकि वे आध्यात्मिक मायने में मज़बूत बने रहें? कल्पना कीजिए कि आपकी नौजवान बेटी की किसी से नयी-नयी दोस्ती हुई है। मगर आपको लगता है कि इस दोस्त का साथ आपकी बेटी के लिए सही नहीं है। सबसे पहले, उस नए दोस्त के बारे में पता लगाइए। फिर अगर सचमुच कोई चिंता की बात है, तो आप अपनी बेटी से बात कर सकते हैं। आप चाहें तो सजग होइए! में आनेवाले लेख नौजवान पूछते हैं और क्वेश्‍चन्स यंग पीपल आस्क—आंसर्स दैट वर्क, वॉल्यूम 2 किताब से कुछ बाइबल सिद्धांत बता सकते हैं। अगले कुछ दिनों में आप उसके साथ थोड़ा और वक्‍त बिता सकते हैं। जब वह प्रचार में जाती है या परिवार के साथ मनोरंजन करती है, तो आप उसके रवैए पर भी ध्यान दे सकते हैं। अगर आप प्यार से पेश आएँ और धीरज से काम लें, तो आपकी बेटी आपके प्यार और सच्ची दिलचस्पी को भाँप लेगी। मुमकिन है ये बातें उसके दिल को छू जाएँगी और वह आपकी दी सलाह पर चलना चाहेगी जिससे उसे आगे चलकर पछताना न पड़े।

“टेढ़ी बातों को सीध में लाने” के लिए बाइबल का इस्तेमाल कर माता-पिता अपने नौजवानों की मदद कर सकते हैं, जिससे उन्हें आगे चलकर पछताना न पड़े ( पैराग्राफ 15 देखिए)

16 उसी तरह, जब दूसरे अपनी सेहत की वजह से चिंता करते हैं या नौकरी छूट जाने की वजह से निराश हो जाते हैं या फिर कुछ बाइबल शिक्षाएँ मानना उन्हें मुश्‍किल लग रहा है तो प्यार और धीरज से हम उनकी हिम्मत बढ़ा सकते हैं। जी हाँ, परमेश्‍वर के वचन का इस्तेमाल करके “टेढ़ी बातों को सीध में लाने” से यहोवा के लोगों को बहुत-से फायदे होते हैं।

“परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक अनुशासन देने के लिए फायदेमंद”

17. हमें खुशी-खुशी अनुशासन क्यों कबूल करना चाहिए?

17 “सच है, किसी भी तरह का अनुशासन अभी के लिए सुखद नहीं लगता बल्कि दुःखदायी लगता है।” लेकिन फिर भी, “जो लोग इससे प्रशिक्षण पाते हैं, उनके लिए आगे चलकर यह शांति का फल पैदा करता है यानी वे परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक सही काम करते हैं।” (इब्रा. 12:11) ज़्यादातर मसीही जिनकी परवरिश साक्षी परिवार में हुई, बताते हैं कि उन्हें अपने माता-पिता से जो अनुशासन मिला, उससे उन्हें बहुत मदद मिली। और जब हम प्राचीनों के ज़रिए मिलनेवाले यहोवा के अनुशासन को कबूल करते हैं, तो हम जीवन की राह पर बने रहते हैं।—नीति. 4:13.

18, 19. (क) “परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक अनुशासन देने के लिए” नीतिवचन 18:13 में दी सलाह क्यों ज़रूरी है? (ख) जब प्राचीन पाप करनेवाले के साथ कोमलता और प्यार से पेश आते हैं, तो अकसर क्या नतीजा होता है?

18 अनुशासन इस तरह दिया जाना चाहिए जिससे सामनेवाले को फायदा हो। यह अपने आपमें एक कला है। यहोवा मसीहियों से कहता है कि उन्हें “परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक” इसे देना चाहिए। (2 तीमु. 3:16) इसका मतलब है कि हमें अनुशासन देते वक्‍त बाइबल के सिद्धांतों की मदद लेनी चाहिए। इनमें से एक सिद्धांत नीतिवचन 18:13 में दिया गया है, जहाँ लिखा है, “जो बिना बात सुने उत्तर देता है, वह मूढ़ ठहरता, और उसका अनादर होता है।” इसलिए जब कोई प्राचीनों को बताता है कि फलाँ भाई या बहन ने कोई गंभीर पाप किया है तो प्राचीनों को अनुशासन देने से पहले मामले की अच्छी तरह जाँच कर लेनी चाहिए और पूरी तरह जानकारी का पता लगा लेना चाहिए। (व्यव. 13:14) तभी वे “परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक” अनुशासन दे पाएँगे।

