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अध्याय सत्रह

प्रार्थना—एक बड़ा सम्मान

प्रार्थना—एक बड़ा सम्मान

“आकाश और धरती का बनानेवाला” हमारी प्रार्थना सुनना चाहता है।—भजन 115:15

1, 2. (क) आपको क्यों लगता है कि प्रार्थना एक खास तोहफा है? (ख) हमें क्यों जानना होगा कि बाइबल में प्रार्थना के बारे में क्या बताया गया है?

दूर-दूर तक फैले अंतरिक्ष में पृथ्वी बहुत छोटी है। जब यहोवा पृथ्वी पर देखता है तो सभी देशों के लोग उसके लिए मानो पानी की एक बूँद जैसे हैं। (भजन 115:15; यशायाह 40:15) हालाँकि हम बहुत ही छोटे हैं, फिर भी भजन 145:18, 19 में लिखा है, “यहोवा उन सबके करीब रहता है जो उसे पुकारते हैं, जो सच्चे दिल से उसे पुकारते हैं। वह उन सबकी इच्छा पूरी करता है जो उसका डर मानते हैं, वह उनकी मदद की पुकार सुनता है और उन्हें छुड़ाता है।” यह हमारे लिए कितने बड़े सम्मान की बात है! हमारा सृष्टिकर्ता, सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा हमारे करीब रहना चाहता है और हमारी प्रार्थना सुनना चाहता है। प्रार्थना वाकई एक बड़ा सम्मान है! यह एक खास तोहफा है जो यहोवा ने हममें से हरेक को दिया है।

2 मगर यहोवा हमारी तभी सुनेगा जब हम उस तरीके से प्रार्थना करेंगे जैसे वह चाहता है। और ऐसा करने के लिए हमें यह जानना होगा कि बाइबल में प्रार्थना के बारे में क्या बताया गया है।

यहोवा से प्रार्थना क्यों करें?

3. आपको यहोवा से क्यों प्रार्थना करनी चाहिए?

3 यहोवा चाहता है कि आप उससे प्रार्थना करें, उससे बात करें। यह हम कैसे जानते हैं? फिलिप्पियों 4:6, 7 पढ़िए। ज़रा सोचिए, यह कितना प्यार-भरा न्यौता है! पूरे जहान का महाराजा आपमें गहरी दिलचस्पी रखता है। वह चाहता है कि आप उसे बताएँ कि आप कैसा महसूस करते हैं और किन परेशानियों का सामना कर रहे हैं।

4. यहोवा से रोज़ प्रार्थना करने से उसके साथ आपकी दोस्ती कैसे गहरी हो सकती है?

4 प्रार्थना हमें यहोवा से गहरी दोस्ती करने में मदद देती है। जब दो दोस्त रोज़ बात करते हैं और एक-दूसरे को बताते हैं कि वे क्या सोचते हैं, कैसा महसूस करते हैं और उनकी चिंताएँ क्या हैं, तब उनकी दोस्ती और भी गहरी होती जाती है। यहोवा से प्रार्थना करने पर भी यही होता है। उसने बाइबल के ज़रिए हमें अपनी सोच और भावनाएँ बतायी हैं। उसने यह भी बताया है कि वह आगे क्या करनेवाला है। आप भी हर दिन प्रार्थना में उसे अपनी गहरी भावनाएँ बता सकते हैं। जैसे-जैसे आप यह करेंगे यहोवा के साथ आपकी दोस्ती और भी गहरी होती जाएगी।—याकूब 4:8.

हमें क्या करना होगा ताकि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थना सुने?

5. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा सभी प्रार्थनाएँ नहीं सुनता?

