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अध्याय 35

यीशु का मशहूर पहाड़ी उपदेश

यीशु का मशहूर पहाड़ी उपदेश

मत्ती 5:1–7:29 लूका 6:17-49

  • पहाड़ी उपदेश

यीशु गलील प्रदेश में कफरनहूम से थोड़ी दूर एक पहाड़ पर है। अभी दिन का समय है। पूरी रात प्रार्थना करने के बाद और 12 प्रेषितों को चुनने के बाद यीशु ज़रूर थक गया होगा। लेकिन वह अब भी लोगों की मदद करना चाहता है और उन्हें सिखाना चाहता है।

यीशु के पास दूर-दूर से लोगों की भीड़ आयी हुई है। वे उत्तर के सोर और सीदोन से और दक्षिण के यरूशलेम और यहूदिया से आए हैं। सब उसकी बातें सुनना चाहते हैं और बीमारियों से चंगा होना चाहते हैं। यीशु सबको चंगा कर देता है और लोगों में से “दुष्ट स्वर्गदूत” निकाल देता है।​—लूका 6:17-19.

इसके बाद यीशु पहाड़ पर एक समतल जगह बैठ जाता है और चारों तरफ लोगों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है। उसके चेले और खासकर 12 प्रेषित उसके बिलकुल पास बैठे होंगे। सब यीशु की बातें सुनने के लिए उत्सुक हैं। और यीशु उनके सामने एक ऐसा उपदेश देता है जिससे न सिर्फ उनको बल्कि बाद में भी कई लोगों को फायदा होगा। इन बातों पर ध्यान देने से आज हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। वह बहुत ही ज़रूरी बातें बताता है मगर सरल और साफ शब्दों में। वह रोज़मर्रा ज़िंदगी की जानी-मानी चीज़ों के उदाहरण बताता है। इसलिए लोग बड़ी आसानी से समझ पाते हैं कि वे परमेश्‍वर के बताए तरीके से कैसे जी सकते हैं। आइए इस उपदेश की खास बातों पर ध्यान दें।

कौन सच में सुखी हैं?

यीशु जानता है कि हर कोई खुश रहना चाहता है। इसलिए वह सबसे पहले बताता है कि किन बातों से एक इंसान को सच्ची खुशी मिल सकती है। अब लोग बड़े ध्यान से उसकी बात सुनते हैं। मगर उसकी कुछ बातें सुनकर वे शायद हैरान रह गए होंगे।

वह कहता है, “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है। सुखी हैं वे जो मातम मनाते हैं क्योंकि उन्हें दिलासा दिया जाएगा। . . . सुखी हैं वे जो नेकी के भूखे-प्यासे हैं क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे। . . . सुखी हैं वे जो सही काम करने की वजह से ज़ुल्म सहते हैं क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है। सुखी हो तुम जब लोग तुम्हें मेरे चेले होने की वजह से बदनाम करें, तुम पर ज़ुल्म ढाएँ . . . तब तुम मगन होना और खुशियाँ मनाना।”​—मत्ती 5:3-12.

यीशु के मुताबिक सुखी होने या खुश रहने का मतलब क्या है? इसका मतलब हमेशा हँसते-हँसाते रहना या मौज-मस्ती करना नहीं है। ऐसी खुशी कुछ पल के लिए होती है। सच्ची खुशी का मतलब है अपनी ज़िंदगी से संतुष्ट होना। यह खुशी हमेशा रहती है।

यीशु समझाता है कि किस तरह के लोग वाकई में सुखी होते हैं। ऐसे लोग जो इस बात को समझते हैं कि उन्हें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन की ज़रूरत है। वे इस बात को लेकर दुखी होते हैं कि वे पापी हैं, इसलिए वे परमेश्‍वर के बारे में सीखते हैं और उसकी सेवा करते हैं। वे परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक काम करते हैं। ऐसे लोगों से चाहे कोई नफरत करे या उन्हें सताए, तो भी वे खुश रहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि परमेश्‍वर उनसे खुश है और वह उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देगा।

