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ज़िंदगी में सच्ची कामयाबी हासिल कीजिए

ज़िंदगी में सच्ची कामयाबी हासिल कीजिए

‘तेरे सब काम सफल होंगे और तू प्रभावशाली होगा।’—यहो. 1:8.

1, 2. (क) बहुत-से लोगों के लिए कामयाबी का क्या मतलब है? (ख) आपके हिसाब से कामयाब इंसान कौन है, यह जानने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

 ज़िंदगी में कामयाब होने का क्या मतलब है? अगर आप लोगों से यह सवाल पूछें, तो पाएँगे कि उनके जवाब एक-दूसरे से बिलकुल अलग हैं। कई लोगों के लिए कामयाबी का मतलब है बेशुमार दौलत हासिल करना, अपने पेशे में ऊँचा मुकाम पाना या पढ़ाई में अव्वल होना। दूसरों का कहना है कि कामयाब इंसान वह है जिसका अपने परिवारवालों, दोस्तों और साथ काम करने वालों के साथ अच्छा रिश्‍ता हो। और कुछ मसीही शायद सोचें कि जो लोग मंडली में ज़िम्मेदारी के पद पर हैं या प्रचार में बढ़िया नतीजे पाते हैं, वे ही कामयाब हैं।

2 आपके हिसाब से कामयाब इंसान कौन है? एक कागज़ पर चंद ऐसे लोगों के नाम लिखिए जिन्हें आप बहुत तवज्जह देते हैं और जिनके लिए आपके दिल में खास जगह है। फिर देखिए कि आपने जिन-जिनके नाम लिखे हैं, उन सबमें क्या खासियत है? क्या वे अमीर हैं? क्या उनका बड़ा नाम और रुतबा है? इन सवालों के जवाब दिखाएँगे कि आपने अपने दिल में किन बातों को अहमियत दी है। और आप जिन बातों को अहमियत देते हैं, उसी के हिसाब से आप ज़िंदगी के फैसले करेंगे और लक्ष्य रखेंगे।—लूका 6:45.

3. (क) कामयाब होने के लिए यहोशू को क्या करना था? (ख) अब हम किस बात पर गौर करेंगे?

3 हमारे लिए यह बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है कि क्या यहोवा हमें कामयाब समझता है। वह इसलिए क्योंकि उसकी मंज़ूरी पाने पर ही हमारी ज़िंदगी टिकी हुई है। यहोशू को लीजिए। यहोवा ने उसे इसराएलियों का अगुवा चुना और उसे यह भारी ज़िम्मेदारी दी कि वह उन लोगों को वादा किए गए देश में ले जाए। यहोशू को यह ज़िम्मेदारी सौंपते वक्‍त यहोवा ने उसे सलाह दी कि वह “दिन रात” मूसा का कानून पढ़े और उसमें लिखी बातों को सख्ती से माने। परमेश्‍वर ने उसे यकीन दिलाया कि अगर वह ‘ऐसा करेगा तो उसके सब काम सफल होंगे और वह प्रभावशाली होगा।’ (यहो. 1:7, 8) जैसा कि आप जानते हैं, यहोशू ने ठीक ऐसा ही किया और वह कामयाब हुआ। हमारे बारे में क्या? हम कैसे जान सकते हैं कि कामयाबी के बारे में हमारा भी वही नज़रिया है जो परमेश्‍वर का है? यह जानने के लिए, आइए बाइबल में बताए दो आदमियों की ज़िंदगी पर गौर करें।

क्या सुलैमान ने ज़िंदगी में कामयाबी हासिल की?

4. यह क्यों कहा जा सकता है कि सुलैमान एक कामयाब इंसान था?

