विपत्ति के दिन आने से पहले यहोवा की सेवा कीजिए
“अपने सृजनहार को स्मरण रख।”—सभो. 12:1.
1, 2. (क) यहोवा ने सुलैमान को जवानों से क्या कहने के लिए प्रेरित किया? (ख) सुलैमान की इस सलाह में उन मसीहियों को भी दिलचस्पी क्यों होनी चाहिए जिनकी उम्र 50 से ऊपर है?
यहोवा ने राजा सुलैमान को जवानों से यह कहने के लिए प्रेरित किया: ‘अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख, इस से पहिले कि विपत्ति के दिन आएं।’ ये “विपत्ति के दिन” क्या हैं? दरअसल ये बुढ़ापे को दर्शाते हैं। सुलैमान ने कविता के रूप में बुढ़ापे में होनेवाली इन तकलीफों का ज़िक्र किया: हाथ कँपकँपाना, टाँगें लड़खड़ाना, दाँत गिरना, नज़र कमज़ोर होना, सुनाई कम देना, बाल सफेद होना और कमर झुकना। वाकई, यहोवा की सेवा शुरू करने के लिए किसी को भी उम्र के इस पड़ाव के आने तक इंतज़ार नहीं करना चाहिए।—सभोपदेशक 12:1-5 पढ़िए।
2 ऐसे बहुत-से मसीही हैं, जिनकी उम्र 50 से ऊपर है, लेकिन उनमें अब भी बहुत दमखम और जोश है। हो सकता है उनके बाल सफेद होने लगे हों, पर वे शायद उम्र के उस पड़ाव तक नहीं पहुँचे हैं, जिसका ज़िक्र सुलैमान ने किया था। क्या ये अनुभवी मसीही भी सुलैमान की इस सलाह से फायदा पा सकते हैं, जो उसने जवानों को दी थी: “अपने सृजनहार को स्मरण रख”? इस सलाह का क्या मतलब है?
3. अपने महान सिरजनहार को स्मरण रखने का क्या मतलब है?
3 भले ही हम सालों से यहोवा की सेवा कर रहे हों, फिर भी अच्छा होगा कि हम समय-समय पर इस बारे में सोचने के लिए वक्त निकालें कि हमारा सिरजनहार कितना महान है। जीवन के बेशकीमती तोहफे के बारे में सोचकर क्या हम विस्मय और श्रद्धा से भर नहीं जाते? उसकी सृष्टि की बनावट इतनी जटिल है कि हम पूरी तरह इसे समझ नहीं सकते। यहोवा की सृजी अनगिनत खूबसूरत चीज़ों की बदौलत हम कई तरह से ज़िंदगी का लुत्फ उठा पाते हैं। जब हम उसकी बनायी चीज़ों पर मनन करते हैं, तो उसके प्यार, उसकी बुद्धि और ताकत के लिए हमारा दिल कदरदानी से भर जाता है। (भज. 143:5) लेकिन अपने महान सिरजनहार को स्मरण रखने का मतलब यह भी है कि हम याद करें कि वह हमसे क्या उम्मीद करता है। इन सभी बातों पर मनन करने से हमें बढ़ावा मिलता है कि जब तक हम ज़िंदा हैं, तब तक उसकी सेवा में तन-मन से लगे रहकर उसके लिए अपनी कदरदानी दिखाते रहें।—सभो. 12:13.
अनुभवी मसीहियों के आगे रखे कुछ अनोखे मौके
4. सालों का तजुरबा रखनेवाले मसीही खुद से क्या ज़रूरी सवाल पूछ सकते हैं? और क्यों?
