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अध्याय तेईस

उसने प्रभु से माफ करना सीखा

उसने प्रभु से माफ करना सीखा

1. पतरस की ज़िंदगी का सबसे बुरा दिन कौन-सा था?

पतरस उस पल को भुलाए नहीं भूल सकता जब उसकी नज़रें यीशु की नज़रों से मिलीं। क्या यीशु की आँखें यह शिकायत कर रही थीं कि तूने मुझे निराश कर दिया है? यह हम पक्के तौर पर नहीं कह सकते। परमेश्‍वर की प्रेरणा से दर्ज़ ब्यौरा सिर्फ इतना बताता है कि “प्रभु ने मुड़कर सीधे पतरस को देखा।” (लूका 22:61) मगर उसकी एक नज़र से ही पतरस समझ गया कि उसने कितनी बड़ी भूल की है। उसने अपने प्यारे मालिक का इनकार कर दिया! यीशु ने कहा था कि पतरस उसका इनकार कर देगा मगर पतरस ने ज़ोर देकर कहा था कि वह कभी ऐसा नहीं करेगा। ज़िंदगी के इस मुकाम पर पतरस एकदम हताश हो गया। यह शायद उसकी ज़िंदगी का सबसे बुरा दिन था।

2. (क) पतरस को कौन-सा अहम सबक सीखना था? (ख) हम उसकी कहानी से क्या सीखते हैं?

2 इतनी बड़ी गलती करने के बाद क्या पतरस उसे सुधार पाता? बिलकुल, क्योंकि उसका विश्‍वास बहुत मज़बूत था। इतना ही नहीं, उसके पास यीशु से एक अहम सबक सीखने का भी मौका था और वह था, दूसरों को माफ करने के बारे में। हममें से हरेक को यह सबक सीखना होगा। तो आइए देखें कि पतरस ने यह सबक कैसे सीखा।

उसे बहुत कुछ सीखना था

3, 4. (क) पतरस ने यीशु से क्या सवाल पूछा और क्यों? (ख) यीशु ने पतरस को कैसे एहसास दिलाया कि वह अपने ज़माने के लोगों की तरह सोचने लगा था?

3 इस घटना से करीब छः महीने पहले, जब पतरस अपने शहर कफरनहूम में था तो उसने यीशु से पूछा था, “प्रभु, अगर मेरा भाई मेरे खिलाफ पाप करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे माफ करूँ? सात बार?” पतरस को शायद लगा कि वह बड़ा दिलदार बन रहा है। और क्यों न हो, उन दिनों के धर्म गुरु सिखाते थे कि हमें दूसरों को सिर्फ तीन बार माफ करना चाहिए! यीशु ने पतरस को जवाब दिया, “सात बार नहीं बल्कि 77 बार।”​—मत्ती 18:21, 22.

4 क्या यीशु के कहने का मतलब था कि पतरस को हिसाब रखना चाहिए कि दूसरे उसके खिलाफ कितनी बार पाप करते हैं? जी नहीं। जब उसने पतरस से कहा कि 7 के बजाय 77 बार माफ करो तो उसके कहने का मतलब था कि अगर हममें प्यार होगा तो हम इस बात की कोई सीमा नहीं ठहराएँगे कि हम कितनी बार माफ करेंगे। (1 कुरिं. 13:4, 5) यीशु पतरस को एहसास दिला रहा था कि वह अपने ज़माने के लोगों की तरह सोचने लगा था, जो पत्थरदिल थे और दूसरों को माफ करने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन जो परमेश्‍वर की तरह बनना चाहते हैं वे दिल खोलकर माफ करते हैं, फिर चाहे दूसरे उसके खिलाफ कितनी ही बार गलती करें।​—1 यूहन्‍ना 1:7-9 पढ़िए।

5. हम अकसर माफ करने का सबक कब सीखते हैं?

