इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

पाठकों के प्रश्‍न

पाठकों के प्रश्‍न

पाठकों के प्रश्‍न

अगर कोई बच्चा माँ के गर्भ में ही मर जाता है, तो क्या उसके पुनरुत्थान की कोई आशा है?

जब कोई बच्चा इस दुनिया में आने से पहले ही मर जाता है, तो माँ-बाप के दिल पर जो बीतती है, उसका दर्द शायद वे लोग न समझ पाएँ जो कभी इस दुख से नहीं गुज़रे। कुछ माँ-बाप को अपने बच्चे के खोने का गम लंबे समय तक सालता रहता है। जैसा कि एक माँ के अनुभव से पता चलता है, जिसका पाँच बार गर्भ गिर गया। आगे चलकर उसने दो स्वस्थ बेटों को जन्म दिया जिससे उसकी ज़िंदगी खुशियों से भर गयी। लेकिन फिर भी वह अपने पाँच बच्चों को खोने का गम नहीं भुला पायी। अपनी ज़िंदगी के आखिरी वक्‍त तक वह याद करती रही कि अगर मेरे बच्चे ज़िंदा होते, तो अभी कितने बड़े होते। अब सवाल यह है कि जिन मसीहियों ने अपने बच्चों को इस तरह खोया है, क्या वे उनके पुनरुत्थान की आशा रख सकते हैं?

इस सवाल का सीधा-सीधा जवाब है कि हमें नहीं मालूम। बाइबल खुलकर यह नहीं बताती कि अगर एक स्त्री का गर्भ गिर जाए या उसका बच्चा मरा हुआ पैदा हो, तो उस बच्चे का पुनरुत्थान होगा या नहीं। लेकिन परमेश्‍वर के वचन में कुछ सिद्धांत ज़रूर दिए गए हैं, जो इस मामले पर रौशनी डालते हैं और जिनसे कुछ हद तक माँ-बाप को दिलासा मिल सकता है।

आइए इस सिलसिले में दो सवालों पर गौर करें। पहला, यहोवा की नज़र में एक इंसान के जीवन की शुरूआत कब होती है—जब वह अपनी माँ के गर्भ में पड़ता है तब या जब वह पैदा होता है तब? दूसरा, यहोवा एक अजन्मे बच्चे को किस नज़र से देखता है—एक व्यक्‍ति के रूप में या महज़ एक स्त्री के गर्भ में बढ़ रही कोशिकाओं और ऊतकों के समूह के रूप में? बाइबल में दिए सिद्धांत इन दोनों सवालों के साफ-साफ जवाब देते हैं।

इसराएलियों को दिया कानून ज़ाहिर करता है कि एक इंसान के जीवन की शुरूआत उसके पैदा होने पर नहीं, बल्कि उससे बहुत पहले ही हो जाती है। वह कैसे? उसमें बताया गया था कि अगर एक व्यक्‍ति की वजह से गर्भ में पल रहे बच्चे की जान चली जाती है, तो उस व्यक्‍ति को मौत की सज़ा दी जानी चाहिए। ज़रा इस कानून पर गौर कीजिए: “प्राण के बदले प्राण।” * (निर्ग. 21:22, 23, NHT) इस आधार पर कहा जा सकता है कि एक अजन्मे बच्चे में भी ज़िंदगी है, वह भी एक जीवित इंसान है। इसी बात को मन में रखकर लाखों सच्चे मसीही गर्भपात नहीं करवाते क्योंकि वे जानते हैं कि यह परमेश्‍वर की नज़र में एक गंभीर पाप है।

यह सच है कि एक अजन्मे बच्चे में जीवन होता है, लेकिन यहोवा की नज़र में उसके जीवन का कितना मोल है? जैसा कि हमने ऊपर देखा, कानून की यह माँग थी कि जो व्यक्‍ति किसी अजन्मे बच्चे की मौत का ज़िम्मेदार होता, उसे बख्शा नहीं जाता था। उसे मार डाला जाता था। इससे साफ ज़ाहिर है कि परमेश्‍वर की नज़र में एक अजन्मे बच्चे के जीवन का बड़ा मोल है। इसके अलावा, बाइबल की और भी बहुत-सी आयतें बताती हैं कि यहोवा एक अजन्मे बच्चे को एक व्यक्‍ति के रूप में देखता है जिसका एक अस्तित्त्व होता है। मिसाल के लिए, राजा दाविद ने प्रेरित होकर यहोवा के बारे में कहा: “तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा। . . . तेरी आंखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।”—भज. 139:13-16; अय्यू. 31:14, 15.

यहोवा यह भी देख सकता है कि एक अजन्मा बच्चा बड़ा होकर कैसे गुण दिखाएगा और कैसा इंसान बनेगा। इसे समझने के लिए रिबका के गर्भ में पल रहे जुड़वा बच्चों की मिसाल पर ध्यान दीजिए। जब वे अपनी माँ की कोख में आपस में लड़ रहे थे, तो यहोवा ने उनके बारे में एक भविष्यवाणी की। इससे पता चलता है कि यहोवा पहले से ही देख सकता था कि वे बच्चे बड़े होने पर कैसे गुण दिखाएँगे और उसका आगे चलकर बड़े पैमाने पर कैसा असर होगा।—उत्प. 25:22, 23; रोमि. 9:10-13.

यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का किस्सा भी बहुत दिलचस्प है। खुशखबरी की किताब बताती है: “जैसे ही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, उसके गर्भ में शिशु उछल पड़ा। और इलीशिबा पवित्र शक्‍ति से भर गयी।” (लूका 1:41) इस आयत में वैद्य लूका ने बच्चे के लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल किया, उसका मतलब एक भ्रूण या एक नवजात शिशु हो सकता है। उसने चरनी में पड़े नन्हे यीशु के लिए भी इसी यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया।—लूका 2:12, 16; 18:15.

