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कमचट्‌का प्रशांत महासागर में बसा रशिया का फिरदौस

कमचट्‌का प्रशांत महासागर में बसा रशिया का फिरदौस

कमचट्‌का प्रशांत महासागर में बसा रशिया का फिरदौस

रशिया में सजग होइए! लेखक द्वारा

बात तीन सौ से भी ज़्यादा साल पुरानी है। रशिया के कुछ खोजकर्ता एशिया से होते हुए पूर्व की तरफ बढ़ रहे थे। आखिर में, वे एक पहाड़ी प्रायद्वीप पर आ पहुँचे, जो ओखोटस्क सागर और बेरिंग सागर के बीच मानो दीवार बनकर, प्रशांत महासागर में खड़ा हो। यह प्रायद्वीप इटली से थोड़ा बड़ा है और इस खूबसूरत जगह के बारे में आज भी दूसरे देश के लोग बेखबर हैं। इस प्रायद्वीप का नाम है, कमचट्‌का।

कमचट्‌का प्रायद्वीप और ब्रिटेन द्वीप, दोनों एक ही अक्षांश रेखा पर स्थित हैं। मगर फिर भी, कमचट्‌का का मौसम ब्रिटेन से ज़्यादा ठंडा है। सर्दियों के मौसम में समुद्र-तटों के पास के इलाकों में कम ठंडी पड़ती है, जबकि भीतरी इलाके 20 फुट बर्फ से ढक जाते हैं। यहाँ तक कि वहाँ ज़मीन पर कभी-कभी करीब 40 फुट बर्फ जम जाती है! गर्मियों में यह प्रायद्वीप अकसर समुद्री कुहरे में छिप जाता है और यहाँ तेज़ हवाएँ भी चलती हैं। यहाँ की मिट्टी ज्वालामुखी के लावा से बनी है, जो बहुत ही उपजाऊ होता है। इसलिए जब भी कमचट्‌का में अच्छी बारिश होती है, तब चारों तरफ हरियाली छा जाती है। जैसे, यहाँ हनी-सकल, बिलबेरी और क्रेनबेरी जैसी छोटी-छोटी झाड़ियों से लेकर इंसान जितने लंबे-लंबे घास उगते हैं। और-तो-और, यहाँ के जंगली फूलों की शान के तो क्या कहने! इनमें से एक है, एक किस्म का गुलाब जो ‘मैदानों की मलिका’ के नाम से भी जाना जाता है।

कमचट्‌का प्रायद्वीप का तकरीबन एक-तिहाई हिस्सा, स्टोन या एरमान नाम के भूर्ज पेड़ों से ढका है। इन पेड़ों के तने और शाखाएँ, तेज़ हवाओं और भारी बर्फ गिरने की वजह से झुके और मुड़े हुए होते हैं। लचीले और धीरे-धीरे बढ़नेवाले ये पेड़, आम तौर पर काफी अडिग रहते हैं और इनकी जड़ों की पकड़ भी मज़बूत होती है। इन कारणों से ये पेड़ कहीं पर भी उग सकते हैं, यहाँ तक कि खड़ी चट्टानों की एक तरफ से सीधाई में भी उग सकते हैं! इन पर पत्ते जून के महीने में लगते हैं, जब चारों तरफ अब भी बर्फ जमी होती है। ये पत्ते अगस्त के महीने में पीले पड़ जाते हैं और इस तरह सर्दियों के आने का पैगाम देते हैं।

ज्वालामुखी, गर्म पानी के फव्वारे और सोते

कमचट्‌का ‘आग के घेरे’ (रिंग ऑफ फायर) में बसा हुआ है। आग का घेरा, प्रशांत महासागर का एक ऐसा इलाका है, जिसमें सबसे ज़्यादा भूकंप होते हैं। कमचट्‌का में करीब 30 ज्वालामुखी ऐसे हैं, जो कभी-भी फूट सकते हैं। इनमें से एक है, क्लीउचेफस्काया जिसके बारे में कहा गया है कि “इसका शंकु एकदम त्रिकोने आकार का है और देखने में बड़ा सुंदर है।” इस ज्वालामुखी की ऊँचाई समुद्र-तल से 15,584 फुट है, इसलिए यह पूरे यूरेशिया में कभी-भी फूटनेवाले ज्वालामुखियों में से सबसे बड़ा है। रशिया के खोजकर्ताओं ने सन्‌ 1697 में, पहली बार कमचट्‌का में पैर रखा था और उस वक्‍त से लेकर आज तक, इस प्रायद्वीप पर 600 से भी ज़्यादा ज्वालामुखी के विस्फोट रिकॉर्ड किए गए हैं।