5 पतरस ने यीशु से कोई बहस नहीं की। लेकिन क्या यह सबक वाकई उसके दिल तक पहुँचा? माफ करना कितना ज़रूरी है, यह अकसर हम तभी सीखते हैं जब हम खुद गलती करते हैं और हमें माफी की सख्त ज़रूरत होती है। आइए हम उन घटनाओं पर गौर करें जो यीशु की मौत से पहले घटी थीं। उन मुश्‍किल घड़ियों में पतरस ने कई गलतियाँ कीं जिसके लिए उसे अपने प्रभु से माफी की ज़रूरत पड़ी।

यीशु ने पतरस को कई बार माफ किया

6. (क) जब यीशु नम्रता का सबक सिखा रहा था तो पतरस ने क्या कहा? (ख) यीशु, पतरस के साथ कैसे पेश आया?

6 इस धरती पर यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात थी, इसलिए यह रात बहुत ही अहम थी। उसे अपने प्रेषितों को अब भी बहुत कुछ सिखाना था, जैसे नम्र रहने के बारे में। यीशु ने उनके सामने नम्रता की मिसाल रखी। उसने उनके पैर धोए जो काम आम तौर पर घर का सबसे निचले दर्जे का सेवक करता था। पहले-पहल तो पतरस ने यीशु के इस काम पर सवाल उठाया। फिर उसने कहा कि वह यीशु को उसके पैर धोने नहीं देगा। इसके बाद उसने ज़िद की कि यीशु न सिर्फ उसके पैर बल्कि हाथ और सिर भी धोए! ऐसे में यीशु ने सब्र नहीं खोया। उसने बड़ी शांति से पतरस को समझाया कि वह ऐसा क्यों कर रहा है और यह ज़रूरी क्यों है।​—यूह. 13:1-17.

7, 8. (क) पतरस की किन गलतियों की वजह से यीशु सब्र खो सकता था? (ख) यीशु कैसे पतरस को दिल खोलकर माफ करता रहा?

7 इसके कुछ ही समय बाद, पतरस ने फिर से यीशु के सब्र की परीक्षा ली। हुआ यह कि प्रेषितों में इस बात को लेकर बहस छिड़ गयी कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। खुद पर इतना घमंड करना कितनी शर्म की बात है और इसमें कोई शक नहीं कि पतरस भी इस बहस में शामिल था। फिर भी यीशु ने प्यार से उनकी सोच सुधारी और अब तक वे जिस तरह उसके वफादार रहे उसके लिए उनकी तारीफ भी की। मगर फिर यीशु ने भविष्यवाणी की कि जल्द ही वे सब उसे छोड़कर भाग जाएँगे। पतरस झट-से बोल पड़ा कि अगर उसे मरना पड़ा तो भी वह यीशु का साथ नहीं छोड़ेगा। इस पर यीशु ने भविष्यवाणी की कि उसी रात मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले पतरस तीन बार यीशु को जानने से इनकार कर देगा। तब पतरस ने न सिर्फ यीशु की बात को गलत कहा बल्कि डींग भी मारी कि वह खुद को बाकी प्रेषितों से बढ़कर वफादार साबित करेगा!​—मत्ती 26:31-35; मर. 14:27-31; लूका 22:24-28; यूह. 13:36-38.

8 क्या पतरस की बातें सुनकर यीशु के सब्र का बाँध टूट गया? नहीं। इस मुश्‍किल घड़ी में भी यीशु अपने चेलों की अच्छाइयों पर ध्यान देता रहा। उसे मालूम था कि पतरस उसे निराश कर देगा, फिर भी उसने कहा, “मैंने तेरे लिए मिन्‍नत की है कि तू अपना विश्‍वास खो न दे। जब तू पश्‍चाताप करके लौट आए, तो अपने भाइयों को मज़बूत करना।” (लूका 22:32) इस तरह यीशु ने दिखाया कि उसे पतरस पर पूरा भरोसा है कि वह पश्‍चाताप करेगा और दोबारा वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा करेगा। यीशु का दिल बहुत बड़ा था, वह माफ करने के लिए तैयार था!

9, 10. (क) गतसमनी के बाग में पतरस की कौन-सी गलतियाँ सुधारी गयीं? (ख) पतरस की मिसाल हमें क्या याद दिलाती है?

