भाग 5
अब्राहम और उसके परिवार को मिली परमेश्वर से आशीषें
अब्राहम का खानदान बढ़ता गया। परमेश्वर ने मिस्र में यूसुफ की हिफाज़त की
उत्पत्ति 3:15 में दर्ज़ भविष्यवाणी में एक अहम सच्चाई बयान की गयी है। वह यह कि वादा किया गया वंश कई तकलीफों से गुज़रेगा और उसे एक दर्दनाक मौत मिलेगी। यह वंश कोई और नहीं, बल्कि परमेश्वर का इकलौता बेटा यीशु मसीह था। अपने प्यारे बेटे की कुरबानी देकर यहोवा पर क्या गुज़रती? यहोवा ने अपने सेवक, अब्राहम के ज़रिए इसकी झलक दी। उसने अब्राहम को अपने जिगर के टुकड़े, इसहाक की बलि चढ़ाने के लिए कहा।
अब्राहम को परमेश्वर पर अटूट विश्वास था। आपको याद होगा कि परमेश्वर ने उससे वादा किया था कि उसके बेटे इसहाक के ज़रिए ही छुड़ानेवाला आएगा। अब्राहम जानता था कि अगर इसहाक मर भी गया, तो यहोवा उसे दोबारा ज़िंदा करेगा। और इसी यकीन के साथ वह अपने बेटे की बलि चढ़ाने के लिए तैयार हो गया। मगर जब अब्राहम, इसहाक की बलि चढ़ाने ही वाला था तभी ऐन वक्त पर परमेश्वर के स्वर्गदूत ने उसे रोक लिया। अपने प्यारे बेटे को कुरबान करने का अब्राहम का जज़्बा देख, परमेश्वर का दिल बाग-बाग हो गया और उसने उसकी तारीफ की। इसके बाद, परमेश्वर ने अपने वफादार सेवक अब्राहम से एक बार फिर अपना वादा दोहराया।
आगे चलकर इसहाक के दो बेटे हुए, एसाव और याकूब। वे दोनों एक-दूसरे से बिलकुल अलग थे। एक तरफ जहाँ याकूब का परमेश्वर के साथ मज़बूत रिश्ता था, वहीं दूसरी तरफ एसाव के लिए इस रिश्ते का कोई मोल नहीं था। इसलिए याकूब को परमेश्वर की तरफ से भरपूर आशीषें मिलीं। यहोवा ने उसका नाम बदलकर इसराएल रखा। उसके 12 बेटे, इसराएल राष्ट्र के 12 गोत्रों के प्रधान बने। मगर इसराएल का परिवार एक महान राष्ट्र कैसे बना? आइए देखें।
याकूब के एक जवान बेटे का नाम यूसुफ था। यूसुफ के बड़े भाई उससे जलते थे। इसलिए उन्होंने मिलकर यूसुफ को मिस्रियों के हाथों बेच दिया और वह उनका गुलाम बन गया। लेकिन यहोवा ने वफादार और दिलेर यूसुफ का साथ नहीं छोड़ा। हालाँकि उसे कई मुश्किलों से जूझना पड़ा, मगर परमेश्वर ने उसके हालात बदल दिए। फिरौन (यानी मिस्र के राजा) ने उसे एक ऊँचे पद के लिए चुना। उसने अनाज बाँटने का ज़िम्मा यूसुफ को सौंपा। हालात के मुताबिक यह एकदम सही था, क्योंकि चारों तरफ अकाल पड़ा था और याकूब ने अपने कुछ बेटों को मिस्र में अनाज खरीदने के लिए भेजा था। यूसुफ से मिलकर उसके भाई पहले तो हैरान हुए, फिर वे उससे गले मिलकर फूट-फूटकर रोने लगे। उन्हें अपने किए पर बहुत पछतावा था, इसलिए उन्होंने यूसुफ से माफी माँगी। यूसुफ ने उन्हें माफ कर दिया और अपने पूरे परिवार के साथ मिस्र में आकर रहने के लिए कहा। उसने उन्हें एक बढ़िया जगह दी और वहाँ वे फलने-फूलने लगे। आखिर में यूसुफ समझ गया कि उसके साथ जो कुछ हुआ उसमें परमेश्वर का ही हाथ था, ताकि परमेश्वर के वादे पूरे हो सकें।
बुज़ुर्ग याकूब ने अपनी बाकी ज़िंदगी मिस्र में अपने भरे-पूरे परिवार के साथ गुज़ारी। अपनी आखिरी साँसें गिनते वक्त उसने भविष्यवाणी की कि वादा किया गया वंश यानी छुड़ानेवाला, उसके बेटे यहूदा के खानदान से आएगा और भविष्य में एक शक्तिशाली राजा बनेगा। याकूब के गुज़र जाने के कई सालों बाद, यूसुफ की भी मौत हो गयी। मगर मरने से पहले यूसुफ ने भविष्यवाणी की कि परमेश्वर, याकूब के खानदान को मिस्र से निकालेगा।
—यह भाग उत्पत्ति, अध्याय 20 से 50; इब्रानियों 11:17-22 पर आधारित है।