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पाठ 102

यूहन्‍ना को दर्शन दिखाए गए

यूहन्‍ना को दर्शन दिखाए गए

जब प्रेषित यूहन्‍ना, पतमुस नाम के द्वीप में कैदी था तो यीशु ने उसे 16 दर्शन दिखाए, यानी ऐसे दृश्‍य दिखाए जिनसे पता चलता है कि आगे क्या होनेवाला है। उन दर्शनों में दिखाया गया कि यहोवा का नाम कैसे पवित्र किया जाएगा, उसका राज कैसे आएगा और धरती पर उसकी मरज़ी कैसे पूरी होगी, जैसे स्वर्ग में होती है।

एक दर्शन में यूहन्‍ना ने देखा कि यहोवा स्वर्ग में अपनी शानदार राजगद्दी पर बैठा है, उसके चारों तरफ 24 प्राचीन हैं जो सफेद कपड़े पहने हैं और जिनके सिर पर सोने का ताज है। उसकी राजगद्दी से बिजलियाँ चमक रही थीं और गरजन की आवाज़ सुनायी दे रही थी। चौबीस प्राचीनों ने यहोवा के सामने झुककर उसकी उपासना की। एक और दर्शन में यूहन्‍ना ने देखा कि सभी राष्ट्रों, जातियों और अलग-अलग भाषाएँ बोलनेवालों में से एक बड़ी भीड़ निकलती है जो यहोवा की उपासना करती है। मेम्ना यानी यीशु चरवाहे की तरह उनकी देखभाल करता है और उन्हें जीवन के पानी के पास ले जाता है। बाद में एक और दर्शन में यूहन्‍ना ने देखा कि यीशु स्वर्ग में राजा बन गया और 24 प्राचीनों के साथ मिलकर राज कर रहा है। इसके बादवाले दर्शन में यूहन्‍ना ने देखा कि यीशु, अजगर यानी शैतान से और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों से लड़ता है। फिर यीशु उन्हें स्वर्ग से धरती पर फेंक देता है।

फिर यूहन्‍ना ने एक सुंदर दृश्‍य देखा कि मेम्ना और 1,44,000 जन सिय्योन पहाड़ पर खड़े हैं। उसने यह भी देखा कि एक स्वर्गदूत धरती के चारों तरफ उड़ रहा है और लोगों से कह रहा है कि परमेश्‍वर से डरो और उसकी महिमा करो।

अगले दर्शन में हर-मगिदोन का युद्ध दिखाया गया। उस युद्ध के दौरान यीशु अपनी सेना के साथ मिलकर शैतान की बुरी दुनिया को हरा देता है। आखिरी दर्शन में यूहन्‍ना ने देखा कि स्वर्ग और धरती में एकता है। शैतान और उसके वंश को पूरी तरह नाश कर दिया जाता है। स्वर्ग और धरती पर रहनेवाला हर कोई यहोवा के नाम को पवित्र मानता है और सिर्फ उसकी उपासना करता है।

“मैं तेरे और औरत के बीच और तेरे वंश और उसके वंश के बीच दुश्‍मनी पैदा करूँगा। वह तेरा सिर कुचल डालेगा और तू उसकी एड़ी को घायल करेगा।”—उत्पत्ति 3:15