4 राजा सुलैमान कई मायनों में अपने ज़माने का सबसे कामयाब इंसान था। उसकी कामयाबी का राज़ क्या था? वह कई सालों तक यहोवा का भय मानता रहा और उसकी आज्ञाओं का पालन करता रहा जिस वजह से यहोवा ने उसे ढेरों आशीषें दीं। याद कीजिए कि जब यहोवा ने सुलैमान से कहा कि वह उससे जो चाहे माँग सकता है, तो उसने यहोवा से बुद्धि माँगी ताकि वह प्रजा को सही राह दिखा सके। उसकी गुज़ारिश सुनकर परमेश्‍वर ने उसे बुद्धि के साथ-साथ बेशुमार दौलत भी दी। (1 राजा 3:10-14 पढ़िए।) “सुलैमान की बुद्धि पूर्व देश के सब निवासियों और मिस्रियों” से कहीं “बढ़कर” थी। इसलिए सुलैमान “चारों ओर की सब जातियों में” मशहूर हो गया। (1 राजा 4:30, 31) और जहाँ तक उसकी धन-संपत्ति का सवाल है, अगर सिर्फ सोने की ही बात लें, तो हर साल उसके खज़ाने में करीब 25 टन सोना आता था! (2 इति. 9:13) उसने आलीशान इमारतें खड़ी करवायीं थीं, साथ ही वह दूसरे देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने और उनके साथ कारोबार करने में बहुत कुशल था। जी हाँ, जब तक सुलैमान परमेश्‍वर का वफादार बना रहा, तब तक वह कामयाब रहा।—2 इति. 9:22-24.

5. सुलैमान के मुताबिक परमेश्‍वर की नज़र में कौन वाकई कामयाब है?

5 सुलैमान ने सभोपदेशक की किताब में जो लिखा, उससे पता चलता है कि वह कामयाबी के बारे में सही नज़रिया रखता था। वह इस धोखे में नहीं था कि सिर्फ रुतबेदार या दौलतमंद लोग ही कामयाबी और खुशी पा सकते हैं। उसने लिखा, “मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं; और यह भी परमेश्‍वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे।” (सभो. 3:12, 13) सुलैमान यह भी जानता था कि चाहे खाना-पीना हो या कोई और बात, इन चीज़ों से एक इंसान को सच्ची खुशी तभी मिल सकती है जब उस पर यहोवा की मंज़ूरी हो, उसका यहोवा के साथ अच्छा रिश्‍ता हो। सुलैमान ने बिलकुल सही कहा, “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।”—सभो. 12:13.

6. सुलैमान की मिसाल से हमें सच्ची कामयाबी के बारे में क्या समझ मिलती है?

6 सुलैमान ने बरसों तक परमेश्‍वर का भय माना और उसकी आज्ञाओं का पालन किया। बाइबल बताती है कि वह ‘यहोवा से प्रेम रखता था और अपने पिता दाऊद की विधियों पर चलता रहा।’ (1 राजा 3:3) क्या आप इसे सच्ची कामयाबी नहीं कहेंगे? परमेश्‍वर के निर्देशन में सुलैमान ने सच्ची उपासना के लिए एक शानदार मंदिर बनवाया और बाइबल की तीन किताबें लिखीं। माना कि हम ऐसे बड़े-बड़े काम नहीं कर सकते, लेकिन सुलैमान ने वफादार रहते हुए जो मिसाल कायम की, उससे हम सीख सकते हैं कि सच्ची कामयाबी क्या होती है और कामयाब होने के लिए हमें क्या करना होगा। आज दुनिया के लोग दौलत, शोहरत, दुनियावी ज्ञान, ऊँचा ओहदा जैसी बातों से कामयाबी आँकते हैं मगर सुलैमान ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से बताया कि ये सब बेकार हैं। उसने समझाया कि इन चीज़ों के पीछे भागना ‘वायु को पकड़ने’ जैसा होगा क्योंकि ये सच्ची खुशी नहीं दे सकतीं। मिसाल के लिए, आपने देखा होगा कि जिन्हें दौलत का नशा होता है, वे कभी संतुष्ट नहीं होते बल्कि पैसे के लिए उनका लालच बढ़ता ही रहता है। और अकसर उन पर यह चिंता हावी रहती है कि वे अपनी दौलत की हिफाज़त कैसे करें। और-तो-और, उनके पास आज जो दौलत है वह कल किसी और की हो सकती है।—सभोपदेशक 2:8-11, 17; 5:10-12 पढ़िए।

7, 8.  किस तरह सुलैमान वफादारी की राह से भटक गया? उसे क्या अंजाम भुगतना पड़ा?

