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सवाल 2

क्या किसी भी प्रकार का जीवन वाकई सरल है?

क्या किसी भी प्रकार का जीवन वाकई सरल है?

आपके शरीर में 200 से भी ज़्यादा तरह की कोशिकाएँ हैं, क्या ये अपने आप बन सकती हैं?

आपका शरीर विश्व की सबसे जटिल बनावट में से एक है। यह करीब 1,000 खरब बहुत छोटी-छोटी कोशिकाओं से बना है, जिनमें से कुछ हैं अस्थि कोशिका, रक्‍त कोशिका और मस्तिष्क कोशिका।7 दरअसल आपके शरीर में 200 से भी ज़्यादा अलग-अलग तरह की कोशिकाएँ होती हैं।8

हालाँकि इन कोशिकाओं का आकार और काम एक-दूसरे से काफी अलग होता है, लेकिन वे मिलकर बहुत ही बेहतरीन तरीके से काम करती हैं। कहने के लिए इंटरनेट पर डाटा केबल से जुड़े लाखों कंप्यूटर बड़ी रफ्तार से काम करते हैं, मगर कोशिकाओं के आगे उनकी रफ्तार कछुए की चाल के बराबर है। सबसे बुनियादी कोशिका जिस फुर्ती और बुद्धि से काम करती है, उसकी बराबरी इंसान की बनायी कोई चीज़ नहीं कर सकती। हमारे शरीर की कोशिकाएँ आखिर कैसे वजूद में आयीं?

कई वैज्ञानिक क्या दावा करते हैं? सारी जीवित कोशिकाओं को दो प्रकार में विभाजित किया जा सकता है। एक यूकेर्योटिक, जिसमें नाभिक या केंद्रक (न्यूक्लियस) होता है। दूसरा प्रोकेर्योटिक, जिसमें नाभिक नहीं होता। इंसानों, जानवरों और पेड़-पौधों की कोशिकाओं में नाभिक होता है। जीवाणुओं (बैक्टीरिया) में नाभिक नहीं होता। प्रोकेर्योटिक कोशिकाएँ यूकेर्योटिक कोशिकाओं से ज़्यादा सरल होती हैं, इसलिए कई लोग मानते हैं कि जानवरों और पौधों की कोशिकाओं का विकास बिना नाभिक वाले जीवाणुओं से हुआ है।

कई वैज्ञानिक सिखाते हैं कि लाखों सालों तक कुछ “सरल” प्रोकेर्योटिक कोशिकाओं ने दूसरी कोशिकाओं को निगल लिया लेकिन उन्हें पचाया नहीं। इसके बजाय, सिद्धांत के मुताबिक इस बुद्धिहीन “प्रकृति” ने एक रास्ता खोज निकाला। कोशिका ने न सिर्फ निगली कोशिकाओं के काम करने के तरीके को पूरी तरह बदल दिया, बल्कि जब यह विभाजित हुई तब इसने उन निगली कोशिकाओं को भी विभाजित कर दिया।9 *

बाइबल क्या कहती है? बाइबल बताती है कि धरती पर जीवन की रचना एक बुद्धिमान कलाकार ने की है। ऐसा क्यों कहा जा सकता है, इस बारे में बाइबल की यह बात गौर कीजिए: “बेशक, हर घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, मगर जिसने सबकुछ बनाया वह परमेश्वर है।” (इब्रानियों 3:4) बाइबल की एक और आयत कहती है: “हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है। . . . अनगिनित जलचरी जीव-जन्तु, क्या छोटे, क्या बड़े भरे पड़े हैं।”​—भजन 104:24, 25.

क्या निर्जीव रसायनों से एक “सरल” कोशिका भी बन सकती है?

