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अध्याय तेरह

उसने अपनी गलतियों से सबक सीखा

उसने अपनी गलतियों से सबक सीखा

1, 2. (क) योना खुद पर और नाविकों पर क्या मुसीबत लाया? (ख) योना की कहानी से हम क्या सीखते हैं?

योना से अब यह शोरगुल बरदाश्‍त नहीं हो रहा था। समुंदर में भयंकर तूफान उठा था जिससे जहाज़ के पाल की मोटी-मोटी रस्सियाँ चरमरा रही थीं और ऊँची-ऊँची लहरें गरज रही थीं और जहाज़ से बुरी तरह टकरा रही थीं। लकड़ी के इस जहाज़ का एक-एक हिस्सा हिल रहा था। इस पर जहाज़ के कप्तान से लेकर सभी नाविकों का चीखना-चिल्लाना, जो किसी तरह जहाज़ को बचाने की जद्दोजेहद कर रहे थे। योना को लगा कि अब तो ज़रूर ये सब-के-सब आँधी की भेंट चढ़ जाएँगे। और इस पूरी तबाही का कसूरवार कौन था? वह खुद!

2 आखिर योना इतनी बड़ी मुसीबत में फँसा कैसे? उसने अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञा तोड़ने की बड़ी भूल कर दी थी। योना ने कौन-सी आज्ञा तोड़ दी थी? क्या यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता हमेशा के लिए टूट गया था? इन सवालों के जवाब जानने से हम काफी कुछ सीख सकते हैं। मिसाल के लिए, योना की कहानी से हम सीखते हैं कि ऐसा इंसान भी गलती कर सकता है जिसका विश्‍वास सच्चा है। और यह भी कि वह कैसे अपनी गलती सुधार सकता है।

गलील का एक भविष्यवक्‍ता

3-5. (क) योना का नाम सुनते ही लोग अकसर क्या सोचते हैं? (ख) योना के बारे में हम क्या जानते हैं? (फुटनोट भी देखें।) (ग) योना के लिए भविष्यवक्‍ता के तौर पर सेवा करना क्यों आसान नहीं रहा होगा?

3 योना​—यह नाम सुनते ही अकसर लोगों का ध्यान उसकी खामियों पर जाता है कि उसने बार-बार परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ी और वह बड़ा ही ज़िद्दी था। लेकिन योना में कई खूबियाँ भी थीं जो जानने लायक हैं। याद रखिए, यहोवा ने योना को अपना भविष्यवक्‍ता चुना था। अगर वह भरोसे के लायक न होता या बुरा इंसान होता तो यहोवा उसे इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं सौंपता।

योना में खामियों के अलावा कई खूबियाँ भी थीं

4 बाइबल हमें योना की निजी ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताती (2 राजा 14:25 पढ़िए।) यह सिर्फ इतना बताती है कि वह गत-हेपेर नगर का रहनेवाला था, जो दस गोत्रोंवाले इसराएल राज्य में था। गत-हेपेर, नासरत से बस 4 किलोमीटर दूर था, जहाँ करीब 800 साल बाद यीशु मसीह की परवरिश हुई थी। * योना के दिनों में इसराएल राज्य पर राजा यारोबाम द्वितीय का शासन था। एलियाह भविष्यवक्‍ता को गुज़रे एक ज़माना हो गया था। एलियाह के बाद एलीशा भविष्यवक्‍ता आया जिसकी मौत यारोबाम के पिता के समय में हो गयी थी। यहोवा ने एलियाह और एलीशा के ज़रिए इसराएल देश से बाल की उपासना मिटा दी थी, मगर अब एक बार फिर इसराएली जानबूझकर यहोवा से दूर जाने लगे थे। उनका राजा यारोबाम द्वितीय भी “यहोवा की नज़र में बुरे काम करता” था। (2 राजा 14:24) ऐसे में भविष्यवक्‍ता बनकर सेवा करना योना के लिए आसान नहीं रहा होगा। फिर भी वह परमेश्‍वर की सेवा करता रहा।

5 फिर एक दिन योना की ज़िंदगी में एक नया मोड़ आया। यहोवा ने उसे एक ऐसा काम सौंपा जो उसे बहुत मुश्‍किल लगा। वह काम क्या था?

‘जा! नीनवे को जा’

6. (क) यहोवा ने योना को क्या काम सौंपा? (ख) यह काम योना के लिए क्यों मुश्‍किल रहा होगा?

