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‘मैं यहोवा को क्या बदला दूं?’

‘मैं यहोवा को क्या बदला दूं?’

जीवन कहानी

‘मैं यहोवा को क्या बदला दूं?’

मारीआ केरॉसीनीस की ज़ुबानी

मैं अठारह की उम्र में अपने माँ-बाप के लिए कलंक थी, वे मुझसे बेहद निराश हुए थे। मेरे परिवार ने मुझे ठुकरा दिया और गाँववाले मेरा मज़ाक उड़ाते थे। परमेश्‍वर के लिए मेरी खराई तोड़ने की कोशिश में मुझसे मिन्‍नतें की गयीं, ज़बरदस्ती की गयी और धमकाया गया। मगर इनका कोई फायदा नहीं हुआ। मुझे पूरा यकीन था कि अगर मैं वफादारी से बाइबल की सच्चाई पर टिकी रहूँगी तो मुझे आध्यात्मिक तौर पर आशीषें ज़रूर मिलेंगी। मैंने यहोवा की सेवा में 50 से भी ज़्यादा साल गुज़ारे हैं और जब मैं इन सालों के बारे में सोचती हूँ तो मैं भी भजनहार की तरह महसूस करती हूँ, जिसने कहा: “यहोवा ने मेरे जितने उपकार किए हैं, उनका बदला मैं उसको क्या दूं?”—भजन 116:12.

मेरा जन्म 1930 में, आँजेलोकासत्रो गाँव में हुआ। यह गाँव कुरिन्थ के इस्थमस के पूर्व में, किंख्रिया बंदरगाह से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है, जहाँ पहली सदी में सच्चे मसीहियों की एक कलीसिया शुरू हुई थी।—प्रेरितों 18:18; रोमियों 16:1.

हमारा परिवार शांति की ज़िंदगी बिता रहा था। पिताजी गाँव के प्रधान थे और लोग उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे। पाँच भाई-बहनों में, मैं तीसरे नंबर पर थी। हमारे माता-पिता ने हमारी परवरिश इस तरह की कि हम ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के पक्के सदस्य बने। मैं हर रविवार को मिस्सा के लिए जाती। मूर्तियों के सामने पाप स्वीकार करती, गाँव के गिरजों में मोमबत्तियाँ जलाती और हर तरह के उपवास रखती। यहाँ तक कि मैं कभी-कभी नन बनने के बारे में भी सोचा करती थी। मगर समय बीतने पर, मैं ही परिवार में सबसे पहले अपने माता-पिता के लिए निराशा का कारण हुई।

बाइबल की सच्चाई ने उमंग भर दी

जब मैं करीब 18 साल की थी तब मुझे पता चला कि मेरे एक जीजाजी की बहन काटीना, जो हमारे पासवाले गाँव में रहती थी, यहोवा के साक्षियों की किताबें पढ़ती है और उसने चर्च जाना बंद कर दिया है। यह सुनकर मैं बहुत परेशान हो गयी और मैंने फैसला किया कि मैं उसे चर्च वापस लाने में मदद करूँगी क्योंकि मेरे हिसाब से यही सही रास्ता था। सो जब वह हमसे मिलने आयी तो मैं उसे अपने साथ टहलाने के लिए ले गयी, इस इरादे से कि रास्ते में उसे पादरी के घर ले जाऊँगी। जब हम पादरी के यहाँ पहुँचे तो वह शुरूआत से ही यहोवा के साक्षियों पर एक-के-बाद-एक इलज़ाम लगाता गया। उसने कहा कि वे विधर्मी हैं और उन्होंने काटीना को गुमराह कर दिया है। पादरी के साथ हमारी बातचीत लगातार तीन शामों तक चलती रही। साक्षियों पर जो-जो इलज़ाम लगाए गए, उनके बारे में काटीना ने बाइबल से अच्छी तैयारी की और तर्क देकर उन्हें गलत साबित किया। अंत में पादरी ने काटीना से कहा कि वह एक खूबसूरत और बुद्धिमान लड़की है इसलिए जब तक अपनी जवानी का मज़ा ले सकती है, उसे लेना चाहिए, और फिर बुढ़ापे में परमेश्‍वर के बारे में सोचना चाहिए।

