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दुःखी लोगों को शांति दीजिए

दुःखी लोगों को शांति दीजिए

दुःखी लोगों को शांति दीजिए

“यहोवा ने . . . मेरा अभिषेक किया . . . कि सब विलाप करनेवालों को शान्ति दूं।” —यशायाह 61:1, 2.

1, 2. हमें किन लोगों को शांति देनी चाहिए, और क्यों?

यहोवा सब प्रकार की सच्ची शांति का परमेश्‍वर है, जो हमें सिखाता है कि जब दूसरों पर विपत्ति आए तब हमें उनकी चिंता करनी चाहिए। वह हमें यह निर्देश देता है कि हम ‘हताश प्राणियों को ढाढ़स दें’ और विलाप करनेवाले सभी को दिलासा दें। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, NW) ज़रूरत की घड़ी में हम अपने साथी उपासकों की इसी तरह मदद करते हैं। हम कलीसिया के बाहर के लोगों के लिए भी प्रेम दिखाते हैं, यहाँ तक कि उनको भी जो बीते समयों में शायद ही हमसे कभी प्यार से पेश आए हों।—मत्ती 5:43-48; गलतियों 6:10.

2 यीशु मसीह ने सेवा करने की ज़िम्मेदारी की इस भविष्यवाणी को अपने पर लागू किया था: “प्रभु यहोवा का आत्मा मुझ पर हैं; क्योंकि यहोवा ने सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया और मुझे इसलिये भेजा है कि खेदित मन के लोगों को शान्ति दूं; . . . सब विलाप करनेवालों को शान्ति दूं।” (यशायाह 61:1, 2; लूका 4:16-19) हमारे दिन के अभिषिक्‍त मसीहियों ने बहुत पहले ही यह समझ लिया था कि यह ज़िम्मेदारी उन पर भी लागू होती है और ‘अन्य भेड़’ खुशी-खुशी इस काम में उनके साथ मिल गयी है।—यूहन्‍ना 10:16, NW.

3. जब लोग पूछते हैं कि “आखिर परमेश्‍वर विपत्ति क्यों आने देता है?” तो हम उनकी कैसे मदद कर सकते हैं?

3 जब कोई विपत्ति कहर ढाती है, तब लोग पूरी तरह से टूट जाते हैं और अकसर पूछते हैं, “आखिर परमेश्‍वर विपत्ति क्यों आने देता है?” बाइबल में इस सवाल का जवाब दिया गया है। लेकिन जिसने पहले कभी बाइबल नहीं पढ़ी उसे इस जवाब को पूरी तरह समझने में वक्‍त लगेगा। ऐसे लोग यहोवा के साक्षियों की छापी किताबों से मदद पा सकते हैं। * लेकिन, शुरूआत के लिए कुछ लोगों को सीधे बाइबल से यशायाह 61:1, 2 जैसी आयतें पढ़कर तसल्ली मिली है क्योंकि उसमें बताया गया है कि परमेश्‍वर की इच्छा यह है कि इंसान शांति पाए।

4. पोलैंड की एक साक्षी ने किस तरह स्कूल जानेवाली एक लड़की की मदद की, और दूसरों की मदद करने के बारे में आप इस अनुभव से क्या सीख सकते हैं?

