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“बुराई के बदले किसी से बुराई न करो”

“बुराई के बदले किसी से बुराई न करो”

“बुराई के बदले किसी से बुराई न करो”

“बुराई के बदले किसी से बुराई न करो। जो बातें सब लोगों की दृष्टि में भली हैं, उनकी चिन्ता किया करो।”—रोमियों 12:17, आर.ओ.वी.

1. आजकल किस तरह का रवैया आम हो गया है?

 आम तौर पर यह देखा गया है कि जब एक बच्चा दूसरे बच्चे को धक्का देता है, तो वह भी उसे धक्का देता है। इसे कहते हैं, जैसे को तैसा। मगर अफसोस, इस तरह का रवैया सिर्फ बच्चों में ही नहीं, बल्कि कई बड़ों में भी देखने को मिलता है। जब कोई उन्हें ठेस पहुँचाता है, तो वे उससे बदला लेने पर उतारू हो जाते हैं। माना कि वे बच्चों की तरह धक्का नहीं देते, मगर फिर भी वे धूर्त तरीकों से अपना हिसाब बराबर करने की कोशिश ज़रूर करते हैं। जैसे, वे शायद झूठी अफवाहें फैलाकर उसे बदनाम करें, या फिर कोई और तरकीब अपनाकर उसे कामयाब होने से रोकें। तरीका चाहे जो भी हो, उनका इरादा बस एक ही होता है—बदला लेना।

2. (क) सच्चे मसीही बदला लेने की भावना को अपने ऊपर क्यों हावी होने नहीं देते? (ख) अब हम किन सवालों पर और बाइबल के किस अध्याय पर गौर करेंगे?

2 हालाँकि बदला लेने की भावना, एक इंसान के दिल की गहराई में बसी होती है, फिर भी सच्चे मसीही इस भावना को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते। इसके बजाय, वे पौलुस की इस सलाह पर चलने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं: “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो।” (रोमियों 12:17) इस ऊँचे आदर्श के मुताबिक जीने के लिए क्या बात हमें उकसाएगी? खासकर किन लोगों के साथ हमें बुराई के बदले बुराई नहीं करनी चाहिए? अगर हम बदला लेने की भावना से दूर रहेंगे, तो इससे हमें क्या फायदे पहुँचेंगे? इन सवालों के जवाब पाने के लिए, आइए हम रोमियों 12:17 की आस-पास की आयतों का अध्ययन करें। साथ ही, यह भी देखें कि रोमियों का 12वाँ अध्याय कैसे बताता है कि बदला लेने से दूर रहना सही है, प्यार ज़ाहिर करने का एक तरीका है और अपनी मर्यादा में रहना है। हम इन तीनों पहलुओं पर एक-एक करके गौर करेंगे।

‘इसलिये मैं बिनती करता हूँ’

3, 4. (क) रोमियों के अध्याय 12 से पौलुस ने किन विषयों पर चर्चा शुरू की, और शब्द “इसलिये” का मतलब क्या है? (ख) परमेश्‍वर की करुणा का रोम के मसीहियों पर कैसा असर होना चाहिए था?

3 पौलुस, रोमियों के अध्याय 12 से ऐसे चार मिलते-जुलते विषयों पर चर्चा शुरू करता है, जो एक मसीही की ज़िंदगी से गहरा ताल्लुक रखते हैं। वे हैं, यहोवा के साथ, मसीही भाई-बहनों के साथ, अविश्‍वासियों के साथ और सरकारी अधिकारियों के साथ हमारा रिश्‍ता। पौलुस गलत इच्छाओं पर काबू पाने की एक बुनियादी वजह बताता है, जिनमें बदला लेने की भावना भी शामिल है। वह कहता है: “इसलिये हे भाइयो, मैं तुम से परमेश्‍वर की दया [“करुणा,” नयी हिन्दी बाइबिल] स्मरण दिला कर बिनती करता हूं।” (रोमियों 12:1) ज़रा शब्द “इसलिये” पर गौर कीजिए। इस शब्द का मतलब है, “इस बात को मद्देनज़र रखते हुए।” यानी, पौलुस यह कह रहा था कि ‘मैं बिनती करता हूँ कि अभी-अभी मैंने जो कुछ तुम्हें समझाया है, उसे मद्देनज़र रखते हुए तुम वह करो जो मैं आगे कहने जा रहा हूँ।’ पौलुस ने रोम के मसीहियों को क्या समझाया था?

