अध्याय इक्कीस
उसने डरने और शक करने की कमज़ोरी पर काबू पाया
1-3. (क) उस यादगार दिन में पतरस ने क्या देखा था? (ख) पूरी रात उसके साथ क्या हुआ?
पतरस ज़ोर लगाकर चप्पू चला रहा था और रात के अँधेरे में बड़ी मुश्किल से देखने की कोशिश कर रहा था कि सामने जो दिखायी दे रहा है वह क्या है। कहीं यह पूरब से आनेवाली रौशनी तो नहीं? क्या सुबह होनेवाली है? घंटों चप्पू चलाने की वजह से उसकी पीठ और कंधे बुरी तरह दुख रहे थे। गलील झील में ऐसी आँधी उठी थी कि पूरी झील में उथल-पुथल मच गयी। नाव के सामने के हिस्से पर लहरें टकरा रही थीं जिससे पतरस ठंडे पानी से पूरी तरह भीग गया था। फिर भी वह नाव खेता जा रहा था।
2 कुछ समय पहले पतरस और उसके साथियों ने यीशु को झील के किनारे छोड़ा था। उसी दिन उन्होंने यीशु को कुछ रोटियों और मछलियों से हज़ारों लोगों की भीड़ को खिलाते देखा था। यह चमत्कार देखकर लोगों ने यीशु को राजा बनाने की कोशिश की, मगर वह राजनीति में कोई हिस्सा नहीं लेना चाहता था। उसने अपने चेलों को भी यही सिखाया कि वे राजनीति में कोई हिस्सा न लें। भीड़ से पीछा छुड़ाने के लिए यीशु ने चेलों से कहा कि वे नाव पर चढ़कर झील के उस पार चले जाएँ और वह अकेले पहाड़ के ऊपर प्रार्थना करने चला गया।—मर. 6:35-45; यूहन्ना 6:14-17 पढ़िए।
3 जब चेले झील के उस पार जाने लगे तो रात को चाँद करीब-करीब पूरा निकला था और सीधे उनके ऊपर था। मगर अब चाँद पश्चिम की तरफ डूब रहा था। इतना समय हो गया, फिर भी वे कुछ ही किलोमीटर दूर पहुँच पाए। वे एक-दूसरे से बात नहीं कर पा रहे थे क्योंकि एक तो आँधी और लहरों का शोर था, ऊपर से उनका पूरा ध्यान नाव खेने में लगा हुआ था। उस दौरान पतरस शायद अपने खयालों में खो गया।
दो सालों के दौरान पतरस ने यीशु से बहुत कुछ सीखा था, मगर उसे आगे और भी सीखना था
4. पतरस क्यों हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है?
4 पतरस के पास सोचने के लिए बहुत सारी बातें थीं। दो साल पहले वह नासरत के यीशु से पहली बार मिला था। और उन दो सालों के दौरान बहुत कुछ हुआ था। उसने यीशु से काफी कुछ सीखा था, मगर उसे आगे और भी सीखना था। उसमें सीखने का जज़्बा तो
था, मगर साथ ही डरने और शक करने की कमज़ोरियाँ भी थीं। इन पर काबू पाने के लिए उसने काफी संघर्ष किया और इसी वजह से वह हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है। आइए देखें कैसे।“हमें मसीहा मिल गया है”!
5, 6. पतरस की ज़िंदगी कैसी थी?
5 पतरस शायद वह दिन कभी नहीं भूला जब वह पहली बार यीशु से मिला था। उसके भाई अन्द्रियास ने उसे यह रोमांचक खबर दी थी, “हमें मसीहा मिल गया है।” इसके बाद से उसकी ज़िंदगी बदलने लगी।—यूह. 1:41.