वहाँ बैठे ज़्यादातर लोग शायद सोचते हैं कि धन-दौलत इकट्ठा करने और मौज-मस्ती करने से ही सच्ची खुशी मिलती है। मगर यीशु उन्हें बिलकुल अलग बात बताता है: “हाय तुम पर जो अमीर हो क्योंकि तुम अपने हिस्से का सुख पा चुके। हाय तुम पर जो अभी तृप्त हो क्योंकि तुम्हें भूख सताएगी। हाय तुम पर जो अभी हँस रहे हो क्योंकि तुम मातम मनाओगे और रोओगे। हाय तुम पर जब सब लोग तुम्हारी तारीफ करें, क्योंकि उनके बाप-दादे झूठे भविष्यवक्‍ताओं के साथ ऐसा ही करते थे।”​—लूका 6:24-26.

जो लोग अमीर हैं, जो अभी हँस रहे हैं और जो दूसरों से तारीफ पाते हैं उन्हें बाद में क्यों रोना पड़ेगा? क्योंकि जो लोग हमेशा दौलत का मज़ा लेते रहते हैं और लोगों की वाह-वाही लूटते हैं वे परमेश्‍वर की सेवा नहीं करते और सच्ची खुशी गँवा देते हैं। पर यीशु यह नहीं कह रहा है कि सिर्फ गरीब होने या भूखे रहने से सच्ची खुशी मिल जाएगी। वह बस यह कह रहा है कि ज़्यादातर इसी तरह के लोग उसकी शिक्षाओं पर ध्यान देते हैं और उसके मुताबिक चलकर सच्ची खुशी पाते हैं।

यीशु अपने चेलों को ध्यान में रखकर कहता है, “तुम पृथ्वी के नमक हो।” (मत्ती 5:13) खाने की चीज़ों को लंबे समय तक बचाए रखने के लिए उनमें नमक मिलाया जाता है। परमेश्‍वर के मंदिर में वेदी के पास भी नमक का ढेर होता था और बलिदानों में नमक मिलाया जाता था। (लैव्यव्यवस्था 2:13; यहेजकेल 43:23, 24) यीशु के चेले धरती के लोगों के लिए नमक जैसे हैं। जिस तरह नमक किसी चीज़ को सड़ने या नष्ट होने से बचाता है, उसी तरह चेलों का संदेश लोगों को कई तरह से बचाता है। वे परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता बनाए रख पाते हैं और गलत काम करने से बचे रहते हैं। उनका संदेश लोगों की जान बचाता है।

फिर यीशु चेलों से कहता है, “तुम दुनिया की रौशनी हो।” लोग दीपक जलाकर उसे टोकरी के नीचे नहीं बल्कि दीवट के ऊपर रखते हैं ताकि चारों तरफ रौशनी चमके। यीशु चेलों से कहता है, “तुम्हारी रौशनी लोगों के सामने चमके ताकि वे तुम्हारे भले काम देखकर स्वर्ग में रहनेवाले तुम्हारे पिता की महिमा करें।”​—मत्ती 5:14-16.

कानून को मानने का असली मतलब

यहूदी धर्म गुरुओं का कहना है कि यीशु परमेश्‍वर के कानून के खिलाफ काम करता है। इसलिए उन्होंने कुछ वक्‍त पहले उसे मार डालने की कोशिश की थी। मगर यीशु साफ-साफ कहता है, “यह मत सोचो कि मैं कानून या भविष्यवक्‍ताओं के वचनों को रद्द करने आया हूँ। मैं उन्हें रद्द करने नहीं बल्कि पूरा करने आया हूँ।”​—मत्ती 5:17.

