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“तुम न तो उस दिन को और न ही उस वक्‍त को जानते हो”

“तुम न तो उस दिन को और न ही उस वक्‍त को जानते हो”

“इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न तो उस दिन को और न ही उस वक्‍त को जानते हो।”—मत्ती 25:13.

1-3. (क) यीशु अपने दो दृष्टांतों से जो सीख देना चाहता था, यह हम किन दो हालात से समझ सकते हैं? (ख) हम किन सवालों के जवाब देखेंगे?

 मान लीजिए, एक बड़ा अधिकारी आपसे कहता है कि उसे एक ज़रूरी मीटिंग के लिए जाना है और आप उसे गाड़ी में वहाँ तक छोड़ दें। आप उसे लेने के लिए निकलने ही वाले होते हैं कि आपको एहसास होता है कि गाड़ी में बहुत कम पेट्रोल है। आप फौरन पेट्रोल भराने जाते हैं। तभी वह अधिकारी आ जाता है। वह इधर-उधर आपको ढूँढ़ता है मगर आप कहीं दिखायी नहीं देते। उसे देर हो रही है, इसलिए वह किसी और से बोलता है कि वह उसे गाड़ी में ले जाए। आप जैसे ही वापस आते हैं, आपको पता चलता है कि वह अधिकारी आपको छोड़कर चला गया है। उस वक्‍त आपको कैसा लगेगा?

2 अब सोचिए कि आप एक अधिकारी हैं। आपको कहीं जाना है मगर उससे पहले आप कुछ ज़रूरी काम के लिए तीन काबिल आदमियों को चुनते हैं। आप उन्हें काम समझाते हैं और वे उसे करने के लिए राज़ी हो जाते हैं। मगर लौटने पर आपको पता चलता है कि तीन लोगों में से सिर्फ दो ने वह काम किया है। और जिसने काम नहीं किया, वह तो बहाने भी गढ़ रहा है। दरअसल, उसने वह काम करने की कोशिश ही नहीं की। ऐसे में आपको कैसा लगेगा?

3 जिन हालात पर हमने अभी गौर किया, वे यीशु के बताए कुंवारियों और तोड़ों के दृष्टांतों से मिलते-जुलते हैं। दोनों दृष्टांत अंत के समय के बारे में हैं और दिखाते हैं कि क्यों इस दौरान कुछ अभिषिक्‍त मसीही, विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले साबित होंगे और कुछ नहीं। * (मत्ती 25:1-30) इन दृष्टांतों से जो सीख मिलती है, उस पर ज़ोर देने के लिए यीशु ने कहा: “जागते रहो, क्योंकि तुम न तो उस दिन को और न ही उस वक्‍त को जानते हो।” यीशु उस दिन की बात कर रहा था जब वह शैतान की दुनिया पर परमेश्‍वर का न्यायदंड लाएगा। (मत्ती 25:13) आज हमें भी ‘जागते रहने’ की ज़रूरत है। यीशु की इस सलाह को मानने से हमें क्या फायदे होंगे? किन लोगों ने उस दिन के लिए तैयार रहने का सबूत दिया है? और जागते रहने के लिए आज हमें क्या करना होगा?

जागते रहना क्यों फायदेमंद है?

4. जागते रहने के लिए यह जानना क्यों ज़रूरी नहीं कि अंत ठीक कब आएगा?

4 कभी-कभी समय का पता लगाना ज़रूरी होता है। मिसाल के लिए, अगर आप एक फैक्टरी में काम करते हैं, या आपको डॉक्टर के पास जाना है, या फिर बस या ट्रेन पकड़नी है, तो आपको समय का ध्यान रखना होता है ताकि आपको देर न हो जाए। लेकिन अगर एक व्यक्‍ति आग बुझाने की कोशिश कर रहा है या विपत्ति आने पर किसी की जान बचाने में लगा हुआ है, तो उसका बार-बार घड़ी देखना सही नहीं होगा। ऐसा करने से उसका ध्यान भटक सकता है, और-तो-और यह जानलेवा भी हो सकता है। इन हालात में समय पर ध्यान देने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है उस काम पर ध्यान देना। उसी तरह, लोगों के उद्धार के लिए यहोवा ने जो इंतज़ाम किए हैं, उस बारे में प्रचार करना आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया है। वह इसलिए कि इस व्यवस्था का बहुत जल्द अंत होनेवाला है। लेकिन जागते रहने का यह मतलब नहीं कि हमें ठीक-ठीक पता होना चाहिए कि वह दिन या वह वक्‍त कब आएगा। दरअसल यह बात न जानना हमारे लिए कम-से-कम पाँच तरीकों से फायदेमंद हो सकता है।

5. अंत कब आएगा, यह न जानने से हमें क्या ज़ाहिर करने का मौका मिलता है?

