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यहोवा ने शादी के बंधन का इंतज़ाम क्यों किया

यहोवा ने शादी के बंधन का इंतज़ाम क्यों किया

“यहोवा परमेश्वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उस से मेल खाए।”—उत्प. 2:18.

गीत: 36, 11

1, 2. (क) शादी की शुरूआत कैसे हुई? (ख) पहले आदमी और औरत ने शादी के बारे में क्या जाना? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

हर देश और संस्कृति में शादियाँ होती हैं। लेकिन शादी की शुरूआत कैसे हुई और इसका मकसद क्या है? इन सवालों के जवाब जानने से हम इस रिश्ते के बारे में और इससे मिलनेवाली आशीषों के बारे में सही नज़रिया रख पाएँगे। पहले आदमी यानी आदम को बनाने के बाद परमेश्वर ने उसे जानवरों के नाम रखने के लिए कहा। आदम ने देखा कि सभी जानवरों का एक साथी है लेकिन “आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उस से मेल खा सके।” इसलिए परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया, उसकी एक पसली निकाली और उससे एक औरत बनायी। यहोवा उसे आदम के पास ले आया और वह उसकी पत्नी बनी। (उत्पत्ति 2:20-24 पढ़िए।) तो हम देख सकते हैं कि शादी यहोवा की तरफ से एक तोहफा है।

2 कई सालों बाद, यीशु ने वही बात दोहरायी जो यहोवा ने अदन के बाग में कही थी, “इस वजह से पुरुष अपने पिता और अपनी माँ को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे।” (मत्ती 19:4, 5) परमेश्वर ने आदम की पसली से पहली औरत बनायी थी, जिस वजह से वे दोनों जान गए होंगे कि वे एक-दूसरे के लिए बने हैं। यहोवा कभी नहीं चाहता था कि पति-पत्नी तलाक लें या एक ही समय पर एक से ज़्यादा जीवन-साथी रखें।

शादी यहोवा के मकसद का हिस्सा है

3. शादी का एक अहम मकसद क्या था?

3 आदम अपनी प्यारी पत्नी के साथ बहुत खुश था। बाद में, उसने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा। वह उससे मेल खाती थी और उसकी सहायक थी। आदम और हव्वा पति-पत्नी के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते और खुश रहते। (उत्प. 2:18) शादी का एक अहम मकसद था, बच्चे पैदा करना और इस धरती को आबाद करना। (उत्प. 1:28) हालाँकि बच्चे अपने माता-पिता से बहुत प्यार करते लेकिन वे भी एक दिन शादी करते और उनका अपना परिवार होता। इंसान पृथ्वी पर भर जाते और पूरी धरती को फिरदौस बनाते।

4. पहली शादी का क्या हुआ?

4 पहली शादी पर तब मुसीबतों का कहर टूट पड़ा जब आदम और हव्वा ने यहोवा की आज्ञा तोड़ दी। ‘वही पुराने साँप’ यानी शैतान, इब्लीस ने हव्वा को बहकाया और कहा कि “भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष” का फल खाने से उसे खास किस्म का ज्ञान मिलेगा और वह अच्छे और बुरे के बीच फर्क कर पाएगी। इस बारे में अपने पति से सलाह न लेकर उसने अपने पति के मुखियापन के लिए आदर नहीं दिखाया। परमेश्वर की बात मानने के बजाय, आदम ने भी वह फल खा लिया जो हव्वा ने उसे दिया था।—प्रका. 12:9; उत्प. 2:9, 16, 17; 3:1-6.

5. आदम और हव्वा ने यहोवा से जो कहा, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

5 जब परमेश्वर ने उनसे उनकी गलती के बारे में पूछा, तो आदम ने अपनी पत्नी पर दोष लगा दिया। उसने कहा, “जिस स्त्री को तू ने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैं ने खाया।” हव्वा ने बदले में कहा कि सर्प ने उसे बहकाया है। (उत्प. 3:12, 13) आदम और हव्वा ने बेकार के बहाने बनाए। उन्होंने यहोवा की आज्ञा तोड़ी थी जिसके लिए उन्हें सज़ा मिली। यह हमारे लिए एक अहम सबक है। शादी को कामयाब बनाने के लिए ज़रूरी है कि पति-पत्नी यहोवा की आज्ञा मानें और अपने फैसलों की ज़िम्मेदारी खुद उठाएँ।

6. उत्पत्ति 3:15 में दी भविष्यवाणी आप कैसे समझा सकते हैं?