सन्‌ 1975 से लेकर 1976 तक, टोलबाचिक इलाके में एक छेद या दरार से पिघली हुई चट्टानें (मैग्मा) लगातार इतनी तेज़ी से निकल रही थीं कि देखने पर ऐसा लगता था मानो 8,000 फुट से भी ऊँची “मशाल” जल रही हो! राख के घने बादलों में से बिजलियाँ चमक रही थीं। यह ज्वालामुखी करीब डेढ़ साल तक उफनता रहा और इससे ज्वालामुखी के चार नए शंकु उभर आए। झीलें और नदियाँ गायब हो गयीं और गर्म राख ने तमाम जंगलों के दरख्तों को जड़ तक सुखा दिया। शहरों-नगरों के बाहर, दूर-दूर तक फैला इलाका वीराना बन गया।

गनीमत है कि ज़्यादातर ज्वालामुखी उन इलाकों में फूटे, जहाँ लोगों का बसेरा नहीं था, जिस वजह से बहुत ही कम लोग मारे गए। मगर यहाँ आए सैलानियों को दूसरी वजहों से खबरदार रहना पड़ता है, खासकर जब वे ‘मौत की घाटी’ (वैली ऑफ डेथ) में सैर करने जाते हैं। यह घाटी कीखपीनच ज्वालामुखी के ठीक नीचे पायी जाती है। जब यहाँ हवा नहीं चलती, और खासकर जब वसंत के मौसम में बर्फ पिघलने लगती है, तो ज्वालामुखी से निकलनेवाली ज़हरीली गैसें वहीं घाटी पर जम जाती हैं। इस तरह यह घाटी, जंगली जानवरों के लिए मौत का फंदा बन जाती है। एक बार तो इस घाटी में दस भालुओं और कई छोटे-छोटे जानवरों की लाशें यहाँ-वहाँ बिखरी हुई पायी गयी थीं।

कमचट्‌का में, ज्वालामुखी का एक बहुत ही बड़ा मुहाना है जिसे ऊज़ोन काल्डेरा कहा जाता है। इस मुहाने में जहाँ कहीं ज़मीन धँसी हुई है, वहाँ मिट्टी उबलती हुई नज़र आती है। इसके अलावा, यहाँ ऐसे तालाब भी पाए जाते हैं जिनमें से भाप उठती दिखायी देती है और जो रंग-बिरंगे शैवाल (एल्गी) से भरे पड़े हैं। इसी काल्डेरा में ‘गर्म पानी के फव्वारों की घाटी’ (वैली ऑफ गीज़र्स) है, जिसकी खोज सन्‌ 1941 में की गयी थी। इनमें से कुछ फव्वारे हर दो से तीन मिनट के बाद फूटते हैं, जबकि दूसरे कुछ दिनों के बाद फूटते हैं। ऊज़ोन काल्डेरा वाकई कमाल की जगह, जो पेट्रोपावलोवस्क-कमचटस्की शहर से उत्तर की तरफ, करीब 180 किलोमीटर दूरी पर है। इन हसीन वादियों की सैर कराने के लिए, सैलानियों को हेलीकॉप्टरों के ज़रिए लाया जाता है। लेकिन यहाँ कितने लोग घूमने आ सकते हैं, इस पर सख्त पाबंदी लगायी गयी है, ताकि यहाँ के नाज़ुक पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान न पहुँचे। इसी मकसद से, कमचट्‌का के छः इलाकों को ‘संसार की धरोहर’ (वर्ल्ड हेरिटेज साइट्‌स) करार दिया गया है, जिसके तहत इनकी हिफाज़त की जाती है।

कमचट्‌का में कई गर्म पानी के सोते (हॉट स्प्रिंग्स्‌) भी हैं। इनमें से ज़्यादातर सोतों के पानी का तापमान 30 डिग्री से लेकर 40 डिग्री सेलसियस तक होता है। सैलानियों को इन सोतों में नहाना बहुत अच्छा लगता है। साथ ही, वहाँ के रहनेवालों को भी इनकी वजह से सर्दियों के लंबे मौसम से, जब कड़ाके की ठंड पड़ती है, थोड़ी-बहुत राहत भी मिल जाती है। धरती के अंदर पायी जानेवाली गर्मी (जिओथर्मल हीट) को बिजली पैदा करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल, रशिया में बिजली पैदा करनेवाला सबसे पहला कारखाना, इसी प्रायद्वीप पर बनाया गया था।