5 अंत कब आएगा, यह न जानने का पहला फायदा है कि इससे हमें यह ज़ाहिर करने का मौका मिलता है कि हमारे दिल में क्या है। यहोवा ने हमें यह चुनने की आज़ादी दी है कि हम उसके वफादार रहेंगे या नहीं। इस तरह उसने हमें इज़्ज़त बख्शी है। हालाँकि हम इस व्यवस्था के विनाश से बचना चाहते हैं, लेकिन हम सिर्फ ज़िंदगी पाने के लिए यहोवा की सेवा नहीं करते बल्कि इसलिए कि हम उससे प्यार करते हैं। (भजन 37:4 पढ़िए।) हमें यहोवा की मरज़ी पूरी करने से खुशी मिलती है और हमें इस बात का एहसास है कि वह हमारे भले के लिए हमें शिक्षा देता है। (यशा. 48:17) उसकी आज्ञाएँ हमें बोझ नहीं लगतीं।—1 यूह. 5:3.

6. जब हम प्यार की वजह से परमेश्‍वर की सेवा करते हैं, तो उसे कैसा लगता है? और क्यों?

6 वह दिन और वह वक्‍त न जानने का दूसरा फायदा है कि हमें यहोवा का दिल खुश करने का मौका मिलता है। जब हम कोई तारीख या सिर्फ इनाम को मन में रखकर यहोवा की सेवा नहीं करते बल्कि उससे प्यार करने की वजह से ऐसा करते हैं, तो हम शैतान के तानों का मुँहतोड़ जवाब देने में यहोवा की मदद कर रहे होंगे। (अय्यू. 2:4, 5; नीतिवचन 27:11 पढ़िए।) हम जानते हैं कि शैतान की वजह से कितनी दुख-तकलीफें आयी हैं। इसलिए हम शैतान की हुकूमत ठुकराकर खुशी-खुशी यहोवा की हुकूमत का पक्ष लेते हैं।

7. आप क्यों त्याग की ज़िंदगी जीना चाहते हैं?

7 तीसरा फायदा यह है कि हमें त्याग की ज़िंदगी जीने का बढ़ावा मिलता है। आज दुनिया के लोग भी मानते हैं कि अंत आनेवाला है। उन्हें डर है कि कोई कहर टूट पड़ेगा और पूरी धरती तबाह हो जाएगी। इसलिए वे यह रवैया अपनाते हैं, “आओ हम खाएँ-पीएँ, क्योंकि कल तो मरना ही है।” (1 कुरिं. 15:32) लेकिन हमें ऐसा डर नहीं सताता, न ही हम अपनी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करने में लगे रहते हैं। (नीति. 18:1) इसके बजाय, हम खुद से इनकार करते हैं और दूसरों को राज की खुशखबरी सुनाने के लिए अपने वक्‍त, साधन और अपनी ताकत का इस्तेमाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। (मत्ती 16:24 पढ़िए।) हमें परमेश्‍वर की सेवा से खुशी मिलती है, खासकर तब जब हम लोगों को उसके बारे में सिखाते हैं।

8. बाइबल का कौन-सा उदाहरण दिखाता है कि हमें यहोवा और उसके वचन पर पूरा भरोसा रखने की ज़रूरत है?

8 उस दिन और उस वक्‍त को न जानने का चौथा फायदा यह है कि हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखना और उसके वचन को अपनी ज़िंदगी में लागू करना सीखते हैं। असिद्ध होने की वजह से हम खुद पर भरोसा करने लग सकते हैं। लेकिन पौलुस ने सभी मसीहियों को चेतावनी दी, “जो सोचता है कि वह मज़बूती से खड़ा है, वह खबरदार रहे कि कहीं गिर न पड़े।” उसने उन 23,000 इसराएलियों का ज़िक्र किया जिन्होंने वादा किए देश में जाने से कुछ ही समय पहले यहोवा की आज्ञा नहीं मानी और अपनी जान गँवा बैठे। पौलुस ने कहा कि “ये बातें . . . हमारी चेतावनी के लिए लिखी गयी थीं जिन पर दुनिया की व्यवस्थाओं का आखिरी वक्‍त आ पहुँचा है।”—1 कुरिं. 10:8, 11, 12.

