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मैं अपने मम्मी-पापा को ज़्यादा अच्छी तरह कैसे जान सकता हूँ?

मैं अपने मम्मी-पापा को ज़्यादा अच्छी तरह कैसे जान सकता हूँ?

नौजवान पूछते हैं

मैं अपने मम्मी-पापा को ज़्यादा अच्छी तरह कैसे जान सकता हूँ?

जेसिका और उसके मम्मी-पापा, कुछ दोस्तों के साथ डिनर कर रहे हैं। तभी अचानक मम्मी की सहेली बोल पड़ती हैं, “तू यकीन नहीं करेगी! कुछ दिन पहले मुझे रिचर्ड मिला था, वही जिससे तू हाइ-स्कूल के दिनों में मिला करती थी।”

जेसिका को अपने कानों पर यकीन नहीं होता। उसके हाथ से कांटा छूटकर नीचे गिर जाता है। उसने रिचर्ड का किस्सा पहले कभी नहीं सुना था!

“सच ममा, पापा से पहले आप किसी और से डेट करती थीं? मुझे तो मालूम ही नहीं था!”

जेसिका की तरह क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है? क्या आपको भी मम्मी-पापा के बारे में कुछ ऐसा पता चला जिससे आप हैरान रह गए? अगर हाँ, तो शायद आप सोच में पड़ गए कि मम्मी-पापा के बारे में आप और क्या-क्या नहीं जानते!

ऐसा क्यों होता है कि मम्मी-पापा के बारे में कुछ बातें आप नहीं जानते? उनकी ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा अच्छी तरह जानने के क्या फायदे हो सकते हैं? और आप उन्हें ज़्यादा अच्छी तरह कैसे जान सकते हैं?

जानने के लिए बहुत कुछ

ऐसा क्यों है कि मम्मी-पापा के बारे में कुछ बातें आप नहीं जानते? कभी-कभी दूरी की वजह से। जय * जो अब 22 साल का है, कहता है: “जब मैं आठ साल का था, मेरे मम्मी-पापा का तलाक हो गया। उसके बाद, मैं पापा से साल में दो-तीन बार ही मिल पाता था। बहुत-सी बातें ऐसी हैं जो मैं उनके बारे में जानना चाहता था, मगर क्या करता।”

यह भी हो सकता है कि आप बरसों से अपने मम्मी-पापा के साथ रह रहे हैं, मगर उन्होंने अपने बारे में आपको शायद सबकुछ नहीं बताया। क्यों? जैसा हम सबके साथ होता है, मम्मी-पापा भी कभी-कभी अपनी पिछली गलतियों के लिए शर्मिंदा महसूस करते हैं। (रोमियों 3:23) और उन्हें शायद इस बात की चिंता सताती हो कि अगर वे अपनी गलतियों के बारे में आपको बताएँगे, तो आपकी नज़र में उनकी इज़्ज़त कम हो जाएगी या आप ढीठ हो जाएँगे और अपनी मन-मरज़ी करने लगेंगे।

लेकिन, अकसर ऐसा होता है कि आपके मम्मी-पापा ने आपको कोई बात सिर्फ इसलिए नहीं बतायी क्योंकि इस बारे में कभी बात ही नहीं उठी। किरन नाम का एक नौजवान कहता है, “सोचकर बड़ा ताज्जुब होता है कि आप बरसों मम्मी-पापा के साथ रहते हैं, फिर भी आप उनके बारे में सबकुछ नहीं जान पाते!” क्यों न आप अपनी तरफ से पहल करें और खुद मम्मी-पापा से उनके बारे में पूछें? इसके आपको चार फायदे हो सकते हैं।

फायदा नं. 1: मम्मी-पापा को यह बात अच्छी लगेगी कि आप उनके बारे में जानना चाहते हैं। बेशक, उन्हें इस बात से बेहद खुशी होगी कि आप उनकी परवाह करते हैं और इसलिए उनकी ज़िंदगी के बारे में जानना चाहते हैं। और यह भी हो सकता है कि जब आप अपनी भावनाओं के बारे में उन्हें बताते हैं तो वे आपके लिए और आपकी भावनाओं के लिए हमदर्दी दिखाएँ!—मत्ती 7:12.