मैंने अपने माता-पिता से इस चर्चा के बारे में कोई ज़िक्र नहीं किया, लेकिन अगले रविवार को मैं चर्च नहीं गयी। दोपहर को पादरी सीधे हमारी दुकान पर आया। मैंने बहाना बनाया कि मुझे पिताजी की मदद करने के लिए दुकान पर ही रहना पड़ा था।

पादरी ने मुझसे पूछा: “क्या तुम इसीलिए नहीं आयी, या फिर उस लड़की ने तुम्हें पट्टी पढ़ा दी?”

मैंने सीधे उसके मुँह पर कहा: “हमसे बेहतर शिक्षाएँ उनके धर्म में सिखायी जाती हैं।”

इस पर पादरी ने पिताजी की तरफ मुड़कर कहा: “ईकोनोमोस जी, अपनी उस रिश्‍तेदार को तुरंत घर से चलता करो; उसने आपके घर में आग लगा दी है।”

मेरा परिवार, मेरे खिलाफ

यह सन्‌ 1940 के आखिरी सालों की बात है, जब ग्रीस में गृह-युद्ध की वजह से हर कहीं खून-खराबा हो रहा था। इस डर से कि कहीं गुरिल्ला दल के लोग मुझे उठा न ले जाएँ पिताजी ने मुझे मेरी दीदी के घर भेजने का इंतज़ाम किया, उसी गाँव में जहाँ काटीना रहती थी। मैं दो महीने तक वहाँ रही। इस दौरान, बाइबल कई मामलों पर जो कहती है, वह समझने में मेरी मदद की गयी। मुझे यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि ऑर्थोडॉक्स चर्च की कई शिक्षाएँ बाइबल के खिलाफ हैं। मैंने जाना कि परमेश्‍वर, मूर्तियों के ज़रिए की जानेवाली उपासना को स्वीकार नहीं करता, और कई धार्मिक परंपराएँ जैसे क्रूस की पूजा करने की शुरूआत मसीही धर्म से नहीं हुई थी। साथ ही मैंने यह जाना कि परमेश्‍वर को खुश करने के लिए उसकी उपासना “आत्मा और सच्चाई से” करनी चाहिए। (यूहन्‍ना 4:23; निर्गमन 20:4, 5) इससे भी बढ़कर मैंने यह सीखा कि बाइबल इस पृथ्वी पर हमेशा की ज़िंदगी जीने की शानदार आशा देती है! बाइबल की ये अनमोल सच्चाइयाँ यहोवा की उन आशीषों में से थीं, जो मुझे शुरू-शुरू में हासिल हुईं।

इस दौरान मेरी बहन और जीजाजी ने गौर किया कि मैं खाने के वक्‍त क्रूस का चिन्ह नहीं बनाती और ना ही धार्मिक मूर्तियों के सामने प्रार्थना करती हूँ। एक रात उन दोनों ने मुझे पीटा। मैंने अगले दिन उनका घर छोड़ने का फैसला किया और अपनी मौसी के घर चली गयी। जीजाजी ने पिताजी को इसकी खबर दी। जल्द ही पिताजी आए और आँखों में आँसू लिए मेरा मन बदलने की कोशिश करने लगे। जीजाजी ने तो घुटने टेककर मुझसे माफी माँगी और मैंने उन्हें माफ कर दिया। मामले को सुलझाने के लिए उन्होंने मुझे चर्च लौट आने को कहा, लेकिन मैं टस-से-मस नहीं हुई।