9. परीक्षाएँ किस तरह हमारा विश्‍वास मज़बूत करती हैं और हमें परमेश्‍वर के करीब लाती हैं?

9 पाँचवाँ फायदा है कि हम अपनी आज़माइशों से सीखते हैं और हमारा विश्‍वास और भी मज़बूत हो जाता है। (भजन 119:71 पढ़िए।) इस व्यवस्था के आखिरी दिन वाकई “संकटों से भरा ऐसा वक्‍त [है] जिसका सामना करना मुश्‍किल” है। (2 तीमु. 3:1-5) शैतान की दुनिया में बहुत-से लोग हमसे नफरत करते हैं, इसलिए शायद हमें अपने विश्‍वास की वजह से सताया जाए। (यूह. 15:19; 16:2) लेकिन जिस तरह आग में तपकर कोई धातु खरी हो जाती है, उसी तरह परीक्षाओं से हमारा विश्‍वास खरा और मज़बूत हो जाता है। अगर हम परीक्षाओं के दौरान नम्र रहें और यहोवा का निर्देशन मानें, तो हम उसकी सेवा करना नहीं छोड़ेंगे। उलटा हम यहोवा के और भी करीब आ जाएँगे, इतना करीब जितना हमने सोचा भी न होगा।—याकू. 1:2-4; 4:8.

10. वक्‍त कब जल्दी बीत जाता है?

10 कभी-कभी वक्‍त इतनी जल्दी बीत जाता है मानो उसके पर लग गए हों, तो कभी वक्‍त कछुए की सी चाल चलता है। अगर हम काम में लगे हुए हैं और हमारी नज़र बार-बार घड़ी पर नहीं जाती, तो समय पलक झपकते ही बीत जाता है। उसी तरह, यहोवा ने हमें जो रोमांचक काम दिया है उसे करने में अगर हम लगे रहें, तो इससे पहले कि हमें एहसास हो, अंत आ जाएगा। इस सिलसिले में ज़्यादातर अभिषिक्‍त जनों ने एक बढ़िया मिसाल कायम की है। आइए अब हम गौर करें कि 1914 में यीशु के राजा बनने के बाद क्या हुआ और कैसे कुछ अभिषिक्‍त मसीहियों ने खुद को तैयार रहने का साबूत दिया जबकि कुछ ने नहीं दिया।

अभिषिक्‍त जन तैयार रहने का सबूत देते हैं

11. सन्‌ 1914 के बाद, कुछ अभिषिक्‍त मसीहियों को ऐसा क्यों लगा कि प्रभु आने में देर कर रहा है?

11 यीशु ने कुंवारियों और तोड़ों के जो दृष्टांत दिए, उन्हें याद कीजिए। अगर उन कुंवारियों और दासों को मालूम होता कि दूल्हा या मालिक कब आ रहा है, तो उन्हें जागते रहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। लेकिन उन्हें मालूम नहीं था इसलिए उन्हें तैयार रहना था। अभिषिक्‍त जन सालों से जानते थे कि सन्‌ 1914 बहुत ही खास साल होगा, मगर तब क्या होगा इसके बारे में उन्हें पूरी समझ नहीं थी। उस साल के बारे में एक भाई ने बाद में कहा, “हममें से कुछ लोगों को सचमुच लगा था कि अक्टूबर के पहले हफ्ते हम स्वर्ग चले जाएँगे।” जब वैसा नहीं हुआ जैसा भाइयों ने उम्मीद की थी, तो कुछ को लगा कि दूल्हा आने में देर कर रहा है।

12. अभिषिक्‍त मसीहियों ने कैसे दिखाया कि वे विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले हैं?

12 ज़रा सोचिए, भाइयों को कितनी निराशा हुई होगी जब उनकी उम्मीद के मुताबिक अंत नहीं आया। उस वक्‍त प्रथम विश्‍व युद्ध ज़ोरों पर था और इस वजह से उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा। प्रचार का काम करीब-करीब ठप्प पड़ गया, यह ऐसा था मानो अभिषिक्‍त जन सो गए हों। मगर सन्‌ 1919 में नींद से जाग उठने का समय आ गया! यीशु, परमेश्‍वर के आत्मिक मंदिर में आया और उसका मुआयना किया। कुछ लोग उस मुआयने में खरे नहीं उतरे और नतीजा यह हुआ कि वे राजा के “कारोबार” की देखभाल करने का सम्मान खो बैठे। (मत्ती 25:16) सतर्क न रहने की वजह से वे उन मूर्ख कुंवारियों की तरह थे जिन्होंने अपने दीपक तो लिए मगर अपने साथ कुप्पियों में तेल नहीं लिया। और उस आलसी दास की तरह, वे राज की खातिर अपनी ज़िंदगी में त्याग करने को तैयार नहीं थे। लेकिन ज़्यादातर अभिषिक्‍त मसीहियों ने युद्ध के उन मुश्‍किल सालों के दौरान दिखाया कि वे अपने मालिक के वफादार हैं और उसकी सेवा करने की ज़बरदस्त इच्छा रखते हैं।