4 अगर आपको सालों का तजुरबा है, तो खुद से यह ज़रूरी सवाल पूछिए, ‘जब तक मुझमें थोड़ी-बहुत ताकत है, मैं अपनी ज़िंदगी में क्या करूँगा?’ एक अनुभवी मसीही होने के नाते आपके पास कुछ ऐसे मौके हैं, जो दूसरों के पास नहीं हैं। मिसाल के लिए, आप जवानों को वे बातें सिखा सकते हैं, जो आपने इतने लंबे समय के दौरान यहोवा से सीखी हैं। यहोवा की सेवा में आपको जो अनुभव मिले हैं, उन्हें दूसरों के साथ बाँटकर आप उनका हौसला बढ़ा सकते हैं। राजा दाविद ने यहोवा से प्रार्थना की थी कि उसे ऐसा करने के मौके मिलें। उसने लिखा: “हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है . . . हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं।”—भज. 71:17, 18.
5. उम्रदराज़ मसीही दूसरों के साथ वे बातें कैसे बाँट सकते हैं, जो उन्होंने सालों के दौरान सीखी हैं?
5 आपने सालों के दौरान जो बुद्धि हासिल की है, उसे आप दूसरों के साथ कैसे बाँट सकते हैं? क्या आप कुछ जवानों को अपने घर बुला सकते हैं, ताकि वे हौसला बढ़ानेवाली संगति का आनंद उठा सकें? क्या आप उन्हें अपने साथ प्रचार में ले जा सकते हैं, ताकि वे देख सकें कि आप यहोवा की सेवा में कितने खुश हैं? पुराने ज़माने के एलीहू ने कहा: “जो आयु में बड़े हैं वे ही बात करें, और जो बहुत वर्ष के हैं, वे ही बुद्धि सिखाएं।” (अय्यू. 32:7) प्रेषित पौलुस ने अनुभवी मसीही स्त्रियों को बढ़ावा दिया कि वे अपनी बातों और मिसाल से दूसरों का हौसला बढ़ाएँ। उसने लिखा: ‘बुज़ुर्ग बहनें अच्छी बातों की सिखानेवाली हों।’—तीतु. 2:3.
आप दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं
6. सालों का तजुरबा रखनेवाले मसीहियों को क्यों अपनी काबिलीयतों को कम नहीं आँकना चाहिए?
6 अगर आप एक अनुभवी मसीही हैं, तो आप दूसरों की मदद करने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। ज़रा उन बातों के बारे में सोचिए जो आज आप जानते हैं, लेकिन आज से 30 या 40 साल पहले नहीं जानते थे। आप जानते हैं कि कैसे बाइबल के सिद्धांत ज़िंदगी के अलग-अलग हालात में लागू किए जा सकते हैं। आप दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ असरदार तरीके से सिखाने की काबिलीयत रखते हैं। अगर आप एक प्राचीन हैं, तो आप जानते हैं कि ऐसे भाइयों की मदद कैसे की जा सकती है, जिन्होंने गलत कदम उठाएँ हैं। (गला. 6:1) शायद आपने मंडली के अलग-अलग कामों की, सम्मेलन से जुड़े विभागों की, या राज-घर निर्माण काम की निगरानी करना सीखा होगा। या आप शायद जानते हों कि कैसे डॉक्टरों को बगैर खून इलाज करने के तरीके इस्तेमाल करने का बढ़ावा दिया जा सकता है। हो सकता है आपने हाल ही में सच्चाई सीखी हो, लेकिन आपको ज़िंदगी का तजुरबा है। मिसाल के लिए, अगर आपने बच्चों की परवरिश की है, तो ज़ाहिर है आपने ऐसे कई हुनर सीखे होंगे जो ज़िंदगी में बहुत काम आते हैं। सालों का तजुरबा रखनेवाले मसीही यहोवा के लोगों को सिखाने, उनका मार्गदर्शन करने और हौसला बढ़ाने की ज़बरदस्त काबिलीयत रखते हैं।—अय्यूब 12:12 पढ़िए।
7. बुज़ुर्ग मसीही, जवानों को क्या बढ़िया तालीम दे सकते हैं?
