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एक जन्म जिसे याद रखना चाहिए

एक जन्म जिसे याद रखना चाहिए

एक जन्म जिसे याद रखना चाहिए

‘आज तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्त्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है।’लूका 2:11.

करीब 2,000 साल पहले, बेतलेहेम शहर में एक स्त्री ने एक बच्चे को जन्म दिया। इस जन्म की अहमियत को वहाँ रहनेवाले ज़्यादातर लोगों ने नहीं समझा। लेकिन कुछ चरवाहे, जो रात को मैदान में भेड़ों की रखवाली कर रहे थे, उन्होंने स्वर्गदूतों के एक दल को देखा और उन्हें यह गाते हुए सुना: “आकाश में परमेश्‍वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्‍न है शान्ति हो।”—लूका 2:8-14.

स्वर्गदूतों ने चरवाहों को बताया कि मरियम और उसका पति यूसुफ उन्हें पशुशाला में मिलेंगे। ठीक जैसा स्वर्गदूतों ने बताया था, वैसा ही चरवाहों ने उन्हें पशुशाला में पाया। मरियम ने अपने इस बच्चे को यीशु नाम दिया और उसे चरनी में रखा। (लूका 1:31; 2:12) आज इस घटना को दो हज़ार साल बीत चुके हैं और दुनिया की एक तिहाई आबादी यीशु के नक्शे-कदम पर चलने का दावा करती है। और-तो-और, यीशु के जन्म से जुड़ी कहानी पूरी दुनिया में इतनी मशहूर है, जितनी शायद ही कोई और कहानी हो।

स्पेन को ही लीजिए। यहाँ कैथोलिक परंपराएँ लोगों की रग-रग में बस गयी हैं और वे सभी पारंपरिक त्योहारों को बड़े धूमधाम से मनाने में माहिर हैं। उन्होंने बेतलेहेम की उस खास रात को याद करने के कई तरीके ईजाद किए हैं।

स्पेन में क्रिसमस मनाने का तरीका

तेरहवीं सदी से स्पेन में क्रिसमस के दौरान, यीशु के जन्म की झाँकियाँ निकालना शुरू हुआ और तब से ये झाँकियाँ इस त्योहार की एक बड़ी खासियत बन गयी हैं। कई घरों में छोटी-छोटी झाँकियाँ बनायी जाती हैं जिनमें चरवाहों, मजूसियों (या “तीन राजाओं”), यूसुफ, मरियम और चरनी में रखे यीशु की मिट्टी की प्रतिमाएँ दिखायी जाती हैं। और नगर-पालिका भवनों के पास बड़ी-बड़ी झाँकियाँ रखी जाती हैं, जिनमें आदमियों के जितनी बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ सजायी जाती हैं। माना जाता है कि इन रिवाज़ों की शुरूआत असिसि के फ्रांसिस ने इसलिए की थी ताकि लोग सुसमाचार की किताबों में लिखे यीशु के जन्म के ब्यौरे पर ध्यान दें। बाद में, फ्रांसिस के चेलों ने इन रिवाज़ों को स्पेन और दूसरे देशों में फैलाया।

जिस तरह दूसरे देशों में सांता क्लॉस, क्रिसमस की रौनक है ठीक उसी तरह स्पेन में मजूसी खास भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि जैसे मजूसी, यीशु के जन्म पर तोहफे लाए थे, वैसे ही आज वे 6 जनवरी, डीऑ डे रेएस (राजाओं के दिन) को स्पेन के बच्चों को तोहफे देते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को यह सच्चाई पता है कि सुसमाचार की किताबें यह नहीं बतातीं कि यीशु को देखने कितने मजूसी आए थे। और-तो-और, इन किताबों में इन्हें राजा नहीं बल्कि ज्योतिषी कहा गया है, जो कि बिलकुल सही है। * इसके अलावा, यीशु के पास मजूसियों की भेंट के बाद हेरोदेस ने नन्हे यीशु को मरवा डालने की साज़िश रची। उसने बेतलेहेम में सभी “दो वर्ष के, वा उस से छोटे” लड़कों को मरवा डाला। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यीशु के जन्म के काफी समय बाद मजूसी उससे मिलने आए थे।—मत्ती 2:11, 16.