9 बाद में वे गतसमनी के बाग में पहुँचे जहाँ यीशु को एक-से-ज़्यादा बार पतरस को सुधारना पड़ा। यीशु ने पतरस, याकूब और यूहन्‍ना से कहा कि वह प्रार्थना करने जा रहा है तब तक वे जागते रहें। यीशु बहुत दुखी था और उसे हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत थी, मगर उसके बार-बार कहने पर भी पतरस और दूसरे प्रेषित सो गए। फिर भी यीशु ने उनकी गलती माफ कर दी क्योंकि वह उनकी हालत समझता था। इसलिए उसने कहा, “दिल तो बेशक तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।”​—मर. 14:32-41.

10 कुछ ही देर में वहाँ एक भीड़ पहुँच गयी जो हाथों में मशालें लिए थी और तलवारों और लाठियों से लैस थी। यह समय सावधानी बरतने और समझदारी से काम लेने का था। मगर पतरस ने आव देखा न ताव, फौरन अपनी तलवार से महायाजक के एक दास मलखुस के सिर पर वार किया और उसका एक कान उड़ा दिया। यीशु, पतरस पर भड़क नहीं उठा बल्कि उसने शांति से उसे सुधारा, दास का कान ठीक किया और हिंसा न करने का एक ऐसा सिद्धांत बताया जिस पर आज भी उसके चेले चलते हैं। (मत्ती 26:47-55; लूका 22:47-51; यूह. 18:10, 11) अब तक पतरस कई गलतियाँ कर चुका था, फिर भी यीशु ने हर बार उसे माफ किया। पतरस की मिसाल हमें याद दिलाती है कि हम सब कई बार गलती करते हैं। (याकूब 3:2 पढ़िए।) हममें ऐसा कौन है जिसे हर दिन परमेश्‍वर से माफी माँगने की ज़रूरत नहीं पड़ती? मगर यह पतरस की आखिरी गलती नहीं थी। उस रात वह अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती करनेवाला था।

पतरस की सबसे बड़ी गलती

11, 12. (क) यीशु की गिरफ्तारी के बाद पतरस ने कुछ हद तक हिम्मत कैसे दिखायी? (ख) पतरस ने जो दावा किया था उसे करने में वह कैसे नाकाम रहा?

11 यीशु ने भीड़ से कहा कि अगर वे उसे ढूँढ़ रहे हैं तो उसके प्रेषितों को जाने दें। जब वे यीशु को बाँध रहे थे तो पतरस लाचार खड़ा देखता रहा। फिर वह भी बाकी प्रेषितों की तरह वहाँ से भाग गया।

12 पतरस और यूहन्‍ना भागते-भागते एक घर के पास रुक गए। वह शायद हन्‍ना का घर था जो पहले महायाजक था। यीशु को पूछताछ के लिए सबसे पहले वहीं ले जाया गया। जब यीशु को वहाँ से दूसरी जगह ले जाया जा रहा था तो पतरस और यूहन्‍ना उसके पीछे-पीछे गए, मगर “कुछ दूरी पर रहकर।” (मत्ती 26:58; यूह. 18:12, 13) पतरस बुज़दिल नहीं था। उस वक्‍त यीशु के पीछे जाना खतरे से खाली नहीं था, उसके लिए हिम्मत की ज़रूरत थी। क्योंकि जो भीड़ यीशु को ले जा रही थी वह हथियारों से लैस थी और पतरस पहले ही एक को घायल कर चुका था। फिर भी हम नहीं कह सकते कि उस मौके पर यीशु के लिए उसका प्यार उतना अटल था जितना कि उसने दावा किया था। उसने तो कहा था कि ज़रूरत पड़ने पर वह उसके साथ मरने को भी तैयार है।​—मर. 14:31.

13. मसीह के पीछे चलने का सही तरीका क्या है?

13 आज कई लोग पतरस की तरह मसीह के पीछे चलते हैं, मगर “कुछ दूरी पर रहकर” यानी वे उसके बताए रास्ते पर इस तरह चलते हैं कि किसी को भनक नहीं पड़ती। लेकिन जैसे पतरस ने आगे चलकर लिखा, मसीह के पीछे चलने का एक ही सही तरीका है: जितना हो सके उतना उसके करीब रहना यानी हर मामले में उसकी मिसाल पर चलना, फिर चाहे अंजाम जो भी हो।​—1 पतरस 2:21 पढ़िए।

14. जब यीशु का मुकदमा चल रहा था तब पतरस ने रात कैसे गुज़ारी?

