इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

मारपीट की शिकार औरतों के लिए मदद

मारपीट की शिकार औरतों के लिए मदद

मारपीट की शिकार औरतों के लिए मदद

मारपीट की शिकार औरतों की कैसे मदद की जा सकती है? सबसे पहले, एक व्यक्‍ति को यह समझना होगा कि मारपीट की शिकार औरतें किस तकलीफ से गुज़र रही हैं। अकसर मारपीट करनेवाला जो चोट पहुँचाता है, वह सिर्फ शारीरिक नहीं होती। आम तौर पर औरतों को धमकाया और भयभीत किया जाता है जिससे वे खुद को लाचार और धरती पर बोझ समझने लगती हैं।

रॉक्ज़ाना पर गौर कीजिए जिसका ज़िक्र हमने पहले लेख में किया था। कभी-कभी उसका पति उसे ऐसी-ऐसी जली-कटी सुनाता कि उसका कलेजा छिद जाता था। रॉक्ज़ाना कहती है: “वह मुझे ज़लील करने के लिए गालियाँ देता। वह कहता: ‘तूने तो स्कूल की पढ़ाई तक पूरी नहीं की, अनपढ़! अगर मैं ना हूँ तो तू बच्चों को क्या खाक संभालेगी? फूहड़, तू माँ कहलाने के भी लायक नहीं। तू क्या सोचती है कि अगर तू मुझे छोड़ दे तो क्या अदालत तुझे बच्चों को रखने का हक देगी?’”

रॉक्ज़ाना का पति उसे अपने काबू में रखने के लिए सारा पैसा अपनी अंटी में रखता है, उसे फूटी कौड़ी भी नहीं देता। रॉक्ज़ाना के लिए कार को हाथ तक लगाना मना है। वह कहाँ है, क्या कर रही है, उसकी पल-पल की खबर रखने के लिए उसका पति घड़ी-घड़ी फोन करता है। अगर रॉक्ज़ाना गलती से भी अपनी राय ज़ाहिर कर दे तो वह गुस्से से पागल हो जाता है। इसलिए रॉक्ज़ाना ने अपने होंठ सी लिए हैं और कभी-भी अपने दिल की बात ज़बान पर नहीं लाती।

जैसा कि आपको अंदाज़ा हो ही गया होगा, पत्नियों के साथ दुर्व्यवहार एक ऐसा मामला है जिसको आसानी से नहीं सुलझाया जा सकता। इनकी मदद करने के लिए पहला कदम होगा कि आप उनके हमदर्द बनकर प्यार से उनकी एक-एक बात सुनें। हमेशा याद रखें कि मारपीट की शिकार औरतें अकसर यह बताना बहुत मुश्‍किल पाती हैं कि उन पर क्या बीत रही है। जैसे-जैसे ये महिलाएँ अपने हालात का सामना करना सीखती हैं, आपका मकसद होना चाहिए कि हर कदम पर उनकी हिम्मत बँधाना, फिर चाहे ऐसा करने में उन्हें कितना भी वक्‍त क्यों न लगे।

मारपीट की शिकार कुछ औरतों को शायद कानून की मदद लेने की ज़रूरत हो सकती है। कभी-कभी बात हद से पार हो जाने पर पुलिस की दखलअंदाज़ी, पति को यह एहसास दिला सकती है कि उसकी हरकत मामूली नहीं। हाँ, यह बात सच है कि मामला रफा-दफा होने पर ऐसा इंसान अकसर पश्‍चाताप या बदलाव करने का कोई भी इरादा अपने मन से निकाल देता है।