भालू, सामन मछलियाँ और समुद्री-उकाब

कमचट्‌का में आज भी करीब 10,000 भूरे रंग के भालू घूमते हैं। उनका औसत वज़न 150-200 किलो होता है। अगर उनका शिकार न किया जाए, तो वे और भी बड़े हो सकते हैं और उनका वज़न करीब तीन गुना ज़्यादा हो सकता है। ईटलमन नाम के आदिवासी लोगों की एक लोक-कथा के मुताबिक, भालू उनके लिए “भाई” के बराबर थे और वे इन जानवरों की इज़्ज़त करते थे। लेकिन जब से यहाँ बंदूकों का इस्तेमाल होने लगा, तब से उनके दिल से भाईचारे की यह भावना उड़न-छू हो गयी। अब वातावरण की रक्षा करनेवाले डरते हैं कि कहीं ये जानवर लुप्त न हो जाएँ।

भालू शर्मीले किस्म के जानवर हैं, इसलिए वे बहुत ही कम दिखायी देते हैं। लेकिन जून के महीने में, जब सामन मछलियाँ नदियों में अंडे देना शुरू करती हैं, तब ये भालू शर्म करना छोड़ देते हैं। वे बड़ी तादाद में मछलियाँ खाने के लिए नदी पर आ जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि एक भालू, एक ही बार में दो दर्जन सामन चट कर सकता है! आखिर वे इतने पेटू क्यों होते हैं? वह इसलिए क्योंकि गर्मियों के मौसम में उन्हें अपने शरीर में ढेर सारी चर्बी जमा करनी पड़ती है, ताकि सर्दियों में जब खाने के लाले पड़ जाते हैं और कड़ाके की ठंड पड़ती है, तब वे अपनी इसी चर्बी के बूते पर ज़िंदा रह सकें। भालू सर्दी का पूरा मौसम सुरक्षित गुफाओं में सोते हुए बिता देते हैं, ताकि उनकी ताकत ज़ाया न हो।

एक और जीव है जिसे सामन मछली खाना बेहद पसंद है और वह है, स्टैलर्स्‌ समुद्री-उकाब। यह एक बहुत ही खूबसूरत और शानदार पक्षी है, जिसके पंख का फैलाव 8 फुट तक होता है। इस पक्षी का रंग काला होता है, उसके कंधों पर सफेद रंग का एक पट्टा होता है और इसकी नुकीली पूँछ भी सफेद होती है। आज, इन पक्षियों की गिनती करीब 5,000 है, जो धीरे-धीरे घटती जा रही है। ये उकाब सिर्फ इसी प्रदेश में और कभी-कभार अलास्का के अल्यूशियन और प्रिबलोफ द्वीपों में पाए जाते हैं। यह पक्षी सालों-साल एक ही घोंसले में रहता है। यही नहीं, वह उसका अच्छा रख-रखाव भी करता है और इसे बड़ा बनाता जाता है। एक घोंसले का व्यास तो बढ़कर 10 फुट हो गया था। यह घोंसला इतना भारी-भरकम था कि जिस भूर्ज पेड़ पर यह बना था, उसमें दरार पड़ गयी!

कमचट्‌का के रहनेवाले

आज, कमचट्‌का में रहनेवाले ज़्यादातर लोग रशिया के हैं। मगर यहाँ अब भी कई हज़ार आदिवासी लोग रहते हैं। इनमें सबसे बड़ा समूह कोर्यक लोगों का है, जो कमचट्‌का के उत्तर में रहते हैं। उनके अलावा, यहाँ और भी कई समूह के लोग रहते हैं, जैसे चुकची और ईटलमन समूह के लोग। इन सभी समूहों की अपनी-अपनी भाषा है। कमचट्‌का के ज़्यादातर लोग पेट्रोपावलोवस्क-कमचटस्की शहर में रहते हैं, जो सरकारी कार्यलय का केंद्र है। जबकि कमचट्‌का के बाकी हिस्सों में बस कुछ ही लोग रहते हैं। समुद्र और नदी के किनारे बसे गाँवों तक पहुँचने के सिर्फ दो ही रास्ते हैं, एक है नाव से और दूसरा है हवाई-जहाज़ से।

मछली और केकड़े पकड़ना, कमचट्‌का की अर्थव्यवस्था में एक अहम भूमिका अदा करता है। यहाँ पाए जानेवाले खासकर लाल रंग के बड़े-बड़े केकड़े बहुत मशहूर हैं। उनके एक पंजे से लेकर दूसरे पंजे तक का फैलाव, पाँच या छः फुट होता है। और जब बिक्री करनेवाले इन्हें बेचने के लिए मेज़ पर सजाकर रखते हैं, तो यह न सिर्फ रंगीन नज़र आता है बल्कि देखने में भी बड़ा दिलचस्प लगता है।