6 शैतान ने अदन के बाग में जो किया, उसके बावजूद यहोवा ने मानवजाति के लिए एक आशा रखी। यह आशा बाइबल की पहली भविष्यवाणी में दी है। (उत्पत्ति 3:15 पढ़िए।) इस भविष्यवाणी के मुताबिक ‘स्त्री का वंश’ शैतान को कुचल डालेगा। स्वर्ग में उसकी सेवा करनेवाले बहुत-से स्वर्गदूतों का परमेश्वर के साथ करीबी रिश्ता है। वे उसके लिए पत्नी-समान हैं। परमेश्वर उन स्वर्गदूतों में से किसी को भेजेगा जो इब्लीस को “कुचल” डालेगा। वह वंश आज्ञा माननेवाले इंसानों के लिए रास्ता तैयार करेगा ताकि वे उस ज़िंदगी का मज़ा उठा सकें, जो पहले इंसानी जोड़े ने गवाँ दी थी। आज्ञा माननेवाले इंसानों को इस धरती पर हमेशा के लिए जीने का मौका मिलेगा ठीक जैसे यहोवा का मकसद था।—यूह. 3:16.

7. (क) आदम और हव्वा की बगावत के बाद से सभी शादियों पर क्या असर हुआ है? (ख) बाइबल पति-पत्नी से क्या उम्मीद करती है?

7 आदम और हव्वा की बगावत से न सिर्फ उनकी शादी पर बल्कि आगे होनेवाली सभी शादियों पर असर हुआ। उदाहरण के लिए, हव्वा और उसके बाद आनेवाली सभी औरतों को बच्चे के जन्म के दौरान बहुत दर्द होता। पत्नियाँ अपने पतियों के लिए तरसतीं और पति उन पर हुक्म चलाते। यहाँ तक कि वे कभी-कभी गाली-गलौज और मार-पीट भी करते, जैसा कि हम आज देखते हैं। (उत्प. 3:16) यहोवा चाहता है कि पति प्यार से अपने मुखियापन की ज़िम्मेदारी निभाए। और पत्नी अपने पति के मुखियापन के अधीन रहे। (इफि. 5:33) जब पति-पत्नी साथ मिलकर काम करते हैं, तो कई मुश्किलें कम की जा सकती हैं।

आदम के समय से लेकर जलप्रलय तक हुई शादियाँ

8. आदम के समय से लेकर जलप्रलय तक, शादी का क्या इतिहास रहा?

8 आदम और हव्वा की मौत से पहले, उनके बेटे-बेटियाँ हुईं। (उत्प. 5:4) उनके पहले बेटे कैन ने अपने ही रिश्तेदारों में से एक औरत से शादी की। बाइबल बताती है कि कैन का वंशज लेमेक वह पहला आदमी था जिसकी दो पत्नियाँ थीं। (उत्प. 4:17, 19) आदम से लेकर नूह के दिनों तक कुछ ही लोग यहोवा की उपासना करते थे। वे थे हाबिल, हनोक, नूह और उसका परिवार। नूह के दिनों में, “परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं, और उन्होंने जिस जिसको चाहा उनसे विवाह कर लिया।” उनका ऐसा करना अस्वाभाविक था और उन स्वर्गदूतों और स्त्रियों के जो बच्चे हुए, वे बहुत हिंसक थे जो नेफिलीम कहलाते थे। उस दौरान “मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई” थी और “उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता था वह निरन्तर बुरा ही होता था।”—उत्प. 6:1-5.

9. (क) यहोवा ने नूह के दिनों में दुष्टों का क्या किया? (ख) उस समय जो हुआ उससे हम क्या सीख सकते हैं?

9 यहोवा ने कहा था कि वह इस धरती पर महा-जलप्रलय लाकर सभी दुष्ट लोगों का नाश कर देगा। “नेकी के प्रचारक नूह” ने उन लोगों को आनेवाले विनाश के बारे में बताया। (2 पत. 2:5) लेकिन उन्होंने नूह की एक नहीं सुनी क्योंकि वे अपने रोज़ के कामों में बहुत व्यस्त थे, जैसे शादी-ब्याह करने में। यीशु ने नूह के समय की तुलना हमारे समय से की। (मत्ती 24:37-39 पढ़िए।) आज ज़्यादातर लोग परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनने से इनकार कर देते हैं। इस दुष्ट दुनिया के अंत से पहले, हम पूरी धरती पर खुशखबरी का ऐलान कर रहे हैं। जलप्रलय के ब्यौरे से हम क्या सीख सकते हैं? हमें शादी और बच्चों की परवरिश को इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए कि हम यह भूल जाएँ कि यहोवा का दिन कितना करीब है।

जलप्रलय से लेकर यीशु के दिनों तक हुई शादियाँ

10. (क) कई संस्कृतियों में क्या आम हो गया था? (ख) अब्राहम और सारा ने अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में कैसे एक अच्छी मिसाल रखी?