6 यहोवा ने योना से कहा, “जा! उस बड़े शहर नीनवे को जा और उसे सज़ा सुना। क्योंकि मैं उसकी दुष्टता को अनदेखा नहीं कर सकता।” (योना 1:2) योना इस काम से बहुत डर गया और यह वाजिब भी था। नीनवे उसके शहर से पूरब की तरफ करीब 800 किलोमीटर दूर था और वहाँ तक पैदल चलकर जाने में उसे लगभग एक महीना लग जाता। मगर उसे सफर में आनेवाली मुश्‍किलों से ज़्यादा यह चिंता रही होगी कि वह वहाँ के लोगों को यहोवा का संदेश कैसे सुनाएगा। वहाँ अश्‍शूरी लोग रहते थे, जो खूँखार और वहशी होने के लिए जाने जाते थे। योना को उन्हें यह संदेश देना था कि यहोवा उन्हें नाश करने जा रहा है। योना ने यह भी सोचा होगा कि आज तक परमेश्‍वर के अपने लोगों ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया तो नीनवे के लोग कहाँ उसकी सुनेंगे। वे तो यहोवा को मानते तक नहीं! वे इतने खूँखार थे कि आगे चलकर उनका पूरा शहर ही “खूनी नगरी” कहलाया। तो सोचिए, उस बड़े-से शहर में यहोवा के इस अकेले सेवक का क्या हाल होता?​—नहू. 3:1, 7.

7, 8. (क) क्या दिखाता है कि योना ने यहोवा का काम न करने की ठान ली थी? (ख) हम क्यों नहीं कह सकते कि योना बुज़दिल था?

7 योना ने भी शायद ऐसा सोचा होगा। मगर हम यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते। हम इतना ज़रूर जानते हैं कि वह इस काम से पीछा छुड़ाकर भाग गया। यहोवा ने उसे पूरब की तरफ जाने के लिए कहा, मगर वह पश्‍चिम की तरफ जितनी दूर जा सकता था उतनी दूर जाने लगा। पहले तो वह दक्षिण में याफा नाम के बंदरगाह शहर में गया, जहाँ वह तरशीश जानेवाले जहाज़ पर चढ़ गया। कुछ विद्वान कहते हैं कि तरशीश स्पेन में था। अगर यह सच है तो योना नीनवे से करीब 3,500 किलोमीटर दूर जा रहा था, यानी वह महासागर के एक छोर से दूसरे छोर जा रहा था और इस सफर में साल-भर का समय लग सकता था। योना ने ठान लिया था कि वह किसी भी सूरत में यहोवा का दिया काम नहीं करेगा!​—योना 1:3 पढ़िए।

8 क्या इसका यह मतलब है कि योना बुज़दिल था? इतनी जल्दी इस नतीजे पर पहुँचना सही नहीं होगा। जैसा कि हम आगे देखेंगे, ज़रूरत पड़ने पर योना ने कमाल की बहादुरी दिखायी। हालाँकि वह डर गया था, मगर हम यह न भूलें कि वह भी हमारी तरह इंसान था और उसे भी अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा होगा। (भज. 51:5) क्या यह सच नहीं कि हम सभी कभी-न-कभी डर के आगे बेबस हो जाते हैं?

9. (क) यहोवा से मिले काम के बारे में हम कभी-कभी कैसा महसूस कर सकते हैं? (ख) ऐसे में हमें क्या याद रखना चाहिए?

9 कभी-कभी हमें लग सकता है कि परमेश्‍वर हमसे जो करने के लिए कह रहा है, वह बहुत मुश्‍किल है या हमारे बस में नहीं है। यहाँ तक कि परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाने में भी हमें डर लग सकता है, जो कि हर मसीही की ज़िम्मेदारी है। (मत्ती 24:14) ऐसे में हम शायद यीशु की बतायी इस अहम सच्चाई को भूल जाएँ कि “परमेश्‍वर के लिए सबकुछ मुमकिन है” यानी उसकी मदद से हम उसकी सभी आज्ञाएँ मान सकते हैं। (मर. 10:27) अगर हमारे साथ कभी ऐसा हुआ है तो हम योना की भावनाएँ समझ सकते हैं। अब आइए देखें कि भागने के बाद योना के साथ क्या हुआ।

यहोवा भटके हुए भविष्यवक्‍ता को सही रास्ते पर लाया

10, 11. (क) जब जहाज़ बंदरगाह से निकल गया तो योना ने क्या सोचा होगा? (ख) जहाज़ पर अचानक कौन-सी मुसीबत टूट पड़ी?