4 चाहे जवान हों या बुज़ुर्ग, सभी को शांति की ज़रूरत है। पोलैंड में एक किशोर लड़की हताशा का शिकार थी। उसने अपनी एक सहेली से सलाह माँगी जो यहोवा की एक साक्षी थी। जब उस सहेली ने प्यार से उससे और भी सवाल पूछे, तब उसे मालूम हुआ कि उसके मन में ऐसे बहुत-से सवाल और शंकाएँ हैं जैसे: “दुनिया में इतनी दुष्टता क्यों हैं? लोग क्यों दुःख-तकलीफ से गुज़रते हैं? मेरी अपाहिज बहन को क्यों तकलीफ झेलनी पड़ रही है? मुझे क्यों दिल की बीमारी हुई? चर्च में कहते हैं कि यह सब परमेश्‍वर की मरज़ी है। अगर यही बात है, तो मुझे नहीं मानना ऐसे परमेश्‍वर को!” उस साक्षी ने मन-ही-मन प्रार्थना की और फिर बोली: “मुझे खुशी है कि तुमने मुझसे इस विषय के बारे में पूछा। मैं तुम्हारी मदद करने की पूरी कोशिश करूँगी।” साक्षी ने बताया कि बचपन से उसके मन में भी बहुत-सी आशंकाएँ थीं और उन्हें दूर करने में यहोवा के साक्षियों ने उसकी मदद की है। वह बताती है: “मैंने सीखा कि परमेश्‍वर लोगों पर दुःख-तकलीफ नहीं लाता। वह तो उनसे प्यार करता है, सिर्फ उनकी भलाई चाहता है और बहुत जल्द वह इस पूरी दुनिया में एक ज़बरदस्त बदलाव लानेवाला है। बीमारी नहीं रहेगी, बुढ़ापे की सारी समस्याएँ दूर हो जाएँगी, किसी की मौत नहीं होगी और आज्ञा माननेवाले लोग यहीं, इसी धरती पर हमेशा-हमेशा के लिए जीएँगे।” उसने किशोर लड़की को प्रकाशितवाक्य 21:3, 4; अय्यूब 33:25; यशायाह 35:5-7 और 65:21-25 दिखाया। एक लंबी चर्चा के बाद लड़की के चेहरे पर राहत नज़र आयी और वह बोली: “अब मुझे पता चला कि मेरे जीने का मकसद क्या है। क्या मैं दोबारा तुमसे मिलने आ सकती हूँ?” उस लड़की के साथ हफ्ते में दो बार बाइबल अध्ययन शुरू हुआ।

परमेश्‍वर से मिली शांति से दूसरों को शांति देना

5. जब हम हमदर्दी जताते हैं, तब हम किस बात से सच्ची सांत्वना दे सकते हैं?

5 जब हम दूसरों को दिलासा देते हैं, तब हमदर्दी भरे शब्दों का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा होगा। अपनी बातों और बोलने के अंदाज़ से हम गम में डूबे इंसान को यह बताना चाहते हैं कि हमें उसकी बहुत परवाह है। लेकिन यह तो खोखली बातों से नहीं किया जा सकता। बाइबल हमें बताती है कि “हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।” (तिरछे टाइप हमारे।) (रोमियों 15:4) इस बात को ध्यान में रखते हुए हम उन्हें फुरसत में यह समझा सकते हैं कि परमेश्‍वर का राज्य क्या है, और बाइबल से यह दिखा सकते हैं कि यह राज्य कैसे आज की सारी समस्याओं का हल कर देगा। तब हम तर्क कर सकते हैं कि यह आशा भरोसे के लायक क्यों है। इस तरह हम सांत्वना दे पाएँगे।

6. हमें क्या समझने में लोगों की मदद करनी चाहिए ताकि वे शास्त्र में दी शांति से पूरा फायदा उठा सकें?

6 जो शांति दी जाती है, अगर एक व्यक्‍ति उसका पूरा लाभ पाना चाहता है, तो उसे जानना होगा सच्चा परमेश्‍वर कौन है, उसका व्यक्‍तित्व कैसा है, और उसके वादों पर क्यों भरोसा किया जा सकता है। जब हम एक ऐसे व्यक्‍ति की मदद कर रहे होते हैं जो यहोवा का उपासक नहीं है, तब अच्छा होगा अगर हम उसे आगे के मुद्दे समझाएँ। (1) बाइबल में पायी जानेवाली शांति दरअसल सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा की तरफ से है। (2) यहोवा सर्वशक्‍तिमान है, स्वर्ग और धरती का सिरजनहार है। वह प्रेम का परमेश्‍वर है; सच्चाई और कृपा का सागर है। (3) अगर हम परमेश्‍वर के वचन से सही ज्ञान हासिल करके उसके करीब जाएँगे, तो हमें हालात का सामना करने की हिम्मत मिलेगी। (4) बाइबल में ऐसी बहुत-सी आयतें हैं, जो उन खास परीक्षाओं के बारे में बताती हैं जिनका सामना अलग-अलग लोगों ने किया था।

7. (क) परमेश्‍वर की शांति, “मसीह के द्वारा अधिक होती है,” इस पर ज़ोर देने के क्या नतीजे हो सकते हैं? (ख) आप ऐसे व्यक्‍ति का हौसला कैसे बढ़ा सकते हैं, जिसे एहसास होता है कि उसका चालचलन बुरा रहा है?