6 पतरस कफरनहूम में रहता था, जो गलील झील के उत्तरी तट पर बसा शहर था। वह और अन्द्रियास, जब्दी के बेटे याकूब और यूहन्ना के साथ मिलकर मछुवाई का कारोबार करते थे। पतरस के परिवार में उसकी पत्नी, सास और उसका भाई अन्द्रियास थे। अपने परिवार की रोज़ी-रोटी के लिए पतरस मछुवाई करता था। इस काम में कड़ी मेहनत लगती थी और काफी हुनरमंद होने की भी ज़रूरत थी। हम कल्पना कर सकते हैं कि अकसर वे रात को मछली पकड़ने निकल जाते और घंटों कड़ी मेहनत करते। वे अपने बड़े-बड़े जाल दो नावों के बीच डालते और उनमें जो भी मछलियाँ आतीं उन्हें खींचकर नावों में भर लेते। दिन को भी उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती। वे मछलियों को छाँटते, बेचते, अपने जाल ठीक करते और उन्हें साफ करते।
7. (क) पतरस ने यीशु के बारे में क्या सुना? (ख) यह क्यों एक खुशखबरी थी?
7 बाइबल बताती है कि अन्द्रियास, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का एक चेला था। जब भी वह यूहन्ना के संदेश के बारे में पतरस को बताता होगा तो पतरस बड़ी दिलचस्पी से सुनता होगा। एक दिन यूहन्ना ने नासरत के यीशु की तरफ इशारा करते हुए अपने चेलों से कहा, “देखो परमेश्वर का मेम्ना!” अन्द्रियास फौरन यीशु के पीछे चलने लगा। उसने जाकर पतरस को यह खुशखबरी सुनायी: मसीहा आ गया है! (यूह. 1:35-40) करीब 4,000 साल पहले अदन में हुई बगावत के बाद यहोवा परमेश्वर ने वादा किया था कि इंसानों को सच्ची आशा देने के लिए एक खास व्यक्ति दुनिया में आएगा। (उत्प. 3:15) अन्द्रियास ने पतरस को बताया कि वह खुद उस मसीहा से मिला है, जो इंसानों का छुड़ानेवाला होगा! यह सुनते ही पतरस भी यीशु से मिलने निकल पड़ा।
8. (क) यीशु ने पतरस को जो नाम दिया उसका क्या मतलब है? (ख) कुछ लोग क्यों कहते हैं कि यह नाम पतरस पर ठीक नहीं बैठता?
8 पतरस उस दिन तक शमौन के नाम से जाना जाता था। मगर यीशु ने उसे देखकर कहा, “‘तू यूहन्ना का बेटा शमौन है। तू कैफा कहलाएगा’ (यूनानी में कैफा का अनुवाद ‘पतरस’ किया जाता है)।” (यूह. 1:42) कैफा का मतलब है, “पत्थर” या “चट्टान।” ऐसा मालूम पड़ता है कि यीशु ने पतरस को यह नाम देकर एक भविष्यवाणी की थी। वह देख सकता था कि पतरस आगे चलकर चट्टान जैसा मज़बूत इंसान बनेगा, जो मसीह के चेलों को मज़बूत करेगा। क्या पतरस ने खुद के बारे में ऐसा ही महसूस किया? शायद उसे शक हुआ कि क्या वह ऐसा इंसान बनेगा। आज भी कुछ लोग जब खुशखबरी की किताबों में उसके बारे में पढ़ते हैं तो उन्हें उसमें चट्टान जैसा कोई गुण नज़र नहीं आता। कुछ लोगों ने यह तक कहा है कि वह एक डाँवाँडोल इंसान था और उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता था।
9. (क) यहोवा और उसका बेटा यीशु हमारी किन बातों पर ध्यान देते हैं? (ख) हमें क्यों भरोसा रखना चाहिए कि वे हमारे बारे में जो सोचते हैं वह सही है?
9 यह सच है कि पतरस में कुछ खामियाँ थीं और यीशु भी यह बात जानता था। मगर यीशु अपने पिता यहोवा की तरह लोगों की अच्छाइयों पर ध्यान देता था। यीशु जानता था कि पतरस में कई अच्छे गुण हैं और उन गुणों को बढ़ाने में उसने पतरस की मदद की। आज भी यहोवा और उसका बेटा हमारी अच्छाइयों पर ध्यान देते हैं। हमें शायद यकीन करना मुश्किल लगे कि हममें बहुत-सी अच्छाइयाँ हैं। मगर हमें भरोसा रखना चाहिए कि यहोवा और यीशु हमारे बारे में जो सोचते हैं वह सही है और पतरस की तरह उनसे सीखने और उनके हाथों ढलने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।—1 यूहन्ना 3:19, 20 पढ़िए।
“मत डर”
10. (क) पतरस ने कौन-सा चमत्कार देखा होगा? (ख) फिर भी वह कहाँ लौट गया?