फायदा नं. 2: आप मम्मी-पापा के सोचने के तरीके को ज़्यादा अच्छी तरह समझ पाएँगे। मिसाल के लिए, क्या आपके मम्मी-पापा ज़िंदगी में बहुत तंगी झेल चुके हैं? इससे आप समझ पाएँगे कि वे क्यों आज इतनी किफायत करते हैं, हालाँकि आपको यह ज़रूरी नहीं लगता।

अपने मम्मी-पापा की सोच को इस तरह समझ पाना आपके फायदे के लिए हो सकता है। कौशिक नाम का एक नौजवान कहता है, “मम्मी-पापा क्या सोचते हैं यह जानने की वजह से, बोलने से पहले मैं सोचता हूँ कि मेरे शब्दों का उन पर कैसा असर होगा।—नीतिवचन 15:23.

फायदा नं. 3: आप शायद अपनी ज़िंदगी के बारे में उनसे बेहिचक बात कर पाएँगे। अठारह साल की बरखा कहती है: “मुझे अपनी पसंद के लड़के के बारे में डैडी को बताते हुए बहुत झिझक महसूस हो रही थी। मगर जब मैंने अपनी बात कही, तो डैडी ने मुझे बताया कि पहली बार कब उन्होंने किसी को पसंद किया था और वह एहसास कितना अनोखा था। उन्होंने मुझे उस दिन के बारे में भी बताया जब उन्हें उस लड़की से नाता तोड़ना पड़ा जिसका उन्हें बहुत दुख हुआ। मुझे हिम्मत मिली कि मैं अपने हालात के बारे में उन्हें और बताऊँ।”

फायदा नं. 4: आप शायद कुछ सीख सकें। मम्मी-पापा की ज़िंदगी का तजुरबा आपको अपनी परेशानियों और चुनौतियों का सामना करने में मदद दे सकता है। सोलह साल का जतिन कहता है: “मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे मम्मी-पापा इतने बड़े परिवार की देखभाल कैसे कर पाते हैं, जिसमें हर किसी की ज़रूरतें अलग-अलग होती हैं। हर किसी के खाने-पहनने का, दुख-सुख का ध्यान रखना और परमेश्‍वर की सेवा में बढ़ने के लिए उनकी मदद करना। मैं उनके तजुरबे से कई ज़रूरी सबक सीख सकता हूँ।” बाइबल कहती है: “बुद्धि तो वृद्धों में और समझ लम्बी आयु वालों में पाई जाती है।”—अय्यूब 12:12, NHT.

पहला कदम आप उठाइए

अगर आप अपने मम्मी-पापा को और अच्छी तरह जानना चाहते हैं, तो आप यह कैसे कर सकते हैं? ये रहे कुछ सुझाव:

सही मौका चुनिए। ज़रूरी नहीं कि आप पहले से मौका तय करें। इसके बजाय, मम्मी-पापा से यूँ ही आम बातचीत करने की कोशिश कीजिए। कोई गेम खेलते वक्‍त, कोई काम साथ-साथ करते वक्‍त या उनके साथ पैदल चलते वक्‍त या लंबी ड्राइव के दौरान उनसे बात कीजिए। कौशिक, जिसका ज़िक्र हमने पहले भी किया है, कहता है: “जब हम गाड़ी में लंबे सफर पर निकलते हैं, तो मैं मम्मी-पापा से अच्छी बातचीत कर पाता हूँ। यह बात सही है कि अपने कानों में इयरफोन लगाकर म्यूज़िक सुनना या फिर सो जाना ज़्यादा आसान होता है, मगर मैंने देखा है कि बातचीत करने का हमेशा अच्छा नतीजा होता है!”

सवाल पूछिए। एक बात तो आपको माननी होगी: चाहे मौका सही भी हो, फिर भी यह नहीं हो सकता कि मम्मी अचानक आपको बताने लग जाए कि पहली बार कब उसके दिल में किसी के लिए प्यार जागा था, न ही पापा आपको छूटते बता देंगे कि पहली बार कब उन्होंने अपने पापा की गाड़ी ठोंक दी थी और पूरी तरह तोड़ दी थी। लेकिन अगर आप मम्मी-पापा से पूछें तो हो सकता है कि वे ऐसी बातों के बारे में आपको बताएँ!—आप क्या-क्या सवाल पूछ सकते हैं, इसके लिए पेज 12 पर बक्स देखिए।