बारहवीं सदी से स्पेन के कुछ शहरों में यीशु के जन्म से जुड़ी घटनाओं को नाटकों में दिखाया जाने लगा। इनमें चरवाहों का बेतलेहेम आना और बाद में मजूसियों का यीशु के पास आना दिखाया जाता है। और आजकल तो स्पेन के ज़्यादातर शहरों में हर साल 5 जनवरी को कॉबॉलगॉटॉ या जुलूस निकाला जाता है। इसमें इन “तीन राजाओं” का किरदार निभानेवालों को झाँकी-गाड़ियों पर पूरे शहर में घुमाया जाता है और वे लोगों में मिठाइयाँ बाँटते हैं। इन मौकों पर जो सजावट की जाती है और वीयेनसीकोस (क्रिसमस के गीत) गाए जाते हैं, उससे त्योहार में और भी रंग भर जाता है।

क्रिसमस के एक दिन पहले (दिसंबर 24), शाम को स्पेन के ज़्यादातर परिवार खास दावत का मज़ा लेना पसंद करते हैं। इस दावत पर पारंपरिक पकवान तैयार किए जाते हैं, जैसे टुरौन (बादाम और शहद से बनी मिठाइयाँ), मार्ज़िपन (पिसे हुए बादाम और अंडे से बनी मिठाइयाँ), मेवे, भेड़ का भुना हुआ मांस और समुद्री भोजन परोसे जाते हैं। इस खास मौके पर परिवार के सभी जन एक-साथ जमा होने की खास कोशिश करते हैं, फिर चाहे वे एक-दूसरे से कितनी ही दूर क्यों न रहते हों। छः जनवरी को परंपरा के मुताबिक एक और दावत रखी जाती है जिसमें परिवार के लोग रौस्कौन डे रेएस यानी एक गोल केक खाते हैं जिसके बीच में छेद होता है। इसे “राजाओं” का केक कहा जाता है जिसके अंदर सौरप्रेसॉ (छोटी मूर्ति) छिपायी जाती है। कुछ ऐसा ही रिवाज़ रोम के ज़माने में भी था। अगर किसी नौकर को केक का वह हिस्सा मिलता जिसमें वह मूर्ति छिपायी गयी है, तो वह एक दिन के लिए “राजा” होता था।

“साल का सबसे खुशियों-भरा और चहल-पहल का समय”

अलग-अलग जगहों में क्रिसमस से जुड़े चाहे जो भी रीति-रिवाज़ उभर आए हों, मगर यह एक हकीकत है कि आज क्रिसमस दुनिया का सबसे मशहूर त्योहार बन गया है। द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया बताती है कि क्रिसमस “पूरी दुनिया में लाखों ईसाइयों और गैर-ईसाइयों के लिए साल का सबसे खुशियों-भरा और चहल-पहल का समय होता है।” लेकिन यह त्योहार जिस तरीके से मनाया जाता है, क्या उससे कुछ फायदा है?

इसमें कोई शक नहीं कि यीशु का जन्म इतिहास की एक बहुत ही अहम घटना थी। इस मौके पर स्वर्गदूतों ने ऐलान किया कि यीशु के पैदा होने से ‘उन मनुष्यों को जिनसे परमेश्‍वर प्रसन्‍न है, शान्ति’ मिलेगी। इससे पक्के तौर पर साबित होता है कि यीशु का जन्म वाकई एक खास घटना थी।

लेकिन स्पेन का पत्रकार, क्वान ऑरयॉस लिखता है कि “मसीहियत की शुरूआत में, यीशु के जन्म को त्योहार की तरह कभी नहीं मनाया गया था”। अगर ऐसा है तो फिर क्रिसमस की शुरूआत कहाँ से हुई? और यीशु के जन्म और उसकी मौत को याद रखने का सबसे बेहतरीन तरीका क्या है? अगले लेख में आप इन सवालों के जवाब पाएँगे।

[फुटनोट]

^ स्पैनिश किताब, लॉ सॉग्रॉदॉ एस्क्रीतूरॉटेक्सतो ई कोमेनटेरीयो पोर प्रोफेसोरेस डे लॉ कोम्पॉनीया डे केसुस (द होली स्क्रिप्चर्स्‌—टेक्सट्‌ एण्ड कॉमेन्ट्री बाय प्रोफेसर्स ऑफ द कंपनी ऑफ जीज़स) बताती है कि “मादियों, फारसियों और कसदियों के बीच, मजूसी हुआ करते थे। ये ऐसे पंडित-पुजारी थे जो जादू-टोने के काम करते, ज्योतिष-विद्या का इस्तेमाल करते और बीमारों को ठीक करने के लिए जादुई दवाएँ बनाते थे।” फिर भी, नन्हे यीशु को देखने आए इन मजूसियों को मध्य युग के दौरान, संत घोषित किया गया और उन्हें मेलकिओर, गॉस्पॉर और बॉलटॉज़ॉर नाम दिए गए। ऐसा भी मानना है कि इन मजूसियों की अस्थियों को जर्मनी के कलोन शहर के मुख्य गिरजाघर में रखा गया है।