10 इसके बाद यीशु जब प्रचार के दौरे पर निकला तो शायद पतरस भी उसके साथ-साथ गया। उसने काना में यीशु का पहला चमत्कार देखा होगा जब उसने शादी की दावत में पानी को दाख-मदिरा में बदल दिया। इससे भी खास बात यह थी कि उसने यीशु से परमेश्वर के राज का संदेश सुना होगा जो इंसानों के लिए सबसे बेहतरीन आशा है। फिर भी वह यीशु के साथ आगे नहीं गया बल्कि वापस मछुवाई के कारोबार में लग गया। कुछ महीनों बाद एक बार फिर पतरस की मुलाकात यीशु से हुई। इस बार यीशु ने उसे बुलावा दिया कि वह पूरे समय उसके साथ रहकर प्रचार करे।
11, 12. (क) पतरस ने सारी रात कैसी मेहनत की? (ख) यीशु की बातें सुनने के बाद पतरस के मन में क्या सवाल उठे होंगे?
11 इससे कुछ ही देर पहले पतरस काफी निराश था। वह और दूसरे मछुवारे सारी रात जाल डालते रहे, मगर उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगा। पतरस ने अपने तजुरबे से जो-जो सीखा था वह सब आज़माकर देखा और अलग-अलग जगहों पर जाल डालकर देखा कि मछलियाँ कहाँ चारा खा रही होंगी। मगर उन्हें एक मछली तक नहीं मिली। हर मछुवारे की तरह उसने भी सोचा होगा कि काश! वह देख सकता कि मछलियों का झुंड कहाँ है या कुछ ऐसा कर सकता कि मछलियाँ अपने आप जाल में आ फँसे। मगर इस तरह सोचने से वह और भी खीज उठता होगा। पतरस यहाँ मज़े के लिए मछली पकड़ने नहीं आया था बल्कि यह उसके परिवार का पेट पालने का ज़रिया था। लाख कोशिशों के बावजूद जब उसे कुछ हाथ नहीं लगा तो वह किनारे लौट आया। उसे अब जाल साफ करने थे। वह इस काम में लगा हुआ था कि तभी यीशु उसके पास आया।
पतरस, यीशु से परमेश्वर के राज के बारे में बार-बार सुनते कभी नहीं थका, जो उसके प्रचार का खास विषय था
12 दरअसल हुआ यह कि लोगों की एक भीड़ यीशु की बात सुनने के लिए उस पर गिरी जा रही थी। इसलिए यीशु पतरस की नाव पर चढ़ गया और उससे कहा कि नाव को खेकर किनारे से थोड़ी दूर ले जाए। अब उसकी आवाज़ पानी के ऊपर से लोगों तक साफ पहुँच रही थी और उसने भीड़ को सिखाया। पतरस ने भी किनारे मौजूद लोगों की तरह लूका 5:1-3.
उसकी बातें ध्यान से सुनीं। यीशु परमेश्वर के राज के बारे में बता रहा था जो उसके प्रचार का खास विषय था और इस बारे में यीशु से बार-बार सुनते पतरस कभी नहीं थका। पतरस ने सोचा होगा कि पूरे देश में आशा का संदेश सुनाने में मसीह की मदद करना कितने सम्मान की बात है! मगर क्या वह यह सम्मान स्वीकार कर सकता था? अगर वह यीशु के साथ जाएगा तो उसके परिवार को कौन खिलाएगा? उसने शायद यह भी सोचा होगा कि वह मछुवाई के साथ-साथ प्रचार कैसे करेगा, क्योंकि कई बार घंटों मेहनत करने पर भी मछली नहीं मिलती, ठीक जैसे पिछली रात को हुआ था।—13, 14. (क) यीशु ने पतरस की खातिर क्या चमत्कार किया? (ख) यह देखकर पतरस ने क्या किया?