फेर-बदल करने के लिए तैयार रहिए। अकसर ऐसा होता है कि एक सवाल का जवाब देते-देते कोई और कहानी या विषय पर बात होने लगती है। आप शायद मम्मी-पापा की बात काटकर उन्हें पहले विषय पर वापस लाना चाहें, मगर ऐसा करने की इच्छा को दबाइए! यह याद रखिए कि आपका लक्ष्य सिर्फ जानकारी लेना नहीं है। बल्कि आप अपने मम्मी-पापा के साथ और भी करीबी रिश्‍ता कायम करना चाहते हैं और इसका बेहतरीन तरीका यही है कि आप उन बातों के बारे में उनसे बात करें जो उनके लिए अहमियत रखती हैं।—फिलिप्पियों 2:4.

समझ से काम लीजिए। “मनुष्य के हृदय के उद्देश्‍य [“विचार,” NW] गहरे जल के समान हैं, परन्तु समझदार मनुष्य उसे खींच निकालता है।” (नीतिवचन 20:5, NHT) खासकर जब आप अपने मम्मी-पापा से ऐसे मामलों के बारे में पूछते हैं, जिन पर वे शायद बात करना पसंद न करें, तो आपको समझ से काम लेना होगा। जैसे, आप शायद जानना चाहें कि जब डैडी आपकी उम्र के थे तो उन्होंने क्या गलतियाँ कीं जिनकी वजह से उन्हें शर्मिंदा होना पड़ा। और अगर उन्हें दोबारा मौका दिया जाता तो वे क्या फैसला करते कि अपनी पिछली गलती न दोहराएँ। मगर ऐसे मसलों पर बात शुरू करने से पहले, आप कह सकते हैं, “अगर आप बुरा न मानें तो मैं पूछना चाहता हूँ . . .”

कुशलता से काम लीजिए। जब मम्मी-पापा अपने बारे में आपको बताते हैं, तब “सुनने में फुर्ती . . . बोलने में सब्र” दिखाइए। (याकूब 1:19) उन्होंने आपको जो बताया है, उसके लिए आप उनकी हँसी मत उड़ाइए, न ही उन्हें बेइज़्ज़त कीजिए। आपका यह कहना, “आपने ऐसा किया, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा!” या “ओ! तभी आप मेरे साथ इतनी सख्ती करते हैं!” उन्हें आगे कुछ बताने से रोक देगा। और अगर आप घर की बातें बाहर जाकर दूसरों को बताएँगे, तो ऐसे में भी मम्मी-पापा अपने दिल की बात आपको बताना नहीं चाहेंगे।

अभी देर नहीं हुई

ऊपर दिए गए सुझावों की मदद से आप अपने मम्मी-पापा के साथ रहते हुए उन्हें ज़्यादा अच्छी तरह जान पाएँगे। लेकिन अगर आप मम्मी-पापा से दूर रहते हैं, तो आप यह कैसे करेंगे? इन्हीं उसूलों की मदद से आप अपने मम्मी-पापा दोनों को, या फिर उनमें से किसी एक को करीब से जान सकते हैं। जय (जिसका ज़िक्र पहले किया गया है) ने अपने मामले में यह बात सही पायी है। अब वह अपने पैरों पर खड़ा है और कहता है: “मैं हाल ही में अपने डैड को और अच्छी तरह जान पाया हूँ और मुझे यह अच्छा लगता है।”

तो चाहे आप अपने मम्मी-पापा के साथ एक ही घर में रहते हों या आपने अपनी दुनिया अलग बसा ली हो, अपने मम्मी-पापा को करीब से जानिए। अभी देर नहीं हुई। इसके लिए क्यों न आप इस लेख में दिए सुझावों पर अमल करने की कोशिश करें? (g09 10)

“नौजवान पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं

[फुटनोट]

^ पैरा. 9 इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

इस बारे में सोचिए

◼ इस लेख में बताए किन विषयों पर आप अपने मम्मी-पापा से सवाल पूछना चाहेंगे?

◼ अपने मम्मी-पापा को अच्छी तरह जानने से, कैसे आप खुद को बेहतर समझ पाएँगे?

[पेज 12 पर बक्स/तसवीर]

अपने मम्मी-पापा से ये सवाल पूछिए:

शादी: आप और मम्मी (या डैडी) कैसे मिले? किस बात से आप एक-दूसरे के करीब आए? शादी के बाद आप कहाँ रहते थे?