4 अपनी पत्री के पहले 11 अध्यायों में, पौलुस ने यह चर्चा की कि यहूदियों और अन्यजाति के लोगों को मसीह के साथ शासक बनने की क्या ही सुनहरी आशा मिली है। इसी आशा को पैदाइशी इस्राएलियों ने एक जाति के तौर पर ठुकरा दिया था। (रोमियों 11:13-36) यहूदियों और अन्यजाति के लोगों को “परमेश्‍वर की करुणा” की बदौलत ही उसके राज्य का वारिस बनने का अनमोल अवसर मिला था। परमेश्‍वर की उस अपार कृपा के लिए उन्हें कैसा रवैया दिखाना था? उनका दिल एहसान से इस कदर भर जाना चाहिए था कि वे पौलुस के कहे इन शब्दों के मुताबिक कदम उठाने के लिए उभारे जाएँ: “अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्‍वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।” (रोमियों 12:1) लेकिन मसीही, परमेश्‍वर के सामने खुद को “बलिदान” के तौर पर कैसे पेश कर सकते थे?

5. (क) एक इंसान परमेश्‍वर के सामने खुद को “बलिदान” के तौर पर कैसे पेश कर सकता है? (ख) एक मसीही को अपने व्यवहार में किस सिद्धांत को लागू करने की ज़रूरत है?

5 पौलुस समझाता है: “इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्‍वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” (रोमियों 12:2) रोम के मसीहियों को अपने सोच-विचार पर संसार की आत्मा का असर नहीं होने देना था। इसके बजाय, उन्हें अपनी बुद्धि यानी अपने मन को नया करके मसीह के जैसी सोच अपनानी थी। (1 कुरिन्थियों 2:16; फिलिप्पियों 2:5) आज हम सभी सच्चे मसीहियों को अपने रोज़ाना के व्यवहार में यह सिद्धांत लागू करने की ज़रूरत है।

6. रोमियों 12:1, 2 में दर्ज़ पौलुस की दलील के मुताबिक, क्या बात हमें बदला लेने से दूर रहने के लिए उकसाती है?

6 रोमियों 12:1, 2 में दर्ज़ पौलुस की दलील से हम क्या सीखते हैं? रोम के अभिषिक्‍त मसीहियों की तरह, हम भी परमेश्‍वर के बहुत एहसानमंद हैं। उसने बीते कल में कई तरीकों से लगातार हम पर करुणा दिखायी है और आज भी, वह हर दिन हम पर करुणा दिखा रहा है। इसलिए एहसान से भरा हमारा दिल हमें अपनी पूरी ताकत, साधन और काबिलीयतों के साथ परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए उभारता है। इसके अलावा, यह हमें उकसाता है कि हम दुनिया की तरह नहीं, बल्कि मसीह की तरह सोचने की पुरज़ोर कोशिश करें। और अगर हममें मसीह का मन होगा, तो हम संगी विश्‍वासियों और अविश्‍वासियों के साथ वैसे ही पेश आएँगे, जैसे मसीह दूसरों के साथ पेश आया था। (गलतियों 5:25) मिसाल के लिए, अगर हम मसीह की तरह सोचेंगे, तो हम बदला लेने की अपनी भावना पर काबू रख पाएँगे।—1 पतरस 2:21-23.

‘तुम्हारा प्रेम निष्कपट हो’

7. रोमियों के अध्याय 12 में, किस तरह के प्रेम के बारे में बताया गया है?

