मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 15:1-47
कई फुटनोट
अध्ययन नोट
महासभा: मत 26:59 का अध्ययन नोट देखें।
पीलातुस: यहूदिया का रोमी राज्यपाल (या प्रशासक), जिसे सम्राट तिबिरियुस ने ईसवी सन् 26 में नियुक्त किया था। पीलातुस करीब 10 साल तक हुकूमत करता रहा। बाइबल के लेखकों के अलावा दूसरे लेखकों ने भी उसका ज़िक्र किया। जैसे, रोमी इतिहासकार टैसीटस ने लिखा कि पीलातुस ने तिबिरियुस के शासन के दौरान मसीह को मरवाने का हुक्म दिया। इसराएल के कैसरिया में एक प्राचीन रोमी रंगशाला में एक शिलालेख मिला जिस पर लातीनी भाषा में लिखा है: “यहूदिया का प्रशासक, पुन्तियुस पीलातुस।”—पीलातुस का किन इलाकों पर शासन था, यह जानने के लिए अति. ख10 देखें।
क्या तू यहूदियों का राजा है?: मत 27:11 का अध्ययन नोट देखें।
तू खुद यह कहता है: मत 27:11 का अध्ययन नोट देखें।
किसी एक कैदी को रिहा कर देता था: इस घटना के बारे में खुशखबरी की किताबों के चारों लेखकों ने लिखा। (मत 27:15-23; लूक 23:16-25; यूह 18:39, 40) इस रिवाज़ का कोई आधार इब्रानी शास्त्र में नहीं मिलता। लेकिन मालूम होता है कि यीशु के दिनों तक यहूदियों ने खुद यह रिवाज़ शुरू कर दिया था। रोमियों के लिए यह रिवाज़ कोई नया नहीं था क्योंकि सबूत दिखाते हैं कि वे भीड़ को खुश करने के लिए कैदियों को रिहा करते थे।
वे फिर चिल्ला उठे: जैसे लूक 23:18-23 से पता चलता है, भीड़ ने कम-से-कम तीन बार पीलातुस से चिल्लाकर कहा कि यीशु को मार डालो। मरकुस के इस ब्यौरे से पता चलता है कि पीलातुस ने तीन बार भीड़ से यीशु के बारे में सवाल किया।—मर 15:9, 12, 14.
कोड़े लगवाने: मत 27:26 का अध्ययन नोट देखें।
राज्यपाल के भवन: मत 27:27 का अध्ययन नोट देखें।
उन्होंने उसे बैंजनी कपड़ा पहनाया: उन्होंने यीशु का मज़ाक उड़ाने के इरादे से ऐसा किया क्योंकि उसने खुद को राजा कहा। मत्ती के ब्यौरे (27:28) में बताया गया है कि सैनिकों ने यीशु को “सुर्ख लाल रंग का एक कपड़ा” पहनाया, जो आम तौर पर राजा, नगर-अधिकारी या सेना-अफसर पहनते थे। मरकुस और यूहन्ना के ब्यौरे (19:2) में कहा गया है कि यह कपड़ा बैंजनी रंग का था। लेकिन प्राचीन समय में ऐसे किसी भी रंग को “बैंजनी” कहा जाता था जिसमें लाल और नीले रंगों का मिश्रण हो। इसके अलावा, देखनेवाले को कौन-सा रंग दिखायी दे रहा था, यह इससे तय होता है कि वह कहाँ से देख रहा था, उस कपड़े पर किधर से रौशनी पड़ रही थी और पीछे क्या था। खुशखबरी की किताबों के लेखकों ने जिस तरह अलग-अलग रंगों का ज़िक्र किया, वह दिखाता है कि उन्होंने एक-दूसरे के ब्यौरे की नकल नहीं की।
ताज: सैनिकों ने यीशु के राजा होने की बात का कई तरीकों से मज़ाक उड़ाया, जैसे उसे बैंजनी कपड़ा पहनाया, काँटों का ताज उसके सिर पर रखा और मत 27:29 के मुताबिक राजदंड के तौर पर उसे “एक नरकट” दिया।