यीशु परमेश्‍वर का कानून दिल से मानता है और दूसरों को भी ऐसा करने की सलाह देता है। वह यह तक कहता है, “अगर कोई इसकी छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को भी तोड़ता है और दूसरों को भी ऐसा करना सिखाता है, तो वह स्वर्ग के राज में दाखिल होने के लायक नहीं होगा। मगर जो इन्हें मानता है और दूसरों को भी ऐसा करना सिखाता है, वह स्वर्ग के राज में दाखिल होने के लायक होगा।”​—मत्ती 5:19.

यीशु बताता है कि अगर एक इंसान की सोच गलत है, तो भी वह परमेश्‍वर का कानून तोड़ रहा है। लोग जानते हैं कि खून करना गलत है। मगर यीशु कहता है, “हर वह इंसान जिसके दिल में अपने भाई के खिलाफ गुस्से की आग सुलगती रहती है, उसे अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा।” (मत्ती 5:21, 22) अगर एक व्यक्‍ति के मन में किसी के खिलाफ गुस्से की आग सुलगती रहे, तो मुमकिन है कि वह किसी दिन उसका कत्ल कर देगा। इसलिए यीशु बताता है कि अगर किसी से हमारी अनबन हो जाए, तो हमें जल्द-से-जल्द उससे सुलह कर लेनी चाहिए: “अगर तू मंदिर में वेदी के पास अपनी भेंट ला रहा हो और वहाँ तुझे याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कुछ शिकायत है, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह कर और फिर आकर अपनी भेंट चढ़ा।”​—मत्ती 5:23, 24.

कानून में यह भी लिखा है कि व्यभिचार करना गलत है। मगर यीशु कहता है, “हर वह आदमी जो किसी औरत को ऐसी नज़र से देखता रहता है जिससे उसके मन में उसके लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस औरत के साथ व्यभिचार कर चुका है।” (मत्ती 5:27, 28) यह सच है कि इंसान के अंदर कभी-न-कभी गलत खयाल आ ही जाता है। पर यीशु कह रहा है कि मन में ऐसी बातें सोचते रहना, किसी औरत को गलत नज़र से देखते रहना उसके साथ व्यभिचार करने के बराबर है। जो इंसान गलत बातें सोचता रहता है, उसके दिल में गलत इच्छाएँ पैदा हो सकती हैं और मुमकिन है कि एक दिन वह व्यभिचार कर बैठेगा। एक व्यक्‍ति इस तरह का पाप करने से कैसे बच सकता है? उसे कुछ सख्त कदम उठाने पड़ेंगे। यीशु कहता है, “अगर तेरी दायीं आँख तुझसे पाप करवा रही है, तो उसे नोंचकर निकाल दे और दूर फेंक दे। . . . अगर तेरा दायाँ हाथ तुझसे पाप करवा रहा है, तो उसे काटकर दूर फेंक दे।”​—मत्ती 5:29, 30.

अगर किसी के हाथ में घाव हो जाए और वह सड़ने लगे, तो उसकी जान को खतरा होगा। ऐसे में कई लोग अपनी जान बचाने के लिए हाथ कटवाने को राज़ी हो जाते हैं। तो यीशु यह समझा रहा है कि अपने मन से बुरे खयालों को निकालने के लिए और भी सख्त कदम उठाना ज़रूरी है। वरना एक इंसान हमेशा की ज़िंदगी गँवा सकता है। वह कहता है, “अच्छा यही होगा कि तू अपना एक अंग गँवा दे, बजाय इसके कि तेरा पूरा शरीर गेहन्‍ना में डाल दिया जाए।” यरूशलेम की दीवारों के बाहर कचरे का ढेर होता था जहाँ हमेशा आग जलती रहती थी। उसी को गेहन्‍ना कहा जाता था। किसी को गेहन्‍ना में डालने का मतलब यह है कि उसका हमेशा के लिए नाश कर दिया गया है।