7 हम बुराई के बदले बुराई करने से इसलिए दूर रहते हैं, क्योंकि यह न सिर्फ सही है, बल्कि प्यार दिखाने का एक तरीका भी है। गौर कीजिए कि प्रेरित पौलुस आगे प्यार के बारे में क्या बताता है। वह रोमियों की किताब में कई बार यूनानी शब्द, अघापि का इस्तेमाल परमेश्‍वर और मसीह के “प्रेम” के लिए करता है। (रोमियों 5:5, 8; 8:35, 39) मगर 12वें अध्याय में, वह इसी शब्द का इस्तेमाल इंसानों के बीच दिखाए जानेवाले प्यार के लिए करता है। सबसे पहले, पौलुस बताता है कि आत्मा के वरदान अलग-अलग हैं और ये वरदान सिर्फ चंद मसीहियों को मिले हैं। इसके बाद, वह एक ऐसे गुण का ज़िक्र करता है जो सभी मसीहियों को अपने अंदर पैदा करने की ज़रूरत है। वह कहता है: “[तुम्हारा] प्रेम निष्कपट हो।” (रोमियों 12:4-9) दूसरों को प्यार दिखाना, सच्चे मसीहियों की खास पहचान है। (मरकुस 12:28-31) और पौलुस हमें इस बात को पक्का करने के लिए उकसाता है कि मसीही होने के नाते हम जो प्यार दिखाते हैं, वह सच्चा हो।

8. हम निष्कपट प्रेम कैसे दिखा सकते हैं?

8 पौलुस आगे बताता है कि निष्कपट प्रेम कैसे दिखाया जा सकता है। वह कहता है: “बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो।” (रोमियों 12:9) “घृणा” और “लगे रहो” बड़े ही ज़ोरदार शब्द हैं। “घृणा” का अनुवाद “बहुत ज़्यादा नफरत करना” भी किया जा सकता है। हमें सिर्फ बुराई के अंजामों से ही नहीं, बल्कि बुराई से भी नफरत करनी चाहिए। (भजन 97:10) जिस यूनानी क्रिया का अनुवाद “लगे रहो” किया गया है, उसका शाब्दिक अर्थ है, “चिपकाना।” जी हाँ, जिस मसीही में सच्चा प्यार होता है, वह इस कदर भलाई के गुण से चिपका या लगा रहता है कि यह गुण उसकी शख्सियत का एक अटूट हिस्सा बन जाता है।

9. पौलुस ने बार-बार क्या सलाह दी?

9 पौलुस बार-बार प्यार दिखाने के एक खास तरीके का ज़िक्र करता है। वह कहता है: ‘अपने सतानेवालों को आशीष देते रहो; आशीष देते रहो स्राप नहीं।’ “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो।” “हे प्रियो अपना पलटा न लेना।” “बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।” (रोमियों 12:14, 17-19, 21) पौलुस के ये शब्द साफ दिखाते हैं कि अविश्‍वासियों के साथ, यहाँ तक कि जो हमारा विरोध करते हैं, उनके साथ हमें कैसे पेश आना चाहिए।

‘अपने सतानेवालों को आशीष देते रहो’

10. हम किस तरीके से अपने सतानेवालों को आशीष दे सकते हैं?

10 हम पौलुस की इस सलाह को कैसे मान सकते हैं कि ‘अपने सतानेवालों को आशीष देते रहो’? (रोमियों 12:14) यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “अपने बैरियों से प्रेम और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करते रहो।” (मत्ती 5:44, NW; लूका 6:27, 28) यह दिखाता है कि अपने सतानेवालों को आशीष देने का एक तरीका है, उनके लिए प्रार्थना करना। जब कोई अनजाने में हमारा विरोध करता है, तो हमें यहोवा से बिनती करनी चाहिए कि वह उसकी आँखें खोल दे ताकि उसे पता चले कि सच्चाई क्या है। (2 कुरिन्थियों 4:4) माना कि अपने सतानेवाले के लिए प्रार्थना करने की बात हमें अजीब-सी लगे। मगर हम जितना ज़्यादा मसीह की तरह सोचेंगे, उतना ज़्यादा अपने दुश्‍मनों के लिए प्यार दिखा पाएँगे। (लूका 23:34) ऐसा प्यार दिखाने का क्या नतीजा हो सकता है?