सलाम!: मत 27:29 का अध्ययन नोट देखें।
उस पर थूकने लगे: इस तरह जब यीशु का अपमान किया गया, तो मर 10:34 में दर्ज़ खुद यीशु की भविष्यवाणी और यश 50:6 में दर्ज़ मसीहा के बारे में भविष्यवाणी पूरी हुई।—मर 10:34 का अध्ययन नोट देखें।
उसे झुककर प्रणाम करने लगे: या “उसे दंडवत करने लगे; उसका सम्मान करने लगे।” यहाँ यूनानी क्रिया प्रोस्किनीयो उन सैनिकों के संबंध में इस्तेमाल हुई है, जो यीशु का मज़ाक उड़ाने के इरादे से उसे प्रणाम कर रहे थे और ‘यहूदियों का राजा’ कहकर पुकार रहे थे।—मर 15:18; कृपया मत 2:2 का अध्ययन नोट देखें।
उसे काठ पर ठोंकने: या “उसे काठ (या खंभे) पर लटकाने।”—मत 20:19 का अध्ययन नोट और शब्दावली में “काठ”; “यातना का काठ” देखें।
कुरेने: मत 27:32 का अध्ययन नोट देखें।
सिकंदर और रूफुस का पिता: कुरेने के रहनेवाले शमौन के बारे में यह जानकारी सिर्फ मरकुस ने दी।
जबरन सेवा के लिए पकड़ा: यहाँ उस सेवा की बात की गयी है जो रोमी अधिकारी किसी भी नागरिक से करवा सकते थे। जैसे, कोई सरकारी काम जल्दी पूरा करवाने के लिए वे लोगों या जानवरों को ज़बरदस्ती उस काम में लगा सकते थे या लोगों की कोई भी चीज़ ले सकते थे।—मत 5:41 का अध्ययन नोट देखें।
यातना का काठ: मत 27:32 का अध्ययन नोट देखें।
गुलगुता: मत 27:33 का अध्ययन नोट देखें।
खोपड़ी स्थान: इनके यूनानी शब्द हैं, क्रेनीयू टॉपोस जो इब्रानी शब्द गुलगुता का अनुवाद हैं। (यूह 19:17 के अध्ययन नोट देखें।) बाइबल के कुछ अँग्रेज़ी अनुवादों में लूक 23:33 में “कैलवेरी” शब्द इस्तेमाल हुआ है। यह लातीनी शब्द कैलवेरिया से निकला है जिसका मतलब है, “खोपड़ी।” शब्द कैलवेरिया लातीनी वल्गेट बाइबल में इस्तेमाल हुआ है।
नशीली गंधरस मिली दाख-मदिरा: इसके मिलते-जुलते ब्यौरे मत 27:34 में लिखा है कि दाख-मदिरा में “पित्त” मिलाया गया था। लेकिन मुमकिन है कि उस दाख-मदिरा में गंधरस और कड़वा पित्त, दोनों मिलाए गए थे। ज़ाहिर है कि यह मिश्रण दर्द कम करने के लिए पिलाया जाता था।—इसी आयत में उसने नहीं पी पर अध्ययन नोट और मत 27:34 का अध्ययन नोट देखें।
उसने नहीं पी: ज़ाहिर है कि यीशु अपने विश्वास की परीक्षा के दौरान पूरे होश-हवास में रहना चाहता था।
उसके ओढ़ने . . . आपस में बाँट लिया: मत 27:35 का अध्ययन नोट देखें।
चिट्ठियाँ डालीं: शब्दावली में “चिट्ठियाँ” देखें।
