मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 10:1-52

10  यीशु उठा और वहाँ से निकलकर यरदन के पार यहूदिया की सरहदों के पास आया। उसके पास फिर से भीड़ जमा हो गयी। और जैसा उसका दस्तूर था, वह उन्हें एक बार फिर सिखाने लगा।+  अब फरीसी आए और यीशु की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने उससे पूछा कि एक आदमी के लिए अपनी पत्नी को तलाक देना कानून के हिसाब से सही है या नहीं?+  उसने कहा, “मूसा ने तुम्हें क्या आज्ञा दी है?”   उन्होंने कहा, “मूसा ने तलाकनामा लिखकर पत्नी को तलाक देने की इजाज़त दी है।”+  मगर यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे दिलों की कठोरता की वजह से+ उसने तुम्हारे लिए यह आज्ञा लिखी।+  मगर सृष्टि की शुरूआत से ‘परमेश्‍वर ने उन्हें नर और नारी बनाया था।+  इस वजह से आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा+  और वह और उसकी पत्नी* एक तन होंगे।’+ तो वे अब दो नहीं रहे बल्कि एक तन हैं।   इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है,* उसे कोई इंसान अलग न करे।”+ 10  एक बार फिर जब वे घर में थे, तो चेले इस बारे में उससे सवाल पूछने लगे।  11  यीशु ने उनसे कहा, “जो कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है और किसी दूसरी से शादी करता है, वह उस पहली औरत का हक मारता है और व्यभिचार करने का दोषी है।+ 12  और अगर एक औरत अपने पति को तलाक देकर कभी किसी दूसरे से शादी करती है, तो वह व्यभिचार करने की दोषी है।”+ 13  अब लोग यीशु के पास छोटे बच्चों को लाने लगे ताकि वह उन पर हाथ रखे, मगर चेलों ने उन्हें डाँटा।+ 14  यह देखकर यीशु नाराज़ हुआ और उसने कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो, उन्हें रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि परमेश्‍वर का राज ऐसों ही का है।+ 15  मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कोई परमेश्‍वर के राज को एक छोटे बच्चे की तरह स्वीकार नहीं करता, वह उसमें हरगिज़ नहीं जा पाएगा।”+ 16  फिर उसने बच्चों को अपनी बाँहों में लिया और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद देने लगा।+ 17  जब वह निकलकर अपने रास्ते जा रहा था, तो एक आदमी दौड़कर आया और उसके सामने घुटनों के बल गिरा और उसने पूछा, “अच्छे गुरु, हमेशा की ज़िंदगी का वारिस बनने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?”+ 18  यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे अच्छा क्यों कहता है? कोई अच्छा नहीं है, सिवा परमेश्‍वर के।+ 19  तू तो आज्ञाएँ जानता है, ‘खून न करना,+ व्यभिचार न करना,+ चोरी न करना,+ झूठी गवाही न देना,+ किसी को न ठगना+ और अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना।’”+ 20  उस आदमी ने कहा, “गुरु, ये सारी बातें तो मैं बचपन से मान रहा हूँ।”  21  यीशु ने प्यार से उसे देखा और कहा, “तुझमें एक चीज़ की कमी है: जा और जो कुछ तेरे पास है उसे बेचकर कंगालों को दे दे क्योंकि तुझे स्वर्ग में खज़ाना मिलेगा और आकर मेरा चेला बन जा।”+ 22  मगर इस बात पर वह उदास हो गया और दुखी होकर चला गया क्योंकि उसके पास बहुत धन-संपत्ति थी। 23  यीशु ने चारों तरफ देखने के बाद अपने चेलों से कहा, “पैसेवालों के लिए परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना कितना मुश्‍किल होगा!”+ 24  मगर चेले उसकी बातें सुनकर ताज्जुब करने लगे। तब यीशु ने दोबारा उनसे कहा, “बच्चो, परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना कितना मुश्‍किल है!  25  परमेश्‍वर के राज में एक अमीर आदमी के दाखिल होने से, एक ऊँट का सुई के छेद से निकल जाना ज़्यादा आसान है।”+ 26  यह सुनकर वे और भी हैरान रह गए और उन्होंने उससे कहा, “तो भला कौन उद्धार पा सकता है?”+ 27  यीशु ने सीधे उनकी तरफ देखकर कहा, “इंसानों के लिए यह नामुमकिन है मगर परमेश्‍वर के लिए नहीं, क्योंकि परमेश्‍वर के लिए सबकुछ मुमकिन है।”