5 क्या यहोवा सभी प्रार्थनाएँ सुनता है? नहीं। भविष्यवक्‍ता यशायाह के दिनों में यहोवा ने इसराएलियों से कहा था, “तुम चाहे जितनी भी प्रार्थना कर लो, मैं तुम्हारी एक न सुनूँगा, क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से रंगे हैं।” (यशायाह 1:15) अगर हम सावधान न रहें तो हम कुछ ऐसा कर बैठेंगे जिससे यहोवा को नफरत है। और इस वजह से वह हमारी प्रार्थनाएँ सुनना बंद कर देगा।

6. (क) हममें विश्‍वास होना क्यों ज़रूरी है? (ख) आप कैसे दिखा सकते हैं कि आपमें विश्‍वास है?

6 अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ सुने तो यह ज़रूरी है कि हम उस पर विश्‍वास करें। (मरकुस 11:24) पौलुस ने समझाया, “विश्‍वास के बिना परमेश्‍वर को खुश करना नामुमकिन है, क्योंकि जो उसके पास आता है उसे यकीन करना होगा कि परमेश्‍वर सचमुच है और वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।” (इब्रानियों 11:6) लेकिन सिर्फ यह कहना काफी नहीं है कि हममें विश्‍वास है। हमें हर दिन यहोवा की आज्ञा मानकर दिखाना होगा कि हममें वाकई विश्‍वास है।—याकूब 2:26 पढ़िए।

7. (क) हमें क्यों नम्रता और आदर के साथ यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए? (ख) सच्चे दिल से प्रार्थना करने का क्या मतलब है?

7 यहोवा से प्रार्थना करते वक्‍त हमें नम्रता और आदर के साथ उससे बात करनी चाहिए। क्यों? अगर हमें प्रधानमंत्री या किसी बड़े अधिकारी से बात करने का मौका मिले, तो क्या हम उससे आदर के साथ बात नहीं करेंगे? यहोवा उनसे कहीं ज़्यादा महान है। वह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर है। तो क्या हमें उससे और भी ज़्यादा नम्रता और आदर के साथ बात नहीं करनी चाहिए? (उत्पत्ति 17:1; भजन 138:6) साथ ही, हमें दिल से यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए। हमें बार-बार एक ही जैसे शब्द नहीं दोहराने चाहिए और न ही रटी-रटायी प्रार्थना करनी चाहिए।—मत्ती 6:7, 8.

8. प्रार्थना करने के साथ-साथ हमें और क्या करने की ज़रूरत है?

8 हमें अपनी प्रार्थना के मुताबिक काम करने की भी ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, अगर हम यहोवा से अपने खाने-पीने की ज़रूरतों के लिए प्रार्थना करते हैं, तो इसका यह मतलब नहीं कि हम आलसी हो जाएँ। हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि यहोवा हमें सबकुछ देगा, जब हम खुद काम करके उन्हें हासिल कर सकते हैं। हमें मेहनती होना चाहिए और हमें जो भी काम मिलता है उसे करना चाहिए। (मत्ती 6:11; 2 थिस्सलुनीकियों 3:10) या हो सकता है हम कोई गलत काम छोड़ना चाहते हैं और इस बारे में यहोवा से प्रार्थना करते हैं। मगर प्रार्थना करने के साथ-साथ हमें ऐसे हालात से भी दूर रहना चाहिए जिनमें हम वह काम करने के लिए लुभाए जा सकते हैं। (कुलुस्सियों 3:5) अब आइए हम प्रार्थना के बारे में कुछ सवालों पर चर्चा करें जो सब लोग पूछते हैं।

प्रार्थना के बारे में सवाल

9. (क) हमें किससे प्रार्थना करनी चाहिए? (ख) यूहन्‍ना 14:6 में प्रार्थना के बारे में क्या बताया गया है?