11. (क) स्तिफनुस की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं? (ख) जैसे कि पौलुस की मिसाल दिखाती है, ज़ुल्म करनेवाले कुछ लोगों में क्या बदलाव आ सकता है?

11 स्तिफनुस की मिसाल लीजिए। उसने अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना की और उसकी प्रार्थना व्यर्थ नहीं गयी। दरअसल हुआ यह कि सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के कुछ ही समय बाद, मसीही कलीसिया के विरोधियों ने स्तिफनुस को गिरफ्तार कर लिया। फिर वे उसे घसीटकर यरूशलेम के बाहर ले गए और उस पर पत्थरवाह करने लगे। मरने से पहले, स्तिफनुस ने यहोवा को पुकारकर कहा: “हे प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा।” (प्रेरितों 7:58–8:1) स्तिफनुस ने जिन लोगों के लिए प्रार्थना की थी, उनमें से एक था शाऊल। शाऊल, स्तिफनुस के मार डाले जाने के फैसले से सहमत था और जब विरोधी स्तिफनुस पर पत्थरवाह कर रहे थे, तब वह वहाँ खड़ा देख रहा था। कुछ समय बाद, पुनरुत्थान पाए यीशु ने शाऊल को दर्शन दिया। इस पर शाऊल ने अपनी सितमगरी छोड़ दी और मसीह का चेला बन गया। वह आगे चलकर प्रेरित पौलुस के नाम से जाना गया और उसी ने रोम के मसीहियों को पत्री लिखी। (प्रेरितों 26:12-18) इससे ज़ाहिर होता है कि स्तिफनुस की प्रार्थना के मुताबिक, यहोवा ने पौलुस को मसीहियों पर ज़ुल्म ढाने के लिए दोषी नहीं ठहराया बल्कि उसे माफ कर दिया। (1 तीमुथियुस 1:12-16) इसलिए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि पौलुस ने मसीहियों को यह बढ़ावा दिया: ‘अपने सतानेवालों को आशीष देते रहो’! वह अपने तजुरबे से जानता था कि ज़ुल्म करनेवाले कुछ लोग आगे चलकर परमेश्‍वर के सेवक बन सकते हैं। उसी तरह, हमारे दिनों में भी कुछ सतानेवाले, यहोवा के सेवकों का शांत व्यवहार देखकर विश्‍वासी बन गए हैं।

“सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो”

12. रोमियों 12:9 और 12:17 में लिखी बातों का एक-दूसरे से क्या ताल्लुक है?

12 विश्‍वासियों और अविश्‍वासियों के साथ हमें कैसे पेश आना चाहिए, इस बारे में पौलुस आगे उकसाता है: “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो।” यह वाक्य, पहले कही पौलुस की इस बात से गहरा ताल्लुक रखता है: “बुराई से घृणा करो।” वाकई, अगर एक इंसान किसी से बदला लेने के लिए बुराई करेगा, तो क्या वह यह कह सकेगा कि वह बुराई से सचमुच घृणा करता है? हरगिज़ नहीं। इसके बजाय, ऐसा करना यह दिखाएगा कि उसमें “निष्कपट” प्रेम है ही नहीं। पौलुस आगे कहता है: “जो बातें सब लोगों की दृष्टि में भली हैं, उनकी चिन्ता किया करो।” (आर.ओ.वी.) (रोमियों 12:9, 17) हम इन शब्दों को कैसे लागू कर सकते हैं?

13. “सब लोगों की दृष्टि में” हम किस तरह से पेश आते हैं?

13 रोम के मसीहियों को लिखने से पहले, पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीहियों को एक पत्री लिखी थी। उसमें उसने बताया था कि प्रेरितों को कैसे-कैसे ज़ुल्म सहने पड़े। उसने लिखा: “हम जगत और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के लिये तमाशा ठहरे हैं। . . . लोग बुरा कहते हैं, हम आशीष देते हैं; वे सताते हैं, हम सहते हैं। वे बदनाम करते हैं, हम बिनती करते हैं।” (1 कुरिन्थियों 4:9-13) उसी तरह, आज दुनिया के लोगों की नज़रें सच्चे मसीहियों पर हैं। जब हमारे आस-पास के लोग देखते हैं कि हम अन्याय सहते वक्‍त भी भले काम करते हैं, तो वे शायद हमारा संदेश सुनने के लिए तैयार हो जाएँ, जिसे उन्होंने पहले ठुकरा दिया था।—1 पतरस 2:12.

