जल्द-से-जल्द और खुलकर बातचीत करना ज़रूरी है

जब किसी अपने को जानलेवा बीमारी हो

जब किसी अपने को जानलेवा बीमारी हो

दीक्षा का पति वरुण 54 साल का ही था कि उसके दिमाग में ट्यूमर हो गया। a जब दीक्षा को इस बारे में पता चला, तो उसकी जैसे साँस ही रुक गयी। यह बहुत घातक और जल्दी बढ़नेवाला ट्यूमर था। डॉक्टरों ने कहा कि उसके सिर्फ कुछ महीने ही बचे हैं। दीक्षा बताती है, “मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। कुछ हफ्तों के लिए तो मैं एकदम सुन्‍न हो गयी थी। ऐसा लगा कि यह सबकुछ हमारे साथ नहीं, किसी और के साथ हो रहा है। मैंने तो कभी सोचा ही नहीं था कि यह सब हमारे साथ भी होगा।”

ऐसे हालात में जो दीक्षा के साथ हुआ, वैसा ही और भी लोगों के साथ होता है। जानलेवा बीमारी किसी को कभी भी हो सकती है। जब किसी अपने को जानलेवा बीमारी हो जाती है, तो जो लोग खुद से उसकी देखभाल का ज़िम्मा उठाते हैं, वे सच में तारीफ के काबिल हैं। लेकिन यह ज़िम्मेदारी उठाना आसान नहीं है, इसमें कई मुश्‍किलें आती हैं। परिवार के लोग इस तरह के बीमार व्यक्‍ति को दिलासा देने और उसकी देखभाल के लिए क्या कर सकते हैं? जो देखभाल करते हैं, वे इस दौरान मन में उठनेवाली अलग-अलग भावनाओं का सामना कैसे कर सकते हैं? जब यह लगने लगता है कि बीमार व्यक्‍ति के ज़्यादा दिन नहीं बचे हैं, तो क्या-क्या हो सकता है? लेकिन आइए, सबसे पहले देखें कि जिन्हें जानलेवा बीमारी है, उनकी देखभाल करना आज के ज़माने में क्यों इतना मुश्‍किल होता जा रहा है?

आज के ज़माने की मुश्‍किलें

चिकित्सा विज्ञान की वजह से अब लोगों की मौत वैसे नहीं होती, जैसे करीब सौ साल पहले होती थी। उस वक्‍त लोगों की उम्र आज के जितनी लंबी नहीं होती थी, यहाँ तक कि अमीर देशों में भी नहीं। संक्रमण से होनेवाली बीमारियाँ या दुर्घटना होने पर लोगों की जल्दी मौत हो जाती थी। अस्पताल की सुविधाएँ भी कम थीं। ज़्यादातर लोगों की देखभाल घर पर ही होती थी और वहीं उनकी मौत हो जाती थी।

आज चिकित्सा क्षेत्र में बहुत तरक्की हुई है। डॉक्टर बड़ी-बड़ी बीमारियों का भी इलाज करने की कोशिश करते हैं, ताकि लोगों की उम्र बढ़ जाए। पहले जिन बीमारियों से लोगों की मौत जल्दी हो जाती थी, आज उन बीमारियों से पीड़ित होने के बाद भी लोग कई साल जी पाते हैं। इस तरह उम्र तो बढ़ जाती है, लेकिन बीमारी से छुटकारा नहीं मिलता। बीमार व्यक्‍ति इतना कमज़ोर या लाचार हो जाता है कि खुद की देखभाल नहीं कर पाता। ऐसे लोगों की देखभाल करना बहुत मुश्‍किल हो गया है और इसमें बहुत सारा समय, ताकत और पैसा लग जाता है।

इन सब बातों की वजह से आजकल बहुत-से लोगों की मौत घर के बजाय अस्पताल में होती है। ज़्यादातर लोग इस बात से अनजान है कि जब कोई आखिरी साँसें ले रहा होता है, उस दौरान क्या होता है। बहुतों ने तो किसी को मरते हुए देखा ही नहीं है। इन सब बातों से अनजान होने के कारण एक व्यक्‍ति शायद बीमार शख्स की देखभाल करने से घबराए या शायद उसे लगे कि वह कुछ नहीं कर पाएगा। क्या बात उसकी मदद कर सकती है?