इन बातों और आयतों पर गौर करने के बाद क्या ऐसा लगता है कि बाइबल, गर्भ में पल रहे बच्चे और नवजात शिशु के बीच कोई फर्क बताती है? नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं लगता। और बाइबल की यह बात विज्ञान की खोजों से भी पुख्ता हुई है। मिसाल के लिए, खोजकर्ताओं ने पता लगाया है कि जब बच्चा माँ के गर्भ में होता है, तभी से वह महसूस कर पाता है कि बाहर क्या हो रहा है और जवाब में हिलता-डुलता है। यही वजह है कि एक माँ और उसके अंदर बढ़ रहे बच्चे के बीच एक मज़बूत बंधन बन जाता है।

एक बच्चे को माँ के गर्भ में पूरी तरह बढ़ने में नौ महीने लगते हैं, लेकिन कभी एक बच्चा समय से पहले पैदा हो जाता है, तो दूसरा समय पूरा होने पर। मान लीजिए, एक बच्चा नौ महीने पूरे होने से पहले ही पैदा हो जाता है और कुछ ही दिन ज़िंदा रहता है। जबकि दूसरा बच्चा पूरे नौ महीने तक गर्भ में बढ़ता है, मगर पैदा होने से पहले मर जाता है। ऐसे में क्या पहले बच्चे की माँ उसके पुनरुत्थान की आशा रख सकती है, क्योंकि वह कुछ दिन जीवित रहा? लेकिन दूसरी माँ पुनरुत्थान की आशा नहीं रख सकती, क्योंकि उसका बच्चा गर्भ में ही मर गया था?

जैसा कि अभी तक हमने देखा, बाइबल साफ सिखाती है कि गर्भधारण के समय से ही एक नयी ज़िंदगी की शुरूआत होती है। तभी से यहोवा की नज़र में उस बच्चे का अस्तित्त्व होता है और वह उसके जीवन को अनमोल समझता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, शायद कुछ लोगों को यह बात बाइबल की सच्चाई के खिलाफ लगे कि जो बच्चा अपनी माँ के गर्भ में ही मर जाता है, उसके पुनरुत्थान की कोई आशा नहीं। उन्हें शायद यह भी लगे कि ऐसा कहने से तो हम गर्भपात न करवाने के जो कारण बताते हैं वे सब बेमाने हो जाएँगे।

बीते सालों में इस पत्रिका में कुछ सवाल पूछे गए थे, जिनके जवाब से लगा था कि शायद गर्भ में मरनेवाले बच्चों का पुनरुत्थान नहीं होगा। जैसे उसमें पूछा गया था कि क्या फिरदौस में परमेश्‍वर एक स्त्री के गर्भ में दोबारा वह भ्रूण डालेगा जो पूरी तरह विकसित नहीं हुआ था? शासी निकाय ने इस विषय पर गहरा अध्ययन, मनन और प्रार्थना किया है, जिससे वह इस नतीजे पर पहुँचा है कि एक अजन्मे बच्चे के पुनरुत्थान में ये बातें कोई खास मायने नहीं रखतीं। यीशु ने कहा था: “परमेश्‍वर के लिए सबकुछ मुमकिन है।” (मर. 10:27) इस बात का सबूत हमें यीशु के जीवन से मिलता है। परमेश्‍वर ने उसका जीवन स्वर्ग से एक कुँवारी के गर्भ में डाला था। इंसानों की नज़र से देखा जाए, तो यह नामुमकिन है, लेकिन परमेश्‍वर के लिए यह नामुमकिन नहीं था।

तो फिर, क्या बाइबल यह सिखाती है कि जो बच्चे पैदा होने से पहले मर गए, हम उनके पुनरुत्थान की आशा रख सकते हैं? हम फिर से ज़ोर देकर कहना चाहेंगे कि बाइबल इस बारे में सीधे-सीधे कुछ नहीं बताती। इसलिए कोई भी यह दावे के साथ नहीं कह सकता कि अजन्मे बच्चों का पुनरुत्थान ज़रूर होगा। यह ऐसा विषय है, जिस पर बात करें तो सवालों का अंत नहीं होगा। इसलिए हमारे लिए यही अच्छा है कि हम किसी तरह की अटकलें न लगाएँ। हमें बस इतना मालूम है कि यह मामला यहोवा परमेश्‍वर के हाथों में है, जो दयालु और अति करुणामय परमेश्‍वर है। (भज. 86:15) इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा सच्चे दिल से चाहता है कि वह पुनरुत्थान के ज़रिए उस नुकसान की भरपाई करे, जो मौत की वजह से होती है। (अय्यू. 14:14, 15) हम यह भरोसा रख सकते हैं कि वह हमेशा वही करता है जो सही है। और जब वह अपने बेटे को ‘शैतान के कामों को नष्ट करने’ का हुक्म देगा, तब वह हमारे उन सभी ज़ख्मों को भरेगा, जो इस दुष्ट संसार ने हमें दिए हैं।—1 यूह. 3:8.

[फुटनोट]

^ कभी-कभी इस आयत का अनुवाद इस तरह किया जाता है, जिससे लगता है कि एक व्यक्‍ति को मौत की सज़ा तभी मिलती थी, अगर उसकी वजह से गर्भवती स्त्री की जान चली जाती। लेकिन इस आयत के मूल इब्रानी पाठ से पता चलता है कि गर्भवती स्त्री या उसके गर्भ में पल रहे बच्चे, अगर किसी एक की भी जान चली जाती तो चोट पहुँचानेवाले व्यक्‍ति को मौत की सज़ा दी जाती।

[पेज 13 पर तसवीर]

यहोवा हमारे सारे ज़ख्मों को भर देगा