7 कुछ साक्षियों ने 2 कुरिन्थियों 1:3-7 पढ़कर कष्ट झेल रहे ऐसे लोगों की हिम्मत बँधायी है जो बाइबल से अच्छी तरह वाकिफ हैं। पढ़ते वक्‍त उन्होंने इन शब्दों, “हमारी शान्ति भी मसीह के द्वारा अधिक होती है” पर ज़ोर दिया। यह आयत सुनकर शायद एक व्यक्‍ति को एहसास हो कि उसे सिर्फ बाइबल से ही सच्ची शांति मिल सकती है, इसलिए उसे और ज़्यादा ध्यान से इस किताब की जाँच करने की ज़रूरत है। इससे आगे या किसी और दिन की चर्चा के लिए रास्ता खुल सकता है। दूसरी तरफ, अगर एक व्यक्‍ति को लगता है कि उसकी सारी मुसीबतों की जड़ उसकी बीती ज़िंदगी के बुरे काम हैं, तो न्यायी बनकर उसका फैसला करने के बजाय हम उसे बता सकते हैं कि 1 यूहन्‍ना 2:1, 2 और भजन 103:11-14 में जो लिखा है उसे पढ़ने से उसे शांति मिल सकती है। इस तरह परमेश्‍वर ने जो शांति दी है, उससे हम दूसरों को सच्ची शांति दे पाते हैं।

जब हिंसा या पैसों की तंगी, लोगों की परेशानी का सबब हो

8, 9. हिंसा के शिकार लोगों को कैसे सही तरीके से शांति दी जा सकती है?

8 लाखों-करोड़ों लोगों की ज़िंदगी हिंसा की वजह से बदहाल है। यह समाज में जुर्म करनेवालों की देन हो सकती है या फिर युद्धों की। हिंसा के शिकार लोगों को हम कैसे शांति दे सकते हैं?

9 सच्चे मसीही सावधानी बरतते हैं कि वे अपनी बातों या कामों से दुनिया के रगड़े-झगड़ों में किसी भी गुट या दल का पक्ष न लें। (यूहन्‍ना 17:16) मगर वे बाइबल का सही इस्तेमाल करते हुए दिखाते हैं कि दुनिया के मौजूदा बुरे हालात यूँ ही नहीं चलते रहेंगे। वे शायद भजन 11:5 पढ़कर सुनाएँ जिसमें लिखा है उपद्रव या हिंसा से प्रीति रखनेवालों के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है। या फिर, वे भजन 37:1-4 से परमेश्‍वर के इस प्रोत्साहन के बारे में बताते हैं कि हमें किसी से बदला लेने की बात नहीं सोचनी चाहिए बल्कि परमेश्‍वर पर भरोसा रखना चाहिए। भजन 72:12-14 में लिखे शब्द दिखाते हैं कि महान सुलैमान, यीशु मसीह जो अब स्वर्ग में राजा के तौर पर शासन कर रहा है, वह हिंसा के शिकार मासूम लोगों के बारे में कैसा महसूस करता है।

10. अगर आप बरसों से युद्ध को देखते आए हैं, तो बाइबल की आयतों से आपको कैसे शांति मिल सकती है?

