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बर्फ एक सफेद कंबल

बर्फ एक सफेद कंबल

बर्फ एक सफेद कंबल

फिनलैंड में सजग होइए! लेखक द्वारा

उत्तरी ध्रुव प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ती है। वहाँ अगर एक इंसान काफी गर्म कपड़े और सही तरह के जूते न पहने, तो उसका हाल-बेहाल हो सकता है। यहाँ तक कि ठंड के मारे उसकी जान भी जा सकती है। मगर ताज्जुब की बात यह है कि इस प्रदेश में, साल का चाहे जो भी समय हो, अनगिनत जानवर और पंछी आराम से गुज़र-बसर करते हैं। भला वे वहाँ की कड़ी सर्दी में ज़िंदा कैसे रह पाते हैं? एक तो ठंडी के मौसम में जानवरों का शरीर और भी रोम से भर जाता है, साथ ही पंछियों के शरीर में ज़्यादा पंख निकल आते हैं। इस तरह, वे खुद को गर्म रख पाते हैं। इसके अलावा, बर्फ में गर्मी को बाहर न निकलने देने की जो कमाल की काबिलीयत होती है, उसका भी जीव-जंतु फायदा उठाते हैं।

बर्फ कई छोटे-छोटे मणिभों (क्रिस्टल्स्‌) से मिलकर बनी होती है और ये मणिभ सीधे-सीधे, बादलों में मौजूद भाप से बनते हैं। जब ज़मीन से दस इंच की ऊँचाई तक जमी बर्फ पिघलती है, तो पानी की ऊँचाई सिर्फ एक इंच ही रह जाती है। यह फर्क इसलिए होता है, क्योंकि बर्फ के मणिभों के बीच हवा भरी होती है। इस गज़ब की बनावट की वजह से ही, बर्फ धरती के ऊपर कंबल का काम करती है। यह वसंत के मौसम के आने तक, बीजों और पौधों को कड़कड़ाती सर्दी से बचाकर रखती है। और जब वसंत का मौसम आता है, तब इलाके में जमी बर्फ पिघलने लगती है। नतीजा, ज़मीन को पानी मिलता है और नदियाँ उफनने लगती हैं।

“कंबल” के नीचे की निराली दुनिया

बर्फ के नीचे सुरंगों के जाल में कई किस्म के पिद्दे और बालदार जानवर दौड़ा-दौड़ी करते हैं। किस लिए? रोज़मर्रा के कामों, खासकर खाने की जुगाड़ करने के लिए। इन जानवरों में से कुछ हैं: लेमिंग, वोल और श्रू। ये सभी जंतु छछूँदर परिवार के हैं, जो सिर्फ रात में ही अपना काम करते हैं और कीड़े-मकोड़े खाते हैं। मगर दूसरी तरफ, बर्फ के ऊपर चूहे बेरी, बादाम और नए पेड़ों की कोमल छाल की तलाश में इधर-उधर भागते हुए नज़र आते हैं।

आखिर ये छोटे-छोटे स्तनधारी जानवर अपने शरीर का तापमान सही कैसे बनाए रख पाते हैं? वे ऐसा अपने घने बालों की बदौलत कर पाते हैं। इसके अलावा, उनके शरीर में एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें उनका खाना फौरन हज़म हो जाता है और शरीर में गर्मी पैदा होती है। यह ऐसा है मानो उनके शरीर में भट्ठी हो। जैसे कि आप जानते हैं, भट्ठी में आग धधकाए रखने के लिए काफी इंधन की ज़रूरत पड़ती है। उसी तरह, इन जानवरों को अपने शरीर की गर्मी बनाए रखने के लिए काफी खाने की ज़रूरत होती है। मिसाल के लिए, श्रू हर दिन करीब अपने ही वज़न के बराबर कीड़े, इल्लियाँ और प्यूपा खाते हैं। और श्रू की ही सबसे छोटी जाति, पीग्मी श्रू अपने वज़न से भी ज़्यादा खाते हैं। इसलिए देखा जाए तो जब तक वे जागते हैं, तब तक खाने की खोज में ही लगे रहते हैं।

मगर ये स्तनधारी जानवर खुद दूसरे जंतुओं के पसंदीदा भोजन होते हैं। जैसे कि उल्लू के और वीज़ल (जो नेवला जैसा दिखता है) परिवार के दो जंतुओं, अरमाइन और लीस्ट वीज़ल के। वीज़ल पतले और फुर्तीले होते हैं, इसलिए वे बर्फ के अंदर बनी सुरंगों की भूलभुलैया में बड़ी आसानी से घुसकर छोटे-छोटे जानवरों का शिकार करते हैं। यहाँ तक कि वे खरगोश को भी धर दबोचते हैं, जो उनसे बड़ा होता है।

