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बीते ज़माने में और आज कपड़ों की रंगाई

बीते ज़माने में और आज कपड़ों की रंगाई

बीते ज़माने में और आज कपड़ों की रंगाई

ब्रिटेन में सजग होइए! लेखक द्वारा

क्या आपने कभी गौर किया है कि रंग, हमारी भावनाओं पर असर करते हैं? इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि सदियों से इंसानों ने कपड़ों को रंगना पसंद किया है। और इसके लिए उन्होंने ऐसा तरीका इस्तेमाल किया है जिसे हम रंगाई कहते हैं।

जब हम रेडीमेड कपड़े और परदे वगैरह खरीदते हैं, या फिर इन्हें बनवाने के लिए कपड़े खरीदते हैं, तो हम नहीं चाहते कि धोने पर या वक्‍त के गुज़रते उनका रंग फीका पड़ जाए। हम जानना चाहते थे कि कपड़ों के रंगों को पक्का कैसे किया जाता है और रंगाई करने की प्राचीन तकनीकों में कैसे तरक्की हुई है। इसलिए हमने उत्तरी इंग्लैंड के ब्रैडफर्ड शहर में ‘एस.डी.सी. कलर म्यूज़ियम’ का दौरा किया। * वहाँ हमने कुछ अनोखे किस्म के पदार्थ देखे, जिन्हें सदियों से कपड़ों को रंगने के लिए इस्तेमाल किया गया है।

बीते ज़माने में इस्तेमाल किए जानेवाले रंग

लगभग सन्‌ 1850 तक कपड़ों की रंगाई करने के लिए जो रंग इस्तेमाल किए जाते थे, वे प्राकृतिक चीज़ों से बनाए जाते थे, जैसे कि पौधों से, कीड़ों से और सीपियों से भी। मिसाल के लिए, वोड पौधे से नीला रंग (1), वेल्ड पौधे से पीला रंग (2), और मजीठ पौधे से लाल रंग तैयार किया जाता था। काला रंग लॉगवुड पेड़ से तैयार किया जाता था, तो आर्चिल नाम के शैवाक से बैंगनी रंग तैयार किया जाता था। म्यूरेक्स सीपियों से बैंजनी रंग तैयार किया जाता था, जो कि बहुत ही महँगा होता था। इसे सोर का बैंजनी या शाही बैंजनी कहा जाता था (3)। यह रंग उन कपड़ों पर इस्तेमाल किया जाता था, जिन्हें रोम के सम्राट पहनते थे।

रोमी सम्राटों के समय से भी बहुत पहले, रईस और ऊँचे पदवाले लोग प्राकृतिक चीज़ों से अपने कपड़ों को रंगते थे। (एस्तेर 8:15) मिसाल के लिए, मादा कर्मस कीड़ों से लाल रंग बनाया जाता था (4)। और शायद इसी रंग से किरमिजी लाल रंग के कपड़े बनाए जाते थे, जिन्हें प्राचीन इस्राएल के निवासस्थान को सजाने, साथ ही इस्राएल के महायाजक के वस्त्र बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे।—निर्गमन 28:5; 36:8.

कपड़ों की रंगाई करने का तरीका

कलर म्यूज़ियम में नुमाइश पर रखी चीज़ों से पता चलता है कि कपड़ों को रंगने के ज़्यादातर तरीके इतने आसान नहीं हैं कि धागा या कपड़े को रंग के घोल में डुबाया और बस हो गया तैयार। ज़्यादातर मामलों में पहले रंगबंधक (मोर्डेंट) का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ऐसा पदार्थ है जिसमें रंगों और रेशों दोनों को एक-साथ बाँधे रखने की काबिलीयत है। रंगबंधक के इस्तेमाल से रंग रेशों से इस कदर बंध जाते हैं कि पानी में भी इसका रंग नहीं छूटता। कई रसायनों को रंगबंधक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इनमें से कुछ हानिकारक होते हैं, इसलिए इन्हें इस्तेमाल करते वक्‍त पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।

कपड़ों को रंगने के कुछ तरीकों से चारों तरफ बदबू फैलती है। इनमें से एक तरीका वह है, जिसमें टर्की लाल रंग तैयार किया जाता था। यह तरीका काफी पेचीदा और लंबा-चौड़ा था। इसमें सूत के कपड़े को रंगा जाता था और ऐसा चटकीला लाल रंग तैयार किया जाता था, जो धूप में सुखाने पर, या फिर धुलाई या ब्लीचिंग करने से भी नहीं उड़ता था। एक वक्‍त ऐसा था, जब इस तरीके में 38 अलग-अलग चरण शामिल थे, जिसे पूरा करते-करते चार महीने लग जाते थे! म्यूज़ियम में नुमाइश के लिए रखे सबसे खूबसूरत कपड़ों में से कुछ टर्की लाल रंग से रंगे थे (5)