13 जब यीशु ने सिखाना खत्म किया तो उसने पतरस से कहा, “नाव को खेकर गहरे पानी में ले चल, वहाँ अपने जाल डालना।” मगर पतरस को यीशु की बात पर बिलकुल यकीन नहीं हुआ। उसने कहा, “गुरु, हमने सारी रात मेहनत की, मगर हमारे हाथ कुछ नहीं लगा। फिर भी तेरे कहने पर मैं जाल डालूँगा।” पतरस ने अभी-अभी जाल धोया था, इसलिए उसकी बातों से लग रहा था कि दोबारा जाल डालने का उसका बिलकुल भी मन नहीं कर रहा था और खासकर इस वक्त जब मछलियाँ चारा भी नहीं खातीं! फिर भी उसने यीशु की बात मानी और शायद अपने साथियों को इशारा किया कि वे दूसरी नाव लेकर पीछे-पीछे आएँ।—लूका 5:4, 5.
14 जाल डालने के बाद जब पतरस उन्हें वापस खींचने लगा तो उसे अचानक जाल बहुत भारी लगे। उसे यकीन नहीं हो रहा था। जब उसने ज़ोर लगाकर उन्हें खींचा तो देखा कि जाल में बड़ी तादाद में मछलियाँ फँसी छटपटा रही हैं! उसने हड़बड़ाते हुए दूसरी नाव के आदमियों को इशारा किया कि वे आकर मदद करें। जब वे भी आए और मछलियों को नाव में भरने लगे तो उन्होंने देखा कि एक नाव काफी नहीं है। उन्होंने दूसरी नाव भी भर दी, मगर मछलियाँ इतनी ज़्यादा थीं कि उनके बोझ से नावें डूबने लगीं। पतरस हक्का-बक्का रह गया। उसने इससे पहले मसीह की ताकत देखी थी, मगर इस बार यीशु ने उसकी और उसके परिवार की खातिर चमत्कार किया। जो बात पतरस सिर्फ खयालों में सोच सकता था वह यीशु ने कर दिखाया। उसने ऐसा किया कि मछलियाँ अपने आप जाल में आ फँसीं! फिर पतरस डरने लगा। वह घुटनों के बल गिर गया और यीशु से कहने लगा, “मेरे पास से चला जा प्रभु, क्योंकि मैं एक पापी इंसान हूँ।” उसने सोचा होगा कि इस इंसान के पास परमेश्वर की शक्ति है और इससे वह कितने बड़े-बड़े काम कर रहा है, मगर मैं तो एक पापी इंसान हूँ, इसके साथ रहने के लायक कहाँ?—लूका 5:6-9 पढ़िए।
‘प्रभु, मैं एक पापी इंसान हूँ’
15. यीशु ने पतरस को कैसे सिखाया कि उसका शक करना और डरना गलत है?
15 यीशु ने प्यार से पतरस को समझाया, “मत डर। अब से तू जीते-जागते इंसानों को पकड़ा करेगा।” (लूका 5:10, 11) पतरस के लिए यह शक करने या डरने का समय नहीं था। उसका यह शक करना गलत था कि अगर वह मछुवाई नहीं करेगा तो उसके परिवार का गुज़ारा कैसे होगा। उसका यह डर भी गलत था कि वह प्रचार करने के लायक नहीं है क्योंकि उसमें बहुत-सी खामियाँ हैं। यीशु एक महान काम करने जा रहा था, ऐसा प्रचार काम जो इंसानों का भविष्य बदल देता। वह एक ऐसे परमेश्वर की सेवा कर रहा था जो “दिल खोलकर माफ करता है।” (यशा. 55:7) यहोवा ज़रूर पतरस की मदद करता ताकि वह अपने परिवार का गुज़ारा कर सके और प्रचार काम भी कर सके।—मत्ती 6:33.
16. (क) जब यीशु ने पतरस, याकूब और यूहन्ना को बुलाया तो उन्होंने क्या किया? (ख) यह क्यों उनकी ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन फैसला था?