उल्लू भी अपने शिकार की ताक में रहते हैं। स्लेटी रंग के बड़े उल्लू के कान इतने तेज़ होते हैं कि वे भाँप लेते हैं कि बर्फ के नीचे वोल जंतु कहाँ है और किधर जा रहा है। मगर ऐसा तभी होता है, जब बर्फ की परत पतली होती है। जब एक उल्लू अपने शिकार पर निशाना साध लेता है, तब वह झपट्टा मारकर उसे अपने मज़बूत पंजों में जकड़ लेता है और उसे उड़ाकर दूर ले जाता है। लेकिन अगर बर्फ की परत मोटी हो, तो बहुत-से परभक्षी जंतुओं के भूखों मरने की नौबत आ सकती है। जबकि बर्फ के नीचे रहनेवाले जंतुओं की भरमार हो सकती है।

सर्दी के मौसम में जब खाने के लाले पड़ते हैं, तब कई जानवर अपने शरीर की चर्बी के बूते पर ज़िंदा रहते हैं, जिसे उन्होंने गर्मियों में जमा किया होता है। मगर फिर भी, जानवरों के खाने के लिए कुछ-न-कुछ ज़रूर होता है। मिसाल के लिए, अमरीकी हिरन (मूस्‌) पेड़ों की, खासकर चीड़ के पेड़ों की कोमल टहनियाँ खाते हैं। गिलहरियाँ अपनी अलग-अलग खोहों में छिपाए पौष्टिक बीज का लुत्फ उठाती हैं। और बड़े खरगोश (हेअर) नए पेड़ों की छाल, टहनियाँ और कोपलों को कुतर-कुतरकर खाते हैं। कुछ किस्म की चिड़ियाँ तो बर्फ में जमी बेरी और चीड़ की टहनियों को बड़े चाव से खाती हैं।

बर्फ में सीधे गोता मारना!

बर्फ में गर्मी को बाहर न निकलने देने की जो काबिलीयत होती है, उसका बहुत-से पक्षी भी फायदा उठाते हैं। वे दिन में आराम करने या रात को सोने के लिए, बर्फ के कंबल के नीचे दुबककर बैठते हैं। इनमें से कुछ बड़े पक्षी हैं: हेज़ल हेन, ब्लैक ग्राउस और टारमिगन; और छोटे पक्षी हैं: लिनेट, बुलफिंच और गौरैया। अगर बर्फ की परत मोटी और मुलायम हो, तो कुछ पक्षी बर्फ में सीधे गोता लगाते हैं, ठीक जैसे समुद्री पक्षी पानी में गोता लगाते हैं। इस कमाल के करतब की वजह से बर्फ पर उनके पैरों के कोई निशान नहीं बनते, जिसे परभक्षी जंतु देख या सूँघ सकें।

एक बार जब पक्षी बर्फ के नीचे चले जाते हैं, तो वे सीधाई में तीन फुट लंबी खोह बनाते हैं। इस खोह को फिनिश भाषा में क्येपी कहा जाता है। रात की सरसराती हवा से सतह की बर्फ एकदम समतल हो जाती है, जिससे इस बात का ज़रा भी इशारा नहीं मिलता कि बर्फ के नीचे भी कोई रहता है। फिर अगले दिन, जब लोग चलते-चलते पक्षियों की खोह के पास पहुँचते हैं, तो उनके पैरों की चरमराहट से ये पक्षी चौकन्‍ने हो जाते हैं। इसके बाद, वे जिस झटके के साथ बर्फ के अंदर से निकलते हैं और ज़ोर से अपने पंख फड़फड़ाकर उड़ते हैं, उससे ऐसा लगता है मानो कोई बम विस्फोट हुआ हो। इससे उन राहगीरों का दिल धक-सा रह जाता है!