जब मैं पिताजी के गाँव लौटी तो मुझ पर दबाव आते रहे। मेरे पास काटीना से बातचीत करने का कोई ज़रिया नहीं था, और ना ही पढ़ने के लिए कोई साहित्य था, यहाँ तक कि एक बाइबल भी नहीं थी। लेकिन तब मैं बहुत खुश हुई, जब मेरी एक चचेरी बहन ने मेरी मदद करने की कोशिश की। जब वह कुरिन्थ गयी तो वहाँ एक साक्षी से मिली और लौटते वक्‍त “लॆट गॉड बी ट्रू” किताब, साथ ही मसीही यूनानी शास्त्र की एक कॉपी भी लायी। मैं इन्हें चोरी-छिपे पढ़ने लगी।

अचानक ज़िंदगी की कायापलट

तीन साल तक मेरा कड़ा विरोध किया गया। मेरा किसी भी साक्षी के साथ कोई संपर्क नहीं था, और ना ही मुझे उनका कोई साहित्य मिल सकता था। लेकिन मुझे कहाँ पता था कि मेरी ज़िंदगी में भारी बदलाव होनेवाले हैं!

एक दिन पिताजी ने मुझसे कहा कि मुझे थिस्सलुनिका में अपने मामा के यहाँ जाना है। थिस्सलुनिका जाने से पहले मैं कुरिन्थ में अपने लिए कोट बनाने के लिए दर्ज़िन के पास गयी। मेरी आँखों को यकीन नहीं हुआ, जब मैंने काटीना को वहाँ काम करते देखा! इतने लंबे समय के बाद हम एक-दूसरे को देखकर फूले नहीं समाए। जब हम दोनों दुकान से जा रही थीं तब हम एक नौजवान से मिले जो बहुत ही मिलनसार था। वह काम के बाद साइकिल से अपने घर जा रहा था। उसका नाम कारालामबूस था। हमने एक-दूसरे को अच्छी तरह जानने के बाद शादी का फैसला किया। इसी दौरान मैंने यहोवा को किया अपना समर्पण, जनवरी 9, 1952 में बपतिस्मे के ज़रिए ज़ाहिर किया।

कारालामबूस पहले ही बपतिस्मा ले चुके थे। उन्हें भी अपने परिवार से बहुत विरोध सहना पड़ा था। वे बड़े जोशीले सेवक थे। वे काँग्रीगेशन सर्वेंट के सहायक के तौर पर सेवा करते थे और कई बाइबल अध्ययन चलाते थे। जल्द ही, उनके भाइयों ने भी सच्चाई कबूल कर ली और आज उनके भाई के परिवारों के ज़्यादातर सदस्य यहोवा की सेवा कर रहे हैं।

मेरे पिता को कारालामबूस बहुत पसंद आए इसलिए उन्होंने शादी की मंज़ूरी दे दी, लेकिन माँ को मनाना इतना आसान नहीं था। फिर भी, हमने मार्च 29, 1952 में शादी कर ली। सिर्फ मेरा सबसे बड़ा भाई और मेरा एक चचेरा भाई शादी में आए। उस समय मैंने कहाँ सोचा था कि कारालामबूस मेरे लिए एक बेजोड़ आशीष साबित होंगे। जी हाँ, यहोवा की तरफ से एक तोहफा! उनकी जीवन-संगनी बनने से, मुझे यहोवा की सेवा को अपनी ज़िंदगी का मकसद बनाने में मदद मिली।

अपने भाइयों का हौसला बढ़ाना

सन्‌ 1953 में कारालामबूस और मैंने, एथेन्स जा बसने का फैसला किया। वे प्रचार काम में और ज़्यादा करना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने परिवार का बिज़ेनस छोड़कर पार्ट-टाइम नौकरी कर ली। हम अपना दोपहर का समय मसीही सेवा में बिताते और कई बाइबल अध्ययन करते थे।