9 हमें किससे प्रार्थना करनी चाहिए? यीशु ने अपने चेलों को सिखाया था कि वे “हमारे पिता” से प्रार्थना करें “जो स्वर्ग में है।” (मत्ती 6:9) उसने यह भी कहा, “मैं ही वह राह, सच्चाई और जीवन हूँ। कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।” (यूहन्‍ना 14:6) तो हमें सिर्फ यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए और वह भी यीशु के ज़रिए। यीशु के ज़रिए ही क्यों? क्योंकि इस तरह हम उसका आदर कर रहे होते हैं। और हमें उसका आदर इसलिए करना चाहिए क्योंकि यहोवा ने उसे एक खास काम दिया था। हमने सीखा है कि यहोवा ने यीशु को धरती पर भेजा ताकि वह हमें पाप और मौत से छुड़ा सके। (यूहन्‍ना 3:16; रोमियों 5:12) यही नहीं, उसने यीशु को न्यायी और महायाजक भी ठहराया है।—यूहन्‍ना 5:22; इब्रानियों 6:20.

आप किसी भी वक्‍त प्रार्थना कर सकते हैं

10. क्या हमें किसी खास तरीके से बैठकर या खड़े होकर प्रार्थना करनी चाहिए? समझाइए।

10 क्या हमें किसी खास तरीके से बैठकर या खड़े होकर प्रार्थना करनी चाहिए? नहीं। यहोवा हमसे नहीं कहता कि हमें घुटने टेककर, बैठकर या खड़े होकर ही प्रार्थना करनी चाहिए। इसके बजाय, बाइबल सिखाती है कि यहोवा से बात करने के लिए हम कोई भी तरीका अपनाएँ, उसमें आदर झलकना चाहिए। (1 इतिहास 17:16; नहेमायाह 8:6; दानियेल 6:10; मरकुस 11:25) यहोवा के लिए यह ज़रूरी नहीं कि हम बैठकर या खड़े होकर उससे प्रार्थना करें बल्कि यह कि हम उससे सही भावना के साथ प्रार्थना करें। हम किसी भी जगह और किसी भी वक्‍त, फिर चाहे दिन हो या रात, उससे प्रार्थना कर सकते हैं। हम ज़ोर से या मन-ही-मन प्रार्थना कर सकते हैं। जब हम मन में प्रार्थना करते हैं तो भले ही दूसरे हमारी प्रार्थनाएँ न सुन पाएँ, मगर हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारी ज़रूर सुनता है।—नहेमायाह 2:1-6.

11. हम किस बारे में यहोवा से बात कर सकते हैं?

11 हम किस बारे में प्रार्थना कर सकते हैं? हम ऐसी हर बात के लिए प्रार्थना कर सकते हैं जो परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक हो। बाइबल बताती है, “हम उसकी मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।” (1 यूहन्‍ना 5:14) क्या हम अपनी ज़िंदगी से जुड़ी बातों के बारे में प्रार्थना कर सकते हैं? जी हाँ। हमें यहोवा से ऐसे बात करनी चाहिए जैसे हम किसी करीबी दोस्त से करते हैं। हम उससे अपने मन की बात कह सकते हैं। (भजन 62:8) हम उससे पवित्र शक्‍ति माँग सकते हैं ताकि हम सही काम कर सकें। (लूका 11:13) हम सही फैसले करने के लिए बुद्धि की गुज़ारिश कर सकते हैं। हम मुश्‍किलों का सामना करने के लिए हिम्मत भी माँग सकते हैं। (याकूब 1:5) प्रार्थना में हमें यहोवा से अपने पापों की माफी माँगनी चाहिए। (इफिसियों 1:3, 7) हमें दूसरों के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए, जैसे अपने परिवार और मंडली के भाई-बहनों के लिए।—प्रेषितों 12:5; कुलुस्सियों 4:12.

12. हमें प्रार्थना में किन बातों को सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए?