क्या मारपीट की शिकार पत्नी को अपने पति से अलग हो जाना चाहिए? बाइबल, पति-पत्नी के अलग हो जाने को मामूली बात नहीं समझती है। लेकिन बाइबल यह भी नहीं कहती कि मारपीट की शिकार पत्नी को तब भी अपने पति के साथ रहना चाहिए जब उसकी सेहत को नुकसान पहुँचने का, यहाँ तक कि उसकी जान जाने का खतरा हो। मसीही प्रेरित पौलुस ने लिखा: “और यदि [पत्नी] अलग भी हो जाए, तो बिन दूसरा ब्याह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले।” (तिरछे टाइप हमारे।) (1 कुरिन्थियों 7:10-16) बाइबल हद-से-ज़्यादा गंभीर मामलों में अलग होने से नहीं रोकती, इसलिए पत्नी जो भी कदम उठाती है वह उसका खुद का फैसला होगा। (गलतियों 6:5) अपने पति को छोड़ने के लिए एक पत्नी को कोई और व्यक्‍ति पट्टी न पढ़ाए, ना ही कोई दुर्व्यवहार करनेवाले पति के साथ रहने के लिए उस पर दबाव डाले, जिसके साथ रहने से उसकी सेहत, जान और आध्यात्मिकता को खतरा हो।

क्या दुर्व्यवहार करनेवाले का कभी कुछ हो सकता है?

पत्नी के साथ दुर्व्यवहार, बाइबल के सिद्धांतों का घोर तिरस्कार करना है। इफिसियों 4:29,31 में हम पढ़ते हैं: “कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, . . . सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।”

मसीह का चेला होने का दावा करनेवाला व्यक्‍ति अगर अपनी पत्नी के साथ बुरा सलूक करे तो वह यह नहीं कह सकता कि उसे सचमुच अपनी पत्नी से प्यार है। और अगर वह अपनी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करता है तो क्या उसके अच्छे कामों की कोई कीमत रह जाएगी? एक “मारपीट करनेवाला” व्यक्‍ति, मसीही कलीसिया में खास ज़िम्मेदारियाँ निभाने के लिए योग्य भी नहीं ठहरता। (1 तीमुथियुस 3:3; 1 कुरिन्थियों 13:1-3) दरअसल मसीही होने का दावा करनेवाला ऐसा कोई भी व्यक्‍ति अगर बार-बार गुस्से से हिंसक हो उठता है और पछतावा नहीं दिखाता तो उसे मसीही कलीसिया से बहिष्कृत किया जा सकता है।—गलतियों 5:19-21; 2 यूहन्‍ना 9,10.

पत्नी को मारने-पीटनेवाले इंसान क्या अपना बर्ताव बदल सकते हैं? कुछ आदिमयों ने ऐसा किया है। मगर आम तौर पर मारपीट करनेवाला आदमी तब तक नहीं बदल सकता जब तक कि वह ये कदम न उठाए: (1) वह कबूल करे कि उसका बर्ताव गलत है, (2) अपने बर्ताव को बदलने की इच्छा रखे और (3) मदद लेने के लिए कदम उठाए। यहोवा के साक्षियों ने पाया कि बाइबल में वह ताकत है जो लोगों को बदल सकती है। दिलचस्पी दिखानेवाले कई लोगों ने, साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करने की वजह से अपने अंदर परमेश्‍वर को खुश करने की गहरी इच्छा पैदा की है। इन नए विद्यार्थियों ने यहोवा परमेश्‍वर के बारे में यह सीखा कि “वह उन लोगों से घृणा करता है, जो हिंसा से प्रीति रखते हैं।” (भजन 11:5, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) लेकिन हाँ, मारपीट करनेवाले एक इंसान के लिए अपने बर्ताव को बदलने का सिर्फ यह मतलब नहीं कि वह अपनी पत्नी को मारना बंद कर दे बल्कि इसका मतलब यह भी होगा कि वह उसके बारे में एकदम नया नज़रिया रखना सीखे।