+ 28  तब पतरस ने उससे कहा, “देख! हम तो सबकुछ छोड़कर तेरे पीछे चल रहे हैं।”+ 29  यीशु ने कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, ऐसा कोई नहीं जिसने मेरी और खुशखबरी की खातिर घर या भाइयों या बहनों या पिता या माँ या बच्चों या खेतों को छोड़ा हो+ 30  और इस ज़माने* में घरों, भाइयों, बहनों, माँओं, बच्चों और खेतों का 100 गुना न पाए पर ज़ुल्मों के साथ+ और आनेवाले ज़माने में हमेशा की ज़िंदगी न पाए।  31  फिर भी बहुत-से जो पहले हैं वे आखिरी होंगे और जो आखिरी हैं वे पहले होंगे।”+ 32  अब वे यरूशलेम जानेवाले रास्ते पर थे और यीशु उनके आगे-आगे चल रहा था। चेले हैरान थे और जो उनके पीछे-पीछे चल रहे थे उन्हें डर लगने लगा। एक बार फिर वह अपने 12 चेलों को अलग ले गया और उन्हें बताने लगा कि उसके साथ यह सब होनेवाला है:+ 33  “देखो! हम यरूशलेम जा रहे हैं और इंसान का बेटा प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हवाले किया जाएगा। वे उसे मौत की सज़ा सुनाएँगे और गैर-यहूदियों के हवाले कर देंगे।  34  वे उसकी खिल्ली उड़ाएँगे, उस पर थूकेंगे,+ उसे कोड़े लगाएँगे और मार डालेंगे मगर तीन दिन बाद वह ज़िंदा हो जाएगा।”+ 35  जब्दी के बेटे याकूब और यूहन्‍ना+ उसके पास आए और उन्होंने कहा, “गुरु, हम चाहते हैं कि हम तुझसे जो कुछ कहें, तू हमारे लिए कर दे।”+ 36  उसने कहा, “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”  37  उन्होंने कहा, “जब तू महिमा पाएगा, तब हममें से एक को अपने दाएँ और दूसरे को अपने बाएँ बैठने देना।”+ 38  मगर यीशु ने उनसे कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम क्या माँग रहे हो। क्या तुम वह प्याला पी सकते हो जिसे मैं पी रहा हूँ? और मेरा जो बपतिस्मा हो रहा है, क्या तुम वह बपतिस्मा ले सकते हो?”+ 39  उन्होंने कहा, “हम कर सकते हैं।” तब यीशु ने उनसे कहा, “जो प्याला मैं पी रहा हूँ, उसे तुम भी पीओगे। और मेरा जो बपतिस्मा हो रहा है, वही तुम्हारा भी होगा।+ 40  मगर मेरे दायीं या बायीं तरफ बैठने की इजाज़त देने का अधिकार मेरे पास नहीं। ये जगह उनके लिए हैं, जिनके लिए ये तैयार की गयी हैं।” 41  जब बाकी दस ने इस बारे में सुना, तो उन्हें याकूब और यूहन्‍ना पर बहुत गुस्सा आया।+ 42  मगर यीशु ने चेलों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम जानते हो कि दुनिया में जिन्हें राज करनेवाले समझा जाता है, वे लोगों पर हुक्म चलाते हैं और उनके बड़े-बड़े लोग उन पर अधिकार जताते हैं।+ 43  मगर तुम्हारे बीच ऐसा नहीं होना चाहिए, बल्कि तुममें जो बड़ा बनना चाहता है, उसे तुम्हारा सेवक होना चाहिए+ 44  और जो कोई तुममें पहला होना चाहता है, उसे सबका दास होना चाहिए  45  क्योंकि इंसान का बेटा भी सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है+ और इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।”+ 46  फिर वे यरीहो आए। मगर जब यीशु, उसके चेले और भारी तादाद में लोग यरीहो से बाहर जा रहे थे, तो (तिमाई का बेटा) बरतिमाई नाम का एक अंधा भिखारी सड़क के किनारे बैठा था।+ 47  जब उसने सुना कि यीशु नासरी वहाँ से जा रहा है, तो वह चिल्लाकर कहने लगा, “दाविद के वंशज+ यीशु, मुझ पर दया कर!”+ 48  इस पर कई लोगों ने उसे डाँटा कि वह चुप हो जाए, मगर वह और ज़ोर से चिल्लाने लगा, “दाविद के वंशज, मुझ पर दया कर!”  49  तब यीशु रुक गया और उसने कहा, “उसे मेरे पास बुलाओ।” उन्होंने अंधे आदमी को बुलाया और कहा, “हिम्मत रख और खड़ा हो जा, वह तुझे बुला रहा है।”  50  उसने अपना चोगा फेंका और उछलकर खड़ा हो गया और यीशु के पास गया।  51  तब यीशु ने उससे कहा, “तू क्या चाहता है, मैं तेरे लिए क्या करूँ?” अंधे आदमी ने उससे कहा, “हे मेरे गुरु,+ मेरी आँखों की रौशनी लौट आए।”  52  यीशु ने उससे कहा, “जा, तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है।”*+ उसी वक्‍त उसकी आँखों की रौशनी लौट आयी+ और वह यीशु के साथ उसी रास्ते पर चल दिया।

