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सुखी परिवार का राज़

बच्चों के दिल में नैतिक स्तरों के लिए लगाव पैदा कीजिए

बच्चों के दिल में नैतिक स्तरों के लिए लगाव पैदा कीजिए

मेक्सिको की रहनेवाली एक माँ लॉइडा * कहती है: “आजकल स्कूलों में कंडोम मिलने लगे हैं, इसलिए बच्चों को लगता है कि जब तक वे ‘सुरक्षित’ यौन संबंध रखते हैं, तब तक कोई बुराई नहीं है।”

जापान की रहनेवाली एक माँ नोबुको कहती है: “मैंने अपने बेटे से पूछा, मान लो अगर तुम अपनी गर्ल-फ्रेंड के साथ कभी अकेले हुए तो क्या करोगे? उसने जवाब दिया, ‘पता नहीं!’

जब आपके बच्चे घुटनों के बल चलना सीख रहे थे, तब आपने घर की चीज़ों को शायद इस तरह व्यवस्थित किया होगा जिससे उन्हें कोई नुकसान न पहुँचे। आपने उन्हें खतरों से बचाने के लिए बिजली के स्विच बोर्डों के छेदों को ढाँका होगा, नुकीली चीज़ें दूर रखी होंगी और सीढ़ियों पर आड़ लगायी होगी।

काश, आप अपने किशोर बच्चों की भी आसानी-से हिफाज़त कर पाते! लेकिन इनके मामले में यह मुश्‌किल है। आज माँ-बाप को बड़ी-बड़ी चिंताएँ सताती हैं। जैसे, ‘कहीं मेरा बेटा इंटरनेट पर अश्‍लील तसवीरें तो नहीं देखता?’ ‘कहीं मेरी बेटी मोबाइल से दूसरों को अपनी अश्‍लील तसवीरें तो नहीं भेजती (‘सैक्सटिंग’)?’ और इस अंदेशे से तो होश उड़ जाते होंगे कि ‘कहीं मेरा बच्चा लैंगिक संबंध तो नहीं रख रहा?’

सख्ती बरतकर काबू में करना, सिर्फ भ्रम

कुछ माँ-बाप चौबीसों घंटे बच्चों पर नज़र रखते हैं। लेकिन बाद में कइयों को पता चलता है कि उनकी इस सख्ती की वजह से बच्चे नज़र बचाकर चोरी-छिपे गलत काम करने लगे हैं।

तो यह साफ है कि सिर्फ कड़ी नज़र रखने से समस्या दूर नहीं होगी। यहोवा परमेश्‍वर भी अपनी आज्ञा मनवाने के लिए अपने सेवकों से कभी ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता, उसी तरह आप माता-पिताओं को भी ऐसा नहीं करना चाहिए। (व्यवस्थाविवरण 30:19) आप अपने बच्चों की कैसे मदद कर सकते हैं ताकि वे बुद्धिमानी से ऊँचे नैतिक स्तरों का पालन करें?—नीतिवचन 27:11.

सबसे अच्छा तरीका है, उनके साथ लैंगिक विषयों पर बातचीत करना और ऐसा छुटपन से ही शुरू करना। * (नीतिवचन 22:6) और उनके बड़े हो जाने पर भी बातचीत जारी रखना। माता-पिता होने के नाते सिर्फ आप अपने बच्चों को भरोसेमंद जानकारी दे सकते हैं। ब्रिटेन की आलीशा कहती है: “कई जवानों को लगता है कि सैक्स के बारे में दोस्तों से बातचीत करना ज़्यादा अच्छा होता है, लेकिन यह सच नहीं है। हमारे माता-पिता ही इस बारे में हमें सही जानकारी दे सकते हैं। उन पर हम पूरा भरोसा रख सकते हैं।”