10 नूह और उसके तीन बेटों की एक-एक पत्नी थी। लेकिन जलप्रलय के बाद, बहुत-से आदमी एक से ज़्यादा पत्नी रखने लगे। कई संस्कृतियों में नाजायज़ यौन संबंध रखना आम हो गया था और ऐसे घिनौने काम कई धार्मिक रीति-रिवाज़ों का हिस्सा भी थे। जब अब्राहम और सारा कनान देश चले गए तो उनके आस-पास भी ऐसे लोग रहते थे जो शादी के बंधन का बिलकुल आदर नहीं करते थे। इस वजह से यहोवा ने कनान के आस-पास के सदोम और अमोरा शहरों को नाश कर दिया था। लेकिन अब्राहम ऐसे लोगों से घिरे रहने के बावजूद उनसे बहुत अलग था। वह अपने परिवार का एक अच्छा मुखिया था और सारा ने उसके अधीन रहकर एक अच्छी मिसाल कायम की। (1 पतरस 3:3-6 पढ़िए।) अब्राहम ने इस बात का ध्यान रखा कि उसका बेटा इसहाक ऐसी लड़की से शादी करे, जो यहोवा की उपासक हो। इसहाक ने भी अपने बेटे याकूब के लिए यही किया। याकूब के बेटे आगे चलकर इसराएल के 12 गोत्रों के पूर्वज बने।

11. मूसा के कानून ने इसराएलियों की हिफाज़त कैसे की?

11 आगे चलकर यहोवा ने इसराएल राष्ट्र के साथ एक करार किया। उसने उन्हें मूसा का कानून दिया। उसमें शादी से जुड़ी आम प्रथाओं के बारे में, यहाँ तक कि एक से ज़्यादा पत्नी रखने के बारे में साफ हिदायतें दी गयी थीं। उसमें झूठे उपासकों से शादी करना मना था। इस कानून ने इसराएलियों की मदद की कि वे यहोवा के साथ अपना रिश्ता बरकरार रख सकें। (व्यवस्थाविवरण 7:3, 4 पढ़िए।) जब किसी की शादीशुदा ज़िंदगी में गंभीर समस्याएँ आती थीं, तो अकसर बड़े-बुज़ुर्ग उनकी मदद करते थे। बेवफाई, जलन और शक करने के बारे में भी कानून बनाए गए थे। तलाक सिर्फ तभी दिया जा सकता था, जब कोई वाजिब कारण हो। जैसे, एक आदमी सिर्फ तभी तलाक दे सकता था, जब उसकी पत्नी में “कुछ लज्जा की बात” पायी जाती। (व्यव. 24:1) हालाँकि बाइबल में यह नहीं बताया गया है कि “लज्जा की बात” क्या थी, मगर ज़ाहिर है कि पति किसी छोटी-मोटी बात पर अपनी पत्नी को तलाक नहीं दे सकता था।—लैव्य. 19:18ख.

अपने जीवन-साथी से कभी विश्वासघात मत कीजिए

12, 13. (क) मलाकी के दिनों में कुछ पति, अपनी पत्नियों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे थे? (ख) आज अगर एक बपतिस्मा पाया हुआ व्यक्ति किसी और के जीवन-साथी के साथ भाग जाए, तो इसका क्या अंजाम हो सकता है?

