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युद्ध का अंत

युद्ध का अंत

युद्ध का अंत

‘हम सिर्फ 12 साल के हैं। हमारे पास इतनी ताकत नहीं कि हम राजनीति में कोई बदलाव लाएँ या युद्धों को रोक सकें, मगर हम जीना चाहते हैं। हम शांति की आस लगाए हुए हैं। लेकिन क्या हमारे जीते-जी यह मुमकिन होगा?’—पाँचवीं कक्षा के बच्चे।

हम चाहते हैं कि हम बेखौफ होकर स्कूल, और दोस्तों-रिश्‍तेदारों के घर जाएँ और हमें अगवा किए जाने का कोई खतरा न हो। हमें उम्मीद है कि सरकार हमारी फरियाद सुनेगी। हम एक खुशहाल ज़िंदगी जीना चाहते हैं। हमें शांति चाहिए।’—आल्हाजी, उम्र 14.

इन बच्चों की बातें सुनकर हमें इन पर कितना तरस आता है। बरसों से गृह-युद्ध के ज़ख्मों को सह रहे ये बच्चे, शांति की कैसी उम्मीद लगाए बैठे हैं। उनका बस इतना ही अरमान है कि वे एक आम ज़िंदगी बिताएँ। लेकिन सपनों को हकीकत में बदलना आसान नहीं होता। तो क्या हम कभी ऐसी दुनिया देख पाएँगे जहाँ युद्ध नहीं होंगे?

हाल के सालों में, कुछेक गृह-युद्धों को मिटाने के लिए कई देशों ने मिलकर कोशिशें की हैं। उन्होंने समझौते-पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए विरोधी गुटों पर दबाव डाला है। और इन समझौतों के मुताबिक काम करवाने के लिए कुछ देशों ने शांति बनाए रखनेवाली सेना भेजी है। लेकिन ऐसे देश बहुत कम हैं जिनके पास इतना पैसा हो या उनमें इतनी इच्छा हो कि वे दूर-दूर की उन जगहों पर निगरानी रखने के लिए अपनी सेना भेजें जहाँ गृह-युद्ध हो रहे हैं। उन जगहों में, विरोधी गुटों के दिल में एक-दूसरे के लिए नफरत इतनी कूट-कूटकर भरी है और उनमें भरोसे की इतनी कमी है कि शांति का कोई भी समझौता ज़्यादा दिन नहीं टिकता। अकसर शांति के समझौते-पत्र पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही हफ्तों या महीनों के अंदर, दोबारा गृह-युद्ध छिड़ जाता है। जैसे स्टॉकहॉम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने कहा, “जब तक युद्ध करनेवालों के दिल में लड़ने की इच्छा रहेगी और उनके पास ताकत होगी, तब तक शांति हासिल करना नामुमकिन है।”

दूसरी तरफ मसीही समझ पाते हैं कि खलबली मचानेवाले इन गृह-युद्धों से बाइबल की एक भविष्यवाणी पूरी हो रही है जो प्रकाशितवाक्य की किताब में दर्ज़ है। यह ऐसे खतरनाक समय के बारे में बताती है जब एक लाक्षणिक घुड़सवार “पृथ्वी पर से मेल उठा ले” जाएगा यानी युद्धों का सिलसिला चलता रहेगा। (प्रकाशितवाक्य 6:4) युद्ध, बाइबल में बताए “अन्तिम दिनों” की भी एक निशानी है। * (2 तीमुथियुस 3:1) आज हम उन्हीं अंतिम दिनों में जी रहे हैं मगर परमेश्‍वर का वचन हमें यकीन दिलाता है कि जब ये अंतिम दिन खत्म होंगे, तब दुनिया में शांति कायम होगी।

भजन 46:9 में, बाइबल समझाती है कि सच्ची शांति कायम करने के लिए किसी एक इलाके से नहीं बल्कि पूरी धरती से युद्धों को मिटाने की ज़रूरत है। और इस भजन में ऐसे हथियारों के मिटाए जाने की भी बात कही गयी है जिनका इस्तेमाल बाइबल के ज़माने में होता था, जैसे धनुष, भाले और रथ। अगर इंसान को चैन की ज़िंदगी जीनी है, तो आज के हथियारों के भंडार का भी नाश किया जाना ज़रूरी है।