16 पतरस ने फौरन यीशु की बात मानी। याकूब और यूहन्ना ने भी ऐसा ही किया। “वे अपनी-अपनी नाव किनारे पर ले आए और सबकुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।” (लूका 5:11) पतरस ने यीशु पर और उसे भेजनेवाले परमेश्वर पर विश्वास किया। यह उसकी ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन फैसला था। आज भी जो मसीही अपने दिल से डर और शक दूर करके परमेश्वर की सेवा करते हैं, वे भी पतरस जैसा विश्वास ज़ाहिर करते हैं। जो यहोवा पर ऐसा भरोसा रखते हैं उनकी वह हमेशा देखभाल करता है।—भज. 22:4, 5.
“तूने शक क्यों किया?”
17. बीते दो सालों की कौन-सी यादें पतरस के मन में ताज़ा हुई होंगी?
17 यीशु से मिलने के करीब दो साल बाद, पतरस के साथ वह घटना घटी जो इस अध्याय की शुरूआत में बतायी गयी है। उस रात गलील झील में आए तूफान में नाव खेते वक्त पतरस के मन में कौन-कौन-सी यादें ताज़ा हुई होंगी, हम नहीं जानते। मगर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि उसके पास सोचने के लिए बहुत कुछ था। यीशु ने उसकी सास को चंगा किया था। उसने पहाड़ी उपदेश दिया था। उसने कई बार अपनी शिक्षाओं और चमत्कारों से साबित किया कि वही यहोवा का चुना हुआ जन यानी मसीहा है। जैसे-जैसे महीने बीतते गए, पतरस ने ज़रूर डरने और शक करने की कमज़ोरियों पर कुछ हद तक काबू पाया होगा। इसलिए जब यीशु 12 प्रेषित चुन रहा था तो उसने पतरस को भी चुना! मगर अब भी पतरस डरने और शक करने की कमज़ोरियों पर पूरी तरह काबू नहीं कर पाया था और यह बहुत जल्द ज़ाहिर होनेवाला था।
18, 19. (क) बताइए कि पतरस ने गलील झील पर क्या देखा। (ख) यीशु ने पतरस की गुज़ारिश कैसे पूरी की?
18 रात के इस चौथे पहर यानी सुबह करीब 3 बजे से सूरज उगने के बीच के समय, पतरस ने अचानक नाव खेना बंद कर दिया और सीधा होकर बैठ गया। उसे लहरों के ऊपर कुछ हिलता हुआ दिखायी दिया! ‘क्या वह पानी के छींटे हैं जो चाँद की रौशनी में इस तरह चमक रहे हैं? नहीं, ये तो कुछ और है जो इतना सीधा दिखायी दे रहा है। यह तो कोई आदमी लग रहा है! हाँ, यह आदमी ही है और वह पानी पर चल रहा है!’ जब वह उनके पास आ रहा था तो ऐसा लग रहा था कि वह उनसे आगे चला जाएगा। चेले घबरा गए और उन्होंने सोचा कि यह उनका वहम है। उस आदमी ने उनसे कहा, “हिम्मत रखो, मैं ही हूँ। डरो मत।” वह आदमी कोई और नहीं, यीशु था!—मत्ती 14:25-28.
19 यह सुनकर पतरस ने कहा, “प्रभु अगर यह तू है, तो मुझे आज्ञा दे कि मैं पानी पर चलकर तेरे पास आऊँ।” शुरू में तो पतरस ने बहुत हिम्मत दिखायी। यह अनोखा चमत्कार देखकर वह उमंग से भर गया और वह भी चमत्कार से पानी पर चलना चाहता था ताकि उसका विश्वास और मज़बूत हो। यीशु ने पतरस को बुलाया। पतरस ने नाव के एक तरफ चढ़कर झील की लहरों पर कदम रखा। कल्पना कीजिए, पतरस जब पानी पर पैर रखता है और उसे ऐसा महसूस होता है जैसे उसने ठोस ज़मीन पर पैर रखा है और वह सीधे खड़ा हो जाता है, तो उसके शरीर में कैसे सिहरन-सी दौड़ गयी होगी! जब वह यीशु की तरफ बढ़ने लगा तो वह हैरान रह गया होगा। मगर तभी अचानक एक अलग तरह की भावना उस पर हावी होने लगी।—मत्ती 14:29 पढ़िए।
“तूफान को देखकर वह डर गया”
20. (क) पतरस का ध्यान कैसे भटक गया और इसका अंजाम क्या हुआ? (ख) यीशु ने पतरस को क्या सीख दी?