12 भविष्यवक्ता मलाकी के दिनों में, बहुत-से यहूदी पति, अलग-अलग बहाने से अपनी पत्नी को तलाक देकर उनके साथ विश्वासघात करते थे। इस तरह उन्होंने अपनी जवानी की पत्नी को छोड़ दिया ताकि वे कम उम्र की औरतों से शादी कर सकें, यहाँ तक कि ऐसी औरतों से भी जो यहोवा की सेवा नहीं करती थीं। जब यीशु धरती पर था तब भी यहूदी पुरुष अपनी पत्नियों को “किसी भी वजह से” तलाक देकर उनके साथ विश्वासघात करते थे। (मत्ती 19:3) यहोवा परमेश्वर इस तरह दिए गए तलाक से नफरत करता था।—मलाकी 2:13-16 पढ़िए।

13 यहोवा के लोगों के बीच अपने जीवन-साथी से बेवफाई करना गलत माना जाता है और ऐसा बहुत कम होता है। लेकिन मान लीजिए कि एक बपतिस्मा पाया हुआ शादीशुदा भाई या बहन व्यभिचार करता है और किसी और से शादी करने के लिए अपने पति या पत्नी से तलाक ले लेता है। अगर वह व्यक्ति पश्‍चाताप नहीं करता, तो उसका बहिष्कार कर दिया जाता है, ताकि मंडली शुद्ध बनी रहे। (1 कुरिं. 5:11-13) उसे अपने अंदर “पश्‍चाताप दिखानेवाले फल पैदा” करने होंगे, ताकि उसे मंडली में दोबारा बहाल कर दिया जाए। (लूका 3:8; 2 कुरिं. 2:5-10) उस व्यक्ति को कब बहाल किया जाना चाहिए, इसके लिए कोई तय समय नहीं है। उसे पश्‍चाताप का सबूत देने और मंडली में लौट आने के लिए एक या उससे ज़्यादा साल लग सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को अगर बहाल भी कर दिया जाता है, तब भी उसे “परमेश्वर के न्याय-आसन के सामने खड़े” होना होगा क्योंकि परमेश्वर जानता है कि उस व्यक्ति का पश्‍चाताप सच्चा था या नहीं।—रोमि. 14:10-12; 15 नवंबर, 1979 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 31-32 देखिए।

मसीहियों के बीच शादी

14. कानून ने कौन-सा मकसद पूरा किया?

14 इसराएली 1,500 साल तक मूसा के कानून के हिसाब से चलते रहे। इस कानून ने परमेश्वर के लोगों की मदद की कि वे उसके सिद्धांतों को ध्यान में रखकर पारिवारिक और दूसरे मामलें निपटाएँ। यह कानून उन्हें मसीहा की ओर ले जानेवाला संरक्षक बना। (गला. 3:23, 24) यीशु की मौत के बाद यह कानून रद्द हो गया और यहोवा ने एक नया इंतज़ाम शुरू किया। (इब्रा. 8:6) इस नए इंतज़ाम के तहत मसीही अब कुछ ऐसे काम नहीं कर सकते थे जिन्हें करने की छूट कानून में थी।

15. (क) मसीही मंडली में शादी के लिए क्या स्तर हैं? (ख) अगर एक मसीही अपने जीवन-साथी को तलाक देने की सोच रहा है तो उसे पहले किन बातों पर गहराई से सोचना चाहिए?

15 एक बार फरीसियों ने यीशु से शादी के बारे में एक सवाल किया। यीशु ने उन्हें जवाब दिया कि हालाँकि तलाक के मामले में मूसा के कानून में कुछ छूट थी “मगर शुरूआत से ऐसा नहीं था।” (मत्ती 19:6-8) यीशु ने इस बात की तरफ इशारा किया कि अदन के बाग में ठहराए शादी के पवित्र स्तर मसीही मंडली में भी लागू होने थे। (1 तीमु. 3:2, 12) पति-पत्नी “एक तन” होकर एक-दूसरे का साथ देते। एक-दूसरे के लिए प्यार और परमेश्वर के लिए प्यार उनके इस रिश्ते को मज़बूत रखता। अगर वे नाजायज़ यौन-संबंध को छोड़ किसी और वजह से कानूनी तौर पर तलाक लेते, तो वे दोबारा शादी नहीं कर सकते। (मत्ती 19:9) हो सकता है जिस व्यक्ति ने व्यभिचार किया हो वह पश्‍चाताप करता है और उसका जीवन-साथी उसे माफ कर देता है। ठीक जैसे भविष्यवक्ता होशे ने अपनी पत्नी गोमेर को माफ किया जिसने व्यभिचार किया था। उसी तरह इसराएलियों के पश्‍चाताप करने पर यहोवा ने उन्हें भी माफ किया। (होशे 3:1-5) इसके अलावा, अगर एक व्यक्ति यह जानते हुए भी कि उसके जीवन-साथी ने व्यभिचार किया है उसके साथ लैंगिक संबंध जारी रखता है, तो इसका मतलब है कि उसने अपने जीवन-साथी को माफ कर दिया है। अब वह शास्त्र के आधार पर उससे तलाक नहीं ले सकता।

16. यीशु ने अविवाहित रहने के बारे में क्या कहा?

