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क्या आपको साँस लेने की भी फुरसत नहीं?

क्या आपको साँस लेने की भी फुरसत नहीं?

क्या आपके पास इतना काम है कि आपको साँस लेने की भी फुरसत नहीं? बहुत-से लोगों को ऐसा लगता है। द इकोनॉमिस्ट पत्रिका बताती है कि आजकल तो “जैसे हर कहीं, हर कोई व्यस्त है।”

सन्‌ 2015 में नौकरी-पेशा करनेवाले कुछ लोगों का सर्वे लिया गया, जो आठ देशों से थे। कई लोगों ने कहा कि उन्हें समझ में नहीं आता कि कैसे-क्या करें, एक तरफ काम, दूसरी तरफ घर की ज़िम्मेदारियाँ। उनकी इस परेशानी की कई वजह हो सकती हैं। जैसे, काम पर या घर में उनकी बढ़ती ज़िम्मेदारियाँ, रोज़ बढ़ते खर्चे या ज़्यादा घंटे काम करने की माँग। उदाहरण के लिए, भारत में लिए एक सर्वे के मुताबिक जवानों को औसतन हर हफ्ते 52 घंटे काम करना पड़ता है। करीब हज़ार जवानों पर किए गए एक और सर्वे के मुताबिक 16 प्रतिशत लोगों को तो हर दिन 12 घंटे से ऊपर काम करना पड़ता है!

एक और सर्वे पर ध्यान दीजिए, जिसमें 36 देशों के लोग शामिल थे। एक-चौथाई लोगों ने कहा कि उन्हें फुरसत के वक्‍त भी लगता है कि सबकुछ जल्दी-जल्दी करना है। ऐसा ही कुछ बच्चों के साथ भी हो सकता है, अगर उन पर पढ़ाई के साथ दिन-भर कुछ-न-कुछ सीखते रहने का दबाव डाला जाए।

जब हम थोड़े वक्‍त में बहुत-कुछ करने की कोशिश करते हैं, तो हमें तनाव हो सकता है, हमेशा वक्‍त की कमी महसूस हो सकती है। लेकिन क्या यह मुमकिन है कि वक्‍त पर काम भी हो जाए और तनाव भी न हो? इस मामले में हमारी सोच, हमारे फैसले और लक्ष्य कैसे हमारी मदद कर सकते हैं? आइए सबसे पहले 4 कारणों पर ध्यान दें कि कुछ लोग क्यों अपने सिर पर बहुत सारे काम ले लेते हैं।

1 परिवार को अच्छे-से-अच्छा देने की चाहत

गैरी नाम का एक व्यक्‍ति कहता है, “मैं सातों दिन काम करता था, क्योंकि मैं अपने बच्चों को हमेशा कुछ-न-कुछ अच्छा देना चाहता था। मैं उन्हें वह सब देना चाहता था, जो मुझे नहीं मिल पाया।” माना कि माता-पिता के इरादे नेक होते हैं, फिर भी उन्हें सोचना चाहिए कि वे किन बातों को ज़्यादा अहमियत दे रहे हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि जिस परिवार के लोग पैसों और चीज़ों को ज़्यादा अहमियत देते हैं, वे उतने खुश, संतुष्ट और सेहतमंद नहीं रहते, जितने वे लोग जो इन बातों को कम अहमियत देते हैं।

जिस परिवार में ऐशो-आराम की चीज़ों को बहुत अहमियत दी जाती है, उसमें बच्चे ज़्यादा खुश नहीं रहते

कई माता-पिता अपने बच्चों का भविष्य बनाने के चक्कर में उन पर और खुद पर भी बहुत सारे काम का बोझ लाद देते हैं। जब माता-पिता ऐसा करते हैं, तब न तो वे चैन से रह पाते हैं और न ही उनके बच्चे।

2 ज़माने के साथ कदम मिलाकर चलने की चाहत

विज्ञापनों से हमें यह यकीन दिलाने की कोशिश की जाती है कि अगर हम नयी-से-नयी चीज़ें न खरीदें, तो हम अच्छी चीज़ों से महरूम रह जाएँगे। द इकोनॉमिस्ट पत्रिका में लिखा है कि हर दिन बाज़ार में नयी-नयी चीज़ें आने से लोगों को और भी वक्‍त की कमी महसूस होने लगी है। उन्हें समझ में नहीं आता कि थोड़े-से वक्‍त में क्या खरीदें क्या नहीं, क्या देखें क्या नहीं या क्या खाएँ क्या नहीं।

