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जीवन कहानी

राज के कामों में बितायी मेरी ज़िंदगी की खास घटनाएँ

राज के कामों में बितायी मेरी ज़िंदगी की खास घटनाएँ

सन्‌ 1947 की बात है। एक दिन एल साल्वाडर के सांता एना शहर में बसे मिशनरी घर पर हमला हुआ। अंदर प्रहरीदुर्ग अध्ययन चल रहा था। बाहर कुछ लड़के खुले दरवाज़े से घर के अंदर बड़े-बड़े पत्थर फेंकने लगे। ऐसा करने के लिए कैथोलिक पादरियों ने उन्हें भड़काया था। कुछ ही देर बाद, ये पादरी भी गुस्से से पागल भीड़ को साथ लेकर मिशनरी घर आ पहुँचे। कुछ लोगों के हाथों में जलती हुई मशालें थीं, तो कुछ मूर्तियाँ पकड़े हुए थे। दो घंटों तक, वे मिशनरी घर पर पत्थर फेंकते रहे और चिल्लाते रहे: “कुँवारी मरियम की लंबी उम्र हो!” और “यहोवा मर जाए!” वे मिशनरियों को डराना चाहते थे, ताकि वे वहाँ से चले जाएँ। यह सब मैं इसलिए जानती हूँ, क्योंकि 67 साल पहले हुई उस सभा में उन मिशनरियों में मैं भी एक थी। a

इस घटना से दो साल पहले, मैंने और एवलिन ट्रेबर्ट ने वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की चौथी क्लास से अपनी ट्रेनिंग पूरी की थी। उस समय गिलियड स्कूल न्यू यॉर्क के इथिका शहर के पास था। हमें एल साल्वाडर में मिशनरियों के तौर पर सेवा करने के लिए भेजा गया था। मैंने वहाँ लगभग 29 साल तक सेवा की। लेकिन इससे पहले कि मैं आपको मिशनरी सेवा में बितायी अपनी ज़िंदगी के बारे में बताऊँ, मैं आपको बताना चाहती हूँ कि मैंने मिशनरी सेवा करने का फैसला क्यों किया।

हमारे परिवार को सच्चाई कैसे मिली

मेरा जन्म 1923 में अमरीका के वॉशिंगटन राज्य में स्पोकैन शहर में हुआ था। मेरे माता-पिता, जॉन और ईवा ओल्सन, लूथरन चर्च के सदस्य थे, लेकिन वे चर्च की इस शिक्षा को नहीं मानते थे कि इंसान मरने के बाद नरक में तड़पता है। वे इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे कि एक प्यार करनेवाला परमेश्‍वर लोगों को तड़पा सकता है। (1 यूह. 4:8) मेरे पिता एक बेकरी में काम करते थे। एक रात उनके साथ काम करनेवाले एक आदमी ने उन्हें बाइबल से समझाया कि परमेश्‍वर लोगों को नरक की आग में नहीं तड़पाता। इसके कुछ ही समय बाद, मेरे माता-पिता ने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना शुरू कर दिया। उन्होंने जाना कि मरने के बाद क्या होता है, इस बारे में बाइबल असल में क्या सिखाती है।

उस वक्‍त मैं सिर्फ नौ साल की थी, लेकिन मुझे अभी भी याद है कि मेरे माता-पिता उन नयी बातों को सीखकर कितने खुश थे। उन्हें यह जानकर इतना अच्छा लगा कि परमेश्‍वर का नाम यहोवा है और त्रिएक की शिक्षा झूठी है। (यूह. 8:32) मेरे माता-पिता जो सीख रहे थे, वे बातें उन्होंने मुझे भी सिखायीं और मैंने स्पंज की तरह इन सच्चाइयों को अपने अंदर सोख लिया। मुझे बाइबल पढ़ना कभी उबाऊ नहीं लगा, बल्कि परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने में मुझे बहुत मज़ा आता था। हालाँकि मैं शर्मीले स्वभाव की थी, लेकिन फिर भी मैं अपने माता-पिता के साथ प्रचार में जाती थी। सन्‌ 1934 में उन्होंने बपतिस्मा लिया और 1939 में, 16 साल की उम्र में मैंने बपतिस्मा ले लिया।

