इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

“विशेषज्ञों” की नेकनामी और बदनामी

“विशेषज्ञों” की नेकनामी और बदनामी

“विशेषज्ञों” की नेकनामी और बदनामी

अगर आपके पास कंप्यूटर हैं और आप, इंटरनेट पर बच्चों की परवरिश के बारे में सलाह ढूँढ़ें, तो इस विषय पर आपको फौरन 2 करोड़ 60 लाख से भी ज़्यादा हवाले मिलेंगे। और अगर इनमें से हरेक हवाला पढ़ने में आप एक मिनट भी बिताएँ, तो इससे पहले कि आप सारे हवालों को पढ़ना खत्म करें, आपका लाड़ला जवान हो जाएगा।

लेकिन उस वक्‍त माता-पिता किससे सलाह माँगते थे जब बाल-चिकित्सक, बाल-मनोवैज्ञानिक और इंटरनेट जैसी कोई मदद मौजूद नहीं थी? आम तौर पर वे अपने परिवार और करीबी रिश्‍तेदारों से सलाह-मशविरा करते थे जो उनके साथ एक ही छत के नीचे रहते थे। दादा-दादी, चाचा-चाची, मामा-मामी, खुशी से उनको सलाह देते, पैसों से मदद करते और उनके बच्चों की देखभाल करते थे। लेकिन आज कई देशों में, भारी तादाद में लोग गाँव और कसबे छोड़कर शहरों में आ बसे हैं। इस वजह से परिवारों में पहले जैसा करीबी रिश्‍ता नहीं रहा। आजकल, माता-पिताओं को उन चुनौतियों का अकेले ही सामना करना पड़ता है, जो बच्चों की परवरिश करने से आती हैं।

बेशक, यही एक वजह है कि आज, माता-पिताओं को सलाह और मदद देने के लिए एक बड़ा कारोबार खड़ा किया गया है और यह बड़ी तेज़ी से फल-फूल रहा है। इस कारोबार के फलने-फूलने की दूसरी वजह है, लोगों का बढ़ता विश्‍वास कि विज्ञान, बच्चों के पालन-पोषण के बारे में बेहतरीन सलाह दे सकता है। सन्‌ 1800 के दशक के आखिरी सालों में, अमरीका की जनता को पूरा यकीन हो गया था कि विज्ञान, इंसान की ज़िंदगी के हर पहलू में सुधार ला सकता है, बच्चों की परवरिश के मामले में भी। इसलिए सन्‌ 1899 में, जब ‘माँओं की अमरीकी राष्ट्रीय समिति’ ने खुलेआम यह दुखड़ा रोया कि “माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश करने के काबिल नहीं हैं,” तो देखते-ही-देखते “बच्चों की परवरिश पर सलाह” देनेवाले कई विशेषज्ञ आगे आए। और उन्होंने वादा किया कि वे बच्चों की परवरिश करने में माता-पिताओं की मदद करेंगे।

किताबों में सलाह ढूँढ़ना

लेकिन इन विशेषज्ञों को कितनी कामयाबी मिली है? क्या यह कहा जा सकता है कि आजकल के माता-पिता, अपने बच्चों की परवरिश के बारे में कम चिंतित हैं और बीते ज़माने के माता-पिताओं से ज़्यादा काबिल हैं? हाल ही में, ब्रिटेन में किया एक सर्वे दिखाता है कि ऐसा बिलकुल नहीं है। सर्वे के मुताबिक लगभग 35 प्रतिशत माता-पिता, अपने छोटे बच्चों की परवरिश करने के लिए अब भी भरोसेमंद सलाह की तलाश कर रहे हैं। दूसरे माता-पिताओं का कहना है कि अब उन्हें एक ही रास्ता सूझ रहा है और वह है, अपनी समझ के हिसाब से अपने बच्चों को पालना-पोसना।

एन हलर्बट एक लेखिका और दो बच्चों की माँ हैं। उन्होंने बच्चों की परवरिश के बारे में विशेषज्ञों के लिखे साहित्य पर अध्ययन किया है और अपनी किताब, अमरीका में बच्चों की परवरिश करना: विशेषज्ञ, माता-पिता, और पूरी एक सदी के दौरान बच्चों पर दी सलाह (अँग्रेज़ी) में उन साहित्य पर अपनी राय पेश की है। वे बताती हैं कि ऐसे बहुत कम विशेषज्ञ थे जिनकी सलाह, वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित हैं। दरअसल ज़्यादातर विशेषज्ञों की सलाह सही जानकारी पर आधारित होने के बजाय अपने अनुभव या भावनाओं पर आधारित थी। वाकई, आज की तारीख में देखा जाए, तो उनकी ज़्यादातर सलाह बेकार थी और उनका आपस में कोई तालमेल नहीं था। और-तो-और, कुछ मामलों में तो उनकी सलाह एकदम बेतुकी थी।

ऐसे में, माता-पिता का क्या हाल है? सच कहें तो बहुत-से माता-पिता इन ढेरों सलाहों, विचारों और वाद-विवाद को लेकर कशमकश में हैं। उन्हें समझ में नहीं आता कि किसकी सलाह पर भरोसा करें और किसकी राय सुनें। लेकिन, सभी माता-पिता ऐसा महसूस नहीं करते। अगला लेख बताता है कि दुनिया-भर में कई माता-पिता एक पुरानी, मगर बुद्धि से भरी किताब से भरोसेमंद सलाह ले रहे हैं। यह किताब, आज के ज़माने के लिए भी फायदेमंद साबित हो रही है। (w06 11/01)