लेकिन असल में युद्ध को भड़कानेवाली चिंगारी, गोली और रायफल नहीं बल्कि नफरत और लालच है। लालच, युद्ध की एक खास वजह है और नफरत की भावना अकसर हिंसा को बढ़ावा देती है। लोगों को अपने दिल से ऐसी विनाशकारी भावनाएँ जड़ से मिटाने के लिए अपने सोचने का तरीका बदलना होगा। उन्हें शांति से जीना सिखाया जाना चाहिए। इसलिए, प्राचीन समय के भविष्यवक्‍ता यशायाह ने बिलकुल सच कहा कि युद्ध का नामो-निशान तभी मिटेगा, जब लोग ‘युद्ध की विद्या नहीं सीखेंगे।’—यशायाह 2:4.

लेकिन, फिलहाल हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ बच्चों और बड़ों को शांति की अहमियत नहीं, बल्कि युद्ध की महानता के बारे में सिखाया जाता है। और-तो-और, छोटे-छोटे बच्चों को भी हत्या करनी सिखायी जाती है।

उन्होंने कत्ल करना सीखा

आल्हाजी, 14 की उम्र तक फौज से निकल चुका था। जब वह सिर्फ दस साल का था, तब विद्रोही गुट के सैनिकों ने उसका अपहरण कर लिया और उसे AK-47 रायफल का इस्तेमाल करके लड़ना सिखाया। इस तरह जब उसे ज़बरदस्ती सैनिक बनाया गया, तो वह खाने-पीने की चीज़ों के लिए लूट-मार करने और घरों को जलाने लगा। इतना ही नहीं, वह लोगों को अपाहिज बना देता या उनका कत्ल कर देता था। आज आल्हाजी को युद्ध की यादें भूलकर, एक आम नागरिक की ज़िंदगी जीना बहुत मुश्‍किल लगता है। एक और बाल सैनिक, इब्राहीम को भी कत्ल करना सिखाया गया। और बाद में उसे आत्म-समर्पण करना मंज़ूर नहीं था। उसने कहा: “अगर वे मुझसे अपना हथियार डाल देने को कहेंगे, तो पता नहीं मेरी क्या हालत होगी, मैं अपना गुज़ारा कैसे करूँगा।”

आज भी तीन लाख से ज़्यादा लड़के-लड़कियाँ गृह-युद्धों में लड़ रहे हैं और अपनी जान गँवा रहे हैं। ये युद्ध हमेशा चलते रहते हैं और इनसे सारी धरती पर मुसीबतें फैली हुई हैं। विद्रोहियों के एक सरदार ने बाल-सैनिकों के बारे में कहा: “ये लड़के हमारा हुक्म मानते हैं; बड़ों की तरह उन्हें अपनी पत्नी या परिवार के पास लौटने की फिक्र नहीं होती; और उनमें डर नाम की चीज़ नहीं होती।” फिर भी सच्चाई यह है कि ये बच्चे एक बेहतर ज़िंदगी जीने की ख्वाहिश रखते हैं, जिसके वे हकदार भी हैं।

अमीर देशों के लोगों को शायद उन दिल दहला देनेवाले हालात की कल्पना करना भी मुश्‍किल लगे जिनमें ये बाल-सैनिक जीते हैं। मगर दूसरी तरफ यह भी एक सच्चाई है कि बहुत-से पश्‍चिमी देशों में बच्चे अपने ही घर में रहकर युद्ध की तालीम पा रहे हैं। वह कैसे?