सन्‌ 1989 से यहोवा के साक्षी एक अलग किस्म के मछुआई के काम के सिलसिले में कमचट्‌का आते रहे हैं। ‘मनुष्यों के पकड़नेवालों’ के तौर पर वे कमचट्‌का के दूर-दराज़ इलाकों के लोगों तक परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी पहुँचाते आए हैं। (मत्ती 4:19; 24:14) कुछ लोगों ने इस खुशखबरी को कबूल किया है और आज वे भी दूसरों की मदद कर रहे हैं, ताकि वे सृष्टि की पूजा करना छोड़कर सृष्टि के रचयिता यहोवा परमेश्‍वर को जानें और उसकी उपासना करें। नतीजा, यहाँ के बहुत-से लोगों के दिलों में बुरी आत्माओं का जो खौफ समाया हुआ था, उससे वे आज़ाद हो रहे हैं। (याकूब 4:7) वे यह भी सीख रहे हैं कि भविष्य में पूरी धरती से सारी दुष्टता और दुष्टता को बढ़ावा देनेवाले लोग मिटा दिए जाएँगे और “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।”—यशायाह 11:9. (3/07)

[पेज 18 पर बक्स/तसवीरें]

एक कमाल का काल्डेरा

ऊज़ोन काल्डेरा, प्राचीन ज्वालामुखी का एक बहुत ही बड़ा मुहाना है। इसकी चौड़ाई करीब 10 किलोमीटर है और यह खड़ी दीवारों से घिरा हुआ है। एक किताब कहती है कि “कमचट्‌का जिन चीज़ों के लिए मशहूर है, वे सब” इस काल्डेरा के आँचल में समायी हुई हैं। इसमें गर्म और ठंडे पानी के सोते हैं, ऐसी जगहें हैं जिनमें ज़मीन धँसी हुई है और वहाँ मिट्टी उबलती हुई नज़र आती है, शंकु के आकार के छोटे-छोटे टीले हैं, शीशे जैसे साफ पानी की झीलें हैं जो मछलियों और हंसों से भरी हैं, साथ ही यहाँ ढेर सारे हरे-भरे पेड़-पौधे हैं।

कमचट्‌का देश के अजूबे (अँग्रेज़ी) किताब कहती है कि “पृथ्वी पर ऐसी कोई दूसरी जगह नहीं,” जहाँ पतझड़ का मौसम छोटा, मगर बड़ा दिलकश होता है। जहाँ एक तरफ टुण्ड्रा इलाके के छोटे-छोटे पौधों की वजह से हर कहीं लालिमा छा जाती है, वहीं दूसरी तरफ भूर्ज पेड़ अपने चारों तरफ गहरे पीले और सुनहरे रंग की छटा बिखेर देते हैं। खौलती हुई धरती इधर-उधर से गहरे नीले आसमान में धवल-उज्ज्वल भाप छोड़ती है। और सुबह-सुबह जब लाखों पत्ते, जिन पर बर्फ जमी होती है, छनछन करते हुए गिरते हैं, तो ऐसा लगता है मानो पूरे जंगल ने कोई “तराना छेड़” दिया हो। इस तरह, जंगल सर्दियों के मौसम के आने का हौले से पैगाम देता है।

[पेज 19 पर बक्स]

एक बहुत ही खतरनाक झील!

कारिमस्की झील के नीचे एक ज्वालामुखी है, जिसे एक बुझा हुआ ज्वालामुखी समझा जाता था। मगर सन्‌ 1996 में यह ज्वालामुखी अचानक फूट पड़ा। इससे पानी की 30 फुट ऊँची लहरें उठीं और आस-पास के सभी जंगलों को तहस-नहस कर दिया। कुछ ही मिनटों में इस झील का पानी तेज़ाब बन गया और ज़िंदगी को कायम रखने की इसकी काबिलीयत खत्म हो गयी। खोजकर्ता एनड्रू लोगन समझाते हैं कि ज्वालामुखी के फटने और ऊँची-ऊँची लहरों के तबाही मचाने के बावजूद, झील के आस-पास एक भी मरा हुआ जानवर नहीं पाया गया। वे कहते हैं: “ज्वालामुखी के फटने से पहले, कारिमस्की झील में लाखों मछलियाँ (खासकर सामन और ट्राउट) रहती थीं। मगर ज्वालामुखी के फटने के बाद, वह झील एकदम खाली हो गयी।” मगर फिर भी बहुत-सी मछलियाँ ज़िंदा बच गयी होंगी। वह कैसे? वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मछलियों को किसी तरह की चेतावनी मिली होगी, जैसे शायद पानी के रसायन में कुछ बदलाव आया होगा। और इससे खबरदार होकर वे फौरन पास की कारिमस्की नदी में भाग गयीं।

[पेज 16 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

रशिया

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