10 कुछ लोग एक-के-बाद-एक होनेवाले युद्धों के दौर में जीए हैं, जिनमें सत्ता को लेकर विरोधी दलों के बीच हमेशा खींचा-तानी चलती रहती है। ऐसे में वे मानने लगते हैं कि युद्ध और उसके अंजाम भुगतना आम ज़िंदगी का हिस्सा है। इससे बच निकलने का उन्हें सिर्फ एक ही रास्ता नज़र आता है और वह है, दूसरे देश भाग जाना जहाँ शायद ज़िंदगी ज़्यादा बेहतर हो। मगर ज़्यादातर लोग भागने में कभी कामयाब नहीं हुए, और जिन चंद लोगों ने भागने की कोशिश की भी, उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। और जो लोग दूसरे देश में भागने में कामयाब हो जाते हैं, वे अपनी समस्याएँ अपने वतन में तो छोड़ आते हैं, मगर नया देश नयी समस्याओं के साथ उनका स्वागत करता है। भजन 146:3-6 से हम ऐसे लोगों को दिखा सकते हैं कि दूसरे देश में भाग जाने के बजाय, उन्हें और भी पक्की आशा पर भरोसा करना चाहिए। मत्ती 24:3, 7, 14 या 2 तीमुथियुस 3:1-5 में दी गयी भविष्यवाणियों की मदद से शायद उन्हें एक बड़ी तसवीर देखने को मिले कि उन्हें इन हालात का सामना इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि हम इस पुरानी दुनिया के अंत में जी रहे हैं। हो सकता है, भजन 46:1-3, 8, 9 और यशायाह 2:2-4 जैसी आयतों से वे समझ जाएँ कि वे वाकई भविष्य में सुख-शांति से भरे दिनों की आशा कर सकते हैं।

11. पश्‍चिम अफ्रीका की एक स्त्री को कौन-सी आयतों से सांत्वना मिली, और क्यों?

11 पश्‍चिम अफ्रीका में युद्धों का दौर चल रहा था, उसी दौरान एक स्त्री अपने परिवार के साथ गोलियों की बौछार के बीच अपने घर से भागी। उसकी ज़िंदगी में डर, मायूसी और दर्द भरी निराशा के सिवाय और कुछ नहीं था। बाद में, जब उसका परिवार दूसरे देश में बस गया, तब उसके पति ने फैसला किया कि वह उनकी शादी का सर्टिफिकेट जला देगा, और उसे गर्भवती हालत में उनके दस साल के बेटे के साथ घर से निकाल देगा और खुद पादरी बन जाएगा। जब उस स्त्री को फिलिप्पियों 4:6, 7 और भजन 55:22 दिखाया गया, साथ ही बाइबल पर आधारित प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के लेख दिखाए गए, तो आखिर में उसे सांत्वना मिली और जीने का एक मकसद भी।

12. (क) जिन लोगों को आर्थिक रूप से मुश्‍किलों का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें बाइबल क्या सांत्वना देती है? (ख) एशिया की एक साक्षी ने एक ग्राहक की कैसे मदद की?

12 बिगड़ते आर्थिक हालात की वजह से करोड़ों की ज़िंदगियाँ बरबाद हो गयी हैं। कभी-कभी इस हालात के ज़िम्मेदार युद्ध और उसके अंजाम होते हैं। मगर अकसर इसके पीछे सरकार की गलत नीतियाँ और अधिकार के पद पर बैठे लालची और बेईमान लोगों की मिली-भगत होती है जो जनता के पैसे हड़प जाते हैं और लोगों को मजबूरन अपनी संपत्ति गँवानी पड़ती है। दूसरे कुछ लोगों ने दुनिया की एक भी सुख-सुविधा का मुँह तक नहीं देखा है। इन सभी को यह जानकर दिलासा मिल सकता है कि परमेश्‍वर उन लोगों को राहत पहुँचाने का आश्‍वासन देता है जो उस पर भरोसा करते हैं। साथ ही, वह एक नयी धार्मिक दुनिया की गारंटी भी देता है जहाँ लोग अपने हाथों के कामों का आनंद उठाएँगे। (भजन 146:6, 7; यशायाह 65:17, 21-23; 2 पतरस 3:13) एशिया के एक देश में, जब एक साक्षी ने एक ग्राहक को वहाँ की आर्थिक हालत के बारे में चिंता ज़ाहिर करते सुना, तो उसने उस ग्राहक को समझाया कि यह सब दुनिया भर में हो रही घटनाओं का एक हिस्सा है। उन्होंने मत्ती 24:3-14 और भजन 37:9-11 पर चर्चा की और बाद में, नियमित रूप से बाइबल अध्ययन शुरू हुआ।

13. (क) जो लोग झूठे वादों से तंग आ चुके हैं, हम बाइबल के ज़रिए उनकी कैसे मदद कर सकते हैं? (ख) अगर लोगों को लगता है कि बुरे हालत इस बात का सबूत हैं कि कोई परमेश्‍वर नहीं, तो आप उसके साथ क्या तर्क कर सकते हैं?