उदाहरण के लिए, दक्षिणपूर्वी स्पेन के रहनेवाले होसे की बात लीजिए। जब वह एक किशोर था, तब उसे जूडो-कराटे वगैरह सीखने में बहुत मज़ा आता था। उसके पिता ने क्रिसमस के तोहफे में उसे एक लंबी-सी जापानी, सामूराय तलवार खरीदकर दी जो उसे जान से प्यारी थी। उसे वीडियो गेम्स भी बहुत पसंद थे, खासकर ऐसे गेम्स जिनमें खूब मार-धाड़ दिखायी जाती थी। वीडियो गेम्स में उसका मनपसंद हीरो जिस तरह बेरहमी से दूसरों का खून कर देता था, वैसा ही कारनामा उसने अप्रैल 1,2000 को अपनी असल ज़िंदगी में कर दिखाया। उस दिन हिंसा का जुनून उस पर इस कदर सवार हो गया कि उसने अपने पिता की ही दी हुई तलवार से अपने पिता, अपनी माँ और बहन का खून कर दिया। उसने पुलिस के सामने यह बयान दिया: “मैं दुनिया में अकेले जीना चाहता था; मुझे यह पसंद नहीं था कि मेरे माता-पिता मेरी खोज-खबर लें।”

हिंसा को बढ़ावा देनेवाला मनोरंजन, लोगों पर कितना असर कर रहा है, इस बारे में एक लेखक और सैनिक अफसर, डेव ग्रोसमन ने कहा: “अब तो हमारा ज़मीर इतना सख्त हो गया है कि हिंसा और खून-खराबे से हम अपना मन बहलाने लगे हैं, जबकि उनसे हमें घिन आनी चाहिए। हम खून करना सीख रहे हैं और हमें इसमें मज़ा आ रहा है।”

आल्हाजी और होसे, दोनों ने हत्या करना सीखा था। उन्होंने कभी कातिल बनना नहीं चाहा था, मगर उन्हें ऐसी तालीम दी गयी कि उनकी पूरी सोच भ्रष्ट हो गयी। ऐसी तालीम एक इंसान को हिंसा और युद्ध की तरफ ले जानेवाला पहला कदम है, फिर चाहे यह बच्चों को दी जाए या बड़ों को।

युद्ध के बजाय शांति से जीने की तालीम

जब तक लोग दूसरों का खून करना सीखते रहेंगे, तब तक हमेशा की शांति कायम नहीं की जा सकती। सदियों पहले भविष्यवक्‍ता यशायाह ने लिखा: ‘भला होता कि तू ने परमेश्‍वर की आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान होती।’ (यशायाह 48:17, 18) जब लोग परमेश्‍वर के वचन के बारे में सही ज्ञान लेंगे और परमेश्‍वर के नियमों से प्यार करना सीखेंगे, तो वे हिंसा और युद्ध से नफरत करने लगेंगे। आज भी माता-पिता इस बात का ध्यान रख सकते हैं कि उनके बच्चे ऐसे वीडियो गेम्स न खेलें जिनमें हिंसा को बढ़ावा दिया जाता है। बड़े लोग भी नफरत और लालच पर काबू पाना सीख सकते हैं। यहोवा के साक्षियों ने कितनी ही बार यह देखा है कि परमेश्‍वर के वचन में लोगों की शख्सियत बदल देने की ताकत है।—इब्रानियों 4:12.

ओरटीनस्यो की मिसाल लीजिए। जब वह जवान था, तब उसे ज़बरदस्ती सेना में भर्ती किया गया। वह बताता है कि फौजी ट्रेनिंग इस तरीके से दी जाती है कि “हममें दूसरों को मार डालने की इच्छा पैदा होती है और खून करने का डर दिल से गायब हो जाता है।” उसने अफ्रीका के एक गृह-युद्ध में हिस्सा लिया जो लंबे अरसे तक चलता रहा। वह कबूल करता है: “युद्ध ने मेरी शख्सियत ही बदल डाली। मैंने जो-जो किया था, वह सब मुझे आज भी याद है। मुझसे जो कुछ ज़बरदस्ती करवाया गया था, उस बारे में सोचकर मुझे बहुत बुरा लगता है।”