हमारे काम पर सरकारी पाबंदी थी इसलिए हमें सेवा करने के नए-नए तरीके ढूँढ़ने पड़ते थे। मसलन, एथेन्स शहर के बीच में, एक कीऑस्क (यानी अखबार और दूसरी चीज़ें बेचनेवाली दुकान) पर, जहाँ मेरे पति काम करते थे, हमने प्रहरीदुर्ग पत्रिका रखने का फैसला किया। तो पुलिस के एक आला अफसर ने हमसे कहा कि इस पत्रिका पर पाबंदी लगी है। लेकिन फिर उसने पूछा कि क्या वह इसकी एक कॉपी पा सकता है ताकि सिक्युरटी ऑफिस से इसके बारे में पता लगा सके। और जब वहाँ के अफसरों ने उस पुलिस को बताया कि इस पत्रिका पर कानूनन कोई पाबंदी नहीं, तो उसने वापस आकर हमें इसकी खबर दी। जिन भाइयों का अपना कीऑस्क था, उन्होंने इसके बारे में सुनते ही अपने कीऑस्क पर प्रहरीदुर्ग की कॉपियाँ रखनी शुरू कर दीं। एक आदमी, जिसने हमारे कीऑस्क से एक प्रहरीदुर्ग पत्रिका ली थी, वह साक्षी बना और अब प्राचीन के तौर पर सेवा कर रहा है।

हमें यह देखकर भी खुशी मिली कि मेरे सबसे छोटे भाई ने सच्चाई सीखी। वह एथेन्स में मर्चन्ट मैरिन कॉलेज में पढ़ाई करने आया था। उस समय हम उसे अपने साथ अधिवेशन ले गए। हमारे अधिवेशन चोरी-छिपे जंगलों में हुआ करते थे। उसने अधिवेशन में जो बातें सुनीं, उसे बहुत अच्छी लगीं। लेकिन जल्द ही वह अपने सफर पर निकल पड़ा क्योंकि वह जहाज़ पर काम करता था। ऐसे ही एक सफर के दौरान, वह अर्जेंटाइना के एक बंदरगाह पर पहुँचा। वहाँ एक मिशनरी प्रचार करने के लिए जहाज़ पर चढ़ा तो मेरे भाई ने उससे हमारी पत्रिकाएँ माँगीं। जब हमें मेरे भाई का खत मिला तो हमारी खुशी का ठिकाना न रहा। उसने लिखा था: “मैंने सच्चाई पा ली है। मेरे लिए डाक से हर महीने की पत्रिकाएँ भेजने का इंतज़ाम कीजिए।” आज वह अपने परिवार सहित वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहा है।

मेरे पति को सन्‌ 1958 में सफरी ओवरसियर के तौर पर सेवा करने का बुलावा मिला। प्रचार काम पर पाबंदी होने की वजह से हालात बड़े मुश्‍किल भरे थे इसलिए सफरी ओवरसियर अकसर अपनी पत्नियों को साथ नहीं ले जाते थे। अक्टूबर 1959 में हमने शाखा दफ्तर के ज़िम्मेदार भाइयों से पूछा कि क्या मैं भी उनके साथ जा सकती हूँ। उन्होंने हमें इजाज़त दे दी। हमें मध्य और उत्तरी ग्रीस की कलीसियाओं के दौरे करके उनकी हिम्मत बढ़ानी थी।

इस सफर के दौरान हमें कई मुश्‍किलें झेलनी पड़ीं। पक्की सड़कें तो बहुत ही कम थीं। हमारी अपनी कोई कार नहीं थी इसलिए अकसर हम बस-गाड़ियों, या पिकप ट्रकों से सफर करते, जो चूज़ों और दूसरे माल से भरे होते थे। हम कीचड़ भरी सड़कों पर चलने के लिए रबर के बूट पहनते थे। हर गाँव में नागरिक सेना होती थी, इसलिए अकसर हमें रात के वक्‍त गाँवों में जाना पड़ता था ताकि उनके सवालों से बच सकें।

कलीसिया के भाई हमारे दौरे की बहुत कदर करते थे। ज़्यादातर भाई-बहन खेतों में कड़ी मेहनत करते थे, इसके बावजूद वे सभाओं में हाज़िर होने की पूरी कोशिश करते, जो देर रात को अलग-अलग घरों में रखी जाती थीं। ये भाई खूब मेहमाननवाज़ थे और हमें अच्छे-से-अच्छा देते थे, फिर चाहे उनके पास कम ही क्यों न हो। कभी-कभी हम एक ही कमरे में पूरे परिवार के साथ सोते थे। इन भाइयों का विश्‍वास, धीरज और जोश हमारे लिए एक और अनमोल आशीष थी।

