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विश्वास बनाए रहने से परमेश्वर की मंज़ूरी मिलती है

विश्वास बनाए रहने से परमेश्वर की मंज़ूरी मिलती है

“उन लोगों की मिसाल पर चलो जो विश्वास और सब्र रखने की वजह से वादों के वारिस बनते हैं।”—इब्रा. 6:12.

गीत: 3, 54

1, 2. यिप्तह और उसकी बेटी ने किस मुश्किल हालात का सामना किया?

एक जवान लड़की दौड़कर अपने पिता से मिलने आती है। वह अपने पिता को देखकर बहुत खुश है, क्योंकि वह युद्ध से सही-सलामत लौट आए हैं। पिता की शानदार जीत पर वह खुशियाँ मना रही है। नाचते-गाते हुए वह पिता का स्वागत करने आगे आती है। लेकिन उसका पिता उसके नाच-गाने में शामिल होने के बजाय अपने कपड़े फाड़ता है और रोते हुए कहता है “हाय मेरी बेटी! तू ने मुझे बिल्कुल लाचार कर दिया।” (अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) फिर वह उसे बताता है कि उसने यहोवा से ऐसा वादा किया है, जिससे हमेशा के लिए उसकी बेटी की ज़िंदगी बदल जाएगी। उसके वादे का मतलब था कि उसकी बेटी कभी शादी नहीं कर पाएगी और न ही वह कभी औलाद का सुख पा सकेगी। लेकिन वह बिना हिचकिचाए अपने पिता से कहती है कि वह यहोवा से किया अपना वादा निभाए। उसने जो कहा उससे पता चलता है कि उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा उससे जो भी करने के लिए कहेगा, वह उसकी भलाई के लिए ही होगा। (न्यायि. 11:34-37) यिप्तह को अपनी बेटी का ऐसा विश्वास देखकर बहुत गर्व हुआ, क्योंकि वह जानता था कि अगर उसकी बेटी खुशी-खुशी उसका साथ देगी तो इससे यहोवा खुश होगा।

2 यिप्तह और उसकी बेटी को यहोवा और उसके काम करने के तरीकों पर पूरा भरोसा था। उन्होंने उस वक्‍त भी यहोवा पर अपना विश्वास बनाए रखा, जब ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं था। उन्हें यकीन था कि यहोवा की मंज़ूरी पाना किसी भी त्याग से कहीं बढ़कर है।

3. यिप्तह और उसकी बेटी की मिसाल आज हमारे लिए क्यों फायदेमंद हो सकती है?

3 यहोवा पर विश्वास बनाए रखना हमेशा आसान नहीं होता। हमें ‘विश्वास की खातिर जी-जान से लड़ना’ होगा। (यहू. 3) इस मामले में हम यिप्तह और उसकी बेटी से काफी कुछ सीख सकते हैं। आइए देखें कि उन्होंने मुश्किलों का कैसे सामना किया और कैसे यहोवा पर अपना विश्वास बनाए रखा।

दुनिया के बुरे असर के बावजूद विश्वास बनाए रखिए

4, 5. (क) जब इसराएली वादा किए गए देश में पहुँचनेवाले थे, तो यहोवा ने उन्हें क्या आज्ञा दी थी? (ख) भजन 106 के मुताबिक, आज्ञा न मानने की वजह से इसराएलियों को क्या अंजाम भुगतने पड़े?

4 हर दिन यिप्तह और उसकी बेटी के मन में यह बात आती होगी कि यहोवा की आज्ञा न मानकर इसराएलियों को कितने बुरे अंजाम भुगतने पड़े। करीब 300 साल पहले यहोवा ने इसराएलियों को आज्ञा दी थी कि वे वादा किए गए देश में सभी झूठे उपासकों को मार डालें, लेकिन उन्होंने उसकी आज्ञा नहीं मानी। (व्यव. 7:1-4) बहुत-से इसराएलियों ने कनानियों के तौर-तरीके अपना लिए थे, जो झूठे देवताओं को पूजते थे और अनैतिक ज़िंदगी जीते थे।—भजन 106:34-39 पढ़िए।