12 हमें खास किन बातों के बारे में प्रार्थना करनी चाहिए? यहोवा और उसकी मरज़ी के बारे में। यहोवा ने हमारे लिए जो कुछ किया है, इसके लिए हमें दिल से उसका धन्यवाद करना चाहिए। (1 इतिहास 29:10-13) जब यीशु धरती पर था तब उसने अपने चेलों को इन्हीं बातों के बारे में प्रार्थना करना सिखाया था। (मत्ती 6:9-13 पढ़िए।) जैसे परमेश्‍वर का नाम पवित्र किया जाए, उसका राज आए और धरती पर उसकी मरज़ी पूरी हो। यीशु ने कहा था कि इन ज़रूरी बातों के बारे में प्रार्थना करने के बाद ही हमें खुद की ज़रूरतों के बारे में प्रार्थना करनी चाहिए। जब हम यहोवा और उसकी मरज़ी के बारे में सबसे पहले प्रार्थना करते हैं, तब हम दिखाते हैं कि हम इन बातों को सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं।

13. हमारी प्रार्थनाएँ कितनी लंबी होनी चाहिए?

13 हमारी प्रार्थनाएँ कितनी लंबी होनी चाहिए? बाइबल इस बारे में कुछ नहीं बताती। हालात के मुताबिक हमारी प्रार्थनाएँ लंबी या छोटी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, खाने से पहले हम एक छोटी-सी प्रार्थना कर सकते हैं। मगर जब हम यहोवा को किसी बात के लिए धन्यवाद देते हैं या अपनी परेशानियों के बारे में उसे बताते हैं तो हमारी प्रार्थनाएँ लंबी हो सकती हैं। (1 शमूएल 1:12, 15) मगर हमें दूसरों से तारीफ पाने के लिए लंबी-चौड़ी प्रार्थना नहीं करनी चाहिए, जैसे कुछ लोग यीशु के दिनों में करते थे। (लूका 20:46, 47) यहोवा ऐसी प्रार्थनाएँ पसंद नहीं करता। वह बस यही चाहता है कि हम उससे दिल से प्रार्थना करें।

14. (क) हमें कितनी बार प्रार्थना करनी चाहिए? (ख) इससे हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?

14 हमें कितनी बार प्रार्थना करनी चाहिए? यहोवा खुद हमसे कहता है कि हम उससे रोज़ बात करें। बाइबल बताती है, “प्रार्थना करते रहो” और “प्रार्थना में लगे रहो।” (मत्ती 26:41; रोमियों 12:12; 1 थिस्सलुनीकियों 5:17) इससे पता चलता है कि यहोवा हमारी बात सुनने के लिए हमेशा तैयार रहता है। हम हर दिन उसके प्यार और उसकी दरियादिली के लिए उसका धन्यवाद कर सकते हैं। हम उससे मार्गदर्शन, दिलासा और ताकत भी माँग सकते हैं। अगर हम प्रार्थना को एक सम्मान समझेंगे तो हम हर मौके पर यहोवा से बात करने की कोशिश करेंगे।

15. हमें प्रार्थना के आखिर में “आमीन” क्यों कहना चाहिए?

15 हमें प्रार्थना के आखिर में “आमीन” क्यों कहना चाहिए? शब्द “आमीन” का मतलब है, “ऐसा ही हो” या “ज़रूर हो।” जब हम अपनी प्रार्थना के आखिर में आमीन कहते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हमने जो कुछ कहा है सच्चे मन से कहा है। (भजन 41:13) बाइबल बताती है कि जब कोई व्यक्‍ति सब लोगों की तरफ से प्रार्थना करता है तब भी आखिर में हमें मन में या फिर ज़ोर से “आमीन” कहना चाहिए। इस तरह हम दिखाते हैं कि उसने जो कुछ कहा है उससे हम पूरी तरह सहमत हैं।—1 इतिहास 16:36; 1 कुरिंथियों 14:16.

परमेश्‍वर हमारी प्रार्थनाओं का जवाब कैसे देता है?

16. क्या यहोवा सचमुच हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है?

16 क्या यहोवा सचमुच हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है? हाँ, देता है! बाइबल में उसे ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ कहा गया है। (भजन 65:2) यहोवा लाखों लोग की दिल से की गयी प्रार्थनाएँ सुनता है और अलग-अलग तरीकों से उनका जवाब देता है।

17. यहोवा अपने स्वर्गदूतों और धरती पर अपने सेवकों के ज़रिए कैसे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है?