कई फुटनोट

शा., “वे दोनों।”
शा., “एक जुए में जोड़ा है।”
या “मौजूदा समय।”
या “तुझे बचा लिया है।”

अध्ययन नोट

यरदन के पार यहूदिया की सरहदों: ज़ाहिर है कि यहाँ यरदन नदी के पूरब में पेरिया की बात की गयी है, खासकर पेरिया के उन हिस्सों की जो यहूदिया की सरहद के पास थे।​—मत 19:1 का अध्ययन नोट और अति. क7, नक्शा 5 देखें।

तलाकनामा: मत 19:7 का अध्ययन नोट देखें।

सृष्टि की शुरूआत: ज़ाहिर है कि यहाँ इंसान की सृष्टि की बात की गयी है। यीशु बता रहा था कि सृष्टिकर्ता ने कैसे शुरू में एक आदमी और औरत की शादी करवायी और इस तरह इंसानी समाज की बुनियाद डाली।

परमेश्‍वर: शा., “उसने।” कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में साफ बताया गया है कि यहाँ कर्ता “परमेश्‍वर” है।

एक तन: मत 19:5 का अध्ययन नोट देखें।

अपनी पत्नी को तलाक देता है: या “अपनी पत्नी को भेज देता है।” मरकुस में लिखी यीशु की बात पढ़ने से लग सकता है कि एक व्यक्‍ति चाहे किसी भी वजह से तलाक ले वह दोबारा शादी नहीं कर सकता। लेकिन यह आयत समझने के लिए ज़रूरी है कि हम मत 19:9 को ध्यान में रखें जहाँ यीशु की पूरी बात लिखी है। वहाँ यीशु के ये शब्द भी दर्ज़ हैं: “नाजायज़ यौन-संबंध के अलावा किसी और वजह से।” (मत 5:32 का अध्ययन नोट देखें।) इससे पता चलता है कि एक व्यक्‍ति तब व्यभिचार का दोषी होता है जब वह “नाजायज़ यौन-संबंध” (यूनानी में पोर्निया) को छोड़ किसी और वजह से तलाक लेता है।