सबूत क्या दिखाते हैं? सूक्ष्म-जीव विज्ञान में हुई तरक्की की बदौलत हम सबसे सरल प्रोकेर्योटिक कोशिका के अंदर झाँक पाए हैं। और वहाँ जो दिखायी देता है, उससे हमारे होश उड़ जाते हैं। विकासवाद को माननेवाले वैज्ञानिक कहते हैं कि सबसे पहली जीवित कोशिकाएँ शायद इन्हीं कोशिकाओं की तरह रही होंगी।10

अगर विकासवाद का सिद्धांत सच है, तो पहली “सरल” कोशिका अपने आप कैसे वजूद में आयी, इसका कोई भरोसेमंद सबूत तो उसे देना ही चाहिए। दूसरी तरफ अगर जीवन की सृष्टि की गयी है, तो सबसे सूक्ष्म जीवों में भी कमाल की कारीगरी का सबूत मिलना चाहिए। क्यों न हम प्रोकेर्योटिक कोशिका के अंदर जाकर देखें कि उसमें क्या-क्या होता है? ऐसा करते वक्‍त खुद से पूछिए कि क्या ऐसी कोशिका अपने आप बन सकती है?

कोशिका की सुरक्षा दीवार

प्रोकेर्योटिक कोशिका के अंदर जाने के लिए आपको एक बिंदु से भी सैकड़ों गुना छोटा होना पड़ेगा। कोशिका पर एक लचीली मगर मज़बूत झिल्ली होती है, जो किसी कारखाने की सुरक्षा के लिए बनायी गयी ईंट और सीमेंट की दीवार की तरह होती है। लेकिन यह इतनी महीन होती है कि अगर आप 10,000 झिल्लियों को एक-के-ऊपर-एक रखें, तब कहीं जाकर इसकी मोटाई एक कागज़ की मोटाई के बराबर होगी। यह झिल्ली ईंट की दीवार से कहीं ज़्यादा बेहतरीन तरीके से काम करती है। वह कैसे?

जिस तरह दीवार एक कारखाने की रक्षा करती है, उसी तरह झिल्ली कोशिका के तत्वों को बाहरी खतरनाक वातावरण से बचाती है। झिल्ली किसी दीवार की तरह ठोस नहीं होती इसलिए कोशिका आसानी से “साँस” ले पाती है यानी झिल्ली से ऑक्सीजन जैसे छोटे-छोटे अणु आर-पार आ-जा सकते हैं। लेकिन झिल्ली उन जटिल अणुओं को कोशिका की इजाज़त के बिना अंदर आने नहीं देती जो उसे नुकसान पहुँचा सकते हैं और उपयोगी अणुओं को बाहर निकलने से भी रोकती है। यह झिल्ली ऐसे हैरतअंगेज़ काम कैसे कर पाती है?

इसके काम को समझने के लिए ज़रा फिर से कारखाने पर गौर कीजिए। जिस तरह कारखाने के दरवाज़े पर तैनात सुरक्षा कर्मी आने-जानेवाली हर चीज़ का मुआएना करते हैं, उसी तरह झिल्ली में खास तरह के प्रोटीन अणु होते हैं, जो सुरक्षा कर्मियों की तरह काम करते हैं।

कोशिका झिल्ली के “सुरक्षा कर्मी” कुछ खास पदार्थों को ही कोशिका में आने-जाने देते हैं

कुछ प्रोटीनों के (1) बीचों-बीच छेद होता है, जो एक खास तरह के अणुओं को ही कोशिका में आने-जाने देता है। (2) बाकी प्रोटीनों में एक सिरा खुला होता है और दूसरा बंद। (3) इनमें एक जगह बंदरगाह की तरह होती है, जहाँ सिर्फ एक खास आकार का पदार्थ ही आकर ठहर सकता है, (4) जिसके बाद प्रोटीन का बंद सिरा खुल जाता है और पदार्थ को कोशिका के अंदर भेज दिया जाता है। ये सारे कारनामे तो सबसे सरल कोशिका की ऊपरी परत पर भी होते रहते हैं।