14 पतरस बहुत एहतियात बरतते हुए भीड़ के पीछे-पीछे जा रहा था। आखिरकार वह यरूशलेम की एक बहुत बड़ी हवेली के फाटक के पास पहुँचा। यह हवेली कैफा नाम के अमीर और ताकतवर महायाजक की थी। आम तौर पर ऐसी हवेलियों में बीचों-बीच एक आँगन हुआ करता था और सामने की तरफ एक फाटक। पतरस फाटक के पास पहुँच तो गया, मगर उसे अंदर नहीं जाने दिया गया। यूहन्‍ना महायाजक को जानता था, इसलिए वह पहले से ही अंदर था। उसने फाटक पर खड़ी दासी से कहा कि पतरस को अंदर आने दे। मगर लगता है अंदर आने के बाद पतरस, यूहन्‍ना के साथ-साथ नहीं रहा और न ही उसने हवेली के अंदर यीशु के पास जाने की कोशिश की। इसके बजाय, वह आँगन में ही रहा जहाँ कुछ दास और सेवक ठंड में आग ताप रहे थे। वहाँ से वे यीशु के खिलाफ झूठी गवाही देनेवालों को अंदर आते-जाते देख सकते थे।​—मर. 14:54-57; यूह. 18:15, 16, 18.

15, 16. यीशु की वह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई कि पतरस तीन बार उसका इनकार करेगा?

15 जिस दासी ने पतरस को अंदर आने दिया था, वह अब आग की रौशनी में पतरस का चेहरा साफ देख पा रही थी। वह उसे पहचान गयी और कहने लगी, “तू भी उस यीशु गलीली के साथ था!” पतरस चौंक गया और उसने फौरन यीशु को जानने से इनकार कर दिया। उसने यह तक कहा कि उसे समझ नहीं आ रहा है कि दासी क्या कह रही है। फिर पतरस फाटक के पास जाकर खड़ा हो गया ताकि कोई उसे देख न सके। मगर एक और लड़की ने उसे देख लिया और उसने भी वही बात कही, “यह आदमी यीशु नासरी के साथ था।” पतरस ने शपथ खाकर कहा, “मैं उस आदमी को नहीं जानता!” (मत्ती 26:69-72; मर. 14:66-68) यह दूसरी बार था कि पतरस ने यीशु का इनकार किया और शायद इसके बाद उसने मुर्गे को बाँग देते हुए सुना हो, मगर उसका ध्यान इतना भटका हुआ था कि उसे वह भविष्यवाणी याद नहीं आयी जो यीशु ने कुछ ही घंटों पहले की थी।

16 थोड़ी देर तक पतरस लोगों की नज़रों से बचने की कोशिश करता रहा। मगर तभी आँगन में इर्द-गिर्द खड़े लोगों का एक समूह उसके पास आया। उनमें से एक उस मलखुस का रिश्‍तेदार था जिसका कान पतरस ने काट दिया था। उसने पतरस से कहा, “क्या मैंने तुझे उसके साथ बाग में नहीं देखा था?” पतरस उन्हें यकीन दिलाने लगा कि उन्होंने किसी और को देखा होगा। इसलिए वह कसम खाने लगा और शायद उसने यह भी कहा कि अगर वह झूठ बोल रहा है तो उस पर शाप पड़े। यह तीसरी बार था कि उसने यीशु का इनकार किया। उसके मुँह से यह बात निकली ही थी कि उसने मुर्गे को दूसरी बार बाँग देते सुना।​—यूह. 18:26, 27; मर. 14:71, 72.

“प्रभु ने मुड़कर सीधे पतरस को देखा”

17, 18. (क) जब पतरस को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसे कैसा लगा? (ख) पतरस ने क्या सोचा होगा?

17 उसी वक्‍त यीशु बरामदे में आया जो आँगन की तरफ था। तब यीशु ने पतरस को देखा और पतरस ने यीशु को, जैसा कि इस लेख की शुरूआत में बताया गया है। उसी पल पतरस को एहसास हो गया कि उसने प्रभु को कितना निराश कर दिया। उसका दिल उसे धिक्कारने लगा और वह आँगन से बाहर चला गया। वह सड़कों पर निकल गया। पूनम की रात थी, चाँद अब छिप रहा था मगर उसकी रौशनी में रास्ता साफ दिखायी दे रहा था। अभी-अभी जो हुआ वह बार-बार उसकी आँखों के सामने आता रहा। उसकी आँखों में आँसू उमड़ पड़े। वह खुद पर काबू न रख सका और फूट-फूटकर रोने लगा।​—मर. 14:72; लूका 22:61, 62.