10 योना जिस जहाज़ पर चढ़ा वह शायद फीनीके देश का एक मालवाहक जहाज़ था। कल्पना कीजिए, योना जहाज़ पर है और देख रहा है कि कप्तान और सारे नाविक जहाज़ को बंदरगाह से निकालने के लिए जल्दी-जल्दी काम निपटा रहे हैं। फिर जहाज़ रवाना होता है और धीरे-धीरे समुद्र-तट पीछे छूटता जाता है। थोड़ी देर बाद किनारा नज़र ही नहीं आता। अब योना मन-ही-मन सोचता है, ‘चलो मुसीबत टल गयी।’ मगर फिर अचानक मौसम बदल जाता है।

11 तेज़ हवाएँ समुंदर में ऐसी उथल-पुथल मचा देती हैं कि दिल दहल जाए। लहरें इतनी ऊँची-ऊँची कि हमारे ज़माने के जहाज़ भी उनके आगे बौने लगते। और यह तो लकड़ी का जहाज़ है जो बुरी तरह हिचकोले खा रहा है और जल्द ही टूट सकता है। क्या योना उस वक्‍त जानता था कि ‘समुंदर में यह ज़बरदस्त आँधी यहोवा ने चलायी’ है? हालाँकि यह बात उसने बाद में लिखी, लेकिन तूफान के समय उसे पता था या नहीं, यह हम नहीं जानते। जब उसने देखा कि नाविक अपने देवताओं को पुकार रहे हैं, तो वह जानता था कि उनके देवता कोई मदद नहीं कर सकते। (लैव्य. 19:4) जैसे उसने बाद में लिखा, उनका “जहाज़ टूटने पर था।” (योना 1:4) योना को मालूम था कि सिर्फ यहोवा उन्हें बचा सकता है। मगर वह मदद के लिए उसे पुकारे भी तो कैसे? वह तो उससे दूर भाग रहा था।

12. (क) हमें योना को क्यों गलत नहीं ठहराना चाहिए कि वह आँधी के वक्‍त सो गया था? (फुटनोट भी देखें।) (ख) यहोवा ने कैसे खुलासा कर दिया कि कौन कसूरवार है?

12 बेबस होकर योना जहाज़ के निचले हिस्से में जाकर गहरी नींद सो गया। * फिर कप्तान ने जाकर उसे जगाया और कहा कि वह भी सबकी तरह अपने ईश्‍वर को पुकारे। नाविकों को लगा कि यह ज़रूर ईश्‍वर का प्रकोप होगा, इसलिए वे सबके नाम से चिट्ठियाँ डालने लगे ताकि पता लगाएँ कि जहाज़ पर मौजूद किस इंसान की वजह से यह आफत आयी है। योना ने देखा कि एक-एक करके सबके नाम से चिट्ठी डाली जा रही है, मगर उनका नाम नहीं निकल रहा। जैसे-जैसे उसकी बारी नज़दीक आयी, उसकी धड़कन तेज़ होने लगी। फिर जल्द ही सच्चाई सबके सामने आ गयी। चिट्ठी योना के नाम निकली! इस तरह यहोवा ने खुलासा कर दिया कि योना ही कसूरवार है।​—योना 1:5-7 पढ़िए।

13. (क) योना ने नाविकों को क्या बताया? (ख) योना ने उनसे क्या करने के लिए कहा और क्यों?

13 योना ने नाविकों को सबकुछ सच-सच बता दिया। उसने बताया कि वह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा का सेवक है। परमेश्‍वर ने उसे एक काम दिया था मगर वह उससे भाग रहा था, इसलिए परमेश्‍वर उससे नाराज़ है। इसी वजह से उन सब पर यह संकट टूट पड़ा है। यह सुनकर सबके होश उड़ गए। योना उनकी आँखों में खौफ देख सकता था। उन्होंने योना से पूछा कि अब इस संकट से निकलने के लिए उन्हें क्या करना होगा। योना ने क्या कहा? वह जानता था कि उनके बचने का बस एक ही रास्ता है, उसे समुंदर में फेंक देना। उस तूफानी समुंदर के ठंडे पानी में डूबने के खयाल से ही योना के रोंगटे खड़े हो गए होंगे। लेकिन यह जानते हुए कि वह उनकी जान बचा सकता है, वह कैसे उन्हें मौत के मुँह में जाने देता? इसलिए उसने कहा, “मुझे उठाकर समुंदर में फेंक दो, तब समुंदर शांत हो जाएगा। मैं जानता हूँ, यह भयंकर तूफान मेरी वजह से तुम पर आया है।”​—योना 1:12.