उस पहली औरत का हक मारता है और व्यभिचार करने का दोषी है: या “उसके खिलाफ व्यभिचार करता है।” रब्बी सिखाते थे कि आदमी “किसी भी वजह से” अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। लेकिन यीशु ने यहाँ इस शिक्षा को गलत ठहराया। (मत 19:3, 9) कोई अपनी पत्नी के खिलाफ व्यभिचार कर सकता है, यह बात ज़्यादातर यहूदियों के लिए नयी थी क्योंकि रब्बियों का कहना था कि एक पति अपनी पत्नी के खिलाफ कभी व्यभिचार कर ही नहीं सकता। वे सिखाते थे कि सिर्फ पत्नी बेवफा हो सकती है। लेकिन यीशु ने इस आयत में लिखी बात कहकर सिखाया कि पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे के वफादार रहना चाहिए। इस तरह उसने औरतों का सम्मान किया और उनका दर्जा उठाया।

अगर एक औरत अपने पति को तलाक देकर: यह बात कहकर यीशु ने बताया कि एक औरत को भी अपने बेवफा पति को तलाक देने का हक है। ज़ाहिर है कि यह बात उसके दिनों के यहूदियों को मंज़ूर नहीं थी। यीशु के मुताबिक, मसीही इंतज़ाम के तहत आदमी और औरत दोनों के लिए एक जैसे स्तर होते।

छोटे बच्चों: हो सकता है कि ये बच्चे अलग-अलग उम्र के रहे हों। यहाँ जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “छोटे बच्चों” किया गया है, वह न सिर्फ नए जन्मे बच्चों और शिशुओं के लिए इस्तेमाल हुआ है (मत 2:8; लूक 1:59) बल्कि याइर की 12 साल की बेटी के लिए भी हुआ है (मर 5:39-42)। लेकिन इसके मिलते-जुलते ब्यौरे लूक 18:15 में लूका ने एक अलग यूनानी शब्द इस्तेमाल किया। यह शब्द सिर्फ छोटे-छोटे बच्चों या शिशुओं के लिए इस्तेमाल होता है।​—लूक 1:41; 2:12.

एक छोटे बच्चे की तरह: यहाँ छोटे बच्चों में पाए जानेवाले बढ़िया गुण पैदा करने की बात की गयी है, जैसे नम्र होना, सीखने के लिए तैयार रहना, भरोसा करना और बात मानना।​—मत 18:5.

बच्चों को अपनी बाँहों में लिया: यह बात सिर्फ मरकुस के ब्यौरे में पायी जाती है। “अपनी बाँहों में लेना” के लिए जो यूनानी शब्द है, वह सिर्फ यहाँ और मर 9:36 में आया है और उसका अनुवाद “गले लगाना” भी किया जा सकता है। जब लोग बच्चों को यीशु के पास लाए तो उन्होंने सोचा कि वह उन पर ‘हाथ रखेगा,’ लेकिन यीशु ने उनकी उम्मीद से बढ़कर किया। (मर 10:13) यीशु अपने परिवार में सबसे बड़ा था और उसके कम-से-कम छ: भाई-बहन और थे। इसलिए वह छोटे बच्चों की ज़रूरत समझता था। (मत 13:55, 56) यहाँ तक कि वह उन्हें आशीर्वाद देने लगा। “आशीर्वाद देने” के यूनानी शब्द का यहाँ सबसे ज़बरदस्त रूप इस्तेमाल हुआ है, जिसका मतलब है कि उसने बहुत प्यार से उन्हें आशीर्वाद दिया होगा।

अच्छे गुरु: ज़ाहिर है कि यह आदमी “अच्छे गुरु” कहकर यीशु की चापलूसी कर रहा था और बस दिखावे के लिए यह उपाधि इस्तेमाल कर रहा था। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि धर्म गुरु माँग करते थे कि इस तरह की उपाधि देकर उनका आदर किया जाए। हालाँकि यीशु को इस बात से एतराज़ नहीं था कि लोग सही इरादे से उसे “गुरु” और “प्रभु” कहें (यूह 13:13), मगर इस मौके पर उसने सारा आदर-सम्मान अपने पिता को देने के लिए कहा।