18 जब एक व्यक्‍ति को एहसास होता है कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गयी है, तो वह बड़ी आसानी से इस नतीजे पर पहुँच सकता है कि वह माफी के हरगिज़ लायक नहीं है। शायद पतरस को भी ऐसा ही लगा हो। क्या वह वाकई माफी के लायक नहीं था?

क्या पतरस माफी के लायक नहीं था?

19. (क) पतरस को अपनी नाकामी के बारे में कैसा लगा होगा? (ख) हम कैसे जानते हैं कि पतरस ने निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया?

19 हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि अगले दिन जो-जो घटनाएँ घटीं, उनसे पतरस का दुख कितना बढ़ गया होगा। उस दिन जब दोपहर को घंटों यातना सहने के बाद यीशु की मौत हुई, तब पतरस ने खुद को बहुत कोसा होगा! जब भी उसने याद किया होगा कि अपने प्रभु की ज़िंदगी के आखिरी दिन में उसने उसका दुख कितना बढ़ा दिया तो वह अंदर-ही-अंदर तड़प उठा होगा। यह सच है कि वह बहुत दुखी था, फिर भी उसने निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। यह हम इसलिए जानते हैं क्योंकि बाइबल बताती है कि कुछ ही समय बाद वह फिर से दूसरे चेलों के साथ मिलने-जुलने लगा। (लूका 24:33) बेशक सारे प्रेषितों को इस बात का गहरा अफसोस था कि उस रात उन सबने कितनी सारी गलतियाँ कीं और उन्होंने एक-दूसरे को थोड़ा-बहुत दिलासा दिया होगा।

20. पतरस ने जो सही फैसला किया उससे हम क्या सीख सकते हैं?

20 पतरस ने अपने भाइयों से मिलने का फैसला करके सही किया। जब परमेश्‍वर के एक सेवक से गलती हो जाती है या यूँ कहें कि वह गिर जाता है, तो यह बात मायने नहीं रखती कि वह कितनी बुरी तरह गिरा है बल्कि यह बात मायने रखती है कि दोबारा उठ खड़े होने यानी गलती सुधारने का उसका इरादा कितना मज़बूत है। (नीतिवचन 24:16 पढ़िए।) पतरस हताश होने के बावजूद अपने भाइयों के साथ इकट्ठा हुआ, इस तरह उसने दिखाया कि उसका विश्‍वास सच्चा है। जब एक इंसान दुखी होता है या दोष की भावना से दबा हुआ महसूस करता है तो शायद उसे अकेले रहने का मन करे, मगर ऐसा करना खतरनाक होता है। (नीति. 18:1) बुद्धिमानी इसी में है कि वह अपने मसीही भाई-बहनों के करीब रहे और परमेश्‍वर की सेवा करते रहने की ताकत दोबारा पाने की कोशिश करे।​—इब्रा. 10:24, 25.

21. दूसरे चेलों के साथ होने की वजह से पतरस को कौन-सी खबर मिली?

21 पतरस दूसरे चेलों के साथ था, इसीलिए उसे यह खबर मिली कि कब्र से यीशु की लाश गायब है। यह सुनकर सभी हक्के-बक्के रह गए। पतरस और यूहन्‍ना कब्र की तरफ दौड़े, जहाँ यीशु को दफनाया गया था और जिसके मुँह पर रखे पत्थर को सीलबंद कर दिया था। यूहन्‍ना जिसकी उम्र शायद पतरस से कम थी, पहले पहुँच गया। जब उसने देखा कि कब्र पर रखा पत्थर हटा हुआ है तो वह अंदर जाने से झिझका। मगर पतरस नहीं झिझका। हालाँकि वह हाँफ रहा था, फिर भी वह सीधे कब्र के अंदर चला गया। अंदर पहुँचकर उसने देखा कि कब्र खाली है!​—यूह. 20:3-9.