पहले से योजना बनाइए

जैसे हमने दीक्षा के मामले में देखा, जब किसी अपने को जानलेवा बीमारी होती है, तो लोग पूरी तरह से टूट जाते हैं। उस दौरान मन में डर और चिंता होती है और बहुत दुख होता है। ऐसे में आगे के लिए क्या किया जा सकता है? परमेश्‍वर के एक वफादार सेवक ने प्रार्थना की, “हमें अपने दिन गिनना सिखा ताकि हम बुद्धि से भरा दिल पा सकें।” (भजन 90:12) परमेश्‍वर यहोवा से दिल से प्रार्थना कीजिए, ताकि आप उन दिनों बुद्धिमानी से काम ले पाएँ और बीमार व्यक्‍ति के आखिरी दिनों में उसके साथ अच्छी तरह रह पाएँ।

इसके लिए अच्छी योजना भी बनानी पड़ती है। अगर बीमार व्यक्‍ति ऐसी हालत में है कि वह बात कर सकता है और अपनी इलाज से जुड़े मामलों पर सोच-विचार कर सकता है, तो उससे बातचीत कीजिए। उससे पूछिए कि अगर उसकी तबियत ज़्यादा बिगड़ जाए, तो वह किसे चाहेगा कि वह उसके लिए फैसला करे। खुलकर बात कीजिए कि अगर उसकी साँस रुक जाए, तो क्या वह चाहेगा कि दोबारा साँस लेने के लिए कोई कोशिश की जाए, तबियत ज़्यादा बिगड़ने पर क्या वह अस्पताल में भर्ती होना चाहेगा या वह इलाज के लिए कौन-सा तरीका चाहेगा। इससे गलतफहमी कम होगी और परिवार का जो सदस्य बीमार व्यक्‍ति के लिए फैसले करेगा, बाद में उसके मन में दोष की भावना भी नहीं होगी। बीमार व्यक्‍ति से जितनी जल्दी और खुलकर बातचीत की जाए, उतनी ही अच्छी तरह परिवार के लोग उसकी देखभाल कर पाएँगे। पवित्र शास्त्र बाइबल में लिखा है, “सलाह-मशविरा न करने से योजनाएँ नाकाम हो जाती हैं।”—नीतिवचन 15:22.

बीमार व्यक्‍ति की देखभाल कैसे करें

बीमार व्यक्‍ति की देखभाल करनेवाले का अहम काम होता है, उसे दिलासा देना। जिस व्यक्‍ति को जानलेवा बीमारी है, उसे यकीन दिलाना चाहिए कि लोग उससे प्यार करते हैं और उसके साथ हैं। यह कैसे किया जा सकता है? उसके लिए ऐसा कुछ पढ़िए या उसे गाना सुनाइए, जिससे उसका हौसला बढ़े और उसे अच्छा लगे। कई लोगों को उस वक्‍त बहुत अच्छा लगता है, जब कोई अपना उनका हाथ थामता है और उनसे प्यार से बात करता है।

जो मिलने आते हैं, उनकी पहचान बताइए। एक रिपोर्ट में बताया गया है, ‘पाँचों इंद्रियों में से सुनने की इंद्रिय सबसे बाद में काम करना बंद करती है। हमें शायद लगे कि बीमार व्यक्‍ति सो रहा है, लेकिन हो सकता है कि उसे सबकुछ सुनाई दे रहा हो। इस वजह से ऐसा कुछ मत कहिए, जो आप तब नहीं कहेंगे जब वह जगा हुआ हो।’

हो सके तो उसके साथ प्रार्थना कीजिए। शास्त्र में परमेश्‍वर के एक सेवक पौलुस और उसके साथियों के बारे में बताया गया है कि एक बार वे बड़ी मुश्‍किल में थे। उन्हें लग रहा था कि वे शायद नहीं बचेंगे। तब उन्होंने किससे मदद माँगी? पौलुस ने अपने दूसरे दोस्तों से गुज़ारिश की “तुम भी हमारे लिए मिन्‍नतें करके हमारी मदद कर सकते हो।” (2 कुरिंथियों 1:8-11) जब किसी को बड़ी बीमारी और बहुत तनाव होता है, तब दिल से की गयी प्रार्थना बहुत मायने रखती है।

