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आइए मिलकर खुशी मनाएँ!

आइए मिलकर खुशी मनाएँ!

आइए मिलकर खुशी मनाएँ!

आज इंसान के लिए खुशी ढूँढ़ना मानो रेगिस्तान में पानी तलाशने जैसा हो गया है। किसी को देने के लिए इंसान के पास खुशी रह ही नहीं गयी है। आज खासकर बड़े शहरों में लोग जैसी भाग-दौड़ वाली ज़िंदगी जी रहे हैं, उससे वे एक-दूसरे से दूर होकर खुद में सिमटकर रह गए हैं।

मनोविज्ञान के प्रोफेसर ऑल्बर्टो ओलीवेरीयो कहते हैं, “अकेलापन महसूस करना आज एक आम बात है और इसमें दो राय नहीं कि ईंट-पत्थरों की इमारतों के बीच अकेलापन पसरा हुआ है। अपने साथ काम करनेवालों, पड़ोसियों या घर के पासवाले दुकानदार से हमारा रोज़ मिलना तो होता है लेकिन शहरी ज़िंदगी हमें इस कदर नीरस बना देती है कि ये सभी हमारे लिए अजनबी बनकर रह जाते हैं। हमें पता ही नहीं होता कि उनकी ज़िंदगी में क्या हो रहा है।” इस तरह कटे-कटे रहने से लोग हताशा की गिरफ्त में आ जाते हैं।

लेकिन हमारे भाई-बहन बिलकुल अलग हैं। उनका रवैया और जज़्बा दुनियावी लोगों जैसा नहीं है। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “हमेशा खुश रहो।” (1 थिस्स. 5:16) हमारे पास एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशी मनाने और आनंदित रहने के बहुत-से कारण हैं। हम इस जहान के मालिक परमेश्‍वर यहोवा की उपासना करते हैं; हम बाइबल की सच्चाइयों को समझते हैं; हमें उद्धार और हमेशा का जीवन पाने की आशा है और हम दूसरों को भी ऐसी आशीषें पाने में मदद कर सकते हैं।—भज. 106:4, 5; यिर्म. 15:16; रोमि. 12:12.

खुशी मनाना और दूसरों की खुशी बाँटना सच्चे मसीहियों की पहचान है। इसमें ताज्जुब नहीं कि पौलुस ने फिलिप्पियों को लिखा कि “मैं खुश होता हूँ और तुम सबके साथ खुशी मनाता हूँ। इसी तरह तुम भी मेरे साथ खुश रहो और आनंद मनाओ।” (फिलि. 2:17, 18) गौर कीजिए कि इन दो आयतों में पौलुस ने दो बार खुश रहने और एक-दूसरे के साथ आनंद मनाने की बात कही।

मसीहियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे खुद को दूसरों से अलग न कर लें या अपने में ही खोए रहने का रवैया न अपना लें। जो इंसान खुद को दूसरों से अलग कर लेता है वह अपने भाई-बहनों के साथ खुशी नहीं मना सकता। तो फिर ऐसा इंसान पौलुस की इस सलाह पर कैसे चल पाएगा कि “प्रभु में खुशी मनाते रहो”?—फिलि. 3:1.

भाई-बहनों के साथ खुशी मनाइए

जब पौलुस ने फिलिप्पियों को यह खत लिखा तब वह शायद प्रचार काम की वजह से रोम की जेल में था। (फिलि. 1:7; 4:22) इसके बावजूद, प्रचार के लिए उसका जोश रत्ती भर भी कम नहीं हुआ। बल्कि उसने खुशी-खुशी यहोवा की सेवा में जी-जान लगा दी और खुद को ‘अर्घ की तरह उंडेल’ दिया। (फिलि. 2:17) पौलुस की मिसाल से ज़ाहिर होता है कि किसी की खुशियाँ उसके हालात पर नहीं टिकी होतीं। जेल में कैद होने के बावजूद भी उसने कहा: “मैं खुशी मनाता रहूँगा।”—फिलि. 1:18.