अब यीशु बताता है कि अगर कोई हमसे चोट पहुँचानेवाली बात कह दे या हमारे साथ बुरा करे, तो हमें क्या करना चाहिए: “जो दुष्ट है उसका मुकाबला मत करो। इसके बजाय, अगर कोई तुम्हारे दाएँ गाल पर थप्पड़ मारे, तो उसकी तरफ दूसरा गाल भी कर देना।” (मत्ती 5:39) इसका मतलब यह नहीं है कि हमें अपनी या अपने परिवार की रक्षा करने के लिए कुछ नहीं करना चाहिए। जब कोई किसी को थप्पड़ मारता है, तो वह उसकी जान लेने के लिए नहीं बल्कि उसकी बेइज़्ज़ती करने के लिए करता है। यीशु यह कह रहा है कि अगर कोई हमें भड़काने के लिए थप्पड़ मारे या हमसे बहस करने के लिए उल्टी-सीधी बातें कहे, तो हमें उससे बदला नहीं लेना चाहिए।

यीशु की यह सलाह परमेश्‍वर के कानून के मुताबिक है, क्योंकि कानून में बताया गया है कि हमें अपने पड़ोसी से प्यार करना चाहिए। यीशु कहता है, “अपने दुश्‍मनों से प्यार करते रहो और जो तुम्हें सताते हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो।” फिर वह बताता है कि हमें ऐसा क्यों करना चाहिए। “इस तरह तुम साबित करो कि तुम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के बेटे हो क्योंकि वह अच्छे और बुरे दोनों पर अपना सूरज चमकाता है।”​—मत्ती 5:44, 45.

दुश्‍मनों के साथ भला व्यवहार क्यों करना चाहिए? यीशु चंद शब्दों में इसकी वजह बताता है: “तुम्हें परिपूर्ण होना चाहिए ठीक जैसे स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता परिपूर्ण है।” (मत्ती 5:48) हम यहोवा की तरह हर मामले में परिपूर्ण तो नहीं हो सकते, मगर उसकी तरह प्यार ज़रूर कर सकते हैं, अपने दुश्‍मनों से भी। यीशु कहता है, “जैसे तुम्हारा पिता दयालु है, वैसे ही तुम भी दया करते रहो।”​—लूका 6:36.

प्रार्थना और परमेश्‍वर पर भरोसा

अब यीशु एक और सलाह देता है, “खबरदार रहो कि तुम लोगों को दिखाने के लिए उनके सामने नेक काम न करो।” लोगों के सामने भक्‍ति का दिखावा करना गलत है। ‘जब तू दान दे, तो अपने आगे-आगे तुरही न बजवा जैसे कपटी बजवाते हैं।’ (मत्ती 6:1, 2) जब हम दान करते हैं, तो अच्छा होगा कि हम किसी को न बताएँ।

इसके बाद यीशु कहता है, “जब तुम प्रार्थना करो, तो कपटियों की तरह मत करो क्योंकि उन्हें सभा-घरों और सड़कों के चौराहे पर खड़े होकर प्रार्थना करना अच्छा लगता है ताकि लोग उन्हें देख सकें। लेकिन जब तू प्रार्थना करे, तो अकेले अपने घर के कमरे में जा और दरवाज़ा बंद कर और अपने पिता से जिसे कोई नहीं देख सकता, प्रार्थना कर।” (मत्ती 6:5, 6) यीशु यह नहीं कह रहा है कि लोगों के सामने प्रार्थना करना गलत है। उसने खुद भी लोगों के सामने प्रार्थना की थी। वह कह रहा है कि हमें लोगों के सामने इस तरह प्रार्थना नहीं करनी चाहिए कि उनका ध्यान हमारी तरफ खिंचे और वे हमारी तारीफ करें।