कारखाने के अंदर

कल्पना कीजिए कि “सुरक्षा कर्मी” ने आपको अंदर जाने की इजाज़त दे दी है और अब आप कोशिका के अंदर हैं। प्रोकेर्योटिक कोशिका के अंदर तरल पदार्थ होता है, जिसमें पोषक तत्व, नमक और दूसरे पदार्थ भरे होते हैं। कोशिका ऐसे कच्चे माल के ज़रिए अपने लिए ज़रूरी चीज़ों का निर्माण करती है। लेकिन यह काम बड़ी तरतीब से किया जाता है। एक बेहतरीन कारखाने की तरह कोशिका हज़ारों रसायनिक क्रियाओं का इंतज़ाम करती है जो व्यवस्थित रूप से और ठहराए समय के हिसाब से होती हैं।

एक कोशिका अपना काफी समय प्रोटीन बनाने में लगाती है। वह यह कैसे करती है? सबसे पहले आप देखेंगे कि कोशिका करीब 20 अलग-अलग तरह के बुनियादी अमीनो अम्ल बनाती है। ये अमीनो अम्ल (5) राइबोज़ोम्स के पास पहुँचाए जाते हैं। इन राइबोज़ोम्स की तुलना एक स्वचालित मशीन से की जा सकती है, जो खास तरह के प्रोटीन बनाने के लिए अमीनो अम्ल को एक तय क्रम में जोड़ती है। जिस तरह एक कंप्यूटर प्रोग्राम की निगरानी में कारखाने का सारा काम-काज होता है, उसी तरह कोशिका के भी ज़्यादातर काम (6) एक प्रोग्राम या कोड (डी.एन.ए.) की निगरानी में होते हैं। (7) इसलिए कौन-सा प्रोटीन कैसे बनाना है, यह जानकारी राइबोज़ोम को डी.एन.ए. से मिलती है।

प्रोटीन बनाने की क्रिया ऐसी है कि उसे देखकर हम दाँतों तले उँगली दबा लेंगे! (8) हर प्रोटीन के एक खास तरीके से मुड़ने से एक अनोखा त्रि-आयामी आकार बनता है। उसका यही आकार उसे एक खास तरह का काम करने की काबिलीयत देता है। * एक ऐसे कारखाने की कल्पना कीजिए जहाँ इंजन के पुरज़ों को जोड़ा जाता है। इंजन सही तरह से काम करे, इसके लिए ज़रूरी है कि उसका हर पुरज़ा ठीक-ठीक बनाया जाए। उसी तरह प्रोटीन भी तभी अपना काम ठीक-से कर पाएगा अगर वह सही तरीके से और सही आकार में मुड़ा हो, वरना वह कोशिका को नुकसान पहुँचा सकता है।

कोशिका “कारखाना”​—प्रोटीन कैसे बनते हैं: एक स्वचालित कारखाने की तरह, कोशिका भी मशीनों से भरी होती है जो जटिल पदार्थ बनाती और भेजती है

प्रोटीन जहाँ बनाए जाते हैं, वहाँ से रास्ता ढूँढ़ते हुए वे कैसे अपनी मंज़िल तक पहुँचते हैं? प्रोटीन बनाते वक्‍त कोशिका उस पर उसका “पता” भी लिख देती है, ताकि जहाँ उसकी ज़रूरत हो वहाँ उसे पहुँचा दिया जाए। एक मिनट में हज़ारों प्रोटीन बनाए और भेजे जाते हैं, लेकिन हर प्रोटीन अपनी सही मंज़िल पर पहुँचता है।

यह जानकारी क्यों मायने रखती है? सबसे सरल जीवित प्राणी के जटिल अणु अकेले प्रजनन नहीं कर सकते। कोशिका के बाहर वे टूट जाते हैं। कोशिका के अंदर वे दूसरे जटिल अणुओं की मदद से ही प्रजनन कर सकते हैं। मिसाल के लिए, एक खास तरह के ऊर्जा अणु, एडीनोसाइन ट्राइफॉस्फेट (ए.टी.पी.) बनाने के लिए एन्ज़ाइम की ज़रूरत होती है, पर एन्ज़ाइम बनाने के लिए ए.टी.पी. से ऊर्जा चाहिए। उसी तरह डी.एन.ए. (भाग 3 इस अणु पर चर्चा करेगा) बिना एन्ज़ाइम के नहीं बन सकता और एन्ज़ाइम को बनाने के लिए डी.एन.ए. की ज़रूरत होती है। दूसरे प्रोटीनों का निर्माण सिर्फ कोशिका की मदद से हो सकता है और कोशिका बिना प्रोटीनों की मदद से नहीं बन सकती। *