जब एक आदमी, परमेश्‍वर का ज्ञान हासिल करता है तो वह यह सीखता है कि उसकी पत्नी नौकरानी नहीं बल्कि एक “सहायक” है और उसका दर्जा किसी तरह कम नहीं बल्कि वह “आदर” के योग्य है। (उत्पत्ति 2:18; 1 पतरस 3:7) वह यह भी सीखता है कि उसे अपनी पत्नी का हमदर्द बनकर उससे प्यार करना है और जब वह अपनी राय ज़ाहिर करे तो उसे बड़े ध्यान से सुनना है। (उत्पत्ति 21:12; सभोपदेशक 4:1) यहोवा के साक्षी, बाइबल अध्ययन के जिस कार्यक्रम की पेशकश करते हैं, उससे कई शादी-शुदा जोड़ों को मदद मिली है। मसीही परिवार में ज़ुल्म करनेवालों, तानाशाह या मारपीट के ज़रिए धौंस जमानेवालों के लिए कोई जगह नहीं।—इफिसियों 5:25,28,29.

“परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल” है। (इब्रानियों 4:12) इसलिए बाइबल में पायी जानेवाली बुद्धि, एक पति-पत्नी की उनकी समस्याएँ समझने में मदद करती है। साथ ही उन समस्याओं को निपटाने की उन्हें हिम्मत भी देती है। इतना ही नहीं, बाइबल ऐसी दुनिया की पक्की और सांत्वना देनेवाली आशा देती है, जहाँ यहोवा का स्वर्गीय राजा, आज्ञाकारी इंसानों पर शासन करेगा। तब उस वक्‍त हिंसा और मारपीट का नामो-निशान नहीं रहेगा। बाइबल कहती है: “वह दोहाई देनेवाले दरिद्र का, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा।”—भजन 72:12,14.(g01 11/8)

[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

मसीही परिवार में ज़ुल्म करनेवालों, तानाशाह या मारपीट के ज़रिए धौंस जमानेवालों के लिए कोई जगह नहीं

[पेज 8 पर बक्स]

गलत धारणाओं को दूर करना

मारपीट की शिकार पत्नियाँ ही अपने पति के बर्ताव के लिए ज़िम्मेदार हैं।

मारपीट करनेवाले पति कहते हैं कि उनका कोई कसूर नहीं, उनकी पत्नियाँ ही उन्हें गुस्सा दिलाती हैं। परिवार के दोस्त भी पति की बातों में आ जाते हैं और मानने लगते हैं कि पत्नी ही खराब है जिस वजह से उसका पति कभी-कभार दो-चार लगा देता है। लेकिन यह तो वही बात हुई कि उलटा चोर कोतवाल को डाँटे यानी पत्नी मार भी खाए और बदनामी भी सहे। दरअसल, सच तो यह है कि मारपीट की शिकार पत्नियाँ अपने पति को खुश करने के लिए क्या कुछ नहीं करतीं। मगर इससे भी बढ़कर सच्चाई तो यह है कि किसी भी हालात में एक पति का अपनी पत्नी को मारना जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। किताब मारपीट करनेवाला—उसकी मानसिक हालत पर एक नज़र (अँग्रेज़ी) कहती है: “अदालत, पत्नी पर हमला करने के जुर्म में उन पतियों का मानसिक इलाज कराने का फैसला सुनाती है, जो हिंसा के आदी हो चुके हैं। ऐसे आदमियों के लिए हिंसा, रोब जमाने, झगड़ों को सुलझाने और अपना तनाव कम करने का तरीका है। वे अपने अंदर दबी निराशा और क्रोध की भावना को बाहर निकालने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। . . . अकसर वे अपना कसूर मानने या इस समस्या को गंभीरता से लेने के लिए किसी हाल में राज़ी नहीं होते।”