14. शांति बनाए रखने के लिए, हमें किस हद तक जाना चाहिए?

14 लेकिन दूसरों के साथ शांति बनाए रखने के लिए हमें किस हद तक जाना चाहिए? उस हद तक, जिस हद तक हम जा सकते हैं। पौलुस अपने मसीही भाइयों से कहता है: “जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।” (रोमियों 12:18) “जहां तक हो सके” और “अपने भरसक,” ये शब्द दिखाते हैं कि दूसरों के साथ शांति बनाए रखना शायद हमेशा मुमकिन न हो। मिसाल के लिए, इंसान के साथ शांति बनाए रखने की खातिर हम परमेश्‍वर की किसी भी आज्ञा को नहीं तोड़ेंगे। (मत्ती 10:34-36; इब्रानियों 12:14) फिर भी, “सब मनुष्यों के साथ” शांति बनाए रखने के लिए हमसे जितना बन पड़ेगा हम करेंगे, मगर धर्मी सिद्धांतों के साथ समझौता किए बगैर।

“अपना पलटा न लेना”

15. रोमियों 12:19 में बदला न लेने की क्या वजह बतायी गयी है?

15 पौलुस हमें बदला न लेने की एक और ज़बरदस्त वजह बताता है। वह यह कि ऐसा करना, अपनी मर्यादा में रहना है। वह कहता है: “हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु [यहोवा] कहता है मैं ही बदला दूंगा।” (रोमियों 12:19) एक मसीही जो बदला लेने की कोशिश करता है, वह दरअसल गुस्ताखी कर रहा होता है। कैसे? वह उस अधिकार को अपने हाथ में ले रहा होता है, जो सिर्फ परमेश्‍वर का है। (मत्ती 7:1) इसके अलावा, वह खुद बदला लेकर दिखाता है कि उसे यहोवा की इस बात पर भरोसा नहीं है: “मैं ही बदला दूंगा।” इसके बिलकुल उलट, सच्चे मसीहियों को यहोवा पर पूरा भरोसा है कि वह “अपने चुने हुओं का न्याय [ज़रूर] चुकाएगा।” (लूका 18:7, 8; 2 थिस्सलुनीकियों 1:6-8) इसलिए वे अपनी मर्यादा में रहकर, बदला लेने की बात को परमेश्‍वर पर छोड़ देते हैं।—यिर्मयाह 30:23, 24; रोमियों 1:18.

16, 17. (क) ‘किसी के सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाने’ का क्या मतलब है? (ख) क्या आपने कभी गौर किया है कि कैसे कृपा दिखाने से एक विरोधी का दिल पिघल गया है? अगर हाँ, तो इसकी एक मिसाल दीजिए।

16 अगर हम अपने दुश्‍मन से बदला लें, तो उसका दिल और भी कठोर हो सकता है। लेकिन अगर हम उसे कृपा दिखाएँ, तो उसका दिल पिघल सकता है। यह हम कैसे कह सकते हैं? गौर कीजिए कि पौलुस ने रोम के मसीहियों को क्या लिखा। उसने लिखा: “यदि तेरा बैरी भूखा हो, तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा।” (रोमियों 12:20; नीतिवचन 25:21, 22) पौलुस के कहने का क्या मतलब था?