17 यहोवा अपने स्वर्गदूतों और धरती पर अपने सेवकों के ज़रिए हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है। (इब्रानियों 1:13, 14) कई लोगों के साथ ऐसा हुआ है कि उन्होंने परमेश्‍वर से प्रार्थना की कि मुझे आपके बारे में जानना है या आप मुझे बाइबल समझने में मदद दें और इसके कुछ ही समय बाद यहोवा का एक साक्षी उनसे मिलने आया। बाइबल बताती है कि स्वर्गदूतों की निगरानी में राज की “खुशखबरी” पूरी दुनिया में सुनायी जा रही है। (प्रकाशितवाक्य 14:6 पढ़िए।) इसके अलावा, हममें से कई लोगों ने अनुभव किया है कि जब हमने यहोवा से अपनी किसी परेशानी या ज़रूरत के बारे में प्रार्थना की, तो उसके फौरन बाद एक मसीही भाई या बहन ने हमारी मदद की।—नीतिवचन 12:25; याकूब 2:16.

यहोवा मसीही भाई-बहनों को हमारी मदद के लिए भेजकर हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दे सकता है

18. यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति और बाइबल के ज़रिए कैसे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है?

18 यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए भी हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है। जब हम किसी परेशानी का सामना करने के लिए उससे मदद माँगते हैं तो वह अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए हमें सही राह दिखाता है और हमें ताकत देता है। (2 कुरिंथियों 4:7) यहोवा बाइबल के ज़रिए भी हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है और हमें सही फैसले करने में मदद देता है। वह कैसे? जब हम बाइबल पढ़ते हैं तो शायद हमें कोई ऐसी आयत मिल जाए जो हमारी मदद कर सकती है। यहोवा सभाओं में भी किसी भाई या बहन को ऐसा जवाब देने के लिए उभार सकता है जो हमारे लिए फायदेमंद हो। या फिर वह मंडली में अगुवाई करनेवाले किसी भाई को बाइबल से हमें कुछ सलाह देने के लिए उभार सकता है।—गलातियों 6:1.

19. हमें ऐसा क्यों लग सकता है कि यहोवा ने अभी तक हमारी प्रार्थनाओं का जवाब नहीं दिया?

19 लेकिन कभी-कभी हमें लग सकता है, ‘यहोवा ने अभी तक मेरी प्रार्थनाओं का जवाब क्यों नहीं दिया?’ ऐसे में हम याद रख सकते हैं कि यहोवा अच्छी तरह जानता है कि हमारी प्रार्थनाओं का जवाब कब और किस तरह देना चाहिए। उसे पता है कि हमें किस चीज़ की ज़रूरत है। कभी-कभी हमें शायद किसी बात के लिए कुछ वक्‍त तक प्रार्थना करनी पड़े ताकि हम दिखा सकें कि हमारी गुज़ारिश सच्चे मन से है और हमें यहोवा पर पूरा विश्‍वास है। (लूका 11:5-10) कई बार यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब इस तरह देता है जिसकी हमने कभी उम्मीद ही न की हो। उदाहरण के लिए, जब हम किसी परेशानी में होते हैं और यहोवा से मदद माँगते हैं तो वह भले ही हमारी परेशानी दूर न करे, मगर हमें सहने की ताकत ज़रूर देगा।—फिलिप्पियों 4:13 पढ़िए।

20. हमें क्यों लगातार यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए?

20 हमारे पास यहोवा से प्रार्थना करने का कितना बढ़िया सम्मान है! हम यकीन रख सकते हैं कि वह हमारी प्रार्थना ज़रूर सुनेगा। (भजन 145:18) हम जितना ज़्यादा यहोवा से दिल से प्रार्थना करेंगे, उतना ज़्यादा उसके साथ हमारी दोस्ती गहरी होती जाएगी।