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“बच्चों के मुँह से” हौसला-अफज़ाई

“बच्चों के मुँह से” हौसला-अफज़ाई

दिसम्बर 2009 में रूस के सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसला सुनाया, जिस वजह से टागनरोग शहर में यहोवा के साक्षियों के धार्मिक संगठन की कानूनी मान्यता रद्द कर दी गयी। साथ ही उनका राज-घर ज़ब्त कर लिया गया। उस फैसले में यह भी ऐलान किया गया कि हमारे 34 ऐसे साहित्य हैं जिनसे जनता को खतरा है। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल दहला देनेवाला जो फैसला सुनाया, उसे यहोवा के साक्षियों की वेब साइट पर डाल दिया गया। साथ ही, उन साक्षियों और छोटे बच्चों की फोटो भी डाली गयीं जिन पर इसका असर हुआ था।

कुछ महीने बाद, रूस में यहोवा के साक्षियों के प्रशासनिक केंद्र को एक बक्स और चिट्ठी मिली। यह बक्स और चिट्ठी ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड में रहनेवाले, एक साक्षी परिवार से आयी थी, जिन्होंने अदालत के उस फैसले की रिपोर्ट देखी थी। उन्होंने लिखा, “प्यारे भाइयो, रूस में हमारे दोस्तों ने जिस तरह आज़माइशों का सामना किया और जो विश्‍वास दिखाया, वह हमारे बच्चों कोडी और लेरीसा के दिल को छू गया। उन्होंने कुछ कार्ड और चिट्ठियाँ लिखी हैं और हमने तोहफों का एक छोटा-सा पैकेट तैयार किया है। ये हम टागनरोग के बच्चों के लिए भेजना चाहते हैं, यह जताने के लिए कि उनसे काफी दूर ऐसे और भी बच्चे रहते हैं, जो वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं और जिन्हें उन बच्चों की फिक्र है। वे उन सबके लिए ढेर-सारा प्यार भेज रहे हैं।”

जब टागनरोग के बच्चों को तोहफे मिले, तो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के उस परिवार का शुक्रिया अदा करने के लिए उन्हें कुछ खत लिखे और कुछ तसवीरें बनायीं। “बच्चों के मुँह से” निकले हौसला बढ़ानेवाले शब्द पढ़कर, रूस के शाखा दफ्तर में काम कर रहे एक भाई को बहुत अच्छा लगा। उसने कोडी और लेरीसा को लिखा, “आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उन बच्चों और बड़ों को कितना दुख होगा, जिन्हें ऐसे काम के लिए सज़ा दी जाए, जो उन्होंने किया ही नहीं। उसी तरह, टागनरोग के हमारे भाई-बहनों ने कुछ भी गलत नहीं किया, फिर भी उनका राज-घर ज़ब्त कर लिया गया। सोचिए, उन पर क्या बीती होगी! लेकिन यह जानकर उनका कितना हौसला बढ़ेगा कि दुनिया की दूसरी छोर पर बसे लोग उनकी फिक्र करते हैं। आपके प्यार और दरियादिली के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!”—भज. 8:2.

वाकई, हम पूरी दुनिया में फैले भाईचारे का हिस्सा हैं। हमारे दिलों में एक-दूसरे के लिए जो प्यार है उसकी मदद से हम ज़िंदगी की आज़माइशों और दुख-तकलीफों का सामना कर पाते हैं। कोर्ट-कचहरी यह दावा करती हैं कि यहोवा के साक्षियों के साहित्य दूसरों के खिलाफ नफरत भड़काते हैं। लेकिन सच तो यह है कि हमारे बच्चे दूसरों से सच्चा प्यार करते हैं, उन्हें दूसरों की सलामती की फिक्र है। उनके लिए किसी भी देश या जाति की सरहद मायने नहीं रखती। वे ज़ाहिर करते हैं कि यीशु के ये शब्द कितने सच हैं, “अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूह. 13:35.