14, 15. (क) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हममें योना जैसा मज़बूत विश्‍वास है? (ख) जब योना ने नाविकों से कहा कि वे उसे समुंदर में फेंक दें तो उन्होंने क्या किया?

14 आपको क्या लगता है, क्या कोई बुज़दिल ऐसा कहेगा? खतरे की इस घड़ी में योना ने जिस तरह हिम्मत दिखायी और दूसरों की खातिर अपनी जान देने के लिए तैयार हो गया, यह देखकर यहोवा का दिल कितना खुश हुआ होगा! बेशक योना का विश्‍वास मज़बूत था! आज हमें भी उसकी तरह खुद से ज़्यादा दूसरों की भलाई का ध्यान रखना चाहिए। (यूह. 13:34, 35) उदाहरण के लिए, हो सकता है किसी को खाने-पहनने की तंगी हो या वह मायूस हो या फिर किसी को सच्चाई सीखने या सच्चाई में बने रहने के लिए मदद की ज़रूरत हो। क्या ऐसे लोगों की मदद करने के लिए हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं? हमें ऐसा करते देखकर यहोवा कितना खुश होगा!

15 जब योना ने नाविकों से कहा कि वे उसे समुंदर में फेंक दें तो उन्हें शायद उस पर तरस आया होगा। इसलिए पहले तो उन्होंने इनकार कर दिया। और वे जहाज़ को तूफान से बाहर निकालने की पुरज़ोर कोशिश करने लगे। मगर उनकी सारी कोशिशें बेकार जा रही थीं। तूफान बढ़ता जा रहा था। अब उनके पास कोई चारा नहीं था। इसलिए उन्होंने योना के परमेश्‍वर यहोवा को पुकारा और कहा कि वह उन पर दया करे। फिर उन्होंने योना को उठाकर समुंदर में फेंक दिया।​—योना 1:13-15.

योना के कहने पर नाविकों ने उसे उठाकर समुंदर में फेंक दिया

योना पर दया की गयी और उसे बचाया गया

16, 17. जब योना को जहाज़ से नीचे फेंक दिया गया तो क्या हुआ? (तसवीरें भी देखें।)

16 योना उफनती लहरों में जा गिरा। उसने डूबने से बचने के लिए शायद कुछ देर हाथ-पैर मारे होंगे। समुंदर के हिलोरे लेते पानी और लहरों के बीच से उसने देखा होगा कि जहाज़ तेज़ी से चला जा रहा है। मगर योना को बड़ी-बड़ी लहरों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया और समुंदर में नीचे धकेल दिया। बेबस होकर वह डूबता गया और उसे लगा कि अब उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं।

17 योना ने बाद में बताया कि उस वक्‍त उसके मन पर क्या बीती। उसके मन में एक-के-बाद-एक कई तसवीरें उभरने लगीं। यह सोचकर उसे बहुत दुख हुआ कि अब वह फिर कभी यरूशलेम में यहोवा का भव्य मंदिर नहीं देख पाएगा। वह महसूस कर पा रहा था कि वह डूबते-डूबते समुंदर की गहराइयों तक पहुँच गया है, जहाँ पहाड़ों की जड़ थी। फिर वह समुद्री शैवाल में फँस गया। उसे लगा कि यही उसकी कब्र बन जाएगी।​—योना 2:2-6 पढ़िए।

18, 19. (क) समुंदर की गहराइयों में योना का क्या हुआ? (ख) वह किस तरह का जीव रहा होगा? (फुटनोट भी देखें।) (ग) इन सारी घटनाओं के पीछे किसके हाथ था?

18 फिर अचानक उसे पास में कुछ हिलता हुआ दिखायी दिया। वह कोई काला-सा बड़ा जीव था जो तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ रहा था। जैसे ही वह योना के पास आया उसने अपना बड़ा-सा मुँह खोला और योना को निगल गया!