13 जब लोग सालों-साल दुःख-तकलीफ झेलते हैं या फिर खोखले वादों से तंग आ जाते हैं, तब वे शायद मिस्र में रहनेवाले इस्राएलियों की तरह बन जाएँ जिन्होंने ‘निराशा’ की वजह से नहीं सुना। (निर्गमन 6:9, NHT) ऐसे मामलों में, अच्छा होगा अगर आप उन्हें बाइबल से वे तरीके बताएँ जिनसे आज की समस्याओं का समाधान करने में उन्हें मदद मिले और वे उन फँदों में न फँसे जिनसे बेवजह लोगों की ज़िंदगी तबाह हो जाती है। (1 तीमुथियुस 4:8ख) कुछ लोग शायद इतने बुरे हालात को इस बात का सबूत मानते हैं कि परमेश्‍वर है ही नहीं, या उसे हमारी कोई चिंता नहीं। आप उन्हें इस विषय से जुड़ी कुछ आयतें दिखाकर उनके साथ तर्क कर सकते हैं ताकि उन्हें एहसास हो कि परमेश्‍वर ने मदद करने का इंतज़ाम तो किया है, मगर बहुत-से लोगों ने उसे ठुकरा दिया है।—यशायाह 48:17, 18.

जब तूफान और भूकंप आते हैं

14, 15. जब एक विपत्ति की वजह से बहुत-से लोगों के दिल में सदमा बैठ गया, तब यहोवा के साक्षियों ने कैसे अपनी चिंता ज़ाहिर की?

14 तूफान, भूकंप, आग लगने या एक विस्फोट से कभी-भी, किसी पर भी आफत आ सकती है। इससे चारों तरफ मातम छा सकता है। बचनेवालों को शांति देने के लिए क्या किया जा सकता है?

15 लोगों को यह जानने की ज़रूरत है कि कोई है जो उनकी परवाह करता है। एक देश में आतंकवादी हमले के बाद, बहुत-से लोगों में सदमा बैठ गया। कइयों के रिश्‍तेदारों, रोज़ी-रोटी कमानेवालों, और दोस्तों की मौत हो गयी। किसी ने नौकरी खो दी, या सुरक्षा के नाम पर जो कुछ था वह सब गँवा दिया। ऐसे लोगों की मदद करने के लिए यहोवा के साक्षी आगे आए, उन्होंने ऐसे लोगों को हमदर्दी दिखायी जिनका भारी नुकसान हुआ था और बाइबल से आयतें दिखाकर उन्हें सांत्वना दी। कई लोग इसके लिए बहुत आभारी थे।

16. जब एल सल्वाडोर के एक इलाके में विपत्ति आयी, तब वहाँ के साक्षियों का प्रचार काम बड़ा असरदार क्यों साबित हुआ?

16 सन्‌ 2001 में, एल सल्वाडोर में एक ज़बरदस्त भूकंप के बाद धरती खिसकने से बहुतों की जानें चली गयीं। एक साक्षी का 25 साल का बेटा और बेटे की मँगेतर की दो बहनें उसमें मारे गए। उस हादसे के फौरन बाद, उस नौजवान की माँ और उसकी मँगेतर, प्रचार काम में जुट गए। कइयों ने कहा कि मरे हुओं को परमेश्‍वर ने उठा लिया है या यह सब परमेश्‍वर की मरज़ी है। मगर उन साक्षियों ने नीतिवचन 10:22 का हवाला देकर समझाया कि परमेश्‍वर नहीं चाहता कि हम दुःख देखें। फिर उन्होंने रोमियों 5:12 पढ़कर बताया कि लोगों की जानें, परमेश्‍वर की मरज़ी की वजह से नहीं बल्कि इंसान के पाप की वजह से जाती हैं। उन्होंने भजन 34:18; 37:29; यशायाह 25:8 और प्रकाशितवाक्य 21:3, 4 से सांत्वना भरा संदेश भी बताया। लोगों ने ध्यान लगाकर उनकी बात सुनी खासकर इसलिए भी क्योंकि इन दोनों ने खुद इस हादसे में अपने अज़ीज़ों को खोया था। इसका नतीजा यह हुआ कि बहुत-से बाइबल अध्ययन शुरू किए गए।

17. विपत्ति के समय में हम किन तरीकों से मदद कर सकते हैं?