यीशु एक और सलाह देता है, “प्रार्थना करते वक्‍त, दुनिया के लोगों की तरह एक ही बात बार-बार मत दोहराओ।” (मत्ती 6:7) यीशु यह नहीं कह रहा है कि किसी मामले के बारे में बार-बार प्रार्थना करना गलत है। पर वह कह रहा है कि कुछ शब्दों को रट लेना और प्रार्थना में बार-बार उन्हीं को दोहराना गलत है। इसके बाद यीशु सिखाता है कि प्रार्थना किस तरह करनी चाहिए और किन बातों के लिए करनी चाहिए। वह सात बातों का ज़िक्र करता है। शुरू की तीन बिनतियाँ परमेश्‍वर के राज और उसके मकसद के बारे में हैं: परमेश्‍वर का नाम पवित्र किया जाए, उसका राज आए और उसकी मरज़ी पूरी हो। इन अहम बातों के लिए बिनती करने के बाद ही हमें अपने बारे में बिनती करनी चाहिए: परमेश्‍वर हमें रोज़ का खाना दे, हमारे पाप माफ कर दे, हम पर इतनी तकलीफें न आने दे कि हम सह न पाएँ और हमें शैतान से बचाए।

अब यीशु लोगों को समझाता है कि धन-दौलत के पीछे भागने से क्या हो सकता है: “अपने लिए पृथ्वी पर धन जमा करना बंद करो, जहाँ कीड़ा और ज़ंग उसे खा जाते हैं और चोर सेंध लगाकर चुरा लेते हैं।” सही बात है! दौलत का कोई भरोसा नहीं। यह कभी-भी हाथ से निकल सकती है। दौलत बटोरकर हम परमेश्‍वर की नज़र में अच्छा नाम नहीं कमा सकते। इसलिए यीशु कहता है, “अपने लिए स्वर्ग में धन जमा करो।” परमेश्‍वर की सेवा को ज़िंदगी में पहली जगह देने से हम उसकी नज़र में अच्छा नाम कमा रहे होंगे। यही स्वर्ग में धन जमा करने जैसा है। फिर वह हमें इनाम में हमेशा की ज़िंदगी देगा। यह ऐसा धन है जिसे कोई चुरा नहीं सकता। यीशु कहता है, “जहाँ तेरा धन होगा, वहीं तेरा मन होगा।”​—मत्ती 6:19-21.

इसी बात पर ज़ोर देने के लिए यीशु एक मिसाल बताता है, “आँख, शरीर का दीपक है। इसलिए अगर तेरी आँख एक ही चीज़ पर टिकी है, तो तेरा सारा शरीर रौशन रहेगा। लेकिन अगर तेरी आँखों में ईर्ष्या भरी है, तो तेरा सारा शरीर अंधकार से भर जाएगा।” (मत्ती 6:22, 23) हमारी आँख एक ही चीज़ पर टिकी रहनी चाहिए, तभी यह हमारे लिए रौशनी की तरह काम करेगी। इसका मतलब यह है कि हमें ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा यहोवा की सेवा को अहमियत देनी चाहिए। अगर हमारा ध्यान दौलत की तरफ भटकता रहेगा, तो हम रौशनी में नहीं अंधकार में होंगे।

इसके बाद यीशु एक बढ़िया मिसाल बताता है, “कोई भी दास दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता। क्योंकि या तो वह एक से नफरत करेगा और दूसरे से प्यार या वह एक से जुड़ा रहेगा और दूसरे को तुच्छ समझेगा। तुम परमेश्‍वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।”​—मत्ती 6:24.

वहाँ यीशु की बात सुननेवाले कई लोगों को शायद चिंता रहती है कि वे अपने परिवार का पेट कैसे पालेंगे। यीशु उन्हें भरोसा दिलाता है कि अगर वे परमेश्‍वर की सेवा को पहली जगह देंगे, तो उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं होगी। “आकाश में उड़नेवाले पंछियों को ध्यान से देखो। वे न तो बीज बोते, न कटाई करते, न ही गोदामों में भरकर रखते हैं, फिर भी स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता उन्हें खिलाता है।”​—मत्ती 6:26.