5 इसकी वजह से इसराएली यहोवा की मंज़ूरी खो बैठे और उसने उन्हें उनके दुश्मनों से नहीं बचाया। (न्यायि. 2:1-3, 11-15; भज. 106:40-43) जो इसराएली परिवार यहोवा से प्यार करते थे, उनके लिए इस मुश्किल दौर में विश्वास बनाए रखना बहुत कठिन रहा होगा। लेकिन बाइबल बताती है कि उस दौर में भी ऐसे लोग थे, जिन्हें परमेश्वर पर अटूट विश्वास था। जैसे, यिप्तह, उसकी बेटी, एल्काना, हन्ना और शमूएल। उन्होंने ठान लिया था कि वे यहोवा को खुश करेंगे।—1 शमू. 1:20-28; 2:26.

6. (क) आज दुनिया के लोगों में कैसी फितरत है? (ख) इससे बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

6 हमारे दिनों में भी लोग कनानियों की तरह सोचते हैं और उनके जैसे काम करते हैं। उनका पूरा ध्यान अनैतिक कामों और खून-खराबे पर लगा रहता है और वे धन-दौलत कमाने का बढ़ावा देते हैं। लेकिन यहोवा हमें साफ-साफ हिदायतें देता है। वह हमें बचाना चाहता है जैसे वह इसराएलियों को बुरे असर से बचाना चाहता था। क्या हम उनकी गलतियों से सबक सीखेंगे? (1 कुरिं. 10:6-11) आइए दुनिया की सोच से बचने के लिए हमसे जो हो सकता है, वह करें। (रोमि. 12:2) तो क्या हम इसके लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं?

निराशाओं के बावजूद उसने परमेश्वर पर विश्वास बनाए रखा

7. (क) यिप्तह के अपने लोगों ने ही उसके साथ क्या किया? (ख) यिप्तह ने कैसा रवैया दिखाया?

7 यिप्तह के दिनों में, इसराएलियों को पलिश्ती और अम्मोनी लोग सताते थे क्योंकि इसराएलियों ने यहोवा की आज्ञा तोड़ी थी। (न्यायि. 10:7, 8) यही नहीं, यिप्तह को अपने भाइयों और इसराएल के अगुवों की तरफ से भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। वे उससे जलते थे और नफरत करते थे। इसलिए उन्होंने उसे उस देश से भगा दिया जहाँ उसका कानूनी हक था। (न्यायि. 11:1-3) उनके बुरे व्यवहार के बावजूद यिप्तह ने अपना रवैया नहीं बदला। यह हम कैसे जानते हैं? जब इसराएल राष्ट्र के अगुवों ने उससे गिड़गिड़ाकर मदद माँगी तो उसने फौरन उनकी मदद की। (न्यायि. 11:4-11) यिप्तह ने शायद किस वजह से ऐसा किया होगा?

8, 9. (क) मूसा के कानून में दिए किन सिद्धांतों से यिप्तह को मदद मिली होगी? (ख) यिप्तह के लिए क्या बात सबसे ज़्यादा मायने रखती थी?

8 यिप्तह एक वीर योद्धा था। वह इसराएल का इतिहास और मूसा के ज़रिए दिया गया कानून अच्छी तरह जानता था। इसराएल के इतिहास के बारे में अपने इस ज्ञान की वजह से वह जानता था कि यहोवा की नज़र में क्या सही है और क्या गलत। (न्यायि. 11:12-27) इसलिए यिप्तह जो भी फैसले लेता था, वे कानून में दिए सिद्धांतों के आधार पर होते थे। वह जानता था कि यहोवा को यह मंज़ूर नहीं कि हम दिल में रंजिश पालें या बदला लेने की सोचें, बल्कि परमेश्वर चाहता है कि उसके लोग एक-दूसरे से प्यार करें। इसके अलावा कानून से उसने यह भी सीखा कि उसे दूसरों की मदद करनी चाहिए, यहाँ तक कि उनकी भी जो उससे नफरत करते हैं।—निर्गमन 23:5; लैव्यव्यवस्था 19:17, 18 पढ़िए।