7 आप दूसरों की मदद करने के लिए और किन तरीकों से अपनी काबिलीयतें इस्तेमाल कर सकते हैं? शायद आप जवानों को बाइबल अध्ययन शुरू करना और चलाना सिखा सकते हैं। अगर आप एक बहन हैं, तो क्या आप जवान माँओं को कुछ सुझाव दे सकती हैं कि कैसे वे छोटे बच्चों की देखभाल करने के साथ-साथ, यहोवा की सेवा जोश के साथ करती रह सकती हैं। अगर आप एक भाई हैं, तो क्या आप जवान भाइयों को जोश के साथ भाषण देना और असरदार तरीके से प्रचार करना सिखा सकते हैं? क्या आप जवानों को दिखा सकते हैं कि जब आप बुज़ुर्ग भाई-बहनों से मिलने जाते हैं, तो आप कैसे उनका हौसला बढ़ाते हैं? भले ही अब आपमें वह पहले जैसा दमखम न रहा हो, लेकिन आज भी आपके पास जवानों को तालीम देने के बढ़िया मौके हैं। परमेश्वर का वचन कहता है: “जवानों का गौरव उनका बल है, परन्तु बूढ़ों की शोभा उनके पक्के बाल हैं।”—नीति. 20:29.
वहाँ सेवा करना जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है
8. बुज़ुर्ग होने पर भी प्रेषित पौलुस ने क्या किया?
8 बुज़ुर्ग होने पर भी प्रेषित पौलुस यहोवा की सेवा में बहुत व्यस्त रहा। करीब ईसवी सन् 61 में, जब तक वह रोम की कैद से रिहा हुआ, उसने मिशनरी सेवा में कड़ी मेहनत करने में कई साल गुज़ार दिए थे। वह चाहता तो रोम में ही रहकर प्रचार करके आराम की ज़िंदगी बिता सकता था। (2 कुरिं. 11:23-27) और इसमें कोई शक नहीं कि रोम के भाइयों को भी बहुत खुशी होती, अगर पौलुस वहीं रहकर उनकी मदद करता। मगर पौलुस ने गौर किया कि दूसरे देशों में प्रचारकों की ज़रूरत ज़्यादा है। उसने तीमुथियुस और तीतुस के साथ मिलकर अपना मिशनरी दौरा जारी रखा। उसने उनके साथ इफिसुस तक सफर किया, फिर वे क्रेते और शायद मकिदुनिया भी गए। (1 तीमु. 1:3; तीतु. 1:5) हम नहीं जानते कि पौलुस स्पेन गया या नहीं, लेकिन उसने वहाँ जाने की योजना ज़रूर बनायी थी।—रोमि. 15:24, 28.
9. पतरस उस इलाके में सेवा करने कब गया होगा, जहाँ खुशखबरी सुनानेवालों की ज़्यादा ज़रूरत थी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
9 जब प्रेषित पतरस वहाँ सेवा करने गया जहाँ खुशखबरी सुनानेवालों की ज़्यादा ज़रूरत थी, तब शायद उसकी उम्र 50 से ऊपर रही होगी। हम ऐसा कैसे कह सकते हैं? अगर उसकी उम्र यीशु जितनी, या उससे थोड़ी ज़्यादा थी, तो ईसवी सन् 49 में जब वह यरूशलेम में दूसरे प्रेषितों से मिला, तब वह करीब 50 साल का रहा होगा। (प्रेषि. 15:7) यरूशलेम में रखी उस सभा के कुछ वक्त बाद, पतरस बैबिलोन में रहने गया, शायद इसलिए ताकि वह वहाँ रहनेवाले बहुत-से यहूदियों को प्रचार कर सके। (गला. 