तीसरा घंटा: यानी सुबह करीब 9 बजे। कुछ लोगों का कहना है कि यहाँ बताए समय और यूह 19:14-16 में बताए समय में फर्क है। उन आयतों में लिखा है कि ‘दिन के करीब छठे घंटे’ (करीब 12 बजे) पीलातुस ने यीशु को काठ पर लटकाकर मार डालने के लिए सौंप दिया। हालाँकि यह फर्क समझाने के लिए बाइबल में ज़्यादा जानकारी नहीं मिलती, फिर भी कुछ बातें हैं जिन पर ध्यान दिया जा सकता है: खुशखबरी की किताबों में यीशु की ज़िंदगी के आखिरी दिन यानी उसकी मौत से पहले हुईं घटनाओं के समय के बारे में जो बताया गया है, वह आम तौर पर एक-दूसरे से मेल खाता है। जैसे, चारों किताबें बताती हैं कि याजक और मुखिया सूरज निकलने के बाद मिले और फिर वे यीशु को रोमी राज्यपाल पुन्तियुस पीलातुस के पास ले गए। (मत 27:1, 2; मर 15:1; लूक 22:66–23:1; यूह 18:28) मत्ती, मरकुस और लूका ने बताया कि जब यीशु को काठ पर लटकाया जा चुका था तब “छठे घंटे से . . . नौवें घंटे तक” देश में अंधकार छाया रहा। (मत 27:45, 46; मर 15:33, 34; लूक 23:44) यीशु को सज़ा देने के समय को लेकर जो फर्क है उसकी एक वजह शायद यह है: कुछ लोगों का मानना था कि कोड़े मारना, काठ पर लटकाकर मार डालने की सज़ा में ही शामिल है। कई बार सज़ा पानेवाले को कोड़े इतनी बेरहमी से मारे जाते थे कि वह उसी समय दम तोड़ देता था। यीशु को भी इतनी बेदर्दी से कोड़े मारे गए थे कि वह पूरे रास्ते अपना काठ उठाकर नहीं ले जा पाया बल्कि बीच में दूसरे आदमी को उसका काठ उठाना पड़ा। (लूक 23:26; यूह 19:17) अगर यह माना जाए कि काठ पर लटकाकर मार डालने की सज़ा कोड़े मारने से शुरू हो जाती थी, तो यीशु को कोड़े लगवाने और काठ पर लटकाकर मार डालने के बीच ज़रूर कुछ वक्त गुज़रा होगा। यह बात मत 27:26 और मर 15:15 से पुख्ता होती है, जहाँ कोड़े लगवाने और काठ पर लटकाकर मार डालने का ज़िक्र साथ-साथ किया गया है। तो फिर लेखकों ने शायद यीशु को मार डालने की सज़ा का अलग-अलग समय इसलिए बताया क्योंकि सज़ा के बारे में उनका नज़रिया अलग था। इन सारी बातों से पता चलता है कि क्यों पीलातुस को यह जानकर ताज्जुब हुआ कि काठ पर लटकाने के बाद इतनी जल्दी यीशु की मौत हो गयी। (मर 15:44) इसके अलावा, उस ज़माने में रात की तरह दिन को भी चार पहरों में बाँटा जाता था और हर पहर तीन घंटे का होता था। बाइबल के लेखक इसी के मुताबिक समय की जानकारी देते थे। इसलिए बाइबल में अकसर तीसरे, छठे और नौवें घंटे का ज़िक्र मिलता है और इन घंटों का हिसाब सूरज निकलने से यानी करीब 6 बजे से लगाया जाता था। (मत 20:1-5; यूह 4:6; प्रेष 2:15; 3:1; 10:3, 9, 30) इतना ही नहीं, उन दिनों घड़ियाँ नहीं होती थीं, इसलिए दिन का कोई समय बताते वक्त अकसर “करीब” शब्द इस्तेमाल होता था, जैसा कि यूह 19:14 में लिखा है। (मत 27:46; लूक 23:44; यूह 4:6; प्रेष 10:3, 9) इन बातों का निचोड़ यह है: मरकुस ने शायद काठ पर लटकाकर मार डालने की सज़ा में कोड़े लगवाने की बात भी शामिल की, जबकि यूहन्ना ने सिर्फ काठ पर लटकाकर मार डालने की बात की। दोनों लेखकों ने शायद मोटे तौर पर घंटों का ज़िक्र किया। मरकुस ने दिन के पहले पहर के आखिरी घंटे, यानी तीसरे घंटे का और यूहन्ना ने दूसरे पहर के आखिरी घंटे यानी छठे घंटे का ज़िक्र किया। यूहन्ना ने जब समय के बारे में बताया तो उसने “करीब” शब्द भी लिखा। शायद यही कुछ वजह हैं कि क्यों खुशखबरी की किताबों में अलग-अलग समय का ज़िक्र किया गया है। और-तो-और, यूहन्ना ने जो समय बताया वह मरकुस के बताए समय से अलग है, यह दिखाता है कि जब सालों बाद यूहन्ना ने खुशखबरी की किताब लिखी, तो उसने मरकुस के ब्यौरे की नकल नहीं की।