9 यिप्तह को शायद यूसुफ की मिसाल से मदद मिली होगी। उसने सीखा होगा कि कैसे यूसुफ ने अपने भाइयों पर दया की, जबकि वे उससे नफरत करते थे। (उत्प. 37:4; 45:4, 5) शायद यूसुफ के उदाहरण पर मनन करने से यिप्तह ऐसा व्यवहार कर पाया जिससे यहोवा खुश हुआ। यिप्तह के भाइयों ने उसके साथ जो किया उससे ज़रूर उसके दिल को चोट पहुँची होगी। पर उसके लिए अपनी भावनाओं से ज़्यादा यह मायने रखता था कि वह यहोवा के नाम और उसके लोगों की खातिर लड़े। (न्यायि. 11:9) उसने ठान लिया था कि वह यहोवा पर से अपना विश्वास उठने नहीं देगा। ऐसा रवैया होने की वजह से उसे और इसराएलियों को यहोवा से आशीषें मिलीं।—इब्रा. 11:32, 33.

10. बाइबल के सिद्धांतों की मदद से आज हम इस तरह व्यवहार कैसे कर सकते हैं, जैसा मसीहियों का होना चाहिए?

10 क्या हम यिप्तह की मिसाल से सीखना चाहेंगे? अगर हमारे मसीही भाई हमें निराश करते हैं, या हमें लगता है कि उन्होंने हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया तो हम क्या करेंगे? हालाँकि ऐसी बातों से हमारे दिल को चोट पहुँचती है, लेकिन इस वजह से हमें यहोवा की सेवा करना नहीं छोड़ना चाहिए। हमें कभी-भी मसीही सभाओं में जाना या मंडली के साथ संगति करना नहीं छोड़ना चाहिए। इसके बजाय, आइए हम यिप्तह की तरह यहोवा की आज्ञा मानते रहें। इससे हम मुश्किल हालात का सामना कर पाएँगे और यिप्तह की तरह एक अच्छी मिसाल बन पाएँगे।—रोमि. 12:20, 21; कुलु. 3:13.

खुशी-खुशी किए त्याग, हमारा विश्वास झलकाते हैं

11, 12. यिप्तह ने यहोवा से क्या मन्नत मानी और इसका क्या मतलब था?

11 यिप्तह जानता था कि इसराएल को अम्मोनियों से आज़ाद करने के लिए उसे परमेश्वर की मदद लेनी होगी। उसने यहोवा से वादा किया कि अगर वह उसे जीत दिलाए, तो युद्ध से लौटने पर जो व्यक्‍ति सबसे पहले उससे मिलने आएगा, उसे वह “होमबलि” के तौर पर अर्पित कर देगा। (न्यायि. 11:30, 31) इस बलिदान का क्या मतलब था?

12 यहोवा इंसानों को बलिदान के तौर पर चढ़ाए जाने से नफरत करता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि यिप्तह असल में किसी इंसान की बलि नहीं चढ़ानेवाला था। (व्यव. 18:9, 10) मूसा के ज़रिए दिए गए कानून के मुताबिक होमबलि एक खास तोहफा होता था, जो एक व्यक्‍ति पूरा-का-पूरा यहोवा को देता था। इसलिए यिप्तह के कहने का यह मतलब था कि जिस व्यक्‍ति को वह यहोवा को देगा, वह अपनी पूरी ज़िंदगी निवासस्थान में सेवा करेगा। यहोवा ने यिप्तह की बिनती सुनी और उसे बहुत बड़ी जीत दिलायी। (न्यायि. 11:32, 33) लेकिन यिप्तह किसे “होमबलि” के तौर पर यहोवा को देनेवाला था?

13, 14. न्यायियों 11:35 में दर्ज़ यिप्तह के शब्दों से उसके विश्वास के बारे में क्या पता चलता है?