हकीकत को कबूल कीजिए

हमारा अपना कुछ दिनों में नहीं रहेगा, यह सोचकर ही बहुत दुख होता है। ऐसे दुखी होना गलत नहीं है, क्योंकि मौत कोई स्वाभाविक बात नहीं है। हमें इस तरह बनाया ही नहीं गया है कि हम मौत को ज़िंदगी का एक भाग समझें। (रोमियों 5:12) पवित्र शास्त्र में मौत को एक “दुश्‍मन” बताया गया है। (1 कुरिंथियों 15:26) इस वजह से कोई अपनों की मौत के बारे में सोचना भी नहीं चाहता। यह बात हम समझ सकते हैं और यह स्वाभाविक है।

लेकिन परिवार के लोग अगर पहले से सोचें कि बीमार व्यक्‍ति के आखिरी दिनों में क्या हो सकता है और तब वे क्या कर सकते हैं, तो वे अपना डर कम कर पाएँगे और सबकुछ आसानी से कर पाएँगे। उसके साथ जो बातें हो सकती हैं, उनमें से कुछ बातें “ ज़िंदगी के आखिरी दिन” नाम के बक्स में दी गयी हैं। ज़रूरी नहीं कि हर बीमार व्यक्‍ति के साथ ये सारी बातें हों और उसी क्रम में हों, जिस क्रम में बक्स में दी गयी हैं। फिर भी ज़्यादातर बीमार व्यक्‍तियों के साथ इनमें से कुछ बातें हो ही जाती हैं।

किसी अपने की मौत हो जाने पर उस करीबी दोस्त को बुलाना अच्छा होगा, जिसने पहले ही कहा था कि वह मदद करेगा। यही नहीं, शायद देखभाल करनेवालों और परिवार के बाकी लोगों को यह यकीन दिलाना पड़े कि अब वह व्यक्‍ति नहीं रहा और वह किसी तकलीफ में भी नहीं है। परमेश्‍वर ने भी शास्त्र में लिखवाया है कि “मरे हुए कुछ नहीं जानते।”—सभोपदेशक 9:5.

सबसे बड़ा देखभाल करनेवाला

जब कोई मदद करना चाहे, तो हमें इनकार नहीं करना चाहिए

परमेश्‍वर पर भरोसा करना बहुत ज़रूरी है। लेकिन उस दौरान ही नहीं, जब किसी अपने को जानलेवा बीमारी हो, बल्कि उस वक्‍त भी जब उसके न रहने पर दुख का सामना कर रहे हों। परमेश्‍वर शायद लोगों के ज़रिए हमारी मदद करे। हो सकता है कि वे कुछ ऐसा कहें या करें, जिससे हमें दिलासा मिले। दीक्षा बताती है, “मैंने सीखा कि जब कोई हमारी मदद करना चाहे, तो हमें इनकार नहीं करना चाहिए। लोगों से हमें इतनी मदद मिली कि हमारा दिल भर आया। हम दोनों साफ देख पा रहे थे कि मानो यहोवा हमसे कह रहा है, ‘मैं तुम्हारे साथ हूँ और तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ।’ मैं इसे कभी नहीं भूल सकती।”

देखभाल करने के मामले में परमेश्‍वर यहोवा से बढ़कर और कोई नहीं। वह हमारा बनानेवाला है, इसलिए वह हमारा दुख-दर्द अच्छी तरह समझता है। वह हमारी मदद करने और हमारा हौसला बढ़ाने के काबिल है और वह ऐसा करना चाहता भी है, ताकि हम अपने हालात का सामना कर सकें। यही नहीं उसने हमसे वादा किया है कि बहुत जल्द वह मौत को खत्म कर देगा और उन लाखों-करोड़ों लोगों को जो उसकी याद में हैं, दोबारा ज़िंदा करेगा। (यूहन्‍ना 5:28, 29; प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) तब हम परमेश्‍वर के सेवक पौलुस के सुर-में-सुर मिलाकर कहेंगे, “हे मौत, तेरी जीत कहाँ है? हे मौत, तेरा डंक कहाँ है?”—1 कुरिंथियों 15:55.

a नाम बदल दिए गए हैं।