नैतिक मूल्यों की ज़रूरत उन्हें भी

जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें जन्म के बारे में सिर्फ ऊपरी जानकारी देना काफी नहीं होता, बल्कि उन्हें इस बारे में ज़्यादा बताने की ज़रूरत होती है। बच्चों के लिए भी यह ज़रूरी है कि वे “सही-गलत में फर्क करने के लिए” ‘अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करके उसे प्रशिक्षित करें।’ (इब्रानियों 5:14) या यूँ कहें, कि बच्चों को नैतिक स्तरों से लगाव होना चाहिए। मसलन सैक्स के बारे में सही-गलत का उनका अपना पक्का विश्‍वास होना चाहिए और उनके मुताबिक जीना चाहिए। आप कैसे अपने किशोर बच्चों के दिल में नैतिक स्तरों के लिए लगाव पैदा कर सकते हैं?

सही-गलत के बारे में आपकी क्या सोच है पहले इस पर गौर कीजिए। मिसाल के लिए, आप पूरी तरह मानते होंगे कि व्यभिचार करना यानी कुँवारे लड़के-लड़कियों का एक-दूसरे से यौन-संबंध रखना गलत है। (1 थिस्सलुनीकियों 4:3) और मुमकिन है कि बच्चे भी आपके इस विचार को जानते होंगे। शायद वे आपको बाइबल सिद्धांत भी बताएँ कि ऐसी बातें क्यों गलत हैं और पूछने पर तुरंत जवाब दें कि शादी से पहले सैक्स करना सही नहीं।

लेकिन इतना काफी नहीं है। किताब सैक्स स्मार्ट कहती है कि कुछ बच्चे शायद सैक्स के मामले में अपने माँ-बाप के विचारों से बस ऊपरी तौर पर सहमत होकर कह दें कि वह गलत है। लेकिन, “उनके मन में कुछ शंकाएँ होती हैं, जिस वजह से वे सैक्स के बारे में अपनी एक ठोस राय नहीं बना पाते। और जब वे अचानक ऐसे किसी हालात में पड़ जाते हैं, जहाँ उन्हें तुरंत फैसला लेना होता है, तो ‘वे समझ नहीं पाते कि क्या करें’ और वे मुश्‍किल में पड़ जाते हैं।” इसीलिए उन्हें नैतिक स्तरों की अहमियत सिखाना बहुत ज़रूरी है। आप कैसे उनकी मदद कर सकते हैं?

अपने नैतिक मूल्यों के बारे में साफ-साफ बताइए।

क्या आप मानते हैं कि लैंगिक-संबंध सिर्फ शादी के बाद रखने चाहिए? अगर हाँ, तो समय-समय पर यह बात बच्चों को साफ शब्दों में बताते रहिए। किताब बियॉन्ड द बिग टॉक कहती है कि खोज से पता चला है कि “जिन घरों में माँ-बाप बच्चों से खुलकर बात करते हैं कि शादी से पहले लैंगिक-संबंध रखना गलत है, ऐसे बच्चे इतनी जल्दी गलत कामों में हिस्सा नहीं लेते।”

जैसा कि हम देख चुके हैं कि बच्चों को सिर्फ अपने नैतिक मूल्य बता देने से इस बात की गारंटी नहीं मिल जाती कि वे भी उन उसूलों पर चलेंगे। लेकिन इससे उन्हें एक मज़बूत बुनियाद ज़रूर मिलती है, जिस पर वे अपने नैतिक मूल्य खड़े कर सकते हैं। अध्ययन दिखाते हैं कि बच्चे बड़े होकर अपने माता-पिता के बताए नैतिक नियमों पर ही चलते हैं, फिर भले ही इन्होंने जवानी में गलत काम किए हों।

इसे आज़माइए: बातचीत शुरू करने के लिए आप किसी घटना का ज़िक्र कर सकते हैं और उस पर अपनी राय दे सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर बलात्कार के बारे में कोई खबर छपी है तो आप कह सकते हैं: “मुझे हैरानी होती है कि लोग कैसे इतनी घिनौनी हरकत कर सकते हैं। तुम्हें क्या लगता है, उन्हें यह सब कहाँ से सूझता है?”