1941 में सेंट लुईस, मिज़ूरी में हुए सम्मेलन में अपने माता-पिता के साथ

सन्‌ 1940 के जुलाई महीने में मेरे माता-पिता ने अपना घर बेच दिया और हम आइडाहो राज्य के कॉर डलेन शहर जाकर बस गए। वहाँ हमने साथ मिलकर पायनियर सेवा शुरू की। हम एक किराए के फ्लैट में रहते थे, जो एक गराज के ऊपर था। हमारे घर पर मंडली की सभाएँ भी चलायी जाती थीं। उस समय, बहुत कम मंडलियों के अपने राज-घर थे। ज़्यादातर मंडलियाँ किराए की जगह पर या भाई-बहनों के घरों में इकट्ठा होती थीं।

सन्‌ 1941 में मैं और मेरे माता-पिता मिज़ूरी राज्य के सेंट लुईस शहर में एक सम्मेलन में हाज़िर हुए। उस सम्मेलन के आखिरी दिन को “बच्चों के लिए दिन” नाम दिया गया था। उस दिन 5 से 18 साल के बीच के सभी बच्चों को स्टेज के सामने की पंक्‍तियों में बैठने के लिए कहा गया था। एक भाषण के आखिर में, भाई जोसेफ एफ. रदरफर्ड ने सीधे हम बच्चों से बात की। उन्होंने हम सभी बच्चों से कहा कि अगर हम “परमेश्‍वर और उसके राजा की आज्ञा मानने” के लिए तैयार हैं, तो हम खड़े हो जाएँ। हम सब खड़े हो गए। फिर भाई रदरफर्ड ने घोषणा की, “देखिए, ये हैं राज के 15,000 से भी ज़्यादा नए साक्षी!” उस पल मैंने फैसला किया कि मैं अपनी पूरी ज़िंदगी पायनियर सेवा करूँगी।

हमारे परिवार को मिली ज़िम्मेदारियाँ

उस सम्मेलन के कुछ ही महीनों बाद, हमारे परिवार को दक्षिणी कैलिफोर्निया के ऑक्सनार्ड शहर में सेवा करने के लिए कहा गया। हमें वहाँ पर एक मंडली शुरू करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी। हम एक छोटे-से ट्रेलर (चार पहियोंवाला घर जिसे किसी गाड़ी के सहारे खींचा जाता है) में रहते थे, जिसमें सिर्फ एक ही बिस्तर था। रोज़ रात को हम खाने की मेज़ पर मेरा बिस्तर बिछाया करते थे। एक वक्‍त पर मेरा खुद का कमरा हुआ करता था। वाकई यह एक बहुत बड़ा बदलाव था!

7 दिसंबर, 1941 को जापान ने हवाई के पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया। और उसके अगले दिन अमरीका दूसरे विश्‍व युद्ध में शामिल हो गया। इसके ठीक बाद हम कैलिफोर्निया आए। उस वक्‍त जापान की पनडुब्बियाँ पास ही के महासागर में थीं। इसलिए अधिकारियों ने यह हिदायत दी कि समुद्र तट के पास रहनेवाले सभी लोग रात को अपनी बत्तियाँ बुझा दें। घुप अँधेरा होने की वजह से जापानी पनडुब्बियों के लिए हमला करना मुश्‍किल होता।

कुछ महीनों बाद, सितंबर 1942 में हम ओहायो राज्य के क्लीवलैंड शहर में ‘न्यू वर्ल्ड थियोक्रैटिक असेम्बली’ में हाज़िर हुए। मुझे खास तौर से भाई नेथन एच. नॉर का भाषण याद है, जिसका विषय था, “शांति—क्या यह कायम रह सकती है?” भाषण में उन्होंने प्रकाशितवाक्य अध्याय 17 में दी “जंगली जानवर” की भविष्यवाणी पर चर्चा की थी, जो “था, मगर अब नहीं है फिर भी वह अथाह-कुंड से जल्द निकलेगा।” (प्रका. 17:8, 11) भाई नॉर ने समझाया कि यह “जंगली जानवर” राष्ट्र संघ को दर्शाता था, जिसने 1939 में काम करना बंद कर दिया था। बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि इस संघ की जगह कोई और लेगा, जिसके बाद पहले के मुकाबले ज़्यादा शांति होगी। और 1945 में ठीक ऐसा ही हुआ जब दूसरा विश्‍व युद्ध खत्म हो गया। इसके बाद, “जंगली जानवर” संयुक्‍त राष्ट्र संघ के रूप में दोबारा उभरा। तब से लेकर यहोवा के साक्षियों ने दुनिया के और भी कई देशों में खुशखबरी का प्रचार करना शुरू कर दिया। तब से इस काम में क्या ही ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई है!