यहोवा ने “एक बड़ी मछली भेजी कि वह योना को निगल जाए”

19 योना ने सोचा कि अब यही मेरा अंत है। मगर यह क्या, मैं तो अभी-भी ज़िंदा हूँ! उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था। उस जीव ने न तो उसे चबाया, न ही हज़म कर गया। योना ने घुटन तक महसूस नहीं की। उसकी साँसें अब भी चल रही थीं, जबकि वह जगह ऐसी थी जहाँ कोई ज़िंदा नहीं बच सकता। धीरे-धीरे योना का दिल यहोवा के लिए विस्मय से भर गया। बेशक योना के परमेश्‍वर यहोवा ने ही “एक बड़ी मछली भेजी कि वह योना को निगल जाए।” *​—योना 1:17.

20. योना की प्रार्थना से हमें उसके बारे में क्या पता चलता है?

20 अब योना मछली के पेट में था। धीरे-धीरे वक्‍त बीतता गया। वहाँ उस गहरे अंधकार में उसके पास सोचने के लिए बहुत समय था। काफी सोचने के बाद उसने यहोवा से प्रार्थना की। उसकी यह पूरी प्रार्थना योना की किताब के दूसरे अध्याय में दर्ज़ है और इससे हमें योना के बारे में काफी कुछ पता चलता है। इस प्रार्थना में उसने भजनों की किताब से कई हवाले दिए, जो दिखाता है कि योना को शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। इस प्रार्थना से उसके एक अच्छे गुण के बारे में भी पता चलता है, वह है एहसानमंदी। योना ने अपनी प्रार्थना के आखिर में कहा, “मैं तेरा धन्यवाद करूँगा और तुझे बलिदान चढ़ाऊँगा, जो मन्‍नत मैंने मानी है उसे पूरा करूँगा। हे यहोवा, उद्धार करनेवाला तू ही है।”​—योना 2:9.

21. (क) योना ने उद्धार के बारे में क्या सीखा? (ख) हमें कौन-सी अहम बात हमेशा याद रखनी चाहिए?

21 योना ने एक अहम बात सीखी कि सिर्फ यहोवा ही अपने सेवकों का उद्धार कर सकता है। वह कहीं पर भी और किसी भी वक्‍त उनका उद्धार कर सकता है, क्योंकि जब योना “मछली के पेट में” था, जहाँ से बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, तो वहाँ भी यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसकी जान बचायी। (योना 1:17) केवल यहोवा ही एक इंसान को तीन दिन और तीन रात एक बड़ी मछली के पेट में ज़िंदा और सही-सलामत रख सकता है। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि यहोवा की ‘बदौलत ही हम साँस ले रहे हैं।’ (दानि. 5:23) जी हाँ, हम अपनी हर साँस के लिए, अपने पूरे वजूद के लिए यहोवा के कर्ज़दार हैं। तो क्या हमें इसके लिए एहसानमंद नहीं होना चाहिए? जब यहोवा ने हमें ज़िंदगी दी है तो क्या हमारा फर्ज़ नहीं बनता कि हम उसकी आज्ञाएँ मानें?

22, 23. (क) किस तरह योना की परख हुई कि वह एहसानमंद है या नहीं? (ख) गलती करने पर हमें योना की तरह क्या करना चाहिए?

22 क्या योना ने सबक सीखा और यहोवा की आज्ञा मानकर अपनी एहसानमंदी दिखायी? तीन दिन और तीन रात के बाद, वह मछली योना को सीधे समुंदर के किनारे ले गयी और उसे “सूखी ज़मीन पर उगल दिया।” (योना 2:10) सोचिए, योना को किनारे तक तैरने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी! हाँ, उसे किनारे से आगे का रास्ता ज़रूर ढूँढ़ना पड़ा। फिर जल्द ही उसे यह दिखाने का मौका मिला कि वह यहोवा का एहसानमंद है या नहीं। योना 3:1, 2 में लिखा है, “यहोवा ने दूसरी बार योना से कहा, “जा! उस बड़े शहर नीनवे को जा और उसे वह संदेश सुना, जो मैं तुझे बताता हूँ।” इस बार योना ने क्या किया?