7 जैसा कि आप जानते हैं, बाद में सुलैमान वफादारी की राह से भटक गया और उसने परमेश्‍वर की आज्ञा माननी छोड़ दी। बाइबल कहती है, “जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब उसकी स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया, और उसका मन अपने पिता दाऊद की नाईं अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा। . . . सुलैमान ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है।”—1 राजा 11:4-6.

8 इस वजह से सुलैमान पर यहोवा का क्रोध भड़क उठा। उसने सुलैमान से कहा, “मेरी बन्धाई हुई वाचा और दी हुई विधि तू ने पूरी नहीं की, इस कारण मैं राज्य को निश्‍चय तुझ से छीनकर तेरे एक कर्मचारी को दे दूंगा।” (1 राजा 11:11) सुलैमान को कितना कड़वा अंजाम भुगतना पड़ा! हालाँकि सुलैमान कई मायनों में कामयाब रहा था, मगर बाद में वह यहोवा को खुश करने में नाकाम हो गया। ज़िंदगी के सबसे ज़रूरी मामले में, जी हाँ, यहोवा के वफादार बने रहने के मामले में वह चूक गया। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैंने ठान लिया है कि जो गलती सुलैमान ने की थी वह मैं नहीं दोहराऊँगा और कामयाबी की राह पर चलता रहूँगा?’

वह सही मायनों में कामयाब रहा

9. दुनिया के नज़रिए से देखा जाए, तो क्या पौलुस एक कामयाब इंसान था? समझाइए।

9 अब आइए हम प्रेषित पौलुस पर गौर करें। उसने जिस तरह की ज़िंदगी जी वह सुलैमान की ज़िंदगी से बिलकुल अलग थी। पौलुस ने राजाओं जैसी शानो-शौकत की ज़िंदगी का लुत्फ नहीं उठाया। न वह कभी सुलैमान की तरह हाथी-दाँत से बने सिंहासन पर बैठा और न ही राजा-महाराजाओं के साथ दावतों में शरीक हुआ। इसके बजाय उसने जीवन में कई तकलीफें सहीं, कई बार उसने भूख-प्यास और कपड़ों की तंगी झेली और ठंड से ठिठुरते हुए दिन गुज़ारे। (2 कुरिं. 11:24-27) यीशु को मसीहा कबूल करने से पहले, यहूदी धर्म में उसका बहुत ऊँचा पद था, मगर अब उसने वह ओहदा छोड़ दिया था। अब यहूदी धर्म-गुरु उसका सम्मान करने के बजाय उससे नफरत करने लगे। इसलिए पौलुस को जेल में डाला गया, बेंत से पीटा गया, कोड़े लगाए गए और पत्थरवाह किया गया। उसने बताया कि विरोधियों ने उसे और दूसरे मसीहियों को गालियाँ दीं, बदनाम किया और उन पर ज़ुल्म किए। पौलुस ने लिखा, “आज तक हमें दुनिया का कचरा और सब चीज़ों का कूड़ा-करकट समझा जाता है।”—1 कुरिं. 4:11-13.

10. कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगा होगा कि पौलुस ने कामयाब होने का मौका ठुकरा दिया?

10 ऐसा मालूम पड़ता है कि पौलुस का जन्म एक ऊँचे खानदान में हुआ था। वह पहले शाऊल नाम से जाना जाता था। जब वह जवान था तो उसके सामने दुनिया में तरक्की के कई मौके थे। उसने गमलीएल नाम के एक माने हुए गुरु से तालीम ली थी। बाद में पौलुस ने लिखा, “मैं यहूदी धर्म में अपनी जाति और अपनी उम्र के कई लोगों से कहीं ज़्यादा तरक्की कर रहा था।” (गला. 1:14) पौलुस एक रोमी नागरिक था और उसे इब्रानी और यूनानी भाषा का अच्छा ज्ञान था। एक रोमी नागरिक होने की वजह से उसके पास ऐसे कई अधिकार थे, जो बहुत कम लोगों को मिलते थे। वह चाहता तो दुनिया में और ज़्यादा तरक्की कर सकता था और बहुत नाम और दौलत हासिल कर सकता था। लेकिन दुनिया में आगे बढ़ने के बजाय, उसने ऐसा रास्ता चुना जो दूसरों की नज़रों में और शायद उसके कुछ रिश्‍तेदारों की नज़रों में भी बेवकूफी थी। लेकिन उसने ऐसा रास्ता क्यों चुना?