2:9) करीब ईसवी सन् 62 में जब उसने परमेश्वर की प्रेरणा से अपना पहला खत लिखा, तब वह वहीं रह रहा था। (1 पत. 5:13) किसी दूसरे देश में जाकर रहने से कई चुनौतियाँ आती हैं, लेकिन पतरस ने यहोवा की सेवा में इस बात को आड़े आने नहीं दिया। उम्र होने पर भी उसने खुद को उस खुशी से महरूम नहीं रखा, जो तन-मन से यहोवा की सेवा करने से मिलती है।
10, 11. बताइए कि 50 साल से ज़्यादा उम्र के एक मसीही जोड़े ने क्या फैसला किया।
10 आज 50 साल से ज़्यादा उम्र के बहुत-से मसीहियों ने पाया है कि अब उनके हालात बदल गए हैं और वे नए तरीकों से यहोवा की सेवा कर पा रहे हैं। इनमें से कुछ भाई-बहन ऐसे इलाकों में सेवा कर रहे हैं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। मिसाल के लिए, रॉबर्ट नाम का एक भाई लिखता है: “मैं और मेरी पत्नी करीब 55 साल के थे, जब हमें एहसास हुआ कि हमारे आगे सेवा करने के कितने मौके हैं। हमारा एकलौता बेटा अलग रहता था और हमारे माता-पिता गुज़र गए थे। हमें उनसे विरासत में थोड़ी-बहुत जायदाद मिली थी। मैंने बैठकर हिसाब लगाया कि अपना घर बेचने पर हमें जो पैसे मिलेंगे उससे हम घर का कर्ज़ भी चुका पाएँगे और जब तक मुझे पेंशन मिलनी शुरू नहीं हो जाती, तब तक हमारा गुज़ारा भी चल जाएगा। हमने सुना था कि बोलीविया में बहुत-से लोग बाइबल अध्ययन कबूल कर रहे हैं और वहाँ गुज़र करना भी आसान है। इसलिए हमने फैसला किया कि हम वहीं जाकर बस जाएँगे। नए माहौल में खुद को ढालना इतना आसान नहीं था। उत्तर अमरीका में हम जो ज़िंदगी बिता रहे थे उसमें और यहाँ की ज़िंदगी में ज़मीन आसमान का फर्क था। लेकिन हमारी मेहनत रंग लायी।”
11 रॉबर्ट यह भी बताता है: “अब हमारा सारा समय मंडली से जुड़े कामों में बीतता है। हमारे कुछ बाइबल विद्यार्थियों का बपतिस्मा हो चुका है। एक परिवार जिनके साथ हम अध्ययन करते थे, राज-घर से बहुत दूर एक गाँव में रहता है। यह परिवार बहुत गरीब है, मगर हर हफ्ते, इस परिवार के सदस्य मुश्किल-भरा लंबा सफर तय करके शहर में सभाओं के लिए आते हैं। क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस परिवार को तरक्की करते देखकर, साथ ही, परिवार के सबसे बड़े बेटे को पायनियर सेवा शुरू करते देखकर हमें कितनी खुशी हुई होगी?”
दूसरी भाषा बोलनेवाले इलाकों में ज़रूरत
12, 13. रिटायर होने के बाद, ब्रायन और उसकी पत्नी ने कैसे नए तरीके से यहोवा की सेवा करनी शुरू की?