सूक्ष्म-जीव विज्ञानी राडू पोपा बाइबल में दिए सृष्टि के ब्यौरे से इत्तफाक नहीं रखते। फिर भी सन्‌ 2004 में उन्होंने पूछा: “प्रकृति अपने आप जीवन का निर्माण कैसे कर सकती है, जब हम इतनी सावधानी बरतने के बाद भी अपने प्रयोगों में ऐसा करने में नाकाम हुए हैं?”13 उन्होंने यह भी कहा: “एक जीवित कोशिका के काम करने के तरीके में इतनी जटिलताएँ हैं कि उन सबका एक साथ अपने आप वजूद में आना बिलकुल नामुमकिन लगता है।”14

जब बिना नींव की खड़ी इस बहु-मंज़िला इमारत का ढहना तय है, तो विकासवाद का सिद्धांत, जो जीवन की शुरूआत के बारे में नहीं समझा सकता, कब तक खड़ा रहेगा?

आप क्या सोचते हैं? विकासवाद का सिद्धांत यह साबित करने की कोशिश करता है कि धरती पर जीवन की शुरूआत करने के लिए परमेश्वर की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन वैज्ञानिक जितना ज़्यादा जीवन के बारे में खोजबीन करते हैं, हमें उतने ही ज़्यादा सबूत मिलते हैं कि जीवन अपने आप शुरू नहीं हो सकता। इस कश्मकश से बचने के लिए विकासवाद को माननेवाले कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि विकासवाद का सिद्धांत और जीवन की शुरूआत का सवाल, ये दो अलग विषय हैं और इन्हें जोड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। क्या यह बात आपको सही लगती है?

विकासवाद के मुताबिक एक-के-बाद-एक कई घटनाएँ घटीं और इत्तफाक से जीवन की शुरूआत हुई। इसके बाद और भी कई घटनाएँ घटीं, जिनकी वजह से धरती के अलग-अलग और जटिल जीव बने। लेकिन जब इस सिद्धांत का कोई आधार ही नहीं, तो इस पर बने दूसरे सिद्धांतों पर कितना यकीन किया जा सकता है? अगर एक बहु-मंज़िला इमारत बिना नींव के खड़ी हो, तो उसका ढहना तय है। उसी तरह विकासवाद का सिद्धांत जो जीवन की शुरूआत के बारे में नहीं बता सकता वह भी धराशायी हो जाएगा।

अभी हमने सिर्फ ऊपरी तौर पर एक “सरल” कोशिका की बनावट और काम करने के तरीके के बारे में देखा। इससे आपको किस बात के सबूत मिले? क्या जीवन अपने आप कई घटनाओं के घटने से आया या इसके पीछे किसी कुशल रचनाकार का हाथ है? अगर आपको अब भी यकीन नहीं होता, तो ज़रा उस “मास्टर प्रोग्राम” पर ध्यान दीजिए जो सारी कोशिकाओं को निर्देश देता है।

^ पैरा. 6 किसी भी प्रयोग से यह साबित नहीं हो पाया है कि ऐसा मुमकिन है।

^ पैरा. 18 प्रोटीन कई तरह के होते हैं, जिनमें से एक है एन्ज़ाइम। हर एन्ज़ाइम एक अमुक रसायनिक क्रिया को अंजाम देने के लिए खास तरह से मुड़ा होता है। कोशिका के काम सही तरीके से होते रहें, इसके लिए सैकड़ों एन्ज़ाइम साथ मिलकर काम करते हैं।

^ पैरा. 20 मानव शरीर की कुछ कोशिकाएँ करीब 10,00,00,00,000 प्रोटीन अणुओं11 से बनी होती हैं, जो सैकड़ों-हज़ारों तरह की होती हैं।12