लुटेरों: मत 27:38 का अध्ययन नोट देखें।
बाद की कुछ हस्तलिपियों में यहाँ लिखा है: “और शास्त्र का यह वचन पूरा हुआ जो कहता है, ‘और वह अपराधियों में गिना गया।’” ये शब्द यश 53:12 का हिस्सा हैं। लेकिन ये शब्द सबसे पुरानी और भरोसेमंद हस्तलिपियों में मर 15:28 में नहीं पाए जाते। ज़ाहिर है कि ये शब्द मरकुस के मूल पाठ का हिस्सा नहीं हैं। इनसे मिलते-जुलते शब्द लूक 22:37 में दर्ज़ हैं और यह आयत परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी है। कुछ लोगों का मानना है कि किसी नकल-नवीस ने लूका के ये शब्द इस आयत में लिख दिए।—अति. क3 देखें।
सिर हिला-हिलाकर: मत 27:39 का अध्ययन नोट देखें।
यातना के काठ: मत 27:32 का अध्ययन नोट देखें।
यातना के काठ: मत 27:32 का अध्ययन नोट देखें।
छठा घंटा: यानी दोपहर करीब 12 बजे।—मत 20:3 का अध्ययन नोट देखें।
अंधकार: इसके मिलते-जुलते ब्यौरे लूक 23:44, 45 में यह भी बताया गया है कि “सूरज ने रौशनी देना बंद कर दिया।” यह अंधकार इसलिए छा गया क्योंकि परमेश्वर ने चमत्कार किया था। यह सूर्यग्रहण की वजह से नहीं हो सकता था। सूर्यग्रहण नए चाँद के वक्त होता है, जबकि यह फसह का वक्त था जब पूरा चाँद होता है। इसके अलावा, पूरा सूर्यग्रहण ज़्यादा-से-ज़्यादा आठ मिनट तक हो सकता है, जबकि यह अंधकार तीन घंटे तक रहा।
नौवें घंटे: यानी दोपहर करीब 3 बजे।—मत 20:3 का अध्ययन नोट देखें।
एली, एली, लामा शबकतानी?: मत 27:46 का अध्ययन नोट देखें।
मेरे परमेश्वर, मेरे परमेश्वर: मत 27:46 का अध्ययन नोट देखें।
एलियाह: एक इब्रानी नाम जिसका मतलब है, “मेरा परमेश्वर यहोवा है।”
खट्टी दाख-मदिरा: मत 27:48 का अध्ययन नोट देखें।
नरकट: मत 27:48 का अध्ययन नोट देखें।
दम तोड़ दिया: या “आखिरी साँस ली।”—मत 27:50 का अध्ययन नोट देखें।
मंदिर: मत 27:51 का अध्ययन नोट देखें।
परदा: मत 27:51 का अध्ययन नोट देखें।
सेना-अफसर: या रोमी “शतपति” जिसके अधीन करीब 100 सैनिक होते थे। यह अधिकारी शायद उस वक्त मौजूद रहा हो जब यीशु को पीलातुस के सामने पेश किया गया और उसने यहूदियों को यह कहते सुना होगा कि यीशु का दावा है कि वह परमेश्वर का बेटा है। (मर 15:16; यूह 19:7) मरकुस ने यहाँ यूनानी शब्द कैंटिरायोन इस्तेमाल किया जो एक लातीनी शब्द से लिया गया है। यह यूनानी शब्द मर 15:44, 45 में भी आया है।—“मरकुस की किताब पर एक नज़र” और मर 6:27; यूह 19:20 के अध्ययन नोट देखें।
