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बातचीत वह पुल है, जो आपके और बच्चों के बीच दूरियाँ मिटाएगा

माता-पिताओं के लिए

5: बातचीत

5: बातचीत

इसका क्या मतलब है?

अच्छी बातचीत का मतलब है कि आप और आपके बच्चे एक-दूसरे को बताएँ कि आप क्या सोचते हैं और कैसा महसूस करते हैं।

यह क्यों मायने रखता है?

जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनसे बात करना मुश्‍किल हो जाता है। जब वे छोटे थे, तो आपको सबकुछ बताते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होता। वे अपने दिल का दरवाज़ा बंद कर लेते हैं और आपको पता ही नहीं चलता कि उनकी ज़िंदगी में क्या चल रहा है। आप कितनी ही बार उनसे बात करने की कोशिश क्यों न करें, वे आपको कुछ नहीं बताते। ऐसे में शायद आपको लगे कि उनसे बात करना बेकार है, लेकिन सच तो यह है कि जब वे इस दौर से गुज़र रहे होते हैं, तब उनसे बात करना और भी ज़रूरी होता है।

आप क्या कर सकते हैं?

जब भी बच्चे बात करना चाहें, उनसे बात कीजिए। अगर आपका बच्चा देर रात को भी आपसे बात करना चाहे, तो उससे बात कीजिए।

“शायद आपका यह कहने का मन करे, ‘यह कोई समय है बात करने का? मैं पूरे दिन तुम्हारे साथ ही तो थी, तब क्यों नहीं बात की?’ लेकिन जब आपका बच्चा आपको अपने दिल की बात बताना चाहता है, तो आप उससे इस तरह बात नहीं कर सकते। आखिर सभी माँ-बाप यही तो चाहते हैं कि उनके बच्चे उनसे बात करें!”​—लीसा।

“मुझे देर रात तक जागना पसंद नहीं, लेकिन अकसर आधी रात को ही बच्चों के साथ मेरी अच्छी बातचीत होती थी।”​—हर्बर्ट।

पवित्र शास्त्र की सलाह: “हर कोई अपने फायदे की नहीं बल्कि दूसरे के फायदे की सोचता रहे।”​—1 कुरिंथियों 10:24.

उनकी बात ध्यान से सुनिए। एक पिता कहता है, “जब बच्चे मुझसे बात करते हैं, तो कभी-कभी मेरा ध्यान उनकी बातों पर नहीं, बल्कि कहीं और होता है। पर बच्चे भाँप लेते हैं कि मैं उनकी सुन नहीं रहा।”

अगर आपके साथ भी ऐसा होता है, तो अपने बच्चे से बात करते वक्‍त टी.वी. बंद कर दीजिए, मोबाइल को एक तरफ रख दीजिए। बच्चे की बात ध्यान से सुनिए। उसकी समस्या आपको चाहे कितनी ही छोटी क्यों न लगे, फिर भी सुनिए। उसे जताइए कि उसकी समस्या आपके लिए बहुत मायने रखती है।

“हमें बच्चों को यकीन दिलाना चाहिए कि हमें उनकी परवाह है। अगर उन्हें लगे कि हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन पर क्या बीत रही है, तो वे अपने दिल की बात अपने दिल में ही दबाए रखेंगे या फिर किसी और को बताएँगे।”​—मरैंडा।

“अगर बच्चा आपसे कोई ऐसी बात कहे, जो आपको सही नहीं लगती, तो भड़क मत जाइए।”​—ऐन्थनी।

पवित्र शास्त्र की सलाह: “ध्यान दो कि तुम कैसे सुनते हो।”​—लूका 8:18.

कोई मौका हाथ से जाने मत दीजिए। कभी-कभी बच्चे माता-पिता से तब खुलकर बात करते हैं जब वे घर के कुछ कामकाज कर रहे होते हैं, न कि तब जब वे माता-पिता के साथ आमने-सामने बैठे होते हैं।

‘कार में सफर करते वक्‍त हमारे बीच अच्छी बातचीत होती है।’​—निकोल।

खाना खाते समय भी बच्चों से बातचीत करने का अच्छा मौका मिलता है।

“रात को खाना खाते वक्‍त हममें से हर कोई बताता है कि दिन-भर में उसके साथ क्या अच्छा हुआ और क्या बुरा हुआ। हर दिन इस तरह बातचीत करने से हमारे बीच एकता बनी रहती है और हम एक-दूसरे को एहसास दिलाते हैं कि ज़िंदगी की समस्याओं का सामना करने में हम अकेले नहीं हैं, बल्कि हम सब एक-दूसरे के साथ हैं।”​—रौबिन।

पवित्र शास्त्र की सलाह: ‘सुनने में फुर्ती करें और बोलने में उतावली न करें।’​—याकूब 1:19.