अपनी सेवा बढ़ाना

फरवरी 1961 में जब हम एथेन्स में शाखा दफ्तर देखने गए, तब हमसे पूछा गया कि क्या हम बेथेल में सेवा करने को तैयार हैं। हमने यशायाह के शब्दों में जवाब दिया: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” (यशायाह 6:8) दो महीने बाद हमें खत मिला, जिसमें लिखा था कि जितनी जल्दी हो सके बेथेल आ जाइए। इस तरह मई 27, 1961 से हमने बेथेल सेवा शुरू की।

हमें अपनी यह नयी सेवा बहुत अच्छी लगी और बेथेल, जल्द ही हमें अपने घर जैसा लगने लगा। मेरे पति ने सर्विस और सबस्क्रिप्शन विभाग में काम किया, बाद में कुछ समय तक उन्होंने ब्राँच कमिटी के सदस्य के तौर पर काम किया। मुझे यहाँ अलग-अलग काम मिले थे। बेथेल परिवार में तब 18 सदस्य थे, लेकिन यहाँ पाँच साल तक प्राचीनों के लिए एक स्कूल चलाया गया था, इसलिए उस दौरान 40 के करीब लोग रहे। मैं सुबह के वक्‍त बर्तन धोती, खाना पकानेवाले भाई की मदद करती, 12 बिस्तर तैयार करती और दोपहर के खाने के लिए टेबल सेट करती। और दोपहर को कपड़े इस्तरी करने के अलावा, कमरे और टॉयलेट की साफ-सफाई करती। हफ्ते में एक बार, मैं लाँड्री में भी काम करती थी। यह सच है कि काम बहुत था मगर मैं खुश थी कि मुझे काम में हाथ बँटाने का मौका मिला।

हम बेथेल के काम और प्रचार काम में बहुत व्यस्त रहते थे। कई बार हमारे पास सात बाइबल अध्ययन होते थे। शनिवार-रविवार को जब कारालामबूस अलग-अलग कलीसियाओं में भाषण देने जाते तब मैं भी उनके साथ जाती। हम हमेशा साथ-साथ रहते थे।

हमने एक ऐसे शादी-शुदा जोड़े के साथ बाइबल अध्ययन किया था जो ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के कट्टर सदस्य थे और जिनकी एक पादरी के साथ भी गहरी दोस्ती थी। यह पादरी, चर्च के विरोधियों की तलाश करनेवाली एजेंसी का लीडर था। उनके घर का एक कमरा मूर्तियों से भरा था, जहाँ चौबीसों घंटे अगरबत्तियाँ जलती थीं और दिन भर उनका पारंपरिक भजन चलता रहता था। कुछ समय तक हम गुरुवार को उनके घर बाइबल अध्ययन के लिए जाते थे और उनका पादरी दोस्त शुक्रवार को उनसे मिलने आता था। एक दिन उन्होंने हमसे कहा कि वे हमें एक सरप्राइज़ देना चाहते हैं इसलिए हमें उनके घर ज़रूर आना है। और जैसे ही हम उनके घर पहुँचे, सबसे पहले वे हमें उसी कमरे में ले गए। उन्होंने कमरे से सारी मूर्तियाँ निकाल दी थीं और उसे नया रूप दे दिया था। इस जोड़े ने और प्रगति की और बपतिस्मा ले लिया। हमने जिन लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किया, उनमें से करीब 50 लोगों ने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करके बपतिस्मा लिया, जो हमारे लिए बड़ी ही खुशी की बात है।