17 विपत्ति के वक्‍त शायद आपको कोई ऐसा मिले जिसे तुरंत मदद की ज़रूरत हो। शायद डॉक्टर को बुलाना पड़े, उसे अस्पताल ले जाना पड़े, या खाना देने और रहने की जगह का इंतज़ाम करने में आपसे जितना बन पड़ता है उतना करना पड़े। सन्‌ 1998 में, इटली में ऐसी ही एक विपत्ति के दौरान एक पत्रकार ने गौर किया कि यहोवा के साक्षी “कारगर तरीके से काम करते हैं, और इस बात की परवाह किए बगैर कि लोग किस धर्म के हैं, तकलीफ में पड़े सभी की तरफ हाथ बढ़ाकर उनकी मदद करते हैं।” कुछ इलाकों में, अंतिम दिन में घटनेवाली उन घटनाओं से तकलीफें बढ़ गयी हैं जिनके बारे में भविष्यवाणी की गयी थी। उन इलाकों में यहोवा के साक्षी बाइबल की भविष्यवाणियाँ बताते हैं और बाइबल के इस आश्‍वासन से लोगों को दिलासा देते हैं कि परमेश्‍वर का राज्य इंसान को सच्ची सुरक्षा ज़रूर देगा।—नीतिवचन 1:33; मीका 4:4.

जब परिवार के किसी सदस्य की मौत हो जाती है

18-20. जब परिवार में किसी की मौत हो जाती है, तब सांत्वना देने के लिए आप क्या कह सकते हैं या क्या कर सकते हैं?

18 हर दिन लाखों लोग अपने अज़ीज़ की मौत पर शोक मनाते हैं। ऐसे लोगों से शायद आपकी मुलाकात प्रचार करते समय या रोज़मर्रा के काम करते वक्‍त हो। शोक करनेवालों को सांत्वना देने के लिए आप क्या कह सकते या क्या कर सकते हैं?

19 क्या एक व्यक्‍ति शोक से बेहाल है? क्या पूरा घर मातम मनानेवाले रिश्‍तेदारों से भरा है? सांत्वना देने के लिए आप शायद बहुत कुछ कहना चाहें, मगर वक्‍त की नज़ाकत को समझते हुए समझदारी से काम लेना ज़रूरी है। (सभोपदेशक 3:1, 7) ऐसे में अच्छा होगा अगर आप हमदर्दी जताएँ, बाइबल पर आधारित कोई साहित्य (एक ब्रोशर, पत्रिका, या एक ट्रैक्ट) छोड़ दें, और कुछ दिन बाद यह देखने के लिए जाएँ कि उन्हें और कैसी मदद की ज़रूरत है। अच्छा-सा समय चुनकर आप बाइबल से तसल्ली देनेवाले विचार बता सकते हैं। इससे उनके मन को शांति मिलेगी और उन्हें अपने गम से उबरने में मदद भी। (नीतिवचन 16:24; 25:11) यीशु की तरह आप मरे हुओं को दोबारा ज़िंदा तो नहीं कर सकते हैं, मगर आप बाइबल से मरे हुए की दशा के बारे में उन्हें ज़रूर बता सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि शायद यह समय मौत के बारे में उनकी झूठी धारणाओं को गलत साबित करने का न हो। (भजन 146:4; सभोपदेशक 9:5, 10) आप बाइबल में दी गयी पुनरुत्थान की आशा के बारे में उन्हें पढ़कर सुना सकते हैं। (यूहन्‍ना 5:28, 29; प्रेरितों 24:15) हो सके तो पुनरुत्थान का एक वृत्तांत इस्तेमाल करके चर्चा कीजिए कि इस आशा का मतलब क्या है। (लूका 8:49-56; यूहन्‍ना 11:39-44) साथ ही, ऐसी आशा देनेवाले प्रेमी परमेश्‍वर के गुणों पर उनका ध्यान खींचिए। (अय्यूब 14:14, 15; यूहन्‍ना 3:16) समझाइए कि इन शिक्षाओं से आपको कैसे फायदा पहुँचा है और क्यों आपको उन पर पूरा भरोसा है।