पौलुस ने फिलिप्पी की मंडली की शुरूआत की थी, इसलिए उसे वहाँ के भाइयों से खास लगाव था। वह जानता था कि यहोवा की सेवा में उसे जो खुशी मिली है उसे बाँटने से उनका भी हौसला बढ़ेगा। इसलिए उसने लिखा: “भाइयो, मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो कि मेरे साथ जो कुछ हुआ है, उससे खुशखबरी के फैलने में रुकावट नहीं आयी बल्कि तरक्की ही हुई है। सम्राट के अंगरक्षक-दल में से हर कोई और बाकी सभी लोग यह जान गए हैं कि मैं मसीह की वजह से ज़ंजीरों में हूँ।” (फिलि. 1:12, 13) पौलुस के लिए खुश होने और आनंद मनाने का एक तरीका था, लोगों के साथ इस तरह के अनुभव बाँटना। और इन्हें सुनकर फिलिप्पी के भाइयों ने भी पौलुस के साथ खुशी मनायी होगी। लेकिन इसके लिए ज़रूरी था कि वे पौलुस के साथ हो रहे सलूक की वजह से निराश न हो जाएँ बल्कि पौलुस जैसा रवैया रखें। (फिलि. 1:14; 3:17) इसके अलावा, फिलिप्पी के भाई पौलुस को अपनी प्रार्थनाओं में याद कर सकते थे, और अपने हालात के मुताबिक जितना उनसे हो सकता था, वे पौलुस को मदद और सहारा दे सकते थे।—फिलि. 1:19; 4:14-16.

क्या हम भी पौलुस की तरह ही खुशी मनाते हैं? क्या हम अपने हालात और मसीही सेवा के अच्छे पहलुओं को देखने की कोशिश करते हैं? अपने भाई-बहनों के साथ संगति करते वक्‍त हम अपने प्रचार काम के बारे में खुशी से बात कर सकते हैं। खुश होने के लिए किसी रोंगटे खड़े कर देनेवाले अनुभव की ज़रूरत नहीं होती। हो सकता है हमने कोई ऐसी पेशकश इस्तेमाल की हो या कोई ऐसा तर्क दिया हो जिससे हम घर-मालिक की दिलचस्पी जगा पाए हों। या फिर बाइबल की किसी खास आयत पर हमने किसी के साथ अच्छी चर्चा की हो। शायद प्रचार इलाके में अच्छे चालचलन की वजह से हमें यहोवा के साक्षी के तौर पर पहचाना गया हो और इससे अच्छी गवाही दी गयी हो। इस तरह के अनुभव बाँटना भी मिलकर खुशी मनाने का एक तरीका है।

यहोवा के बहुत-से साक्षियों ने प्रचार काम करने के लिए काफी त्याग किए हैं और कर भी रहे हैं। पायनियरों, सर्किट निगरानों, बेथेल के सदस्यों, मिशनरियों और अंतर्राष्ट्रीय सेवकों ने खुद को पूरे समय की सेवा में लगा दिया है और वे बड़ी खुशी के साथ सेवा कर रहे हैं। क्या हम उनके साथ खुश हो सकते हैं और आनंद मना सकते हैं? आइए हम इन ‘परमेश्‍वर के राज के सहकर्मियों’ के लिए अपनी कदरदानी ज़ाहिर करें। (कुलु. 4:11) जब हम सभाओं, सम्मेलनों या अधिवेशनों में जाते हैं तो हम जोश के साथ इन भाई-बहनों का हौसला बढ़ा सकते हैं। हम भी उन्हीं की तरह जोशीले बन सकते हैं और मेहमान-नवाज़ी दिखाकर उनके अनुभव और हौसला बढ़ानेवाली बातें सुनने के लिए “मौका” ढूँढ़ सकते हैं।—फिलि. 4:10.

