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अध्याय 55

यीशु की बातें कई लोगों को घिनौनी लगती हैं

यीशु की बातें कई लोगों को घिनौनी लगती हैं

यूहन्‍ना 6:48-71

  • यीशु का माँस खाने और उसका खून पीने का मतलब

  • कई चेले यीशु के साथ चलना छोड़ देते हैं

यीशु कफरनहूम के एक सभा-घर में सिखा रहा है। गलील के पूरब से आए लोगों को उसने बताया था कि वह जीवन देनेवाली रोटी है जो स्वर्ग से उतरी है। अब वह सभा-घर में यह बात और खुलकर बता रहा है।

‘तुम्हारे पुरखों ने वीराने में मन्‍ना खाया था, फिर भी वे मर गए। मगर मैं वह जीवित रोटी हूँ जो स्वर्ग से उतरी है। अगर कोई इस रोटी में से खाता है तो वह हमेशा ज़िंदा रहेगा। जो रोटी मैं दूँगा, वह मेरा शरीर है जो मैं इंसानों की खातिर दूँगा ताकि वे जीवन पाएँ।’​—यूहन्‍ना 6:48-51.

ईसवी सन्‌ 30 में यीशु ने नीकुदेमुस से कहा था कि परमेश्‍वर ने दुनिया से इतना प्यार किया कि उसने अपने बेटे को उद्धारकर्ता बनाकर भेजा। यीशु अब लोगों को बता रहा है कि उसका माँस खाना ज़रूरी है यानी वह जो बलिदान देनेवाला है उस पर उन्हें विश्‍वास करना है। तभी वे हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे।

मगर लोगों को यीशु की बातें अजीब लगती हैं। वे कहते हैं, “भला यह आदमी कैसे अपना शरीर हमें खाने के लिए दे सकता है?” (यूहन्‍ना 6:52) लोगों को सच में उसका माँस नहीं खाना है। इसका कुछ और मतलब है। यीशु चाहता है कि वे इस बात को समझें। अब वह इसका मतलब समझाता है:

‘जब तक तुम इंसान के बेटे का माँस न खाओ और उसका खून न पीओ, तुममें जीवन नहीं। जो मेरे शरीर में से खाता है और मेरे खून में से पीता है, वह हमेशा की ज़िंदगी पाएगा। मेरा शरीर असली खाना है और मेरा खून पीने की असली चीज़ है। जो मेरे शरीर में से खाता है और मेरे खून में से पीता है, वह मेरे साथ एकता में बना रहता है।’​—यूहन्‍ना 6:53-56.

ये बातें सुनकर लोगों को घिन आती है, क्योंकि वे यहूदी हैं। वे सोच रहे हैं कि यीशु लोगों को इंसान का माँस खाने के लिए कह रहा है और खून पीने के लिए कह रहा है। यह परमेश्‍वर के कानून के बिलकुल खिलाफ है। (उत्पत्ति 9:4; लैव्यव्यवस्था 17:10, 11) लेकिन यीशु सचमुच का माँस खाने या खून पीने के लिए नहीं कह रहा है। वह कह रहा है कि वह अपना परिपूर्ण शरीर बलिदान कर देगा और अपना खून बहा देगा। इसलिए जो हमेशा की ज़िंदगी चाहता है, उसे इस बलिदान पर विश्‍वास करना होगा। लेकिन कई लोग इस बात को समझते नहीं। यहाँ तक कि कई चेले भी नहीं समझते और कहते हैं, “यह कैसी घिनौनी बात है, कौन इसे सुनेगा?”​—यूहन्‍ना 6:60.

यीशु समझ जाता है कि वे कुड़कुड़ा रहे हैं, इसलिए उनसे कहता है, ‘क्या इस बात से तुम्हारा विश्‍वास डगमगा रहा है? तो फिर तब क्या होगा जब तुम इंसान के बेटे को ऊपर जाता देखोगे जहाँ वह पहले था? जो बातें मैंने तुमसे कही हैं, वे परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मुताबिक हैं और जीवन देती हैं। मगर तुममें से कुछ ऐसे हैं जो मेरी बात पर यकीन नहीं करते।’ इसके बाद बहुत-से चेले यीशु के साथ चलना छोड़ देते हैं।​—यूहन्‍ना 6:61-64.

फिर यीशु अपने 12 प्रेषितों से पूछता है, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” पतरस कहता है, “प्रभु, हम किसके पास जाएँ? हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे ही पास हैं। हमने यकीन किया है और हम जान गए हैं कि तू परमेश्‍वर का पवित्र जन है।” (यूहन्‍ना 6:67-69) पतरस और बाकी प्रेषित यीशु के वफादार हैं। यीशु ने माँस और खून के बारे में जो बताया था, उसे वे भी समझ नहीं पाए हैं। फिर भी वे यीशु को छोड़कर नहीं जाना चाहते।

पतरस की बात सुनकर यीशु खुश हो जाता है। पर वह कहता है, “मैंने तुम बारहों को चुना था न? मगर तुममें से एक बदनाम करनेवाला है।” (यूहन्‍ना 6:70) यीशु यहूदा इस्करियोती की बात कर रहा है। शायद यीशु देख पा रहा है कि यहूदा गलत राह पर निकल पड़ा है।

यह देखकर यीशु खुश है कि पतरस और बाकी प्रेषित उसे छोड़कर नहीं जाते बल्कि वे उसके साथ जीवन बचानेवाला काम करते रहते हैं।