जब ओरटीनस्यो के एक साथी फौजी ने उसे बाइबल की बातें बतायीं, तो वे उसके दिल को छू गयीं। भजन 46:9 से परमेश्‍वर का यह वादा जानकर उसे बहुत अच्छा लगा कि वह हर तरह के युद्ध को मिटा देगा। उसने बाइबल का जितना ज़्यादा अध्ययन किया, लड़ाई करने की उसकी इच्छा उतनी ही कम होती गयी। कुछ ही समय बाद, उसे और उसके दो साथियों को सेना से निकाल दिया गया। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन यहोवा परमेश्‍वर को समर्पित कर दिया। ओरटीनस्यो कहता है: “बाइबल की सच्चाई ने मुझे अपने दिल में दुश्‍मन के लिए प्यार बढ़ाना सिखाया। मुझे एहसास हुआ कि युद्ध में हिस्सा लेकर मैं असल में यहोवा के खिलाफ पाप कर रहा था क्योंकि वह कहता है कि हमें दूसरे इंसान की हत्या नहीं करनी चाहिए। दूसरों से प्यार करने के लिए, ज़रूरी था कि मैं अपने सोचने का तरीका बदलूँ और लोगों को अपना दुश्‍मन न समझूँ।”

ऐसी सच्ची जीवन-कहानियाँ दिखाती हैं कि बाइबल की तालीम वाकई शांति को बढ़ावा देती है। और यह हैरानी की बात नहीं। भविष्यवक्‍ता यशायाह ने बताया था कि परमेश्‍वर की शिक्षा का ताल्लुक, सीधे शांति से है। उसने यह भविष्यवाणी की: “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी।” (तिरछे टाइप हमारे; यशायाह 54:13) उसी भविष्यवक्‍ता ने एक ऐसे समय के बारे में भी बताया जब यहोवा के मार्गों के बारे में सीखने के लिए, सभी देशों से लोगों की भीड़ उसकी सच्ची उपासना की तरफ आएगी। इसका नतीजा क्या होगा? “वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।”—तिरछे टाइप हमारे; यशायाह 2:2-4.

इस भविष्यवाणी के मुताबिक, आज यहोवा के साक्षी दुनिया-भर में ऐसी शिक्षा देने का काम कर रहे हैं जिसकी मदद से अब तक लाखों लोग अपने दिल से नफरत की भावना मिटा सके हैं जो युद्धों की असली वजह है।

विश्‍व-शांति की गारंटी

परमेश्‍वर ने लोगों को सिखाने का इंतज़ाम करने के साथ-साथ एक ऐसी सरकार या “राज्य” की भी स्थापना की है जो पूरी दुनिया में शांति कायम करने की ताकत रखता है। यह गौरतलब है कि बाइबल, परमेश्‍वर के चुने गए राजा यीशु मसीह को “शान्ति का राजकुमार” कहती है। यह हमें यकीन भी दिलाती है कि “उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शान्ति का अन्त न होगा।”—यशायाह 9:6, 7.

लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि मसीह की सरकार, हर तरह के युद्ध को पूरी तरह मिटा देगी? भविष्यवक्‍ता यशायाह आगे कहता है: “सेनाओं के यहोवा की धुन के द्वारा यह हो जाएगा।” (यशायाह 9:7) परमेश्‍वर के पास हमेशा की शांति लाने की इच्छा और ताकत है। परमेश्‍वर के इस वादे पर यीशु को पूरा-पूरा यकीन है। इसीलिए उसने अपने चेलों को यह प्रार्थना करना सिखाया कि परमेश्‍वर का राज्य आए और उसकी मरज़ी धरती पर पूरी हो। (मत्ती 6:9, 10) जब हमारी इस दिली प्रार्थना का जवाब मिल जाएगा, तो उसके बाद फिर कभी युद्धों की वजह से धरती की खूबसूरती पर आँच नहीं आएगी।

[फुटनोट]

^ इस बात के सबूत के लिए कि हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं, ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब का अध्याय 11 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 7 पर तसवीर]

बाइबल की शिक्षा, सच्ची शांति को बढ़ावा देती है