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अध्याय 94

प्रार्थना और नम्रता की अहमियत

प्रार्थना और नम्रता की अहमियत

लूका 18:1-14

  • बार-बार मिन्‍नत करनेवाली विधवा की मिसाल

  • फरीसी और कर-वसूलनेवाला

यीशु ने कुछ समय पहले प्रार्थना में लगे रहने के बारे में एक मिसाल बतायी थी। (लूका 11:5-13) अब वह शायद सामरिया या गलील में है और वह एक और मिसाल बताकर समझाता है कि प्रार्थना में क्यों लगे रहना चाहिए।

“किसी शहर में एक न्यायी था जो न तो परमेश्‍वर से डरता था, न ही किसी इंसान की इज़्ज़त करता था। उस शहर में एक विधवा थी जो बार-बार उसके पास जाकर कहती रही, ‘किसी भी हाल में मुझे इंसाफ दिला! मुझसे मुकदमा लड़नेवाले से मुझे बचा।’ बहुत समय तक तो वह नहीं माना, मगर बाद में वह अपने दिल में कहने लगा, ‘न तो मैं परमेश्‍वर से डरता हूँ, न ही किसी इंसान की इज़्ज़त करता हूँ, फिर भी मैं इस विधवा को ज़रूर इंसाफ दिलाऊँगा क्योंकि इसने मुझे परेशान कर रखा है। अगर मैंने इसके लिए कुछ नहीं किया, तो यह बार-बार आकर मेरा जीना दुश्‍वार कर देगी।’”​—लूका 18:2-5.

“ध्यान दो कि उस न्यायी ने बुरा इंसान होने के बावजूद क्या कहा! तो क्या परमेश्‍वर अपने चुने हुओं की खातिर इंसाफ नहीं करेगा, जो दिन-रात उससे फरियाद करते हैं? भले ही परमेश्‍वर उनके मामले में सब्र से काम लेता है, मगर वह उनकी ज़रूर सुनेगा।”​—लूका 18:6, 7.

अगर एक बुरे इंसान से बार-बार मिन्‍नत करने से वह सुनता है, तो परमेश्‍वर क्यों नहीं सुनेगा? वह तो नेक और भला है। अगर हम हार न मानें और प्रार्थना करते रहें, तो परमेश्‍वर ज़रूर हमारी सुनेगा। ‘परमेश्‍वर जल्द-से-जल्द इंसाफ दिलाएगा।’​—लूका 18:8.

दुनिया में जो गरीब और मामूली लोग हैं, उनकी कोई नहीं सुनता। उन्हें इंसाफ नहीं मिलता। और जो अमीर और ताकतवर हैं, उनकी हर कहीं चलती है। लेकिन परमेश्‍वर का इंसाफ सच्चा है। वक्‍त आने पर वह दुष्टों को सज़ा देगा और अपने सेवकों को हमेशा की ज़िंदगी देगा।

किन लोगों का विश्‍वास उस विधवा जैसा मज़बूत है? और कितने लोग सच में मानते हैं कि परमेश्‍वर जल्द-से-जल्द न्याय करेगा? यीशु ने अभी-अभी एक मिसाल बताकर समझाया कि हमें प्रार्थना में लगे रहना चाहिए। अब वह बताता है कि हमें क्यों विश्‍वास रखना चाहिए कि हमें प्रार्थनाओं का जवाब मिलेगा: “जब इंसान का बेटा आएगा, तब क्या वह धरती पर ऐसा विश्‍वास पाएगा?” (लूका 18:8) यीशु कह रहा है कि जब वह आएगा, तो ऐसा विश्‍वास बहुत कम लोगों में होगा।

जो लोग यीशु की बातें सुन रहे हैं, उनमें से कुछ लोग घमंड करते हैं कि उनका विश्‍वास बहुत मज़बूत है। वे खुद को बहुत धर्मी समझते हैं और दूसरों को नीचा देखते हैं। इन लोगों को ध्यान में रखकर यीशु एक मिसाल बताता है:

“दो आदमी मंदिर में प्रार्थना करने गए। एक फरीसी था और दूसरा कर-वसूलनेवाला। फरीसी खड़ा होकर मन-ही-मन प्रार्थना करने लगा, ‘हे परमेश्‍वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मैं दूसरों की तरह नहीं हूँ जो लुटेरे, बेईमान और व्यभिचारी हैं, न ही इस कर-वसूलनेवाले जैसा हूँ। मैं हफ्ते में दो बार उपवास करता हूँ और मुझे जो कुछ मिलता है, उसका दसवाँ हिस्सा देता हूँ।’”​—लूका 18:10-12.

फरीसी सबके सामने धर्मी होने का दिखावा करते हैं ताकि लोग उनकी वाह-वाही करें। वे हफ्ते के दो दिन यानी सोमवार और गुरुवार को उपवास करते हैं। ये दिन उन्होंने खुद चुना है, क्योंकि इन दोनों दिनों में बाज़ारों में भीड़ रहती है और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग उन्हें देख सकते हैं। फरीसी छोटे-छोटे पौधों का दसवाँ हिस्सा भी परमेश्‍वर को अर्पित करते हैं। (लूका 11:42) वे आम लोगों से घिन करते हैं, इसलिए उन्होंने कुछ महीने पहले कहा था, “ये लोग जो [फरीसियों के हिसाब से] कानून की रत्ती-भर भी समझ नहीं रखते, शापित लोग हैं।”​—यूहन्‍ना 7:49.

यीशु फरीसी के बारे में बताने के बाद कर-वसूलनेवाले के बारे में बताता है: “मगर कर-वसूलनेवाला दूर खड़ा था। उसे आकाश की तरफ नज़र उठाने की हिम्मत भी नहीं हुई, बल्कि वह छाती पीटते हुए कहता रहा, ‘हे परमेश्‍वर, मुझ पापी पर दया कर।’” कर-वसूलनेवाला नम्र है, इसलिए वह मान लेता है कि उसमें कमियाँ हैं। यीशु आखिर में कहता है, “यह आदमी उस फरीसी से ज़्यादा नेक साबित होकर अपने घर गया। क्योंकि हर कोई जो खुद को ऊँचा करता है उसे नीचा किया जाएगा, मगर जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।”​—लूका 18:13, 14.

यीशु यही समझा रहा है कि हमें नम्र होना चाहिए। यह सलाह यीशु के चेलों के लिए बहुत काम की सलाह थी, क्योंकि उन दिनों फरीसी अपनी ताकत और ओहदे का दिखावा करते थे। इस सलाह को मानने से आज हमारा भी भला होगा।