कोई अच्छा नहीं है, सिवा परमेश्‍वर के: यहाँ यीशु कह रहा था कि अच्छा क्या है इसका स्तर तय करने का हक सिर्फ यहोवा को है। सारे जहान का मालिक होने के नाते सिर्फ उसी को यह तय करने का अधिकार है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। अच्छे-बुरे के ज्ञान के पेड़ का फल खाकर आदम और हव्वा ने यहोवा से बगावत की और उसका यह हक खुद लेना चाहा। (उत 2:17; 3:4-6) मगर यीशु उनके जैसा नहीं था, उसने नम्र होकर स्तर ठहराने का हक अपने पिता के पास रहने दिया। परमेश्‍वर ने अपने वचन बाइबल में अच्छाई के स्तर साफ-साफ बताए हैं।​—मर 10:19.

प्यार से उसे देखा: सिर्फ मरकुस ने बताया कि इस अमीर जवान अधिकारी के लिए यीशु ने कैसा महसूस किया। (मत 19:16-26; लूक 18:18-30) यह जानकारी ज़रूर पतरस ने दी होगी जो खुद एक भावुक इंसान था।​—“मरकुस की किताब पर एक नज़र” देखें।

एक ऊँट का सुई के छेद से निकल जाना ज़्यादा आसान है: यीशु ने अतिशयोक्‍ति अलंकार का इस्तेमाल करके बताया कि जिस तरह एक ऊँट सुई के छेद से कभी नहीं निकल सकता, उसी तरह अगर एक अमीर आदमी यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते से ज़्यादा धन-संपत्ति को अहमियत देता रहे तो वह कभी परमेश्‍वर के राज में दाखिल नहीं हो सकेगा। लेकिन यीशु के कहने का यह मतलब नहीं था कि कोई भी अमीर आदमी परमेश्‍वर के राज में नहीं जा सकता क्योंकि उसने आगे कहा, “परमेश्‍वर के लिए सबकुछ मुमकिन है।”​—मर 10:27.

उससे: कुछ हस्तलिपियों में लिखा है, “एक-दूसरे से।”

आनेवाले ज़माने: या “आनेवाली दुनिया की व्यवस्था।” यूनानी शब्द आयॉन का बुनियादी मतलब है, “ज़माना।” मगर इसका यह भी मतलब हो सकता है, किसी दौर के हालात या कुछ खास बातें जो उस दौर या ज़माने को दूसरे दौर या ज़माने से अलग दिखाती हैं। यीशु यहाँ आनेवाले उस युग की बात कर रहा था, जब परमेश्‍वर का राज होगा और वादे के मुताबिक सबको हमेशा की ज़िंदगी दी जाएगी।​—लूक 18:29, 30; कृपया शब्दावली में “दुनिया की व्यवस्था या व्यवस्थाएँ” देखें।

यरूशलेम जानेवाले रास्ते पर थे: यरूशलेम समुद्र-तल से करीब 2,500 फुट (750 मी.) की ऊँचाई पर था, इसलिए इन शब्दों का अनुवाद “ऊपर यरूशलेम जानेवाले रास्ते पर थे” भी किया जा सकता है। यीशु और उसके चेले यरदन घाटी से ऊपर चढ़ रहे थे (मर 10:1 का अध्ययन नोट देखें), जिसका सबसे निचला हिस्सा समुद्र-तल से करीब 1,300 फुट (400 मी.) नीचे है। इसलिए उन्हें यरूशलेम जाने के लिए करीब 3,330 फुट (1,000 मी.) ऊपर चढ़कर जाना था।