सन्‌ 1930 में एक जानकार ने कहा कि आगे चलकर तकनीक में इतनी तरक्की होगी कि लोगों के पास वक्‍त ही वक्‍त होगा। उसकी बात कितनी गलत निकली! न्यू यॉर्कर पत्रिका की एक लेखिका का कहना है, “काम से जल्दी निकलना तो दूर, उलटा लोगों की कुछ-न-कुछ नयी ज़रूरतें निकल आती हैं।” इन्हें पूरा करने के लिए अब और पैसा और वक्‍त चाहिए।

3 सबको खुश रखने की चाहत

कुछ लोग देर रात तक कोल्हू के बैल की तरह लगे रहते हैं, ताकि उनका बॉस नाराज़ न हो जाए। कई बार साथ काम करनेवाले भी मुश्किल खड़ी कर देते हैं। अगर कोई जल्दी चला जाए, तो वे उसे यह महसूस कराते हैं कि जैसे उसने कोई बड़ा पाप कर दिया हो। लोगों को नौकरी छूटने, घाटे, महँगाई या पैसों की कीमत गिरने का भी डर लगा रहता है। इस वजह से वे ज़्यादा घंटे काम करने के लिए या किसी भी वक्‍त काम पर जाने के लिए तैयार रहते हैं।

माता-पिताओं को लग सकता है कि उनके परिवार को भी वे सारी चीज़ें करनी चाहिए, जो दूसरे परिवार कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि अगर उनका परिवार यह सब न करे, तो उनके बच्चे कुछ अच्छा पाने से चूक जाएँगे।

4 नाम कमाने और कुछ कर दिखाने की चाहत

अमरीका में रहनेवाला टिम कहता है, “मुझे अपना काम बहुत पसंद था और मैं उसमें जी-जान लगा देता था। मैं लोगों को दिखाना चाहता था कि मैं बहुत अच्छा काम करता हूँ।”

टिम की तरह कई लोगों को लगता है कि वे जितना व्यस्त होंगे, उतना ही लोग उनकी इज़्ज़त करेंगे। इस बारे में न्यू यॉर्कर पत्रिका में लिखा है, “समाज में, व्यस्त लोगों का बहुत आदर-मान होता है। आप जितना व्यस्त नज़र आएँगे, लोग आपको उतना ही मान देंगे।”

काम और घर के बीच संतुलन

पवित्र शास्त्र बाइबल में मेहनत और लगन से काम करने का बढ़ावा दिया गया है। (नीतिवचन 13:4) लेकिन साथ-साथ संतुलन बनाए रखने के लिए भी कहा गया है। जैसे शास्त्र में लिखा है, “थोड़ा-सा आराम करना, बहुत ज़्यादा काम करने और हवा के पीछे भागने से कहीं अच्छा है।”​—सभोपदेशक 4:6.

नौकरी-पेशे के साथ-साथ आराम करना और परिवार को वक्‍त देना तन और मन के लिए अच्छा होता है। लेकिन क्या आज के ज़माने में ऐसा करना मुमकिन है? ज़रूर। आइए चार सुझावों पर ध्यान दें।

1 सोचिए कि आप असल में क्या हासिल करना चाहते हैं

हर कोई चाहता है कि उसके पास कुछ पैसा हो, ताकि वक्‍त-ज़रूरत पर काम आए। लेकिन कितना पैसा होना काफी है? आप किसे कामयाब इंसान कहेंगे? उसे, जो दौलत या ऐशो-आराम की चीज़ों का अंबार लगाता है? या फिर उसे, जो खूब आराम फरमाता है या मौज-मस्ती करता है? दोनों ही हालात में इंसान के पास वक्‍त नहीं बचता।