19 इसके अलावा, बाइबल प्राचीनों को यह हिदायत भी देती है कि वे “कोमलता से” दूसरों को सुधारें। (2 तीमुथियुस 2:24-26 पढ़िए।) यह सच है, एक इंसान के पाप करने की वजह से यहोवा के नाम की निंदा हो सकती है और इससे दूसरों को भी ठेस पहुँच सकती है। लेकिन अगर प्राचीन ऐसे इंसान को सलाह देते वक्‍त गुस्सा हो जाता है, तो वह उसकी मदद नहीं कर पाएगा। इसके बजाय, अगर प्राचीन “परमेश्‍वर की कृपा” दिखाएँ, तो शायद पाप करनेवाले को अपनी गलती का एहसास हो जाए और वह पश्‍चाताप करे।—रोमि. 2:4.

20. अपने बच्चों को अनुशासन देते वक्‍त माता-पिता को कौन-से सिद्धांत लागू करने चाहिए?

20 माता-पिताओं को अपने बच्चों की परवरिश करते वक्‍त “यहोवा की तरफ से आनेवाला अनुशासन देते हुए और उसी की सोच के मुताबिक उनके मन को ढालते हुए” बाइबल में दिए सिद्धांत लागू करने चाहिए। (इफि. 6:4) मिसाल के लिए, एक पिता को तब क्या करना चाहिए जब कोई आकर उसके बेटे की शिकायत करता है? सज़ा देने से पहले पिता को पूरी जानकारी का पता लगा लेना चाहिए। और मसीही परिवार में किसी को इतना गुस्सा नहीं करना चाहिए कि वह मारने-पीटने पर उतारू हो जाए। “यहोवा गहरी करुणा दिखाता है और दयालु परमेश्‍वर है” और जब माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन देते हैं, तो उन्हें भी ये प्यार-भरे गुण दिखाने चाहिए।—याकू. 5:11.

यहोवा का दिया अनमोल तोहफा

21, 22. भजन 119:97-104 में दी कौन-सी बात यहोवा के वचन के लिए आपकी भावनाओं को सबसे अच्छी तरह ज़ाहिर करती है?

21 एक बार परमेश्‍वर के एक सेवक ने बताया कि क्यों उसे परमेश्‍वर के कानून से प्यार था। (भजन 119:97-104 पढ़िए।) उसका अध्ययन करके उसने बुद्धि और अंदरूनी समझ हासिल की। उसमें दी सलाह लागू करके वह गलत राह पर चलने से दूर रह पाया, जिस पर चलने से कितनों को दुख पहुँचा है। शास्त्र का अध्ययन करना उसे अच्छा लगता था और उसमें दी सलाह पर चलने से उसे फायदा हुआ। उसने ठान लिया था कि वह परमेश्‍वर के कानून को ज़िंदगी-भर मानेगा।

22 क्या आप ‘पूरे शास्त्र’ को अनमोल समझते हैं? बाइबल की मदद से आप अपना विश्‍वास मज़बूत कर सकते हैं कि परमेश्‍वर अपना मकसद ज़रूर पूरा करेगा। इसमें दी परमेश्‍वर की सलाह हमारी मदद करती है कि हम पाप करने से दूर रहें, जिसके खतरनाक अंजाम हो सकते हैं। इसमें दी बातें दूसरों को अच्छी तरह समझाने से आप जीवन की राह पर चलने और उस पर बने रहने में उनकी मदद कर पाएँगे। आइए हम अपने बुद्धिमान और प्यारे परमेश्‍वर यहोवा की सेवा करते हुए “शास्त्र” का पूरा-पूरा इस्तेमाल करें।

^ यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए संगठित किताब का पेज 79 देखिए।

^ सिखाते वक्‍त यीशु अकसर दूसरों से पूछता था, “तुम क्या सोचते हो?” फिर वह उन्हें अपनी राय बताने का मौका देता था।—मत्ती 18:12; 21:28; 22:42.

^ पौलुस की कई चिट्ठियों में हमें बढ़ावा दिया गया है कि हम अपनी कमज़ोरियों के खिलाफ लड़ें। (रोमि. 6:12; गला. 5:16-18) ऐसा कहा जा सकता है कि उसने दूसरों को जो सलाह दी, वह खुद भी उसे मानता था।—रोमि. 2:21.