मरियम मगदलीनी: मत 27:56 का अध्ययन नोट देखें।
छोटे याकूब: यीशु का एक प्रेषित और हलफई का बेटा। (मत 10:2, 3; मर 3:18; लूक 6:15; प्रेष 1:13) इस याकूब को ‘छोटा’ शायद इसलिए कहा गया क्योंकि वह जब्दी के बेटे प्रेषित याकूब से या तो उम्र में छोटा था या कद में।
योसेस: यह एक इब्रानी शब्द से निकला है और योसिप्याह नाम का छोटा रूप है जिसका मतलब है, “याह जोड़ दे (या बढ़ाए); याह ने जोड़ दिया (या बढ़ाया) है।” हालाँकि कुछ हस्तलिपियों में यहाँ “यूसुफ” लिखा है, लेकिन ज़्यादातर प्राचीन हस्तलिपियों में “योसेस” लिखा है।—इसके मिलते-जुलते ब्यौरे मत 27:56 से तुलना करें।
सलोमी: मुमकिन है कि यह नाम एक इब्रानी शब्द से लिया गया है जिसका मतलब है, “शांति।” सलोमी, यीशु के चेलों में से एक थी। मत 27:56 की तुलना मर 3:17 और 15:40 से करने पर पता चलता है कि सलोमी शायद प्रेषित याकूब और यूहन्ना की माँ थी। मत्ती ने “जब्दी के बेटों की माँ” का ज़िक्र किया और मरकुस ने उसे “सलोमी” कहा। यही नहीं, मत्ती और मरकुस के ब्यौरे की तुलना यूह 19:25 से करने से पता चलता है कि सलोमी, यीशु की माँ मरियम की सगी बहन रही होगी। अगर ऐसा है तो याकूब और यूहन्ना यीशु के मौसेरे भाई थे। इसके अलावा मत 27:55, 56, मर 15:41 और लूक 8:3 से पता चलता है कि सलोमी उन औरतों में से एक थी, जो यीशु के साथ जाती थीं और अपनी धन-संपत्ति से उसकी सेवा करती थीं।
तैयारी का दिन: सबूतों से पता चलता है कि मरकुस ने अपनी किताब गैर-यहूदियों के लिए लिखी थी, इसलिए वह यहाँ तैयारी के दिन का मतलब समझाते हुए कहता है कि यह सब्त से पहले का दिन था। यह जानकारी खुशखबरी की दूसरी किताबों में नहीं पायी जाती। (मत 27:62; लूक 23:54; यूह 19:31) इसी दिन यहूदी सब्त की तैयारी करते थे। वे ज़्यादा खाना बनाते थे और ऐसे काम निपटाते थे जो सब्त के अगले दिन तक टाले नहीं जा सकते थे। ईसवी सन् 33 में तैयारी के दिन नीसान 14 भी पड़ा।—शब्दावली देखें।
अरिमतियाह: मत 27:57 का अध्ययन नोट देखें।
यूसुफ: खुशखबरी की किताबों के चारों लेखकों ने यूसुफ के बारे में अलग-अलग जानकारी दी। इससे पता चलता है कि हर लेखक ने अपने अंदाज़ में किताब लिखी। जैसे, मत्ती कर-वसूलनेवाला था, इसलिए उसने लिखा कि यूसुफ “एक अमीर आदमी” था। मरकुस ने खासकर रोमी लोगों के लिए लिखा था, इसलिए उसने कहा कि वह “धर्म-सभा का एक इज़्ज़तदार सदस्य” था जो परमेश्वर के राज के आने का इंतज़ार कर रहा था। लूका हमदर्द वैद्य था, इसलिए उसने लिखा कि वह “एक अच्छा और नेक इंसान था” और उसने धर्म-सभा के लोगों का साथ नहीं दिया जो यीशु के खिलाफ साज़िश कर रहे थे। सिर्फ यूहन्ना ने यह लिखा कि वह “यीशु का एक चेला था, मगर यहूदियों के डर से यह बात छिपाए रखता था।”—मत 27:57-60; मर 15:43-46; लूक 23:50-53; यूह 19:38-42.