उस पर थूकेंगे: किसी इंसान पर या उसके चेहरे पर थूकना दिखाता है कि थूकनेवाला उसे कितना नीच समझता है, उसमें कितना गुस्सा है या वह अपनी दुश्‍मनी निकाल रहा है और जिस पर थूका जाता है उसकी बहुत बेइज़्ज़ती होती है। (गि 12:14; व्य 25:9) यहाँ यीशु कह रहा था कि उसे यह सब सहना पड़ेगा और इससे मसीहा के बारे में यह भविष्यवाणी पूरी होगी: “अपमान सहने और थूके जाने पर मैंने मुँह नहीं छिपाया।” (यश 50:6) जब उसे महासभा के सामने लाया गया तो उस दौरान उस पर थूका गया। (मर 14:65) फिर पीलातुस का फैसला सुनाए जाने के बाद रोमी सैनिकों ने उस पर थूका।​—मर 15:19.

जब्दी के बेटे याकूब और यूहन्‍ना उसके पास आए: मत्ती के ब्यौरे के मुताबिक याकूब और यूहन्‍ना की माँ ने यीशु से गुज़ारिश की, लेकिन ज़ाहिर है कि गुज़ारिश उसके बेटों की ही थी। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि मत्ती ने बताया कि जब इस बारे में बाकी दस चेलों ने सुना तो उन्हें “दोनों भाइयों पर बहुत गुस्सा आया,” न कि उनकी माँ पर।​—मत 20:20-24; कृपया मत 4:21; 20:20 के अध्ययन नोट देखें।

बेटे: कुछ हस्तलिपियों में “दो बेटे” लिखा है, मगर यहाँ सिर्फ “बेटे” लिखा है और इसका ठोस आधार हस्तलिपियों में पाया जाता है।

एक को अपने दाएँ और दूसरे को अपने बाएँ: यहाँ दोनों पद सम्मान और अधिकार को दर्शाते हैं, मगर दायीं तरफ होना सबसे ज़्यादा सम्मान की बात समझी जाती थी।​—भज 110:1; प्रेष 7:55, 56; रोम 8:34; कृपया मत 25:33 का अध्ययन नोट देखें।

वह प्याला पी सकते हो: मत 20:22 का अध्ययन नोट देखें।

मेरा जो बपतिस्मा हो रहा है, क्या तुम वह बपतिस्मा ले सकते हो?: या “मैं जो डुबकी लगा रहा हूँ, क्या तुम वह डुबकी लगा सकते हो?” यीशु ने यहाँ शब्द “प्याला” और “बपतिस्मा” एक ही मतलब देने के लिए इस्तेमाल किए। (मत 20:22 का अध्ययन नोट देखें।) यहाँ बपतिस्मे का मतलब है, वह दौर जिससे यीशु तब गुज़रा जब वह प्रचार कर रहा था। इस मामले में उसे मौत में पूरी तरह बपतिस्मा या डुबकी तब दी जाती, जब उसे ईसवी सन्‌ 33 के नीसान 14 को काठ पर लटकाकर मार डाला जाता। जब उसे उठाया जाता यानी ज़िंदा किया जाता, तब उसका यह बपतिस्मा पूरा हो जाता। (रोम 6:3, 4) इससे साफ पता चलता है कि यीशु का मौत में बपतिस्मा, उसे पानी में दिए गए बपतिस्मे से अलग था। उसे पानी में बपतिस्मा प्रचार शुरू करने से पहले ही दिया जा चुका था और उस वक्‍त मौत में उसके बपतिस्मे की बस शुरूआत हुई थी।