अभिषिक्‍त भाइयों के साथ संगति करने का मौका मेरे लिए एक खास आशीष थी। शासी निकाय के सदस्यों, जैसे भाई नॉर, फ्रांज़, और हेनशल के दौरे वाकई हौसला बढ़ानेवाले थे। बेथेल में चालीस से भी ज़्यादा साल गुज़ारने के बाद, मुझे अब भी यह लगता है कि यहाँ सेवा करना बड़े सम्मान की बात है और एक आशीष है।

बीमारी और बिछड़ने के गम से उबरना

सन्‌ 1982 में मेरे पति में एल्ज़ाइमर्स बीमारी के लक्षण दिखायी देने लगे। सन्‌ 1990 तक उनकी हालत बिलकुल खराब हो गयी और आखिरकार चौबीसों घंटे उनकी देखभाल करने की ज़रूरत आ पड़ी। उनकी ज़िंदगी के आखिरी 8 सालों के दौरान, हम बेथेल छोड़कर कहीं आ-जा नहीं सके। हमारी मदद के लिए बेथेल परिवार के कई प्यारे भाइयों और ज़िम्मेदार ओवरसियरों ने अच्छे इंतज़ाम किए थे। वे तो हमारी मदद करते ही थे, मगर मैं खुद रात-दिन कई घंटों तक उनकी देखभाल करती थी। उनकी हालत कभी-कभी बहुत बिगड़ जाती थी और मैंने कई रात आँखों में काटी।

जुलाई 1998 में मेरे प्यारे पति चल बसे। मैं उनकी कमी बहुत महसूस करती हूँ, फिर भी मुझे इस बात से दिलासा मिलता है कि वे यहोवा की पनाह में हैं और मुझे पता है कि जब यहोवा लाखों लोगों का पुनरुत्थान करेगा तो उन्हें भी याद करेगा।—यूहन्‍ना 5:28, 29.

यहोवा से मिली आशीषों के लिए एहसानमंद

हालाँकि अब मेरे पति नहीं रहे फिर भी मैं अकेली नहीं हूँ। बेथेल में सेवा करने का सुअवसर अब भी मेरे पास है। पूरा बेथेल परिवार मुझसे प्यार करता है और मेरी देखभाल करता है। इनके अलावा, पूरे ग्रीस के आध्यात्मिक भाई-बहन भी मेरे परिवार का हिस्सा हैं। हालाँकि अब मेरी उम्र 70 से ज़्यादा हो गयी है, फिर भी मैं पूरे दिन रसोई और डाइनिंग रूम में काम कर पाती हूँ।

सन्‌ 1999 में मेरी ज़िंदगी का एक सपना साकार हुआ और वह था न्यू यॉर्क में यहोवा के साक्षियों का विश्‍व मुख्यालय देखना। मैंने तब कैसा महसूस किया, मैं उसे शब्दों में बयान नहीं कर सकती। उससे मेरा काफी हौसला बढ़ा और वह एक ऐसा अनुभव था जिसे मैं कभी नहीं भुला सकती।

जब मैं बीते दिनों को याद करती हूँ तो मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूँ कि मैंने अपनी ज़िंदगी सबसे बेहतरीन तरीके से बितायी है। सबसे उम्दा करियर जो एक इंसान चुन सकता है, वह है पूरे समय यहोवा की सेवा करना। मैं भरोसे के साथ कह सकती हूँ कि मुझे कभी किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं हुई। यहोवा ने बड़े प्यार से मेरी और मेरे पति की आध्यात्मिक और शारीरिक ज़रूरतें पूरी कीं। अपने निजी अनुभव से मैं यह समझ सकती हूँ कि भजनहार ने ऐसा क्यों कहा: “यहोवा ने मेरे जितने उपकार किए हैं, उनका बदला मैं उसको क्या दूं?”—भजन 116:12.

[पेज 26 पर तसवीर]

कारालामबूस और मैं हमेशा साथ-साथ रहते थे

[पेज 27 पर तसवीर]

मेरे पति, शाखा दफ्तर के अपने ऑफिस में

[पेज 28 पर तसवीर]

मैं मानती हूँ कि बेथेल में सेवा करना बड़े सम्मान की बात है