20 राज्यगृह आने का न्यौता देने से आप शायद शोक करनेवाले को ऐसे लोगों से मिलवा पाएँगे जो अपने पड़ोसियों से बेहद प्यार करते हैं और जो एक-दूसरे का हौसला बढ़ाना जानते हैं। स्वीडन की एक स्त्री ने पाया कि जिस प्यार और शांति की वह सारी ज़िंदगी तलाश करती रही थी, वह यही है।—यूहन्‍ना 13:35; 1 थिस्सलुनीकियों 5:11.

21, 22. (क) अगर हम शांति देना चाहते हैं, तो हमसे क्या करने की माँग की जाती है? (ख) आप उन लोगों को कैसे शांति दे सकते हैं जो पहले से ही बाइबल से अच्छी तरह वाकिफ हैं?

21 जब आपको पता चलता है कि कलीसिया का कोई भाई या बहन, या फिर कोई बाहरवाला दुःखी है, तब क्या आप कभी-कभी इस कशमकश में पड़ जाते हैं कि आपको क्या कहना चाहिए क्या नहीं, या क्या करना चाहिए क्या नहीं? बाइबल में “शांति” के लिए इस्तेमाल किए गए यूनानी शब्द का शाब्दिक अर्थ है “किसी को अपने पास बुलाना।” सच्ची शांति देनेवाला वह होता है, जो ज़रूरत पड़ने पर शोक करनेवालों के पास मौजूद रहता है।—नीतिवचन 17:17.

22 जिस व्यक्‍ति को आप शांति देना चाहते हैं, अगर उसे पहले से मालूम है कि मौत, छुड़ौती और पुनरुत्थान के बारे में बाइबल क्या कहती है, तब क्या? दरअसल एक दोस्त की मौजूदगी से ही बड़ी हिम्मत मिल सकती है, जिनके विश्‍वास एक हैं। अगर वह कुछ कहना चाहता है, तो ध्यान से उसकी सुनिए। यह मत सोचिए कि आपको भाषण देने की ज़रूरत है। अगर बाइबल से आयतें पढ़ी जाती हैं, तो समझिए कि परमेश्‍वर आप दोनों के दिलों को ढाढ़स देने के लिए आपसे बात कर रहा है। उन आयतों में दिए वादे पर आप दोनों के पक्के विश्‍वास का इज़हार कीजिए। जी हाँ, परमेश्‍वर की तरह करुणा और दया दिखाने से और दूसरों को उसके वचन में दी अनमोल सच्चाइयाँ बताने से, आप भी दुःखी लोगों को ‘शांति के परमेश्‍वर,’ यहोवा से दिलासा और ताकत पाने में मदद कर पाएँगे।—2 कुरिन्थियों 1:3.

[फुटनोट]

^ पैरा. 3 ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है, अध्याय 8; और ब्रोशर, क्या परमेश्‍वर वास्तव में हमारी परवाह करता है? देखिए।

आपका जवाब क्या है?

• बहुत-से लोग विपत्तियों के लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराते हैं, और हम उन लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं?

• बाइबल में दी शांति से पूरा फायदा उठाने के लिए हम दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं?

• आपके इलाके में ऐसे कौन-से हालात है जो बहुतों को दुःखी कर रहे हैं, और आप उनको शांति कैसे दे सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीरें]

मुसीबत के समय में सच्ची शांति का संदेश सुनाना

[चित्र का श्रेय]

शरणार्थी शिविर: UN PHOTO 186811/J. Isaac

[पेज 24 पर तसवीर]

एक दोस्त की मौजूदगी से ही बड़ी हिम्मत मिल सकती है