परीक्षाओं का सामना करनेवालों के साथ खुशी मनाइए

ज़ुल्म सहने और परीक्षाओं का सामना करने से यहोवा की सेवा में वफादार रहने का पौलुस का संकल्प और मज़बूत हुआ। (कुलु. 1:24; याकू. 1:2, 3) पौलुस खुश था और उसने आनंद मनाया क्योंकि वह जानता था कि जब फिलिप्पी के भाई उसकी तरह परीक्षाओं से गुज़रेंगे तब उन्हें धीरज धरने की उसकी मिसाल से हिम्मत मिलेगी। इसलिए उसने लिखा: “मसीह की खातिर तुम्हें यह सम्मान दिया गया कि तुम न सिर्फ उस पर विश्‍वास करो बल्कि उसकी खातिर दुःख भी सहो। इसी वजह से तुम्हारा भी वैसा ही संघर्ष है जैसा तुमने मेरे मामले में देखा था और जैसा तुम मेरे मामले में सुनते हो कि मैं अब भी संघर्ष कर रहा हूँ।”—फिलि. 1:29, 30.

पौलुस की तरह आज मसीहियों को भी अपनी प्रचार सेवा की वजह से विरोध सहना पड़ता है। कई बार उन्हें मारा-पीटा जाता है। लेकिन कई बार विरोध के दूसरे तरीके अपनाए जाते हैं जैसे, धर्मत्यागी उन पर झूठे आरोप लगाते हैं, परिवार के सदस्य उनके साथ बेरुखी से पेश आते हैं या फिर साथ काम करनेवाले या स्कूल के साथी उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। यीशु ने हमें चिताया कि इन परीक्षाओं के आने पर न तो हमें हैरान होना चाहिए और ना ही निराश, बल्कि यह हमारे लिए खुशी की वजह होनी चाहिए। उसने कहा: “सुखी हो तुम जब लोग तुम्हें मेरे चेले होने की वजह से बदनाम करें और तुम पर ज़ुल्म ढाएँ और झूठ बोल-बोलकर तुम्हारे खिलाफ हर तरह की बुरी बात कहें। तब तुम आनंद मनाना और खुशी के मारे उछलना। इसलिए कि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है।”—मत्ती 5:11, 12.

जब हम सुनते हैं कि किसी देश में हमारे भाई-बहनों को बेरहमी से सताया जा रहा है तब हमें भयभीत नहीं होना चाहिए बल्कि हमें उनके धीरज से खुश होना चाहिए। हम उनके लिए प्रार्थना कर सकते हैं और यहोवा से कह सकते हैं कि वह उन्हें ताकत दे ताकि वे अपने विश्‍वास और धीरज को बरकरार रखें। (फिलि. 1:3, 4) हम शायद अपने ऐसे भाई-बहनों के लिए कुछ और ना कर पाएँ लेकिन हम अपनी मंडली के उन भाई-बहनों की मदद ज़रूर कर सकते हैं जो किसी दुख-तकलीफ से गुज़र रहे हैं। हम उनमें दिलचस्पी ले सकते हैं और उन्हें सहारा दे सकते हैं। हम उनके साथ खुशी मनाने के मौके ढूँढ़ सकते हैं, जैसे हम उन्हें अपनी पारिवारिक उपासना में बुला सकते हैं, उनके साथ प्रचार कर सकते हैं या उनके साथ मिलकर मनोरंजन कर सकते हैं।

हमारे पास साथ मिलकर खुशी मनाने के बहुत-से कारण हैं! हमें अपने में ही खोए रहकर खुद को दूसरों से अलग कर लेने के रवैए से दूर रहना चाहिए जो इस दुनिया में आज बहुत आम है। इसके बजाय आइए हम अपने प्यारे भाई-बहनों के साथ खुशी बाँटते रहें। ऐसा करके हम न सिर्फ मंडली में प्यार और एकता को बढ़ावा दे पाएँगे बल्कि अपने मसीही भाईचारे का पूरा-पूरा लुत्फ उठा पाएँगे। (फिलि. 2:1, 2) जी हाँ, पौलुस हमसे गुज़ारिश करता है: “प्रभु में हमेशा खुश रहो। मैं एक बार फिर कहता हूँ, खुश रहो!”—फिलि. 4:4.

[चित्र का श्रेय पेज 6 पर]

पृथ्वी: Courtesy of Replogle Globes