13 लेख की शुरूआत में जो वाकया बताया गया है, ज़रा उस बारे में सोचिए। जब यिप्तह युद्ध से लौटता है, तो सबसे पहले जो व्यक्‍ति उससे मिलने आता है, वह है उसकी प्यारी बेटी, उसकी इकलौती बच्ची! तो क्या यिप्तह अपना वादा निभाएगा? क्या वह अपनी बेटी को यहोवा के लिए दे देगा, ताकि वह अपनी बाकी ज़िंदगी निवासस्थान में सेवा करे?

14 इस बार भी परमेश्वर के कानून में दिए सिद्धांतों से उसे सही फैसला करने में मदद मिली होगी। उसे शायद निर्गमन 23:19 में दर्ज़ बात याद आयी होगी। वहाँ परमेश्वर के लोगों से कहा गया है कि वे खुशी-खुशी परमेश्वर को अपना अच्छे-से-अच्छा दें। कानून में यह भी बताया गया था कि जब एक व्यक्‍ति यहोवा से मन्नत मानता है, तो “वह अपना वचन न टाले; जो कुछ उसके मुँह से निकला हो उसके अनुसार वह करे।” (गिन. 30:2) यिप्तह को वफादार हन्ना की तरह अपना वादा निभाना था, जो शायद उसी के समय में जी थी। वह जानता था कि इस वादे का उसकी बेटी और उस पर क्या असर पड़ेगा। निवासस्थान में सेवा करने की वजह से अब उसकी बेटी को कभी बच्चों का सुख नहीं मिलता। इसलिए यिप्तह का ऐसा कोई वारिस नहीं होता जिससे उसका नाम आगे बढ़ता और जो इसराएल में उसकी विरासत सँभालता। (न्यायि. 11:34) इसके बावजूद यिप्तह ने पूरे विश्वास के साथ कहा, “मैं ने यहोवा को वचन दिया है, और उसे टाल नहीं सकता।” (न्यायि. 11:35) यहोवा ने यिप्तह का महान बलिदान कबूल किया और उसे आशीष दी। अगर आप यिप्तह की जगह होते तो क्या आप उसकी तरह विश्वास दिखाते?

15. (क) हममें से ज़्यादातर लोगों ने क्या वादा किया है? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम अपने वादे के पक्के हैं?

15 जब हमने यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित की, तो हमने वादा किया था कि हम हर हाल में उसकी मरज़ी पूरी करेंगे। हम जानते थे कि यह वादा निभाना हमेशा आसान नहीं होगा। तो फिर उस वक्‍त हम कैसा रवैया दिखाते हैं, जब हमसे कुछ ऐसा करने के लिए कहा जाता है, जो हमें पसंद नहीं? अगर हम त्याग की भावना दिखाएँ और खुशी-खुशी परमेश्वर की आज्ञा मानें, तो हम ज़ाहिर कर रहे होंगे कि हमें परमेश्वर पर विश्वास है। हम जो त्याग करते हैं उससे भले ही हमें तकलीफ हो, लेकिन परमेश्वर की आशीषें उससे कहीं ज़्यादा होती हैं! (मला. 3:10) यिप्तह की बेटी ने अपने पिता का वादा सुनकर कैसा रवैया दिखाया?

हम यिप्तह और उसकी बेटी के जैसा विश्वास कैसे दिखा सकते हैं? (पैराग्राफ 16, 17 देखिए)

16. यिप्तह की बेटी ने अपने पिता के वादे के प्रति कैसा रवैया दिखाया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