टिम कहता है, “हम जैसी ज़िंदगी जी रहे थे, उस बारे में मैंने और मेरी पत्नी ने काफी सोचा। फिर हमने फैसला किया कि हम अपना जीवन सादा करेंगे। उस वक्‍त हम जैसी ज़िंदगी जी रहे थे और भविष्य में हम जो करना चाहते हैं, वह सब हमने लिख लिया। हमने यह भी चर्चा की कि अब तक हमारे फैसलों का हमारी ज़िंदगी पर क्या असर हुआ और आगे के लिए हमने जो सोचा है, उसके लिए हमें क्या करना होगा।”

2 दुनिया के रंग में रंगने से बचें

शास्त्र में सलाह दी गयी है कि हम ‘आँखों की ख्वाहिशों’ पर काबू पाएँ। (1 यूहन्ना 2:15-17) लेकिन विज्ञापनों से एक इंसान की ख्वाहिशें बढ़ जाती हैं। फिर ये ख्वाहिशें पूरी करने यानी मनोरंजन करने या चीज़ें खरीदने के लिए उसे देर तक काम करना पड़ता है। माना कि विज्ञापनों से पूरी तरह छुटकारा नहीं पाया जा सकता, लेकिन उन्हें देखना कम ज़रूर किया जा सकता है। इसके अलावा यह सोचिए कि आपको असल में किन चीज़ों की ज़रूरत है।

दोस्तों का भी हम पर बहुत असर होता है। आपके दोस्त किस तरह के हैं? क्या ऐसे लोग, जो ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने में लगे रहते हैं या जिनकी नज़र में कामयाबी का मतलब खूब सारी चीज़ें या पैसा है? अगर हाँ, तो बेहतर होगा कि उन लोगों की संगति छोड़कर ऐसे लोगों से दोस्ती करें, जो सही बातों को अहमियत देते हैं। शास्त्र में लिखा है, “बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा।”​—नीतिवचन 13:20.

3 तय कीजिए कि कितने घंटे काम करेंगे

बॉस को बताइए कि आप कितने घंटे काम करना चाहते हैं और क्या बातें आपके लिए मायने रखती हैं। साथ ही, यह सोचकर परेशान मत होइए कि आप काम से जल्दी जा रहे हैं। अँग्रेज़ी में लिखी जीने के लिए काम करें नाम की किताब में कहा गया है, “जो लोग काम को काम तक ही सीमित रखकर परिवार के साथ समय बिताते हैं और कभी-कभार छुट्टियों पर भी जाते हैं, उन्होंने पाया है कि उनके काम पर न होने से कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता।”

गैरी के पास इतना पैसा था कि वह आराम से अपना गुज़ारा चला सकता था, इसलिए उसने फैसला किया कि वह हफ्ते में कुछ ही दिन काम करेगा। वह कहता है, “मैंने अपने परिवार से बात की और उनसे कहा कि क्यों न हम अपना जीवन सादा करें। फिर धीरे-धीरे हमने ऐसा किया। मैंने बॉस से भी कहा कि मैं हफ्ते के कुछ ही दिन काम करना चाहता हूँ और वह मान गया।”

4 परिवार के साथ वक्‍त बिताइए

पति-पत्नी को एक-साथ वक्‍त बिताना चाहिए। अगर बच्चे हैं, तो उन्हें भी समय देना ज़रूरी है। उन परिवारों की देखा-देखी मत कीजिए, जो हमेशा व्यस्त रहते हैं। गैरी कहता है, “आराम और मनोरंजन के लिए भी वक्‍त निकालिए और गैर-ज़रूरी काम मत कीजिए।”

जब परिवार साथ हो, तो टीवी, मोबाइल या दूसरी चीज़ों को अपने बीच दीवार मत बनने दीजिए। कम-से-कम एक वक्‍त का खाना साथ मिलकर खाइए और उस दौरान एक-दूसरे से खुलकर बात कीजिए। जब माता-पिता ऐसा करते हैं, तो बच्चे ज़्यादा खुश रहते हैं और पढ़ाई में भी अच्छे निकलते हैं।

खाने के दौरान अपने परिवार से बातचीत कीजिए

खुद से पूछिए, ‘मैं अपनी ज़िंदगी में क्या हासिल करना चाहता हूँ? मैं अपने परिवार के लिए क्या चाहता हूँ?’ अगर आप ज़्यादा खुश और संतुष्ट रहना चाहते हैं, तो उन बातों को अहमियत दीजिए, जो पवित्र शास्त्र बाइबल के मुताबिक सही हैं।