22. पतरस के मन से सारा दुख और शक कैसे दूर हुआ?

22 क्या पतरस को यकीन था कि यीशु को ज़िंदा किया जा चुका है? शुरू में तो उसे यकीन नहीं हुआ, इसके बावजूद कि वफादार औरतों ने चेलों से कहा था कि स्वर्गदूतों ने उन्हें बताया कि यीशु ज़िंदा हो गया है। (लूका 23:55–24:11) लेकिन दिन ढलते-ढलते पतरस के मन से सारा दुख और शक दूर हो गया। यीशु ज़िंदा था और अब वह एक शक्‍तिशाली स्वर्गदूत था! वह अपने सभी प्रेषितों को दिखायी दिया। लेकिन इससे पहले यीशु पतरस से मिला और तब शायद पतरस अकेला था। प्रेषितों ने उस दिन के बारे में कहा, “यह बात सच है कि प्रभु ज़िंदा हो गया है। वह शमौन को दिखायी दिया है!” (लूका 24:34) प्रेषित पौलुस ने भी बाद में उस शानदार दिन के बारे में लिखा कि यीशु “कैफा के सामने और फिर बारहों के सामने प्रकट हुआ।” (1 कुरिं. 15:5) कैफा और शमौन, पतरस के दूसरे नाम थे।

पतरस कई गलतियाँ कर चुका था, फिर भी यीशु ने उसे माफ किया। हममें ऐसा कौन है जिसे हर दिन माफी माँगने की ज़रूरत नहीं पड़ती?

23. आज जो मसीही पाप करते हैं उन्हें क्यों पतरस को याद रखना चाहिए?

23 यीशु ज़िंदा होने के बाद जब पतरस से मिला तो उनके बीच क्या हुआ होगा, यह बाइबल में नहीं बताया गया है। हम सिर्फ कल्पना कर सकते हैं कि पतरस यह देखकर फूला नहीं समाया होगा कि उसका प्रभु दोबारा ज़िंदा हो गया है और उसे यह मौका मिला है कि वह अपनी गलती का पश्‍चाताप करके उससे माफी माँगे। पतरस बस यही चाहता था कि यीशु उसे माफ कर दे। यीशु ने बेशक दिल खोलकर उसे माफ किया होगा। आज जो मसीही पाप करते हैं उन्हें पतरस को याद रखना चाहिए। हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारा पाप इतना बड़ा है कि परमेश्‍वर उसे माफ नहीं कर सकता। यीशु ने पतरस को बार-बार माफ करके अपने पिता की सही तसवीर पेश की जो “दिल खोलकर माफ करता है।”​—यशा. 55:7.

माफ करने के दूसरे सबूत

24, 25. (क) जब पतरस गलील झील में मछली पकड़ने गया तो क्या हुआ? (ख) अगली सुबह पतरस ने यीशु का चमत्कार देखते ही क्या किया?

24 यीशु ने अपने प्रेषितों से गलील प्रदेश जाने को कहा जहाँ वह उनसे दोबारा मिलता। जब वे वहाँ पहुँचे तो पतरस गलील झील में मछली पकड़ने चला गया। दूसरे चेले भी उसके साथ चल दिए। एक बार फिर पतरस ने खुद को उसी जगह पाया जहाँ उसने यीशु का चेला बनने से पहले अपनी ज़िंदगी के कई साल गुज़ारे थे। नाव की चरचराहट, लहरों की हलचल, मछली पकड़ने के जाल, यह सब उसके लिए जाना-पहचाना था। मगर सारी रात मेहनत करने पर भी चेलों को मछलियाँ नहीं मिलीं।​—मत्ती 26:32; यूह. 21:1-3.

पतरस नाव से कूद गया और तैरकर किनारे पहुँच गया

25 जब सुबह हो रही थी तब किनारे से किसी ने उन्हें आवाज़ दी और उन्हें नाव के दूसरी तरफ जाल डालने के लिए कहा। उन्होंने उसकी बात मानी और जब उन्होंने जाल खींचा तो उसमें ढेर सारी मछलियाँ थीं, 153 मछलियाँ! पतरस जान गया कि किनारे पर खड़ा आदमी कौन है। वह फौरन पानी में कूद गया और तैरकर किनारे पहुँच गया। यीशु ने कोयले की आग पर जो मछलियाँ पकायी थीं, वे अपने इन वफादार दोस्तों को दीं। उसका ध्यान खास तौर से पतरस पर था।​—यूह. 21:4-14.