सैक्स के बारे में पूरी सच्चाई बताइए।

सैक्स के बारे में चेतावनी देना बहुत ज़रूरी है। (1 कुरिंथियों 6:18; याकूब 1:14, 15) लेकिन यह भी सच है कि बाइबल सैक्स को परमेश्‍वर की तरफ से तोहफा कहती है, न कि शैतान के ज़रिए इस्तेमाल होनेवाला कोई फँदा। (नीतिवचन 5:18, 19; श्रेष्ठगीत 1:2) इसलिए अगर आप सिर्फ सैक्स से जुड़े खतरों के बारे में ही बताएँगे तो बच्चे सैक्स के बारे में बाइबल का सही नज़रिया नहीं समझ पाएँगे। फ्रांस की रहनेवाली कॉरीना कहती है: “मेरे माता-पिता ने अनैतिक लैंगिक कामों के बारे में मुझे इतना चिताया कि मेरे दिमाग में सैक्स की एक गलत तसवीर बन गयी।”

ध्यान रखिए कि आप बच्चों को सैक्स के बारे में पूरी सच्चाई बताएँ। मेक्सिको में रहनेवाली एक माँ नाडिया कहती है: “मैंने हमेशा बच्चों से कहा है कि सैक्स, यहोवा परमेश्‍वर की तरफ से इंसानों के लिए एक खूबसूरत तोहफा है और वह चाहता है कि हम इससे खुशी पाएँ। लेकिन ऐसा हमें सिर्फ शादी के रिश्‍ते में ही करना चाहिए। इस तोहफे से हमें खुशी मिलेगी या दुख, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे करेंगे।”

इसे आज़माइए: अगली बार जब आप अपने किशोर बच्चे से सैक्स के बारे में बात करें, तो आखिर में उसके बारे में अच्छी बात कहिए। अपने बच्चे को यह बताने से कतराइए मत कि सैक्स, परमेश्‍वर से मिला एक बेहतरीन तोहफा है जिससे शादी के बाद वे भी खुशी पा सकेंगे। उन्हें यकीन दिलाइए कि शादी होने तक उनके लिए परमेश्‍वर के स्तरों का पालन करना मुश्‍किल नहीं होगा।

नतीजों को परखने में अपने बच्चे की मदद कीजिए:

जीवन में सही फैसले लेने के लिए एक जवान को यह पहचानने की ज़रूरत होगी कि उसके सामने कौन-कौन से रास्ते खुले हैं और उन पर चलने के क्या फायदे और क्या नुकसान हैं। क्योंकि किसी विषय के बारे में सिर्फ सही या गलत जानना काफी नहीं होता। ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली एक मसीही, इमा का कहना है: “जब मैं जवानी में की गयी अपनी गलतियों के बारे में सोचती हूँ, तो एक बात ज़रूर कह सकती हूँ कि परमेश्‍वर के स्तरों को जानने का मतलब यह नहीं कि हम उन पर चलेंगे भी। उन पर चलने के लिए यह निहायत ज़रूरी है कि हम पहले उन स्तरों के फायदे और नुकसान को समझें।”

ऐसा करने में बाइबल आपकी मदद कर सकती है। बाइबल में ऐसी बहुत-सी आज्ञाएँ दी गयी हैं जिन्हें न मानने के नुकसान के बारे में साफ-साफ चिताया गया है। मिसाल के लिए नीतिवचन 5:8, 9 जवानों से आग्रह करता है कि व्यभिचार से दूर रहो, “कहीं ऐसा न हो कि तू अपना यश औरों के हाथ कर दे।” जैसा कि इस आयत से पता चलता है, जो लोग शादी से पहले यौन-संबंध रखते हैं, वे अपने चरित्र पर दाग लगा लेते हैं, परमेश्‍वर की सेवा पूरे मन से नहीं कर पाते और अपनी ही नज़रों में गिर जाते हैं। इतना ही नहीं, बेदाग चरित्रवाला इंसान शायद ऐसे लोगों से शादी करने के लिए तैयार न हो। एक बार जब आपके बच्चे यह समझ लेंगे कि परमेश्‍वर के दिए नैतिक उसूलों को तोड़ने से हमारा शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक नुकसान होता है तो वे खुद ही उन उसूलों पर चलने की ठान लेंगे। *