मेरा गिलियड स्कूल का डिप्लोमा

उस भविष्यवाणी ने मुझे यह समझने में मदद दी कि काम बहुत है। इसलिए जब यह घोषणा की गयी कि अगले साल गिलियड स्कूल शुरू होगा, तो मैं उस स्कूल में जाना चाहती थी और एक मिशनरी बनना चाहती थी। इस बीच 1943 में मुझे ऑरिगन राज्य के पोर्टलैंड शहर में पायनियर सेवा करने की ज़िम्मेदारी दी गयी। उन दिनों हम घर-मालिक को खुशखबरी सुनाने के लिए ग्रामोफोन का इस्तेमाल किया करते थे। और फिर हम उन्हें बाइबल साहित्य पेश करते थे। उस पूरे साल मैं मिशनरी सेवा के बारे में सोचती रही।

सन्‌ 1944 में मुझे और मेरी प्यारी दोस्त एवलिन ट्रेबर्ट को गिलियड स्कूल में हाज़िर होने का न्यौता मिला। मैं बहुत-बहुत खुश थी! पाँच महीनों तक हमारे शिक्षकों ने हमें सिखाया कि हम बाइबल का अध्ययन कैसे कर सकते हैं, जिससे कि हमें अध्ययन करने में मज़ा आए। हमारे शिक्षकों की नम्रता हमें भा गयी। जैसे, कभी-कभी हमारे शिक्षक वेटर का काम करते थे और हमें खाना परोसते थे। हम 22 जनवरी, 1945 को गिलियड स्कूल से ग्रैजुएट हुए।

मेरी मिशनरी सेवा

जून 1946 में, मैं और एवलिन, लीओ और एस्टर महैन के साथ सांता एना, एल साल्वाडर पहुँचे। वहाँ खेत “कटाई के लिए पक” चुके थे। (यूह. 4:35) हमारे आने के कुछ महीनों बाद, सांता एना में हमारा पहला सर्किट सम्मेलन हुआ। हमने लोगों को इसमें आने का न्यौता दिया। जब इस सम्मेलन में लगभग 500 लोग हाज़िर हुए, तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हमारे प्रचार काम की वजह से पादरी गुस्से से भर गए थे और एक हफ्ते बाद उन्होंने भीड़ के साथ हमारे मिशनरी घर पर हमला कर दिया, जिसके बारे में इस कहानी की शुरूआत में बताया गया था। उन्होंने हमें डराने की कोशिश की और वे चाहते थे कि हम यहाँ से चले जाएँ। लेकिन इस घटना के बाद हमने यहाँ रहने और लोगों की मदद करने का अपना इरादा और भी पक्का कर लिया। पादरियों ने लोगों को खबरदार किया कि वे बाइबल न पढ़ें और ज़्यादातर लोगों के पास बाइबल खरीदने के पैसे भी नहीं थे। इसके बावजूद, बहुत-से लोग सच्चाई सीखना चाहते थे। वे बहुत शुक्रगुज़ार थे कि हम स्पैनिश भाषा सीख रहे थे, ताकि हम उन्हें यहोवा के और धरती को फिरदौस बनाने के उसके वादे के बारे में सिखा सकें।

मेरी गिलियड क्लास से हम पाँच लोग, जिन्हें एल साल्वाडर भेजा गया था। बायीं से दायीं तरफ: एवलिन ट्रेबर्ट, मिल्ली ब्रैझर, एस्टर महैन, मैं और लीओ महैन

शुरू-शुरू में मैंने जिन लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किया, उनमें से एक थी, रोसा आसेनस्यो। वह एक ऐसे आदमी के साथ रहती थी, जिसके साथ उसकी शादी नहीं हुई थी। लेकिन बाइबल का अध्ययन शुरू करने के बाद, वह उस आदमी से अलग हो गयी। फिर वह भी बाइबल का अध्ययन करने लगा। उन्होंने शादी कर ली, बपतिस्मा लिया और दोनों जोशीले साक्षी बन गए। रोसा आसेनस्यो, सांता एना की रहनेवाली पहली पायनियर थी। b

रोसा की अपनी एक छोटी-सी किराने की दुकान थी। हर बार जब वह प्रचार में जाती थी, तो वह अपनी दुकान बंद कर देती थी और भरोसा रखती थी कि यहोवा उसकी ज़रूरतों का खयाल रखेगा। जब कुछ घंटों बाद वह अपनी दुकान फिर से खोलती, तो बहुत-से ग्राहक उसकी दुकान से सामान खरीदने आते। वह यह देख पायी कि यहोवा उसकी परवाह कर रहा था, ठीक जैसे मत्ती 6:33 में वादा किया गया है। रोसा मरते दम तक यहोवा की वफादार रही।