11. पौलुस ने किन बातों को अनमोल समझा? उसने क्या ठान लिया था और क्यों?

11 पौलुस यहोवा से प्यार करता था और उसने दौलत और इंसानों की नज़रों में नाम-शोहरत कमाने के बजाय यहोवा की मंज़ूरी पाने को ज़्यादा अहमियत दी। पौलुस ने जब सच्चाई का सही ज्ञान पाया, तो उसने जाना कि फिरौती बलिदान, मसीही सेवा और स्वर्ग में ज़िंदगी जीने की आशा कितनी अनमोल है, जबकि दुनिया के लिए ये बातें कोई मायने नहीं रखतीं। पौलुस जानता था कि शैतान ने दावा किया था कि वह किसी भी इंसान को परमेश्‍वर की सेवा से दूर कर सकता है, और यह एक ऐसा मसला है जिसका हल किया जाना ज़रूरी है। (अय्यू. 1:9-11; 2:3-5) इसलिए पौलुस ने ठान लिया था कि उसके सामने चाहे जो भी परीक्षा आए, वह हमेशा वफादार रहेगा और सच्ची उपासना में लगा रहेगा। दुनिया के हिसाब से देखें तो कामयाबी का इन बातों से कोई सरोकार नहीं।

12. आपने क्यों परमेश्‍वर पर अपनी आशा बनाए रखने का चुनाव किया?

12 क्या आपने पौलुस की तरह ठान लिया है कि आप सारी ज़िंदगी परमेश्‍वर के वफादार रहेंगे? हालाँकि यह आसान नहीं है, लेकिन हम जानते हैं कि ऐसी ज़िंदगी जीने से ही हम यहोवा की आशीष और मंज़ूरी पा सकते हैं और यही सच्ची कामयाबी है। (नीति. 10:22) परमेश्‍वर के वफादार रहने से आज तो हमें फायदा होता ही है, हम भविष्य में भी आशीषें पाने का पक्का यकीन रख सकते हैं। (मरकुस 10:29, 30 पढ़िए।) इसलिए यह बिलकुल सही होगा कि हम अपनी आशा “उस धन पर न रखें जो आज है और कल नहीं रहेगा, बल्कि उस परमेश्‍वर पर रखें जो सब चीज़ों का लुत्फ उठाने के लिए हमें सबकुछ भरपूर देता है।” आइए हम ‘अपने लिए ऐसा खज़ाना जमा करें, जो सही-सलामत रहेगा और भविष्य के लिए एक बढ़िया नींव बन जाएगा ताकि हम असली ज़िंदगी पर मज़बूत पकड़ हासिल कर सकें।’ (1 तीमु. 6:17-19) ऐसा करने से हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि आज से सौ साल बाद, यहाँ तक कि हज़ार साल बाद भी जब हम यह समय याद करेंगे तो गर्व से कह पाएँगे, “वाकई मैंने सच्ची कामयाबी का रास्ता चुना था!”

जहाँ तेरा धन होगा

13. यीशु ने धन-दौलत के बारे में कैसा नज़रिया रखने की सलाह दी?

13 यीशु ने धन-दौलत के बारे में यह सलाह दी, “अपने लिए पृथ्वी पर धन जमा करना बंद करो, जहाँ कीड़ा और ज़ंग उसे खा जाते हैं और जहाँ चोर सेंध लगाकर चुरा लेते हैं। इसके बजाय, अपने लिए स्वर्ग में धन जमा करो, जहाँ न तो कीड़ा, न ही ज़ंग उसे खाते हैं और जहाँ न तो चोर सेंध लगाकर चुराते हैं। क्योंकि जहाँ तेरा धन होगा, वहीं तेरा दिल भी होगा।”—मत्ती 6:19-21.

14. पृथ्वी पर धन जमा करना क्यों बेवकूफी है?