इसे आज़माइए: बच्चों को यह मिसाल देकर समझाइए कि परमेश्‍वर के स्तरों पर चलना ही बुद्धिमानी है। आप कह सकते हैं: “खाना पकाने की आग अच्छी होती है, वहीं जंगल की आग बहुत बुरी होती है। भला क्यों? तो यही बात सैक्स के मामले में परमेश्‍वर ने जो सीमाएँ लगायी हैं, उस पर भी कैसे लागू होती है?” नीतिवचन 5:3-14 में लिखी बातों के आधार पर अपने बच्चे को व्यभिचार के बुरे अंजामों के बारे में समझाइए।

जापान का रहनेवाला अठारह साल का टॉकॉओ कहता है: “मैं जानता हूँ कि मुझे सही काम करने चाहिए। लेकिन इसके लिए मुझे हमेशा अपने शरीर की ख्वाहिशों को दबाना पड़ता है।” जो बच्चे टॉकॉओ की तरह महसूस करते हैं, वे इस बात से सांत्वना पा सकते हैं कि इस तरह के संघर्ष में वे अकेले नहीं हैं। यहाँ तक कि एक मज़बूत और वफादार मसीही प्रेषित पौलुस को भी ऐसा ही संघर्ष करना पड़ा, उसने कहा: “जब मैं अच्छा करना चाहता हूँ, तो अपने अंदर बुराई को ही पाता हूँ।”—रोमियों 7:21.

जवानो, याद रखिए कि सही काम के लिए संघर्ष करना गलत नहीं है। इस संघर्ष के दौरान ही एक जवान यह सोचने के लिए मजबूर होता है कि वह कैसा इंसान बनना चाहता है। और तभी वह इस सवाल का सही जवाब दे पाएगा, ‘क्या मैं एक ऐसा इंसान बनना चाहता हूँ, जिसके बारे में लोग कहें कि वह हमेशा नैतिक उसूलों पर चलता है और परमेश्‍वर का खरा सेवक है, या क्या ऐसा इंसान बनना चाहता हूँ जो दूसरों की देखा-देखी, अपने शरीर के ख्वाहिशों के आगे झुक जाता है?’ जवानो, अच्छे नैतिक मूल्य अपनाने से ही आप इस सवाल का बुद्धिमानी से जवाब दे सकेंगे। (w11-E 02/01)

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ सैक्स के बारे में बच्चों से बातचीत कैसे शुरू करें और उनकी उम्र के मुताबिक कैसे उन्हें जानकारी दें, इसके लिए अप्रैल-जून 2011 की प्रहरीदुर्ग के पेज 20-22 पर दी जानकारी देखिए।

^ ज़्यादा जानकारी के लिए अप्रैल 2010 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) का लेख, ‘नौजवान पूछते हैं, . . . क्या सैक्स से हमारे रिश्‍ते और मज़बूत होंगे’ देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

खुद से पूछिए . . .

  • किन बातों से ज़ाहिर होता है कि मेरा बच्चा वाकई नैतिक स्तरों पर चलता है?

  • अपने बच्चों से सैक्स के बारे में बात करते वक्‍त मैं किस पर ज़्यादा ज़ोर देता हूँ यह कि सैक्स, परमेश्‍वर की तरफ से एक तोहफा है या शैतान का फँदा?