17 ‘किसी के सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाना’ एक अलंकार है, जो बाइबल के ज़माने में धातुओं को पिघलाने के तरीके से लिया गया है। कच्ची धातु को भट्ठे में डाला जाता था और उसके सिर्फ नीचे ही नहीं, बल्कि ऊपर भी जलते कोयलों का ढेर लगाया जाता था। कच्ची धातु के ऊपर कोयलों का ढेर लगाने से ताप बढ़ता था और इससे सख्त धातु पिघलकर मैल से अलग हो जाता था। उसी तरह, एक विरोधी को कृपा दिखाने से उसका दिल “पिघल” सकता है और उसके अच्छे गुण उभरकर सामने आ सकते हैं। (2 राजा 6:14-23) दरअसल, मसीही कलीसिया के बहुत-से लोग पहली बार सच्ची उपासना की तरफ इसलिए खींचे चले आए, क्योंकि उन्होंने यहोवा के सेवकों को उनकी खातिर भले काम करते देखा।

हम क्यों बुराई के बदले बुराई नहीं करते

18. बुराई के बदले बुराई न करना क्यों सही है, प्यार दिखाने का एक तरीका है और अपनी मर्यादा में रहना है?

18 रोमियों के 12वें अध्याय पर चर्चा करके हमने कई ज़रूरी वजहों पर गौर किया है कि क्यों हमें ‘बुराई के बदले किसी से बुराई नहीं करनी चाहिए।’ पहली वजह यह है कि ऐसा करना सही है। परमेश्‍वर ने हम पर जो दया दिखायी है, उसे ध्यान में रखते हुए खुद को यहोवा को अर्पित कर देना और खुशी-खुशी उसकी आज्ञाएँ मानना न सिर्फ सही है बल्कि वाजिब भी है। उन आज्ञाओं में से एक है, अपने दुश्‍मनों से प्यार करना। बुराई के बदले बुराई न करने की दूसरी वजह यह है कि ऐसा करना, प्यार दिखाने का एक तरीका है। बदला लेने के खयाल को छोड़ देने और शांति बनाए रखने के ज़रिए हम प्यार दिखाते हैं। साथ ही, हम यह उम्मीद भी करते हैं कि कुछ कड़े विरोधी भी यहोवा के उपासक बन जाएँ। बुराई के बदले बुराई न करने की तीसरी वजह यह है कि ऐसा करना, अपनी मर्यादा में रहना है। अगर हम खुद बदला लेंगे, तो यह दिखाएगा कि हम गुस्ताख या अभिमानी हैं, क्योंकि यहोवा ने कहा है: “पलटा लेना मेरा काम है।” यही नहीं, परमेश्‍वर का वचन हमें खबरदार करता है: “जब अभिमान होता, तब अपमान भी होता है, परन्तु नम्र [“मर्यादाशील,” NW] लोगों में बुद्धि होती है।” (नीतिवचन 11:2) जी हाँ, जब हम बुद्धि से काम लेते हुए बदला लेने की बात को परमेश्‍वर पर छोड़ देते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम मर्यादाशील हैं।

19. अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

19 हम मसीहियों को दूसरों के साथ कैसे पेश आना चाहिए, इस चर्चा का सार देते हुए पौलुस बढ़ावा देता है: “बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।” (रोमियों 12:21) आज हम किन बुराइयों से घिरे हुए हैं? हम उन पर जीत कैसे हासिल कर सकते हैं? इन और दूसरे कई सवालों के जवाब अगले लेख में दिए जाएँगे। (w07 7/1)

क्या आप समझा सकते हैं?

रोमियों के अध्याय 12 में क्या सलाह बार-बार दोहरायी गयी है?

• क्या बात हमें बदला लेने की भावना से दूर रहने के लिए उकसाएगी?

• अगर हम ‘बुराई के बदले बुराई नहीं करेंगे,’ तो खुद हमें और दूसरों को क्या फायदे पहुँचेंगे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 24 पर बक्स]

रोमियों के अध्याय 12 में एक मसीही का

यहोवा के साथ

संगी भाई-बहनों के साथ

अविश्‍वासियों के साथ

उसके रिश्‍ते के बारे में बताया गया है

[पेज 25 पर तसवीर]

पौलुस ने रोम में रहनेवाले अपने संगी विश्‍वासियों को जो पत्री लिखी, उसमें मसीहियों के लिए कई कारगर सलाहें दी गयी हैं