हम 6 मिशनरियों ने एक जाने-माने व्यापारी से किराए पर एक घर लिया था। एक दिन एक पादरी हमारे मकान मालिक से मिला और उसे धमकी दी कि अगर वह हमें अपना घर किराए पर देना जारी रखेगा, तो उसे और उसकी पत्नी को चर्च से बेदखल कर दिया जाएगा। वह मकान मालिक पादरी से डरा नहीं और उसने पादरी से साफ कह दिया कि अगर उसे चर्च से निकाल भी दिया जाए, तो उसे इसकी कोई परवाह नहीं। उसे पहले से ही पादरियों की कुछ हरकतों से घिन आती थी। उसने हमें यकीन दिलाया कि हम जब तक चाहें उसके घर में रह सकते हैं।

एक इज़्ज़तदार नागरिक साक्षी बन जाता है

1955 में बनाया गया शाखा दफ्तर

राजधानी सेन साल्वाडर में, एक और मिशनरी ने बॉल्टासर पेर्ला नाम के इंजीनियर की पत्नी के साथ बाइबल का अध्ययन किया। बॉल्टासर का परमेश्‍वर पर से विश्‍वास उठ गया था, क्योंकि उसने देखा था कि बहुत-से धार्मिक गुरु कपटी हैं। लेकिन वह आदमी दिल का बहुत अच्छा था। हालाँकि वह उस वक्‍त एक साक्षी नहीं था, लेकिन उसने कहा कि वह एल साल्वाडर में शाखा दफ्तर का नक्शा तैयार करने और उसे बनाने में मदद देना चाहता है, वह भी मुफ्त में!

शाखा दफ्तर के निर्माण के दौरान, बॉल्टासर ने कई साक्षियों के साथ काम किया और उसे यकीन हो गया कि उसे सच्चाई मिल गयी है। उसने 22 जुलाई, 1955 को बपतिस्मा ले लिया और कुछ ही समय बाद उसकी पत्नी पाउलीना ने भी बपतिस्मा ले लिया। उनके दोनों बच्चे वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। उनका बेटा, बॉल्टासर जूनियर, पिछले 49 सालों से ब्रुकलिन बेथेल में सेवा कर रहा है। वहाँ वह दुनिया-भर में हो रहे प्रचार काम में सहयोग दे रहा है और अब वह अमरीका की शाखा-समिति में सेवा कर रहा है। c

जब सेन साल्वाडर में अधिवेशन होने शुरू हुए, तो भाई पेर्ला ने एक बड़ा जिमखाना दिलवाने में हमारी मदद की, ताकि हम वहाँ इकट्ठा हो सकें। जब हम पहली बार वहाँ इकट्ठा हुए, तो बहुत कम लोग आए। लेकिन हर साल लोगों की गिनती बढ़ती गयी और जल्द ही जिमखाने की सीटें कम पड़ने लगीं। हम महसूस कर सकते थे कि यहोवा हमारी मेहनत पर आशीष दे रहा है। इन अधिवेशनों में, मैं उन लोगों को देख पाती थी, जिनके साथ मैंने अध्ययन किया था। और जब मेरे बाइबल विद्यार्थियों के विद्यार्थियों ने बपतिस्मा लिया, तो मुझे बहुत-बहुत खुशी हुई! मुझे ऐसा लगा जैसे ये नए लोग मेरे नाती-पोते हों।

एक अधिवेशन में भाई एफ. डब्ल्यू. फ्रांज़ मिशनरियों से बात करते हुए

एक सम्मेलन में एक भाई मेरे पास आया और उसने कहा कि वह मुझसे माफी माँगना चाहता है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कह रहा है। मैं उसे पहचान नहीं पायी। उसने कहा, “मैं उन लड़कों में से एक हूँ, जिन्होंने सांता एना में आप पर पत्थर फेंके थे।” यह देखकर मेरा दिल खुशी से भर गया कि अब वह लड़का मेरे साथ यहोवा की सेवा कर रहा है! उस बातचीत ने मुझे एहसास दिलाया कि पूरे समय की सेवा करने से ही ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा संतुष्टि मिल सकती है।

एल साल्वाडर में पहला सर्किट सम्मेलन जिसमें हम हाज़िर हुए थे

संतुष्टि देनेवाले चुनाव

मैंने करीब 29 साल तक एल साल्वाडर में मिशनरी काम जारी रखा। मैंने सांता एना, सोनसोनेट, सांता टेक्ला और आखिर में सेन साल्वाडर में सेवा की। उन सालों के दौरान, मेरे माता-पिता की उम्र ढलती चली गयी और फिर एक समय ऐसा आया जब उन्हें मेरी मदद की ज़रूरत थी। इसलिए बहुत प्रार्थना करने के बाद, मैंने मिशनरी सेवा छोड़ने का फैसला किया और 1975 में मैं स्पोकैन लौट गयी।