धर्म-सभा का . . . सदस्य: यानी यरूशलेम में यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत, महासभा का एक सदस्य।—मत 26:59 का अध्ययन नोट और शब्दावली में “महासभा” देखें।
कब्र: मत 27:60 का अध्ययन नोट देखें।
पत्थर: ज़ाहिर है कि यह गोल था क्योंकि आयत कहती है कि उसे लुढ़काकर द्वार पर रखा गया था और मर 16:4 कहता है कि जब यीशु को ज़िंदा किया गया तो पत्थर “पहले से ही दूर लुढ़का हुआ था।” इसका वज़न शायद एक टन या उससे ज़्यादा रहा होगा। मत्ती के ब्यौरे में इसे “एक बड़ा पत्थर” बताया गया है।—मत 27:60.
तसवीर और ऑडियो-वीडियो

यरूशलेम में यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत को महासभा कहा जाता था। यह 71 सदस्यों से मिलकर बनी होती थी। (शब्दावली में “महासभा” देखें।) मिशना के मुताबिक, बैठने की जगह अर्ध-गोलाकार में तीन पंक्तियों में सीढ़ीनुमा होती थीं। दो शास्त्री अदालत के फैसले दर्ज़ करने के लिए मौजूद होते थे। चित्र में महासभा की जो बनावट दिखायी गयी है, उसकी कुछ बातें उस इमारत से मिलती-जुलती हैं जिसके खंडहर यरूशलेम में पाए गए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ये खंडहर पहली सदी की धर्म-सभा के भवन के हैं, जहाँ महासभा की अदालत लगती थी।—अतिरिक्त लेख ख12, नक्शा “यरूशलेम और उसके आस-पास का इलाका” देखें।
1. महायाजक
2. महासभा के सदस्य
3. आरोपी
4. शास्त्री

इस तसवीर में दिखाया गया है कि कैसे एक इंसान की एड़ी में 4.5 इंच (11.5 सें.मी.) लंबी एक लोहे की कील ठोंकी गयी है। यह सचमुच की एड़ी की हड्डी नहीं बल्कि उसका नमूना है। असली हड्डी का टुकड़ा तो 1968 में पुरातत्ववेत्ताओं को उत्तरी यरूशलेम में खुदाई के वक्त मिला था। यह टुकड़ा रोमी लोगों के ज़माने का था। इससे पता चलता है कि लोगों को कीलों से काठ पर ठोंका जाता था। रोमी सैनिकों ने शायद इसी तरह की कीलों से यीशु मसीह को काठ पर ठोंका था। हड्डी का वह टुकड़ा पत्थर के एक बक्से में मिला था जिसमें लाश के सड़ जाने पर उसकी हड्डियाँ रखी जाती थीं। इससे पता चलता है कि किसी को काठ पर लटकाकर मार डालने के बाद कभी-कभी उसे दफनाया जाता था।

यहूदी आम तौर पर गुफाओं या चट्टानों को काटकर बनायी गयी कब्रों में लाश दफनाते थे। राजाओं की कब्रों को छोड़ बाकी सभी कब्रें शहरों से बाहर होती थीं। गौर करने लायक बात यह है कि जो यहूदी कब्रें मिली हैं, वे बहुत सादी हैं। ऐसा इसलिए था क्योंकि सबूत दिखाते हैं कि यहूदी न तो मरे हुओं की पूजा करते थे और न ही अमर आत्मा की शिक्षा को बढ़ावा देते थे।