20 पतरस को अपना पूरा ध्यान यीशु पर लगाए रखना था। उसे याद रखना था कि यीशु यहोवा की ताकत से उसे तूफानी लहरों के ऊपर चलने में मदद दे रहा था। यीशु मत्ती 14:30, 31.
उसकी मदद इसलिए कर रहा था क्योंकि उसने यीशु पर विश्वास किया था। मगर बीच में पतरस का ध्यान भटक गया। हम पढ़ते हैं, “तूफान को देखकर वह डर गया।” जब पतरस उन उफनती लहरों को देखने लगा जो नाव से टकरा रही थीं और जिनसे झाग ऊपर उठ रहा था तो उसकी जान सूख गयी। उसने सोचा होगा कि अब वह ज़रूर डूब जाएगा। जैसे-जैसे उसका डर बढ़ने लगा उसका विश्वास कम होने लगा। यह वही आदमी था जिसे चट्टान नाम दिया गया था क्योंकि उसमें मज़बूत इंसान बनने की काबिलीयत थी। मगर अब वह अपने कमज़ोर विश्वास की वजह से पत्थर की तरह डूबने लगा। पतरस तैरने में माहिर था, फिर भी उसने अपनी काबिलीयत पर भरोसा नहीं किया। वह चिल्ला उठा, “हे प्रभु, मुझे बचा!” यीशु ने उसका हाथ थाम लिया और ऊपर खींच लिया। जब पतरस वहीं पानी पर था तब यीशु ने उसे यह कहकर एक अहम सीख दी, “अरे कम विश्वास रखनेवाले, तूने शक क्यों किया?”—21. (क) शक करना क्यों खतरनाक है? (ख) अपने दिल से शक दूर करने के लिए हम कैसे संघर्ष कर सकते हैं?
21 यीशु ने कितनी सही बात कही, “तूने शक क्यों किया?” शक एक इंसान पर बहुत बुरा असर कर सकता है। अगर हम शक करने लगें तो यह हमारे विश्वास को कमज़ोर कर सकता है और उसे मिटा सकता है। हमें अपने दिल से शक दूर करने के लिए कड़ा संघर्ष करना चाहिए। यह हम कैसे कर सकते हैं? सही बातों पर ध्यान लगाकर। अगर हम उन बातों पर ध्यान दें जिनसे हमें डर लगता है, हमारी हिम्मत टूट जाती है और यहोवा और उसके बेटे से हमारा ध्यान हट जाता है तो हमारे दिल में शक बढ़ता जाएगा। लेकिन अगर हम अपनी नज़र यहोवा और उसके बेटे पर लगाएँगे और इस बात पर ध्यान देंगे कि जो उनसे प्यार करते हैं उनकी खातिर उन्होंने क्या किया है, क्या कर रहे हैं और आगे क्या करेंगे तो हम अपने दिल से शक दूर कर पाएँगे।
22. हमें पतरस जैसा विश्वास क्यों बढ़ाना चाहिए?
22 जब पतरस यीशु के साथ नाव पर चढ़ गया तो इसके बाद उसने देखा कि तूफान थम गया। गलील झील शांत हो गया। पतरस ने बाकी चेलों के साथ मिलकर यीशु से कहा, “तू वाकई परमेश्वर का बेटा है।” (मत्ती 14:33) जब सुबह होने लगी तो पतरस का दिल ज़रूर एहसान से भर गया होगा। उसने सीखा कि उसे कभी-भी डरकर यहोवा और यीशु पर शक नहीं करना चाहिए। यह सच है कि उसे अपने अंदर और भी कई बदलाव करने थे तभी जाकर वह चट्टान जैसा मज़बूत मसीही बनता, जैसे कि यीशु ने उसमें काबिलीयत देखी थी। फिर भी उसने ठान लिया कि वह कोशिश करता रहेगा और आगे तरक्की करता रहेगा। क्या आपने भी ऐसा ही करने की ठान ली है? अगर हाँ, तो आप पतरस के विश्वास से बहुत कुछ सीख सकते हैं।