13. सन्‌ 1914 के बाद, दास वर्ग ने कैसा रवैया दिखाया? आज उनका क्या रवैया है?

13 पहली फरवरी, 1916 की द वॉचटावर पत्रिका में यह अहम बात बतायी गयी थी, “भाइयो, हममें से जो सही रवैया रखते थे, वे परमेश्‍वर के किसी भी इंतज़ाम से निराश नहीं हुए। हम नहीं चाहते थे कि हमारी मरज़ी पूरी हो, इसलिए जब हमें मालूम हुआ कि अक्टूबर 1914 में हम गलत आस लगाए बैठे थे, तो हमें खुशी हुई कि प्रभु ने हमारी खातिर अपना इरादा नहीं बदला। हम कभी नहीं चाहेंगे कि ऐसा हो। हम बस उसकी योजनाओं और मकसदों को अच्छी तरह समझना चाहते हैं।” आज भी अभिषिक्‍त मसीहियों में ऐसी नम्रता और परमेश्‍वर के लिए भक्‍ति दिखायी देती है। वे यह दावा नहीं करते कि परमेश्‍वर उन्हें प्रेरणा देता है, वे बस धरती पर अपने मालिक के “कारोबार” को अच्छी तरह सँभालना चाहते हैं। आज ‘दूसरी भेड़ों’ की एक “बड़ी भीड़” इन अभिषिक्‍त मसीहियों की मिसाल पर चल रही है।—यूह. 10:16; प्रका. 7:9.

तैयार रहने का सबूत देना

14. दास वर्ग की सिखायी बातों पर करीबी से चलना क्यों अच्छा है?

14 परमेश्‍वर ने अपने लोगों को आध्यात्मिक भोजन देने के लिए दास वर्ग को चुना है। बड़ी भीड़ में से जो लोग तैयार रहने का सबूत देते हैं, वे अभिषिक्‍त मसीहियों की तरह, दास वर्ग की सिखायी बातों पर करीबी से चलते हैं। इस तरह वे मानो अपने दीपक में लगातार परमेश्‍वर के वचन और उसकी पवित्र शक्‍ति का तेल भरते हैं। (भजन 119:130; यूहन्‍ना 16:13 पढ़िए।) नतीजा, वे भी मसीह के वापस आने तक जागते रहते हैं और उन्हें मुश्‍किल-से-मुश्‍किल परीक्षाओं में वफादार रहने की हिम्मत मिलती है। उदाहरण के लिए, एक नात्ज़ी शिविर में कैद भाइयों के पास सिर्फ एक बाइबल थी। इसलिए उन्होंने और आध्यात्मिक भोजन के लिए प्रार्थना की। जल्द ही उन्होंने सुना कि उनके शिविर में एक भाई कैदी बनकर आया है और वह अपने नकली पैर में प्रहरीदुर्ग की कुछ नयी पत्रिकाएँ छिपाकर लाया है। उस शिविर से ज़िंदा बच निकले एक अभिषिक्‍त भाई, अर्नस्ट वेउर ने उस समय को याद करते हुए कहा, “उन लेखों में क्या ही हिम्मत बढ़ानेवाली बातें लिखी थीं! उन बातों को मुँहज़बानी याद करने में यहोवा ने लाजवाब तरीके से हमारी मदद की।” फिर उन्होंने कहा, “आजकल आध्यात्मिक भोजन मिलना आसान हो गया है, लेकिन क्या हम उसकी कदर करते हैं? मुझे यकीन है कि जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं, उसके वफादार रहते हैं और उसकी मेज़ से खाते हैं, उन्हें वह ढेर सारी आशीषें देगा।”

15, 16. मसीही सेवा के लिए जोश दिखाने पर एक जोड़े को क्या आशीष मिली? आप इस तरह के अनुभव से क्या सीख सकते हैं?