फिर यीशु लोगों का ध्यान उन फूलों की तरफ खींचता है जो वहीं पहाड़ पर उगे हुए हैं। “सुलैमान भी जब अपने पूरे वैभव में था, तो इनमें से किसी एक की तरह भी सज-धज न सका।” तो इससे क्या पता चलता है? ‘अगर परमेश्‍वर मैदान में उगनेवाले इन पौधों को, जो आज हैं और कल आग में झोंक दिए जाएँगे, ऐसे शानदार कपड़े पहनाता है, तो क्या वह तुम्हें नहीं पहनाएगा?’ (मत्ती 6:29, 30) इसलिए यीशु सलाह देता है, “कभी-भी चिंता करके यह मत कहना कि हम क्या खाएँगे? या हम क्या पीएँगे? या हम क्या पहनेंगे? . . . स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है। इसलिए तुम पहले उसके राज और उसके नेक स्तरों की खोज में लगे रहो और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।”​—मत्ती 6:31-33.

जीवन पाने के लिए क्या करें?

यीशु के प्रेषित और उनके जैसे नेकदिल लोग सच में परमेश्‍वर का कानून मानना चाहते हैं। मगर यह उनके लिए आसान नहीं है। फरीसी जब देखो उनमें गलतियाँ ढूँढ़ते रहते हैं और उन पर दोष लगाते रहते हैं। पर यीशु कहता है, “दोष लगाना बंद करो ताकि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। इसलिए कि जैसे तुम दोष लगाते हो, वैसे ही तुम पर भी दोष लगाया जाएगा।”​—मत्ती 7:1, 2.

फरीसियों की तरह हमेशा दूसरों में गलतियाँ ढूँढ़ने से खुद का ही नुकसान होगा। यही बात समझाने के लिए यीशु एक मिसाल बताता है, “एक अंधा दूसरे अंधे को राह नहीं दिखा सकता, क्या दिखा सकता है? अगर वह दिखाए, तो क्या दोनों गड्‌ढे में नहीं गिर पड़ेंगे?” हमेशा दूसरों की कमियों पर ध्यान देने से हम बहुत बड़ी गलती कर रहे होंगे। यीशु कहता है, “तू क्यों अपने भाई की आँख में पड़ा तिनका देखता है, मगर अपनी आँख के लट्ठे पर ध्यान नहीं देता? तू अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘भाई, आ मैं तेरी आँख का तिनका निकाल दूँ,’ जबकि तू उस लट्ठे को नहीं देख रहा जो तेरी अपनी ही आँख में पड़ा है? अरे कपटी! पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब तू साफ-साफ देख सकेगा कि अपने भाई की आँख से तिनका कैसे निकालना है।”​—लूका 6:39-42.

हालाँकि हमें दूसरों में कमियाँ नहीं ढूँढ़नी चाहिए, लेकिन अगर एक व्यक्‍ति का रवैया सही नहीं है, तो उसके साथ हमें सोच-समझकर व्यवहार करना चाहिए। यीशु चेलों को सलाह देता है, “पवित्र चीज़ें कुत्तों को मत दो, न ही अपने मोती सूअरों के आगे फेंको।” (मत्ती 7:6) परमेश्‍वर के वचन में दी गयी सच्चाइयाँ मोतियों जैसी कीमती हैं। अगर हम ये सच्चाइयाँ किसी को बताते हैं और वह इनकी कदर नहीं करता, तो हमें उसे और नहीं बताना चाहिए। हमें ऐसे लोगों को ढूँढ़ना चाहिए जो इनकी कदर करेंगे।

अब यीशु फिर से प्रार्थना के बारे में कुछ बताता है। वह सलाह देता है कि हमें प्रार्थना करते रहना चाहिए। “माँगते रहो तो तुम्हें दिया जाएगा।” परमेश्‍वर ज़रूर हमारी प्रार्थना सुनेगा। इस बात पर ज़ोर देने के लिए यीशु कहता है, “तुममें ऐसा कौन है जिसका बेटा अगर उससे रोटी माँगे, तो वह उसे एक पत्थर पकड़ा दे? . . . इसलिए जब तुम दुष्ट होकर भी अपने बच्चों को अच्छे तोहफे देना जानते हो तो तुम्हारा पिता, जो स्वर्ग में है, और भी बढ़कर अपने माँगनेवालों को अच्छी चीज़ें क्यों न देगा!”​—मत्ती 7:7-11.