सन्‌ 1979 में मेरे पिताजी की मौत हो गयी। और मैंने अगले 8 सालों तक अपनी माँ की देखभाल की। वह मेरी मदद के बिना ज़्यादा कुछ नहीं कर पाती थीं, क्योंकि वह बहुत कमज़ोर थीं। वह 94 साल की उम्र में गुज़र गयीं। वह समय मेरे लिए बहुत मुश्‍किल था। जिस तनाव और भावनाओं से मैं गुज़र रही थी, उसने मुझे पूरी तरह पस्त कर दिया था। मुझे शिंगल्स नाम की बीमारी हो गयी, जो बहुत दर्दनाक थी। लेकिन मैंने यहोवा की प्यार-भरी परवाह को महसूस किया। उसने मेरी प्रार्थनाओं का जवाब दिया और उस मुश्‍किल समय में धीरज धरने में मेरी मदद की। यहोवा ने मेरे बुढ़ापे में भी मुझे सँभाले रखने का अपना वादा निभाया है।—यशा. 46:4.

सन्‌ 1990 में, मैं वॉशिंगटन के ओमाक शहर में जाकर बस गयी। वहाँ मैं स्पैनिश भाषा बोलनेवाले इलाके में प्रचार कर पायी और मुझे फिर से लगने लगा कि मैं यहोवा की सेवा में कुछ कर पा रही हूँ। मेरे कई बाइबल विद्यार्थियों ने बपतिस्मा लिया। कुछ समय बाद, मैं ओमाक में अपने घर की देख-रेख नहीं कर पा रही थी। इसलिए नवंबर 2007 में, मैं वॉशिंगटन में ही पास के शेलैन शहर में एक अपार्टमेंट में रहने आ गयी। यहाँ की स्पैनिश मंडली मेरा बहुत ध्यान रखती है और इसके लिए मैं उनकी शुक्रगुज़ार हूँ। यहाँ पर सिर्फ मैं ही एक बुज़ुर्ग साक्षी हूँ, इसलिए वे मुझसे अपनी दादी-नानी की तरह प्यार करते हैं।

मैंने शादी न करने का चुनाव किया, ताकि मैं “बिना ध्यान भटकाए” ज़्यादा अच्छी तरह यहोवा की सेवा कर सकूँ। (1 कुरिं. 7:34, 35) मैंने खुद को समझाया कि इस जीवन में मैं सब कुछ नहीं पा सकती। इसलिए मैंने फैसला किया है कि मैं सबसे ज़्यादा ज़रूरी बात पर ध्यान दूँगी और वह है, पूरे दिल से यहोवा की सेवा करना। मैंने कई लोगों को सच्चाई सीखने में मदद दी है और वे मेरे लिए मेरे अपने बच्चों जैसे हैं। और नयी दुनिया में मेरे पास अपनी पसंद की सभी चीज़ें करने के लिए वक्‍त ही वक्‍त होगा। मेरी सबसे पसंदीदा आयत है भजन 145:16, जिसमें यहोवा वादा करता है कि वह “प्रत्येक प्राणी की इच्छा को सन्तुष्ट” करेगा। (अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन)

पायनियर सेवा मुझे जवान महसूस कराती है

अब मैं 91 साल की हूँ और मेरी सेहत अब भी काफी हद तक अच्छी है, इसलिए मेरी पायनियर सेवा जारी है। पायनियर सेवा मुझे जवान महसूस कराती है और मुझे ज़िंदगी में एक मकसद देती है। जब मैं पहली बार एल साल्वाडर आयी थी, तब यहाँ प्रचार काम बस शुरू ही हुआ था। लेकिन आज एल साल्वाडर में 39,000 से भी ज़्यादा प्रचारक हैं। मैं जानती हूँ कि शैतान हमारा काम रोक नहीं सकता, भले ही वह ऐसा करने की कितनी भी कोशिश क्यों न कर ले। प्रचारकों की बढ़ोतरी देखकर वाकई मेरा विश्‍वास मज़बूत होता है। मुझे कोई शक नहीं है कि यहोवा की पवित्र शक्‍ति उसके लोगों की मदद कर रही है।

a 1981 इयरबुक ऑफ जेहोवाज़ विटनेसेज़ के पेज 45-46 देखिए।

b 1981 इयरबुक, पेज 41-42.

c 1981 इयरबुक, पेज 66-67, 74-75.