26, 27. (क) यीशु ने पतरस को तीन बार क्या करने का मौका दिया? (ख) यीशु ने पतरस को क्या सबूत दिया कि उसने उसे पूरी तरह माफ कर दिया है?

26 यीशु ने पतरस से पूछा कि क्या वह “इनसे ज़्यादा” अपने प्रभु से प्यार करता है? यीशु ने शायद मछलियों के ढेर की तरफ इशारा करते हुए यह सवाल पूछा था। पतरस को किससे ज़्यादा लगाव था, मछुवाई के कारोबार से या यीशु से? पतरस ने तीन बार अपने प्रभु का इनकार किया था, इसलिए यीशु ने अब उसे तीन बार मौका दिया कि वह अपने दोस्तों के सामने साफ-साफ बताए कि वह यीशु से कितना प्यार करता है। हर बार जब पतरस ने कहा कि वह यीशु से प्यार करता है तो यीशु ने उसे बताया कि वह अपना यह प्यार कैसे साबित कर सकता है। उसे परमेश्‍वर की सेवा को सबसे पहली जगह देनी होगी, मसीह के झुंड यानी उसके वफादार चेलों को परमेश्‍वर की बातें सिखानी होंगी, उन्हें मज़बूत करना होगा और चरवाहे की तरह उनकी देखभाल करनी होगी।​—लूका 22:32; यूह. 21:15-17.

27 इस तरह यीशु ने पतरस को भरोसा दिलाया कि वह अब भी उसकी और उसके पिता की सेवा करने के काबिल है। मसीह की निगरानी में पतरस मंडली में एक अहम भूमिका निभानेवाला था। यह इस बात का क्या ही ज़बरदस्त सबूत है कि यीशु ने पतरस को पूरी तरह माफ कर दिया था! इसमें कोई शक नहीं कि जब पतरस पर दया की गयी तो यह बात उसके दिल को छू गयी होगी और उसने ज़रूर अपनी गलतियों से सबक सीखा होगा।

28. पतरस कैसे अपने नाम के मुताबिक जीया?

28 पतरस अपनी ज़िम्मेदारी कई सालों तक निभाता रहा। वह अपने भाइयों को मज़बूत करता रहा, ठीक जैसे यीशु ने अपनी मौत से पहले उसे आज्ञा दी थी। वह चरवाहे की तरह प्यार से मसीह के चेलों की देखभाल करता रहा और उन्हें सिखाता रहा और यह ज़िम्मेदारी निभाते वक्‍त अपना सब्र नहीं खोया। शमौन को यीशु ने पतरस यानी चट्टान नाम दिया था और वह वाकई अपने नाम के मुताबिक जीया, क्योंकि वह मंडली में अच्छे काम के लिए चट्टान की तरह अटल रहा और उसने दूसरों में भी भले काम करने का जोश भर दिया। इसका सबूत हमें पतरस की दो प्यार-भरी चिट्ठियों से मिलता है, जो बाइबल की किताबों का हिस्सा हैं। उन चिट्ठियों से यह भी पता चलता है कि उसने यीशु से माफ करने के बारे में जो सबक सीखा था उसे वह कभी नहीं भूला।​—1 पतरस 3:8, 9; 4:8 पढ़िए।

29. हम कैसे पतरस के विश्‍वास और उसके प्रभु की दया की मिसाल पर चल सकते हैं?

29 आइए हम भी दूसरों को माफ करने का सबक अपने दिल में उतार लें। क्या हम हर रोज़ अपनी गलतियों के लिए परमेश्‍वर से माफी माँगते हैं? उसके बाद क्या हम यकीन करते हैं कि हमें माफी मिल गयी और हमारे पाप का दाग मिट चुका है? क्या हम दूसरों को भी माफ करते हैं? अगर हम यह सब करें तो हम दिखा रहे होंगे कि हममें पतरस जैसा विश्‍वास है और हम उसके प्रभु की तरह दयालु है।