अब यीशु बताता है कि हमें दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए: “जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।” कितनी बढ़िया सलाह है! मगर इसे मानना हमेशा आसान नहीं होता। लेकिन कोशिश करने से हम ज़रूर इसे मान सकते हैं। यीशु ने भी यही कहा है, “सँकरे फाटक से अंदर जाओ क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और खुला है वह रास्ता, जो विनाश की तरफ ले जाता है और उस पर जानेवाले बहुत हैं। जबकि सँकरा है वह फाटक और तंग है वह रास्ता, जो जीवन की तरफ ले जाता है और उसे पानेवाले थोड़े हैं।”​—मत्ती 7:12-14.

फिर यीशु चेलों को बताता है कि कुछ लोग उन्हें जीवन के रास्ते से भटका सकते हैं, इसलिए वे उनसे बचकर रहें। “झूठे भविष्यवक्‍ताओं से खबरदार रहो जो भेड़ों के भेस में तुम्हारे पास आते हैं, मगर अंदर से भूखे भेड़िए हैं।” (मत्ती 7:15) झूठे भविष्यवक्‍ताओं को पहचानने का एक आसान-सा तरीका है। एक पेड़ अच्छा है या नहीं, यह उसके फल से बताया जा सकता है। उसी तरह झूठे भविष्यवक्‍ता किस तरह की शिक्षाएँ देते हैं और किस तरह के काम करते हैं, यह देखकर उन्हें पहचाना जा सकता है। एक व्यक्‍ति के लिए यह कहना काफी नहीं है कि वह यीशु का चेला है। वह किस तरह के काम करता है, उससे पता चलेगा कि क्या वह सच में उसका चेला है। कुछ लोग कहते हैं कि यीशु उनका प्रभु है, लेकिन वे परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक काम नहीं करते। ऐसे लोगों से यीशु साफ-साफ कह देगा, “मैं तुम्हें नहीं जानता। अरे दुष्टो, दूर हो जाओ मेरे सामने से!”​—मत्ती 7:23.

अब यीशु यह कहकर अपना उपदेश खत्म करता है, “हर कोई जो मेरी ये बातें सुनता है और इन पर चलता है, वह उस समझदार आदमी जैसा होगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। फिर ज़बरदस्त बरसात हुई, बाढ़-पर-बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं, फिर भी वह नहीं गिरा क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर बनायी गयी थी।” (मत्ती 7:24, 25) वह घर आँधी-तूफान में भी क्यों टिका रहा? क्योंकि उस आदमी ने “गहराई तक खुदाई की और चट्टान पर नींव डाली” थी। (लूका 6:48) तो यीशु की बातें सुनना काफी नहीं है। हमें उनके हिसाब से चलने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।

लेकिन जो लोग यीशु की बातें ‘सिर्फ सुनते हैं और उन पर चलते नहीं,’ वे उस मूर्ख जैसे होते हैं जो अपना घर रेत पर बनाता है। (मत्ती 7:26) आँधी-तूफान आने पर उसका घर ढह जाएगा।

यीशु के सिखाने का तरीका देखकर लोग दंग रह जाते हैं। उसका तरीका धर्म गुरुओं से बिलकुल हटकर है। यीशु पूरे अधिकार के साथ बोलता है। शायद यह उपदेश सुनने के बाद बहुत-से लोग उसके चेले बन जाते हैं।