16 यीशु ने कहा था कि सच्चे मसीही सिर्फ लैंगिक अनैतिकता के आधार पर ही तलाक ले सकते हैं। फिर उसने उनका ज़िक्र किया ‘जिनके पास अविवाहित रहने का तोहफा है।’ उसने कहा, “जो राज की खातिर अविवाहित रह सकता है, वह रहे।” (मत्ती 19:10-12) बहुत-से भाई-बहनों ने अविवाहित रहने का फैसला किया है ताकि वे बिना ध्यान भटकाए यहोवा की सेवा कर सकें। वे वाकई तारीफ के काबिल हैं!

17. क्या बात एक मसीही को शादी करने का फैसला लेने में मदद कर सकती है?

17 एक व्यक्ति को शादी करनी चाहिए या अविवाहित रहना चाहिए, इसका फैसला वह कैसे कर सकता है? वह खुद से पूछ सकता है कि क्या वह अविवाहित रहने के लिए अपने दिल को तैयार कर सकता है। प्रेषित पौलुस ने अविवाहित रहने का बढ़ावा दिया। लेकिन उसने यह भी कहा “व्यभिचार के प्रचलन की वजह से, हर आदमी की अपनी पत्नी हो और हर स्त्री का अपना पति हो।” पौलुस ने आगे कहा “लेकिन अगर उनमें संयम नहीं तो वे शादी करें, क्योंकि काम-इच्छा की आग में जलने से तो बेहतर यह है कि वे शादी कर लें।” अविवाहित लोगों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि क्या उनकी उम्र शादी करने की है। पौलुस ने कहा, “अगर किसी कुँवारे को लगता है कि वह अपने शरीर की इच्छाओं पर काबू नहीं कर पा रहा और अगर वह जवानी की कच्ची उम्र पार कर चुका है और उसे लगता है कि उसे शादी करनी चाहिए, तो इन हालात में वह ऐसा ही करे। ऐसे में वह पाप नहीं करता। ऐसे लोग शादी कर लें।” (1 कुरिं. 7:2, 9, 36; 1 तीमु. 4:1-3) एक व्यक्ति को शादी करने का बढ़ावा इसलिए नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि वह अपनी जवानी में उठनेवाली इच्छाओं पर काबू नहीं रख पा रहा है। हो सकता है वह शादी से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लिए तैयार न हो। लेकिन अगर एक व्यक्ति शादी करता है, तो वह ऐसी लैंगिक इच्छाओं से बच सकता है जो उसे हस्तमैथुन या नाजायज़ यौन-संबंध जैसे कामों में फँसा सकती हैं। फिर भी उसे यह फैसला सोच-समझकर लेना चाहिए।

18, 19. (क) एक मसीही शादीशुदा ज़िंदगी की शुरूआत कैसे होनी चाहिए? (ख) अगले लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

18 मसीहियों में शादी ऐसे दो लोगों के बीच होती है जो बपतिस्मा-शुदा हैं और जो यहोवा से पूरे दिल से प्यार करते हैं। वे एक-दूसरे से भी इतना प्यार करते हैं कि वे अपनी पूरी ज़िंदगी एक-दूसरे के साथ बिताना चाहते हैं। यहोवा उन्हें आशीष देगा क्योंकि उन्होंने “सिर्फ प्रभु में” शादी करने की सलाह मानी है। (1 कुरिं. 7:39) शादी को कामयाब बनाने के लिए उन्हें बाइबल की सलाह पर चलते रहना चाहिए।

19 आज हम “आखिरी दिनों” में जी रहे हैं और बहुत-से आदमी-औरतों में ऐसा रवैया पाया जाता है, जिस वजह से उनकी शादीशुदा ज़िंदगी कामयाब नहीं होती। (2 तीमु. 3:1-5) अगले लेख में, हम बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे। उनकी मदद से मसीही, चुनौतियों के बावजूद अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को कामयाब और खुशहाल बना सकते हैं। इससे वे हमेशा की ज़िंदगी की तरफ ले जानेवाले रास्ते पर चलते रहेंगे।—मत्ती 7:13, 14.