16 यिप्तह का वादा हन्ना के वादे से अलग था। हन्ना ने वादा किया था कि वह अपने बेटे शमूएल को नाज़ीर के तौर पर निवासस्थान में सेवा करने के लिए दे देगी। (1 शमू. 1:11) एक नाज़ीर को शादी करने और परिवार चलाने की इजाज़त थी। लेकिन यिप्तह की बेटी को पूरा-का-पूरा “होमबलि” के तौर पर दिया जाना था, जिसका मतलब था कि वह एक पत्नी और माँ होने का सुख नहीं पा सकती। (न्यायि. 11:37-40) ज़रा सोचिए, उसका पिता इसराएल में एक अगुवा था। इसलिए वह देश के सबसे अच्छे आदमी से शादी कर सकती थी। लेकिन अब उसे बस एक दासी बनकर निवासस्थान में सेवा करनी थी। उस जवान लड़की ने कैसा रवैया दिखाया? उसने दिखाया कि यहोवा की सेवा उसके लिए सबसे पहले है। उसने अपने पिता से कहा, “तू ने जो यहोवा को वचन दिया है, . . . उसी के अनुसार मुझ से बर्ताव कर।” (न्यायि. 11:36) उसने यहोवा की सेवा करने की खातिर, पति और बच्चे पाने की अपनी स्वाभाविक इच्छाएँ त्याग दीं। हम कैसे उसकी तरह त्याग की भावना दिखा सकते हैं?

17. (क) हम यिप्तह और उसकी बेटी की तरह कैसे विश्वास दिखा सकते हैं? (ख) इब्रानियों 6:10-12 में दर्ज़ शब्द आपको त्याग करने का कैसे बढ़ावा देते हैं?

17 कुछ समय के लिए ही सही, हज़ारों जवान भाई-बहन शादी न करने या बच्चे पैदा न करने का चुनाव करते हैं। वे खुशी-खुशी यह त्याग करते हैं ताकि वे यहोवा की सेवा में पूरा ध्यान लगा सकें। यही नहीं, हमारे बहुत-से बुज़ुर्ग भाई-बहन अपने बच्चों या नाती-पोतों के साथ समय बिताने के बजाय, अपना समय और अपनी ताकत यहोवा को देते हैं। उनमें से कुछ निर्माण काम में मदद करते हैं या राज प्रचारकों के लिए स्कूल में हिस्सा लेते हैं। और ऐसी मंडली में सेवा करने जाते हैं जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। कुछ भाई-बहन इस तरह योजना बनाते हैं जिससे वे स्मारक के मौसम में ज़्यादा-से-ज़्यादा यहोवा की सेवा कर सकें। विश्वास दिखाने के क्या ही बेहतरीन तरीके! ये सभी भाई-बहन प्यार की खातिर जो त्याग करते हैं, उसे यहोवा कभी नहीं भूलेगा। (इब्रानियों 6:10-12 पढ़िए।) क्या आप भी यहोवा की सेवा और ज़्यादा करने के लिए त्याग करेंगे?

हमने क्या सीखा?

18, 19. (क) बाइबल में दर्ज़ यिप्तह और उसकी बेटी के ब्यौरे से हमने क्या सीखा? (ख) हम उनकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

18 यिप्तह को ज़िंदगी में बहुत-सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। फिर भी उसने यहोवा की सोच के मुताबिक फैसले लिए। उसने खुद पर आस-पास के लोगों का असर नहीं होने दिया। उसने तब भी परमेश्वर पर विश्वास बनाए रखा, जब दूसरों ने उसे निराश किया। उसने और उसकी बेटी ने खुशी-खुशी जो त्याग किए उस पर यहोवा ने आशीष दी और सच्ची उपासना को बढ़ावा देने के लिए उन दोनों को इस्तेमाल किया। यहाँ तक कि जब लोगों ने परमेश्वर के स्तरों पर चलना छोड़ दिया था, तब भी यिप्तह और उसकी बेटी ने यहोवा पर से अपना विश्वास उठने नहीं दिया।

19 बाइबल कहती है, “उन लोगों की मिसाल पर चलो जो विश्वास और सब्र रखने की वजह से वादों के वारिस बनते हैं।” (इब्रा. 6:12) आइए हम यिप्तह और उसकी बेटी की मिसाल पर चलें और यकीन रखें कि अगर हम यहोवा पर विश्वास बनाए रखेंगे, तो वह हमें आशीषें देगा।