कृत्रिम रंगों की शुरूआत

प्राकृतिक चीज़ों का इस्तेमाल किए बिना सबसे पहला रंग तैयार करनेवाला शख्स था, विलियम हेनरी पर्किन। उसने यह ईजाद सन्‌ 1856 में की थी। म्यूज़ियम में रखी एक प्रदर्शनी समझाती है कि पर्किन ने मोवीन या कासनी रंग की ईजाद कैसे की थी। उन्‍नीसवीं सदी के खत्म होते-होते, और भी कई चटकीले कृत्रिम रंग तैयार किए गए थे। आज 8,000 से भी ज़्यादा तरह के कृत्रिम रंग बनाए जाते हैं (6)। कुदरती पदार्थों में से सिर्फ लॉगवुड और किरमिज से अब भी रंग तैयार किए जाते हैं।

कलर म्यूज़ियम के ‘रंग और कपड़ों की गैलरी,’ उन खास तरीकों के बारे में मालूमात देती है, जो आजकल रेयॉन जैसे कृत्रिम कपड़ों की रंगाई करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। मुलायम रेयॉन, जो फिलहाल लोगों का मनपसंद कपड़ा है, बाज़ार में पहली बार सन्‌ 1905 में आया था। इस रेयॉन को जिस रासायनिक ढंग से बनाया जाता है, वह सूत को बनाने के ढंग से काफी मिलता-जुलता है। इसलिए उस वक्‍त मौजूद ज़्यादातर रंग रेयॉन को रंगने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। मगर जब ज़्यादा आधुनिक किस्म के कृत्रिम कपड़े बाज़ार में आए, जैसे ऐसीटेट रेयॉन, पोलिएस्टर, नाइलॉन और एक्रिलिक फाइबर, तो उनको रंगने के लिए और भी बहुत-से नए किस्म के रंग तैयार करने की ज़रूरत महसूस हुई।

पक्का रंग तैयार करने में आयी चुनौती

जब हम रेडीमेड कपड़े या उन्हें बनवाने के लिए कपड़े खरीदते हैं, तो हम चाहते हैं कि उनका रंग पक्का हो। मगर फिर भी, हम पाते हैं कि धूप में या अकसर धुलाई करने से उनका रंग धीरे-धीरे फीका पड़ता जाता है, खासकर तब जब हम साबुन का इस्तेमाल करते हैं। कभी-कभी पसीने की वजह से या फिर दूसरे कपड़ों के साथ धोने की वजह से कपड़ों का रंग छूटता है। धुलाई के बाद कपड़े का रंग कितना पक्का बना रहेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि रंगों के अणु कितनी मज़बूती से रेशों से चिपके रहते हैं। लेकिन अगर कपड़े को बार-बार धोया जाए, या फिर दाग-धब्बे निकालने के लिए कोई खास साबुन इस्तेमाल किया जाए, तो रेशों से रंग छूट जाते हैं और इस तरह कपड़े का रंग फीका पड़ जाता है। रंग बनानेवाले रंग तैयार करने के बाद उसे परखकर देखते हैं कि कहीं धूप, धुलाई, साबुन और पसीने से ज़्यादा रंग न छूटे।

इस दौरे से हम और अच्छी तरह जान पाए हैं कि हमारे कपड़े किन चीज़ों से बनते हैं। मगर इससे भी बढ़कर हमें यह जानने को मिला कि कपड़ों की बार-बार धुलाई के बावजूद उनके रंगों को पक्का करने के लिए क्या कमाल के तरीके अपनाए गए हैं। (4/07)

[फुटनोट]

^ पैरा. 4 एस.डी.सी. का पूरा नाम है, सोसाइटी ऑफ डायर्स ऐंड कलरिस्ट्‌स। यह एक ऐसी संस्था है जो रंगों के बारे में अध्ययन करती है।

[पेज 26 पर चित्र का श्रेय]

तसवीर 1-4: Courtesy of the Colour Museum, Bradford (www.colour-experience.org)

[पेज 27 पर चित्रों का श्रेय]

तसवीर 5: Courtesy of the Colour Museum, Bradford (www.colour-experience.org); तसवीर 6: Clariant International Ltd., Switzerland