23 वह बिलकुल नहीं हिचकिचाया। हम पढ़ते हैं, “योना ने यहोवा की आज्ञा मानी और वह नीनवे गया।” (योना 3:3) उसने अपनी गलतियों से सबक सीख लिया था। इस मामले में भी हमें योना के विश्‍वास की मिसाल पर चलना चाहिए। हम सब पाप करते हैं, गलतियाँ करते हैं। (रोमि. 3:23) लेकिन क्या हम इस वजह से निराश होकर हार मान लेते हैं? या हम अपनी गलतियों से सबक सीखकर यहोवा के पास लौट आते हैं और उसकी आज्ञा मानकर उसकी सेवा करते हैं?

24, 25. (क) योना को जीते-जी क्या आशीष मिली? (ख) उसे भविष्य में कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

24 जब योना ने यहोवा की आज्ञा मानी तो क्या यहोवा ने उसे आशीष दी? ज़रूर। एक तो यह कि बाद में योना को यह जानकर खुशी हुई होगी कि उस जहाज़ के नाविक ज़िंदा बच गए। जब नाविकों ने देखा कि योना को समुंदर में फेंकने के फौरन बाद तूफान शांत हो गया, तो उन पर “यहोवा का डर छा गया” और उन्होंने अपने झूठे देवताओं के बजाय यहोवा को बलिदान चढ़ाया।​—योना 1:15, 16.

25 सदियों बाद यीशु ने अपनी एक भविष्यवाणी में योना का ज़िक्र किया। उसने कहा कि जैसे योना एक बड़ी मछली के पेट में तीन दिन और तीन रात रहा, वैसे ही वह भी मौत के बाद उतने समय कब्र में रहेगा। (मत्ती 12:38-40 पढ़िए।) जब भविष्य में योना को धरती पर ज़िंदा किया जाएगा, तो वह इस बारे में जानकर कितना रोमांचित होगा। यह वाकई उसके लिए एक बड़ी आशीष होगी! (यूह. 5:28, 29) यहोवा आपको भी आशीष देना चाहता है। मगर क्या आप योना की तरह अपनी गलतियों से सबक सीखने, परमेश्‍वर की आज्ञा मानने और त्याग की भावना दिखाने के लिए तैयार हैं?

^ पैरा. 4 यह बात गौर करने लायक है कि योना, गलील प्रदेश के एक नगर से था। यीशु का शहर नासरत भी गलील में था। लेकिन घमंडी फरीसियों ने यीशु का इनकार करते हुए कहा, “शास्त्र में ढूँढ़ और देख कि कोई भी भविष्यवक्‍ता गलील से नहीं आएगा।” (यूह. 7:52) बाइबल के कई अनुवादकों और खोजकर्ताओं का कहना है कि फरीसी यह कह रह थे कि गलील जैसे इलाके से, जो इतना जाना-माना नहीं है, न तो अब तक कोई भविष्यवक्‍ता आया है और न कभी आएगा। यह दिखाता है कि फरीसी इतिहास और भविष्यवाणी, दोनों को अनदेखा कर रहे थे।​—यशा. 9:1, 2.

^ पैरा. 12 सेप्टुआजेंट  बाइबल बताती है कि योना इतनी गहरी नींद सो रहा था कि वह खर्राटे ले रहा था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह बिलकुल बेफिक्र था। जब एक इंसान बहुत हताश हो जाता है तो नींद उस पर हावी होने लगती है। यीशु के चेलों के साथ भी ऐसा ही हुआ था। गतसमनी के बाग में जब यीशु का मन दुख और चिंता से भारी था तो पतरस, याकूब और यूहन्‍ना “सो रहे थे क्योंकि वे दुख के मारे पस्त हो चुके थे।”​—लूका 22:45.

^ पैरा. 19 जब बाइबल का अनुवाद इब्रानी भाषा से यूनानी में किया गया, तो “मछली” के लिए जो इब्रानी शब्द था उसका अनुवाद “डरावना समुद्री जीव” या “बहुत बड़ी मछली” किया गया। हालाँकि यह ठीक-ठीक पता नहीं लगाया जा सकता कि वह किस तरह का समुद्री जीव था, मगर देखा गया है कि भूमध्य सागर में इतनी बड़ी-बड़ी शार्क मछलियाँ हैं जो एक पूरे इंसान को निगल सकती हैं। दूसरे महासागरों में इससे भी बड़ी-बड़ी शार्क मछलियाँ हैं, जैसे व्हेल शार्क। इस शार्क की लंबाई 45 फुट या उससे भी ज़्यादा हो सकती है!