• शराब ही है जिसके नशे में एक आदमी अपनी पत्नी को पीटता है।

यह सच है कि एक इंसान नशे में और भी खूँखार हो जाता है, लेकिन क्या सारा दोष शराब के मत्थे मढ़ा जा सकता है? अपनी किताब, जब हिंसा घर से शुरू होती है (अँग्रेज़ी) में के. जे. विल्सन लिखती हैं: “जब एक आदमी धुत्त होकर मारपीट करता है तो उसे अपने बर्ताव के लिए शराब पर इलज़ाम लगाने का बहाना मिल जाता है।” वे आगे कहती हैं: “समाज में ज़्यादातर लोग मानते हैं कि एक आदमी शराब के नशे में ही अपनी पत्नी को मारता है। यहाँ तक कि पत्नी भी यही सोचती है कि उसका पति पीने का लती या शराबी है, लेकिन वह यह समझने में चूक जाती है कि उसकी असली समस्या यह है कि वह एक हिंसक इंसान है।” विल्सन कहती हैं कि ऐसी सोच की वजह से एक पत्नी झूठी आस लगाकर बैठ जाती है कि “अगर उसका पति सिर्फ शराब छोड़ दे तो मारपीट भी अपने आप बंद हो जाएगी।”

फिलहाल कई खोजकर्ताओं का यही मानना है कि शराब पीना और पत्नियों को मारना-पीटना दो बिलकुल अलग-अलग समस्याएँ हैं। क्योंकि देखा गया है कि ज़्यादातर पुरुष, जिन्हें शराब पीने और नशीली दवाइयाँ लेने की बुरी लत है, वे अपनी पत्नियों को नहीं पीटते। किताब जब आदमी, औरत को पीटता है (अँग्रेज़ी) में इसके लेखक बताते हैं: “मारपीट का सहारा खासकर इसलिए लिया जाता है क्योंकि मारपीट करनेवाले पुरुष, पत्नियों को डरा-धमकाकर रखने, उन पर धौंस जमाने और उन्हें अपने वश में करने के लिए इसे कारगर तरीका मानते हैं। . . . शराब पीना और नशीली दवाइयाँ लेना ऐसे आदमियों की आदत ज़रूर हो सकती है, मगर इस नतीजे पर पहुँचना सरासर गलत होगा कि इन्हीं के नशे में आकर वे मारपीट पर उतारू होते हैं।”

• मारपीट करनेवाला सभी के साथ हिंसक हो उठता है।

मारपीट करनेवाले में यह खूबी होती है कि वह दूसरों का बहुत ही प्यारा दोस्त बन सकता है। वह उनके सामने एकदम मासूम इंसान होने का बखूबी नाटक कर सकता है। इसी वजह से उसके दोस्त यह विश्‍वास नहीं कर पाते कि वह घर पर मारपीट करता है। मगर हकीकत यही है कि मारपीट करनेवाला पुरुष, अपनी पत्नी को दबाकर रखने के लिए हिंसा का रास्ता इख्तियार करता है।

• खुद औरतें मारपीट का बुरा नहीं मानतीं।

यह धारणा शायद इसलिए पैदा हुई है क्योंकि लोगों को इन स्त्रियों की बेबसी का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं होता। मारपीट की शिकार पत्नी के दोस्त उसकी मदद के लिए उसे एक-दो हफ्ते तक सहारा दे सकते हैं, मगर उसके बाद वह कहाँ जाएगी? पति से अलग रहकर नौकरी ढूँढ़ना, घर का किराया चुकाना साथ ही अकेले बच्चों की देखभाल करना, इन सारी ज़िम्मेदारियों के बारे में सोचकर किसी भी पत्नी का हौसला पस्त हो सकता है। और हो सकता है कि कानून ही उसे इजाज़त ना दे कि वह अपने बच्चों के साथ भाग जाए। कुछ पत्नियों ने तो भागने की कोशिश भी की, मगर उन्हें ढूँढ़ निकाला गया और उन्हें ज़बरदस्ती या फुसलाकर वापस ले जाया गया। ऐसा होने पर इन स्त्रियों के दोस्त सच्चाई ना जानते हुए, इस नतीजे पर पहुँच जाते हैं कि वे मारपीट का बुरा नहीं मानतीं।