14 एक इंसान पृथ्वी पर जो धन जोड़ता है उसका मतलब सिर्फ पैसा नहीं बल्कि नाम, शोहरत और ओहदा भी है जिसे इंसान कामयाबी की निशानी मानता है। मगर यीशु ने भी सुलैमान की तरह यही बताया कि ये सारी चीज़ें, जो लोगों के लिए धन के बराबर हैं, हमेशा कायम नहीं रहतीं, नष्ट हो जाती हैं। आपने भी यह हकीकत अपनी आँखों से देखी होगी। प्रोफेसर एफ. डेल ब्रूनर लिखते हैं, “इस सच्चाई से हर कोई वाकिफ है कि शोहरत का मतलब चार दिन की चाँदनी, फिर अंधेरी रात है। सितारों में आज जिसका नाम कल वही गुमनाम, आज मालामाल तो कल कंगाल। . . . [यीशु] ने इंसानों को सलाह दी कि वे शोहरत के पीछे न दौड़ें क्योंकि शोहरत की बुंलदियों से नीचे गिरते इंसान को देर नहीं लगती और इससे निराशा ही हाथ लगती है। यीशु अपने चेलों से प्यार करता है इसलिए वह नहीं चाहता कि वे नाम-शोहरत के पीछे भागकर निराश हों। ‘दुनिया की आदत है कि वह सिर्फ उगते सूरज को सलाम करती है, डूबते सूरज को आँख उठाकर भी नहीं देखती।’” हालाँकि ज़्यादातर लोग इस हकीकत से सहमत होते हैं, मगर कितने हैं जो यीशु की सलाह मानकर अपनी ज़िंदगी के तौर-तरीके बदलने को तैयार होते हैं? आपके बारे में क्या? क्या आप यीशु की सलाह मानेंगे?

15. हमें किस तरह की कामयाबी पाने की कोशिश करनी चाहिए?

15 कुछ धर्मगुरु सिखाते हैं कि इंसान को किसी भी मायने में कामयाब होने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, ऐसी हर कोशिश बेकार है। मगर यीशु ने ऐसा नहीं सिखाया। उसने यह कभी नहीं कहा कि हमें कामयाब ज़िंदगी जीने की बिलकुल कोशिश नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, उसने चेलों को सलाह दी कि वे सही मायनों में कामयाब होने की कोशिश करें, धरती पर धन बटोरने में मेहनत करने के बजाय, “स्वर्ग में धन” इकट्ठा करना शुरू करें जो कभी नष्ट नहीं होगा। हमारी दिली तमन्‍ना होनी चाहिए कि हम यहोवा की नज़र में कामयाब होने की कोशिश करें। जी हाँ, यीशु के शब्द हमें बताते हैं कि यह फैसला हमारे हाथ में है कि हम ज़िंदगी में क्या हासिल करने के लिए मेहनत करेंगे। और हकीकत यह है कि हम वही हासिल करने के लिए मेहनत करते हैं जिसकी चाहत हमारे दिल में होती है और जिसे हम अनमोल समझते हैं।

16. हम किस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं?

16 अगर हमारे दिल में यही चाहत है कि हम यहोवा को खुश करें, तो हम उसकी मंज़ूरी पाने के लिए मेहनत करेंगे। तब हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि वह हमारी हर ज़रूरत का ध्यान रखेगा। हो सकता है कभी हमें ऐसे हालात का सामना करना पड़े जब परमेश्‍वर कुछ वक्‍त के लिए हमें खाने-पीने की तंगी से गुज़रने दे, जैसे प्रेषित पौलुस के साथ हुआ था। (1 कुरिं. 4:11) लेकिन ऐसे बुरे वक्‍त में भी हम भरोसा रख सकते हैं कि यीशु की यह सलाह मानने में ही बुद्धिमानी है, “कभी-भी चिंता न करना, न ही यह कहना, ‘हम क्या खाएँगे?’ या, ‘हम क्या पीएँगे?’ या, ‘हम क्या पहनेंगे?’ क्योंकि इन्हीं सब चीज़ों के पीछे दुनिया के लोग दिन-रात भाग रहे हैं। मगर तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है। इसलिए, तुम पहले उसके राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे रहो और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।”—मत्ती 6:31-33.