सर्दियों में बदला रंग-रूप

उत्तरी ध्रुव प्रदेश में जब सर्दियों का मौसम आता है, तो कुछ जानवर अपने दुश्‍मनों को धोखा देने के लिए वातावरण के मुताबिक अपना रंग-रूप बदल लेते हैं। इसलिए गर्मियों में उनके शरीर पर जो रोम होते हैं, वे सर्दियों के आने तक पूरी तरह झड़ जाते हैं और उनकी जगह नए और अलग किस्म के रोम निकल आते हैं। मिसाल के लिए, फिनलैंड में पतझड़ के मौसम के दौरान आर्कटिक लोमड़ियों, पर्वती खरगोशों (ब्लू हेअर) और कई जाति के वीज़लों के शरीर में हल्के या पूरे सफेद रंग के घने रोम निकल आते हैं।

उसी तरह, टारमिगन पक्षी के पंखों का रंग भी मौसम के हिसाब से बदलता है। गर्मियों में उनके पंख चित्तीदार होते हैं, मगर सर्दियाँ आने पर ये पंख गिर जाते हैं और उनकी जगह उजले सफेद रंग के पंख निकल आते हैं। और उनके पैर भी, जिन पर गर्मियों में न के बराबर पंख होते हैं, सर्दियों में पंखों से पूरी तरह ढक जाते हैं। यह ऐसा है मानो उन्होंने बर्फ में चलने के लिए बढ़िया जूते पहन लिए हों। लेकिन इन पक्षियों की अपने दुश्‍मनों से हिफाज़त सिर्फ उस वक्‍त नहीं होती, जब उनके पंख का रंग पूरी तरह बदल जाता है, बल्कि उस वक्‍त भी होती है जब उनके पंख का रंग बदल रहा होता है। वह कैसे? उनके आधे चित्तीदार और आधे सफेद पंख, आधे बर्फ से ढकी चितकबरी ज़मीन से मेल खाते हैं।

क्या कभी आपको यह देखकर ताज्जुब हुआ है कि बहुत-से पक्षी नंगे पाँव बर्फ पर चलते हैं, फिर भी उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती, यहाँ तक कि नुकसान भी नहीं पहुँचता? क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उनके पैरों को गर्म रखने के लिए उनमें एक कमाल की रचना होती है। इस रचना की वजह से दिल से गर्म खून को पैरों तक पहुँचाया जाता है और पैरों से ठंडे खून को दिल तक पहुँचाया जाता है, ताकि वहाँ उसे गर्म किया जा सके।

जी हाँ, ध्रुवों के ठंडे प्रदेशों से लेकर कर्क और मकर रेखाओं के गर्म इलाकों तक, जीव-जंतु जैसे-तैसे अपनी ज़िंदगी बसर नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे फलते-फूलते हैं। और जो स्त्री-पुरुष इन जीव-जंतुओं का अध्ययन करते और उन पर फिल्म बनाते हैं, उनकी अकसर खूब तारीफ की जाती है। और क्यों न हो, आखिर वे इतनी मेहनत जो करते हैं! अगर इन लोगों की इतनी तारीफ की जाती है, तो क्या हमें उस सिरजनहार की और भी ज़्यादा महिमा नहीं करनी चाहिए, जिसने धरती के इन लाजवाब जीव-जंतुओं को बनाया है? बेशक करनी चाहिए! इसलिए प्रकाशितवाक्य 4:11 कहता है: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, [यहोवा] तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” (g 2/08)

[पेज 14 पर बक्स/तसवीर]

जाड़े भी न आए उनके आड़े!

फिनलैंड में जाड़े के महीनों के दौरान, यहोवा के साक्षी कई गर्म कपड़े डालकर अपने आध्यात्मिक कामों में लगे रहते हैं। उनमें से कुछ तो मसीही सभाओं में जाने के लिए खुशी-खुशी लंबा सफर तय करते हैं। यहाँ तक कि देहाती इलाकों में भी, लंबी और कड़कड़ाती सर्दियों में सभाओं की हाज़िरी कभी कम नहीं होती। इसके अलावा, यहोवा के साक्षी लोगों को गवाही देने के काम में भी मसरूफ रहते हैं। दरअसल वे सिरजनहार, यहोवा परमेश्‍वर की गवाही देने को इतना बड़ा सम्मान समझते हैं कि वे ठंड में अपने घर में आराम से बैठने के बजाय, बाहर जाकर लोगों को परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी सुनाते हैं।—मत्ती 24:14.

[पेज 13 पर तसवीर]

गुफा के अंदर, पेट्रल नाम के समुद्री पक्षी

[चित्र का श्रेय]

By courtesy of John R. Peiniger

[पेज 12, 13 पर तसवीर]

अरमाइन

[चित्र का श्रेय]

Mikko Pöllänen/Kuvaliiteri

[पेज 13 पर तसवीर]

हंस

[पेज 13 पर तसवीर]

बड़ा खरगोश (हेअर)

[पेज 13 पर तसवीर]

आर्कटिक लोमड़ी