लोगों पर हुक्म चलाते हैं: या “लोगों पर प्रभुता करते हैं; लोगों के मालिक होते हैं।” “हुक्म चलाने” का यूनानी शब्द मसीही यूनानी शास्त्र में सिर्फ चार बार आया है। (मत 20:25; मर 10:42; इसका अनुवाद 1पत 5:3 में ‘रौब जमाना’ और प्रेष 19:16 में “धर दबोचा” किया गया है) यीशु के इन शब्दों से लोगों के मन में ये बातें आयी होंगी: रोमी दबदबा जिससे उन्हें नफरत थी और हेरोदेस के खानदान की ज़ुल्मी हुकूमत। (मत 2:16; यूह 11:48) ज़ाहिर है कि पतरस यीशु की सलाह समझ गया था, इसलिए बाद में उसने मसीही प्राचीनों को बढ़ावा दिया कि वे मंडली पर रौब न जमाएँ बल्कि अपनी मिसाल से अगुवाई करें। (1पत 5:3) इससे जुड़ी क्रिया लूक 22:25 में इस्तेमाल हुई है, जहाँ यीशु ने इससे मिलती-जुलती बात कही। वही क्रिया 2कुर 1:24 में भी इस्तेमाल हुई है, जहाँ पौलुस ने कहा कि मसीहियों को संगी भाई-बहनों के विश्‍वास “के मालिक” नहीं होना चाहिए।

यरीहो: मत 20:29 का अध्ययन नोट देखें।

एक अंधा भिखारी: इस घटना के बारे में जब मत्ती (20:30) ने लिखा तो उसने दो अंधे आदमियों का ज़िक्र किया। मरकुस और लूका (18:35) ने एक ही अंधे आदमी की बात की। ज़ाहिर है कि उनका ध्यान सिर्फ बरतिमाई पर था, जिसका नाम सिर्फ मरकुस के ब्यौरे में बताया गया है।

नासरी: यीशु को और बाद में उसके चेलों को ‘नासरी’ कहा जाता था। (प्रेष 24:5) कई यहूदियों का नाम यीशु था, इसलिए पहचान के लिए नाम के साथ कुछ और जोड़ना आम था। बाइबल के ज़माने में एक व्यक्‍ति के नाम के साथ अकसर उस जगह का नाम जोड़ा जाता था, जहाँ का वह रहनेवाला होता था। (2शम 3:2, 3; 17:27; 23:25-39; नहू 1:1; प्रेष 13:1; 21:29) यीशु ने शुरू के ज़्यादातर साल गलील के नासरत नगर में बिताए, इसलिए उसे नासरी कहना लाज़िमी था। यीशु को अलग-अलग हालात में लोगों ने “नासरी” कहा। (मर 1:23, 24; 10:46, 47; 14:66-69; 16:5, 6; लूक 24:13-19; यूह 18:1-7) खुद यीशु ने भी यह नाम अपनाया और इस्तेमाल किया। (यूह 18:5-8; प्रेष 22:6-8) पीलातुस ने यीशु के काठ के ऊपर जो चिन्ह लगवाया था उस पर इब्रानी, लातीनी और यूनानी में यह लिखा था: “यीशु नासरी, यहूदियों का राजा।” (यूह 19:19, 20) ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन से प्रेषित और दूसरे लोग यीशु को अकसर “नासरी” या ‘नासरत का यीशु’ कहने लगे।​—प्रेष 2:22; 3:6; 4:10; 6:14; 10:38; 26:9; कृपया मत 2:23 का अध्ययन नोट भी देखें।

दाविद के वंशज: यीशु को ‘दाविद का वंशज’ कहकर अंधा बरतिमाई सबके सामने यह कबूल कर रहा था कि यीशु ही मसीहा है।​—मत 1:1, 6; 15:25 के अध्ययन नोट देखें।

मेरे गुरु: शा., “रब्बोनी।” यह एक इब्रानी शब्द है जिसका मतलब है, “मेरे गुरु।” हो सकता है कि शुरू में शब्द “रब्बोनी” में “रब्बी” से ज़्यादा आदर और लगाव झलकता था, जिसका मतलब है “गुरु।” (यूह 1:38) लेकिन जब यूहन्‍ना ने अपनी किताब लिखी, तब तक शायद प्रथम पुरुष प्रत्यय (शब्द के आखिर में जोड़ी गयी ‘ई’ की मात्रा जिसका मतलब है, “मेरे”) का कोई खास मतलब नहीं रह गया था। इसलिए यूहन्‍ना ने इसका अनुवाद “गुरु” किया।​—यूह 20:16.

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