परमेश्‍वर की नज़र में कामयाबी पाइए

17, 18. (क) सच्ची कामयाबी का ताल्लुक किस बात से है? (ख) कामयाबी का ताल्लुक किस बात से नहीं है?

17 हमें यह अहम मुद्दा हमेशा याद रखना चाहिए कि दुनिया में कोई ऊँचा ओहदा पाना या कोई मुकाम हासिल करना सच्ची कामयाबी नहीं है। न ही मंडली में किसी ज़िम्मेदारी के पद पर होना सच्ची कामयाबी की निशानी है। ज़िम्मेदारी का पद दरअसल एक आशीष है जो परमेश्‍वर की आज्ञा मानने और विश्‍वासयोग्य बने रहने से मिलती है। सच्ची कामयाबी का ताल्लुक इस बात से है कि हम परमेश्‍वर की आज्ञा मानें और उसके विश्‍वासयोग्य बने रहें। परमेश्‍वर हमें यकीन दिलाता है, “एक प्रबंधक में यह देखा जाता है कि वह विश्‍वासयोग्य पाया जाए।” (1 कुरिं. 4:2) यह बेहद ज़रूरी है कि हम अंत तक विश्‍वासयोग्य बने रहें क्योंकि यीशु ने कहा था, “जो अंत तक धीरज धरेगा, वही उद्धार पाएगा।” (मत्ती 10:22) जो लोग विश्‍वासयोग्य बने रहेंगे उनका उद्धार पाना इस बात का सबसे बड़ा सबूत होगा कि उन्होंने सच्ची कामयाबी हासिल की थी।

18 ऊपर बतायी बातों पर ध्यान देने से आप देख सकते हैं कि परमेश्‍वर के वफादार रहने का दौलत, शोहरत, ऊँची तालीम या रुतबे से कोई ताल्लुक नहीं, न ही वफादार होने के लिए हमारे पास बहुत ज्ञान, या किसी खास हुनर या काबिलीयत का होना ज़रूरी है। हमारे हालात चाहे जैसे भी हों, परमेश्‍वर के वफादार रहना हमारे लिए ज़रूर मुमकिन है। गौर कीजिए कि पहली सदी में भी कुछ मसीही अमीर थे तो कुछ गरीब। पौलुस ने दौलतमंद मसीहियों को सलाह दी कि वे भी “ऐसे काम करें जो दूसरों के लिए अच्छे हैं, भले कामों में धनी बनें, दरियादिल हों और जो उनके पास है वह दूसरों में बाँटने के लिए तैयार रहें।” सभी मसीही, फिर चाहे वे अमीर थे या गरीब, “असली ज़िंदगी पर मज़बूत पकड़ हासिल” कर सकते थे। (1 तीमु. 6:17-19) आज भी यह बात सच है। हम सबको एक ही तरह का मौका और ज़िम्मेदारी मिली है। वह यह कि हम विश्‍वासयोग्य बने रहें और “भले कामों में धनी बनें।” ऐसा करने से हम अपने सिरजनहार की नज़रों में कामयाब होंगे और हमें इस बात का संतोष होगा कि हम उसका दिल खुश कर रहे हैं।—नीति. 27:11.

19. कामयाबी पाने के लिए आपने क्या करने की ठानी है?

19 आपकी ज़िंदगी में कुछ ऐसे मुश्‍किल हालात हो सकते हैं जिन्हें बदलना आपके बस में नहीं है। फिर भी यह आपके हाथ में है कि आप उनका सामना कैसे करेंगे। हालात चाहे जो भी हों, परमेश्‍वर के वफादार बने रहने की पूरी कोशिश कीजिए। आपकी मेहनत ज़रूर रंग लाएगी! आप भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा आपको बहुत-सी आशीषें देगा, न सिर्फ आज बल्कि हमेशा-हमेशा तक। यीशु का यह वादा कभी मत भूलिए जो उसने अभिषिक्‍त मसीहियों से किया था, “खुद को विश्‍वासयोग्य साबित करो और मैं तुम्हें ज़िंदगी का ताज दूँगा।” (प्रका. 2:10) वाकई जो हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे, वही लोग सही मायने में कामयाब कहलाएँगे!