बचपन: आप कहाँ पैदा हुए थे? बाकी भाई-बहनों के साथ क्या आपकी लड़ाई होती थी? आपके मम्मी-पापा क्या आपके साथ सख्ती करते थे या ढील देते थे?

पढ़ाई-लिखाई: स्कूल में आप किस सबजेक्ट में सबसे ज़्यादा नंबर लाते थे? किस सबजेक्ट में सबसे कम नंबर लाते थे? क्या आपका कोई मनपसंद टीचर था? वह टीचर आपको इतना अच्छा क्यों लगता था?

नौकरी-पेशा: आपकी पहली नौकरी कौन-सी थी? क्या वह काम आपको पसंद था? अगर आप अपनी पसंद का कोई काम चुनते, तो वह कौन-सा काम होता?

शौक: अगर दुनिया में किसी जगह जाने का आपको मौका मिलता, तो वह कौन-सी जगह होगी? आपकी किस हॉबी या हुनर को बढ़ाने में आप वक्‍त लगाना चाहते हैं?

परमेश्‍वर की सेवा: क्या आपकी परवरिश सच्चाई में हुई थी? अगर नहीं, तो किस बात से आपने बाइबल में दिलचस्पी लेनी शुरू की? बाइबल के उसूलों के मुताबिक ज़िंदगी में बदलाव करने में आपने किन चुनौतियों का सामना किया?

उसूल: आपके हिसाब से अच्छा दोस्त बनाने के लिए सबसे ज़रूरी क्या है? ज़िंदगी में सुख पाने के लिए सबसे ज़रूरी क्या है? शादी-शुदा ज़िंदगी में कामयाबी पाने के लिए सबसे ज़रूरी क्या है? आपको ज़िंदगी में जो सबसे अच्छी सलाह मिली थी, वह क्या है?

आज़माइए: अंदाज़ा लगाइए कि ऊपर बताए गए सवालों में से, कुछ सवालों के जवाब आपके मम्मी-पापा क्या देंगे। फिर, ये सवाल उनसे पूछिए और देखिए कि उनके जवाबों और आपने जो जवाब सोचे थे उनमें क्या फर्क है।

[पेज 12 पर बक्स]

माता-पिता के लिए एक पैगाम

आप अपने पति, बेटी और कुछ करीबी दोस्तों के साथ बैठकर खाना खा रही हैं। बातचीत के दौरान आपकी सहेली किसी शख्स की बात उठाती है, जिससे आप शादी से पहले मिला करती थीं। मगर आपने उससे मिलना छोड़ दिया और फिर आपकी शादी हो गयी। यह कहानी आपने अपनी बेटी को पहले कभी नहीं बतायी। अब आपकी बेटी उस बारे में ज़्यादा जानना चाहती है। आप क्या करेंगी?

आम तौर पर, अच्छा यही होगा कि आप बेटी के इन सवालों पर ध्यान दें और इनका जवाब देने की कोशिश करें। क्योंकि किसी भी मौके पर जब आपका बेटा या बेटी आपसे सवाल पूछते हैं और आपके जवाब सुनते हैं, तो वे आपके साथ बातचीत कर रहे हैं। क्या ज़्यादातर माता-पिता यही नहीं चाहते कि उनका बच्चा उनसे बात करे?

आपको अपने बेटे या बेटी को अपने बीते हुए कल के बारे में क्या कुछ बताना चाहिए? बेशक, आप उन्हें ऐसी बातें न बताना चाहें जिनसे आप उनके सामने शर्मिंदा महसूस करेंगे। फिर भी, जहाँ मुनासिब हो वहाँ बच्चों को अपनी कुछ गलतियाँ बताना और जिस संघर्ष से आप गुज़र चुके हैं यह बताना फायदेमंद हो सकता है। वह कैसे?

एक मिसाल पर गौर कीजिए। प्रेषित पौलुस ने एक बार अपने बारे में यह कबूल किया: “जब मैं अच्छा करना चाहता हूँ, तो अपने अंदर बुराई को ही पाता हूँ। . . . मैं कैसा लाचार इंसान हूँ!” (रोमियों 7:21-24) यहोवा परमेश्‍वर ने ये शब्द लिखने की प्रेरणा दी और बाइबल में इन्हें दर्ज़ करवाया और हमारे फायदे के लिए आज के दिन तक सुरक्षित रखवाया। (2 तीमुथियुस 3:16) और वाकई हमें फायदा हुआ है, क्योंकि हममें से ऐसा कौन है जिसने पौलुस की तरह महसूस न किया हो?