15 इसके अलावा, दूसरी भेड़ें प्रचार काम में पूरी तरह लगकर मसीह के भाइयों की मदद करती हैं। (मत्ती 25:40) वे यीशु के दृष्टांत में बताए दुष्ट और आलसी दास की तरह नहीं हैं, बल्कि राज के कामों को पहली जगह देने के लिए त्याग करने और जी-तोड़ मेहनत करने को तैयार रहती हैं। जॉन और मासाको का उदाहरण लीजिए। जब उन्हें केन्या में चीनी लोगों को प्रचार करने का न्यौता मिला, तो शुरू-शुरू में वे हिचकिचाए। मगर फिर उन्होंने अपने हालात को जाँचा, इस बारे में प्रार्थना की और वहाँ जाने का फैसला किया।

16 यहोवा ने उनकी मेहनत पर आशीष दी। वे कहते हैं, “यहाँ पर प्रचार करने का मज़ा ही कुछ और है!” उन्होंने सात बाइबल अध्ययन शुरू किए और उन्हें बहुत सारे रोमांचक अनुभव भी मिले। वे आगे कहते हैं, “हम हर दिन यहोवा को धन्यवाद देते हैं कि उसने हमें यहाँ आने का मौका दिया।” और भी कई भाई-बहनों ने दिखाया है कि अंत चाहे जब भी आए, वे यहोवा की सेवा में लगे रहना चाहते हैं। उन हज़ारों भाई-बहनों के बारे में सोचिए जो गिलियड स्कूल जाने के बाद मिशनरी सेवा कर रहे हैं। इस खास सेवा के बारे में ज़्यादा जानने के लिए, क्यों न आप 15 अक्टूबर, 2001 की प्रहरीदुर्ग में दिया लेख “हम अपना भरसक करते हैं!” देखें? इस दिलचस्प लेख में बताया गया है कि मिशनरी की ज़िंदगी का एक दिन कैसा होता है। इसे पढ़ते वक्‍त सोचिए कि आप यहोवा की सेवा में अपना भरसक कैसे कर सकते हैं, जिससे यहोवा की महिमा होगी और आपकी खुशी भी बढ़ेगी।

आप भी जागते रहिए

17. वह दिन और वह वक्‍त न जानना किस तरह एक आशीष साबित हुआ है?

17 हम नहीं जानते कि इस व्यवस्था का अंत किस दिन या किस वक्‍त आएगा। इस बात से हम न तो खीज उठते हैं न ही निराश होते हैं। दरअसल यह न जानना हमारे लिए एक आशीष साबित हुआ है। हम अपना सारा ध्यान परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने में लगा पाते हैं और अपने प्यारे पिता यहोवा के और भी करीब महसूस करते हैं। हमने मानो हल पर हाथ रख लिया है और अपना ध्यान भटकने नहीं दिया है, इसलिए यहोवा की सेवा करने से हमारी ज़िंदगी खुशियों से भर गयी है।—लूका 9:62.

18. हम क्यों अपने विश्‍वास में कमज़ोर नहीं पड़ना चाहते?

18 हम यहोवा के न्याय के दिन के बहुत करीब आ पहुँचे हैं। हममें से कोई नहीं चाहेगा कि हम विश्‍वास में कमज़ोर पड़कर यहोवा या यीशु को निराश करें। इन आखिरी दिनों में यहोवा और यीशु ने हमें सेवा के कई अनमोल मौके दिए हैं। उन्होंने हम पर जो भरोसा दिखाया है, उसके लिए हम कितने एहसानमंद हैं!—1 तीमुथियुस 1:12 पढ़िए।

19. हम अंत के लिए कैसे तैयार रह सकते हैं?

19 चाहे हमारी आशा स्वर्ग की हो, या धरती पर फिरदौस में रहने की, आइए हम ठान लें कि हम प्रचार और चेला बनाने का काम पूरी वफादारी से करेंगे, वह काम जो परमेश्‍वर ने हमें सौंपा है। हम आज भी नहीं जानते कि यहोवा किस दिन या किस वक्‍त अंत लाएगा और हमें जानने की ज़रूरत भी नहीं है। हम उस दिन के लिए तैयार रहेंगे। (मत्ती 24:36, 44) हमें यकीन है कि अगर हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखेंगे और उसके राज को पहली जगह देंगे, तो यहोवा हमें शर्मिंदा नहीं होने देगा।—रोमि. 10:11.