12 बुज़ुर्ग भाई-बहनों की अच्छी मिसाल से दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडलियों और समूहों को भी बहुत फायदा हो सकता है। और ऐसे इलाकों में प्रचार करना भी बहुत मज़ेदार हो सकता है। उदाहरण के लिए, ब्रायन लिखता है: “जब मैं 65 साल का हुआ, जो ब्रिटेन में रिटायर होने की उम्र है, तब मुझे और मेरी पत्नी को महसूस हुआ कि हमारी ज़िंदगी बहुत उबाऊ हो गयी है। हमारे बच्चे अब अलग रहने लगे थे और हमें दिलचस्पी दिखानेवाले भी बहुत कम मिलते थे, जिनके साथ हम बाइबल अध्ययन कर सकें। फिर एक दिन मेरी मुलाकात एक जवान चीनी आदमी से हुई, जो यहाँ के विश्वविद्यालय में किसी विषय पर खोज कर रहा था। उसने हमारी सभाओं में आने का न्यौता कबूल किया और मैंने उसके साथ बाइबल अध्ययन करना शुरू कर दिया। कुछ हफ्तों बाद, वह बाइबल अध्ययन के लिए अपने साथ दूसरे चीनी आदमी को लाने लगा। दो हफ्ते बाद, वह तीसरे चीनी आदमी को लाया और फिर चौथे को।”
13 ब्रायन यह भी लिखता है, “जब पाँचवे चीनी खोजकर्ता ने हमसे बाइबल अध्ययन के लिए पूछा, तो मैंने सोचा, ‘65 साल के होने का यह मतलब नहीं कि मैं यहोवा की सेवा में रिटायर हो जाऊँ।’ इसलिए मैंने अपनी पत्नी से, जो मुझसे दो साल छोटी है, पूछा कि क्या वह चीनी भाषा सीखना चाहेगी। हमने ऑडियो कैसेट के ज़रिए इस भाषा का कोर्स किया। यह दस साल पहले की बात है। दूसरी भाषा बोलनेवाले इलाकों में प्रचार करने से हमें लगा जैसे हम फिर से जवान हो गए हैं। अब तक, हमने 112 चीनी लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किया है! उनमें से ज़्यादातर सभाओं में भी आ चुके हैं। और उनमें से एक अब पायनियर के तौर पर हमारे साथ सेवा कर रही है।”
आप शायद अब भी यहोवा की सेवा में बहुत कुछ कर सकते हैं (पैराग्राफ 12, 13 देखिए)
आप जो कर सकते हैं, उसे करने में खुशी पाइए
14. (क) जो अनुभवी मसीही अपने हालात की वजह से ज़्यादा नहीं कर सकते, वे किस बात से खुश हो सकते हैं? (ख) पौलुस के उदाहरण से कैसे उनका हौसला बढ़ सकता है?
14 बहुत-से मसीही जिनकी उम्र 50 से ऊपर है, नए-नए तरीकों से यहोवा की सेवा कर सकते हैं, मगर कई ऐसे भी हैं जो अपने हालात की वजह से ऐसा नहीं कर सकते। जैसे कुछ मसीहियों की सेहत खराब रहती है, तो कुछ ऐसे हैं जो अपने बच्चों या बूढ़े माँ-बाप की देखभाल कर रहे हैं। लेकिन फिर भी आप खुश हो सकते हैं कि यहोवा की सेवा में आप जितना भी करते हैं, उसकी वह कदर करता है। इसलिए आप जो नहीं कर सकते, उस बारे में सोचकर निराश होने के बजाय, आप जो कर सकते हैं, उसे करने में खुशी पाइए। प्रेषित पौलुस के उदाहरण पर गौर कीजिए। कई साल वह कैद में था, जिस वजह से वह अपने मिशनरी दौरे पर नहीं जा सका। मगर जब भी कोई उससे मिलने आता था, वह उनसे शास्त्र के बारे में बात करता था और उनका विश्वास मज़बूत करता था।—प्रेषि. 28:16, 30, 31.
15. बुज़ुर्ग मसीही क्यों बहुत अनमोल हैं?
15 यहोवा बुज़ुर्ग मसीहियों की सेवा की भी कदर करता है, फिर चाहे वे उसकी सेवा में जितना भी कर पाएँ। सुलैमान ने इस बात की ओर इशारा किया कि “विपत्ति के दिन” इतने आसान नहीं होते, लेकिन बाइबल यह भी कहती है कि बुज़ुर्ग मसीही उसकी महिमा के लिए जो करते हैं, उसे यहोवा बहुत अनमोल समझता है। (लूका 21:2-4) मंडली के भाई-बहन भी, लंबे समय से सेवा कर रहे इन वफादार मसीहियों की बहुत सराहना करते हैं।
16. (क) बुज़ुर्ग हन्ना शायद किन आशीषों का लुत्फ नहीं उठा पायी? (ख) मगर वह यहोवा की उपासना में क्या कर पायी?