उसी तरह, जब बच्चे सुनेंगे कि आपने कहाँ अच्छे चुनाव किए और कहाँ गलतियाँ कीं, तो वे समझ पाएँगे कि आप कैसा महसूस करते हैं। यह सच है कि जब आप बच्चे थे, तब ज़माना अलग था। मगर, ज़माना बदला है पर इंसान का स्वभाव नहीं और न ही बाइबल के उसूल। (भजन 119:144) आप जब किशोर उम्र के अपने बच्चों को बताएँगे कि आपके सामने क्या चुनौतियाँ थीं और आप उनका सामना करने में कैसे कामयाब हुए, तो इस जानकारी से उन्हें उस वक्‍त मदद मिलेगी जब वे खुद अपनी समस्याएँ सुलझाने की कोशिश करेंगे। किरन नाम का नौजवान कहता है, “जब आपको पता लगता है कि जिन समस्याओं का आप सामना कर रहे हैं, उन्हीं का सामना आपके मम्मी-पापा भी कर चुके हैं, तो आपको यह एहसास होता है कि आपके मम्मी-पापा भी काफी हद तक आपके जैसे ही हैं। फिर जब अगली बार आपके सामने कोई समस्या खड़ी होती है, तो आपके मन में सवाल आता है कि क्या मम्मी-पापा के साथ भी यही हुआ था।”

एक सावधानी: ज़रूरी नहीं कि आप जो भी कहानी बताते हैं उसके आखिर में आप अपने बच्चे को कोई सीख दें। हो सकता है कि आपको यह चिंता सताए कि आपका किशोर बेटा या बेटी आपकी आपबीती सुनकर गलत नतीजे पर न पहुँचे या यह महसूस न करे कि अगर वह ऐसी गलतियाँ करेगा तो इसमें कोई बुराई नहीं है। मगर बच्चे को यह बताने के बजाय कि उसे आपकी बातों से क्या सीख लेनी चाहिए (“इसलिए तुम्हें कभी-भी . . . नहीं करना चाहिए”) चंद शब्दों में बताइए कि आप इस बारे में कैसा महसूस करते हैं। (“आज जब मैं सोचती हूँ, तो मेरा मन कहता है काश मैं ने यह काम नहीं किया होता क्योंकि . . . ”) ऐसा करने से आपका बेटा या बेटी, आपके तजुरबे से एक ज़रूरी सबक सीखेगा और उसे यह महसूस नहीं होगा कि आप उसे लेक्चर दे रहे हैं।—इफिसियों 6:4.

[पेज 13 पर बक्स]

“एक बार मैंने मम्मी से कहा कि मंडली के बच्चों के बजाय मुझे स्कूल के दोस्तों का साथ ज़्यादा अच्छा लगता है। अगले दिन, मुझे अपने डेस्क पर मम्मी का एक खत मिला। खत में मम्मी ने मुझे बताया कि उसे भी ऐसा महसूस होता था कि मंडली के भाई-बहनों में कोई उसका दोस्त नहीं है। उसने मुझे बाइबल में बताए उन लोगों की याद दिलायी जो तब भी परमेश्‍वर की सेवा करते रहे जब ऐसा कोई न था जो उनका साथी होता या उनकी हिम्मत बँधाता। मम्मी ने मुझे शाबाशी दी कि मैं अच्छे किस्म के दोस्त बनाने की कोशिश कर रही थी। मुझे यह जानकर ताज्जुब हुआ कि अकेली मैं ही नहीं थी जिसने ऐसी समस्या का सामना किया था। मेरी मम्मी ने भी इसका सामना किया था और यह जानकर मुझे इतनी खुशी हुई कि मेरे आंसू निकल पड़े। मम्मी ने मुझसे जो कुछ कहा था, उससे मेरा हौसला बढ़ा और जो सही है वह करने की हिम्मत मिली।”—जून्को, उम्र 17 साल, जापान।

[पेज 11 पर तसवीर]

अपने मम्मी-पापा से कहिए कि अपने पुराने फोटो या कुछ और चीज़ें आपको दिखाएँ। इनसे आप अकसर मज़ेदार बातचीत शुरू कर पाएँगे