16 बाइबल बताती है कि हन्ना नाम की एक बुज़ुर्ग विधवा ने अपने बुढ़ापे तक वफादारी से यहोवा की महिमा की। जब यीशु का जन्म हुआ, तब वह 84 साल की थी। मुमकिन है कि अपनी उम्र की वजह से वह यीशु के चेलों में से एक नहीं बन सकी, पवित्र शक्ति से अभिषिक्त नहीं हो सकी, और न ही खुशखबरी का प्रचार करने की खुशी अनुभव कर सकी। लेकिन हन्ना जो कर सकती थी, उसे करने में उसने खुशी पायी। “वह मंदिर से कभी गैर-हाज़िर नहीं रहती थी, बल्कि . . . रात-दिन परमेश्वर की पवित्र सेवा में लगी रहती थी।” (लूका 2:36, 37) हर सुबह और शाम जब याजक मंदिर में धूप जलाता था, तब हन्ना आँगन में इकट्ठी हुई भीड़ के साथ मन में शायद आधे घंटे तक प्रार्थना करती थी। एक दिन जब उसने मंदिर में नन्हे यीशु को देखा, तो वह “उन सबको जो यरूशलेम के छुटकारे का इंतज़ार कर रहे थे, उस बच्चे के बारे में बताने लगी।”—लूका 2:38.
17. हम बुज़ुर्ग या बीमार मसीहियों को सच्ची उपासना में हिस्सा लेने में कैसे मदद दे सकते हैं?
17 आज हमें बुज़ुर्ग या बीमार मसीहियों की मदद करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इनमें से बहुत-से भाई-बहन सभाओं और सम्मेलनों में आने के लिए तरसते हैं, मगर नहीं आ पाते। कुछ जगहों पर मंडली इन बुज़ुर्ग मसीहियों के लिए इंतज़ाम करती है, ताकि वे टेलीफोन के ज़रिए सभाओं के कार्यक्रम सुन सकें। मगर कुछ जगहों पर ऐसा मुमकिन नहीं हो पाता। फिर भी, जो मसीही सभाओं में नहीं आ पाते, वे भी सच्ची उपासना का साथ देने में हिस्सा ले सकते हैं। मिसाल के लिए, वे मसीही मंडली की तरक्की के लिए प्रार्थना कर सकते हैं।—भजन 92:13, 14 पढ़िए।
18, 19. (क) बुज़ुर्ग मसीही कैसे दूसरों का हौसला बढ़ा सकते हैं? (ख) “अपने सृजनहार को स्मरण रख,” इस सलाह को कौन लागू कर सकते हैं?
18 बुज़ुर्ग मसीहियों को शायद इस बात का एहसास न हो कि वे दूसरों का कितना हौसला बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, हन्ना की मिसाल पर फिर से गौर कीजिए। हालाँकि वह इतने सालों तक वफादारी से मंदिर में जाती रही, मगर उसे शायद इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उसकी मिसाल और यहोवा के लिए उसका प्यार बाइबल में दर्ज़ किया जाएगा, जिसे पढ़कर सदियों बाद भी हमारा हौसला बढ़ेगा। उसी तरह, यहोवा के लिए आपका प्यार देखकर, मंडली के भाई-बहनों का हौसला बढ़ता है। तभी तो परमेश्वर का वचन कहता है: “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।”—नीति. 16:31.
19 हम सभी यहोवा की सेवा में बहुत कुछ करना चाहते हैं। लेकिन हम सभी की कुछ सीमाएँ हैं। इसलिए हममें से जिनके पास अब भी थोड़ी-बहुत ताकत है, वे परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे इन शब्दों को गाँठ बाँध सकते हैं: ‘अपने सृजनहार को स्मरण रख, इस से पहिले कि विपत्ति के दिन आएं।’—सभो. 12:1.