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दूसरे कैसे मदद कर सकते हैं?

दूसरे कैसे मदद कर सकते हैं?

अगर हमारे किसी दोस्त या रिश्‍तेदार के परिवार में किसी की मौत हो जाती है और हम उनसे मिलने जाते हैं, तो आम तौर पर हम यही कहते हैं, “अगर मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ, तो बस मुझे खबर दे देना।” ऐसा हम सच्चे दिल से कहते हैं। बेशक, हम उनके लिए कुछ भी करने  को तैयार होंगे। लेकिन क्या मातम मना रहा कोई व्यक्‍ति कभी हमें बुलाकर कहेगा: “मुझे इस काम में आपकी मदद चाहिए”? आम तौर पर कोई ऐसा नहीं कहता। इससे ज़ाहिर होता है कि अगर हम मातम मनानेवाले किसी की सचमुच मदद करना चाहते हैं या उसे तसल्ली देना चाहते हैं, तो हमें खुद पहल करनी होगी।

बाइबल का एक नीतिवचन कहता है: “जैसे चान्दी की टोकरियों में सोनहले सेब हों वैसा ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है।” (नीतिवचन 15:23; 25:11) इसलिए यह जानने में बुद्धिमानी होगी कि ऐसे मौकों पर हमें क्या कहना चाहिए और क्या नहीं,  क्या करना चाहिए और क्या नहीं।  जब बाइबल पर आधारित इन सुझावों को अमल किया गया तो शोक में डूबे लोगों को काफी फायदा हुआ।

क्या करना चाहिए . . . .

सुनिए:  याकूब 1:19 कहता है: ‘सुनने के लिये तत्पर हो।’ शोक मनानेवाले व्यक्‍ति का दर्द बाँटने का एक बहुत ही बढ़िया तरीका है, उसकी बात ध्यान से सुनना। शोक मनानेवाले कुछ लोग मरनेवाले अपने अज़ीज़ के बारे में, या जिस दुर्घटना या बीमारी से उसकी मौत हुई है या अपने अज़ीज़ की मौत के बाद वह जिन भावनाओं से गुज़र रहा है, उसके बारे में बात करना चाहते हैं। इसलिए उनसे पूछिए: “क्या आप इस बारे में बात करना चाहेंगे?” उन्हें फैसला करने दीजिए कि वे बात करना चाहेंगे या नहीं। अपने पिता की मौत को याद करते हुए एक नौजवान कहता है: “जब लोग मुझसे पूछते कि पिताजी को क्या हुआ था और फिर सचमुच मेरी बात ध्यान से सुनते  तो इससे मुझे बहुत मदद मिली थी।” इसलिए ऐसे लोगों की बात इत्मीनान से सुनिए और हमदर्दी जताइए। आपको ऐसा महसूस करने की ज़रूरत नहीं कि आपको उनकी हर बात का जवाब देने की, उनकी हर समस्या का हल बताने की ज़रूरत है। वे जो कुछ कहना चाहते हैं, उसे बस कहने दीजिए।

तसल्ली दीजिए:  उनको यह बताकर तसल्ली दीजिए कि मरनेवाले व्यक्‍ति के लिए वे जो कुछ कर सकते थे वह उन्होंने किया। (या जो कुछ आप जानते हैं कि उन्होंने सही-सही किया )। उनका ढाढ़स बँधाइए कि वे जिस दुःख, गुस्से, दोष या ऐसी भावनाओं से जूझ रहे हैं, वे दरअसल स्वाभाविक ही हैं। उन्हें कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताइए जो ऐसे हालात से उबर पाए हैं। नीतिवचन 16:24 कहता है कि इस तरह के ‘मनभावने वचन, हड्डियों को हरी-भरी करते हैं।’—1 थिस्सलुनीकियों 5:11, 14.

मदद के लिए तैयार रहिए:  मदद करने के लिए तैयार रहिए, ना सिर्फ चंद दिनों के लिए जब बहुत सारे दोस्त और रिश्‍तेदार मौजूद रहते हैं बल्कि महीनों बाद भी जब बाकी लोग अपने रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो जाते हैं। ऐसा करने से आप खुद को “संकट-काल” में साथ निभानेवाला एक “सच्चा मित्र” साबित कर पाएँगे। (नीतिवचन 17:17, नयी हिन्दी बाइबिल ) टेरेसिया, जिसके बच्चे की कार दुर्घटना में मौत हो गई थी, कहती है: “हमारे दोस्तों ने इस बात का ध्यान रखा कि हम हर दिन शाम के वक्‍त कहीं-न-कहीं व्यस्त रहें ताकि हमें ज़्यादा देर तक घर पर अकेले न रहना पड़े। इससे हमें अपना खालीपन भरने में मदद मिली।” जब किसी अज़ीज़ की मौत हो जाती है तो कई सालों तक, सालगिरह की तारीखों पर जैसे शादी की सालगिरह या मौत की तारीख पर उन्हें भारी दुःख हो सकता है। इसलिए क्यों न अपने कैलंडर पर ऐसी तारीखों को नोट कर लीजिए ताकि जैसे-जैसे ये दिन करीब आते हैं, आप उनकी मदद कर सकते हैं या अगर ज़रूरत पड़े तो उन्हें तसल्ली दे सकते हैं।

जब आप देखते हैं कि दुःखी व्यक्‍ति को किसी मदद की ज़रूरत है, तो उसके पूछने का इंतज़ार मत कीजिए—आप खुद पहल कीजिए

सही कदम उठाइए:  क्या शोक मनानेवाले व्यक्‍ति के लिए खरीदारी करने या उसे घर के काम-काज में मदद देने की ज़रूरत है? क्या उसके बच्चों की देखभाल करने के लिए किसी की ज़रूरत है? क्या उससे मिलने आए दोस्तों और रिश्‍तेदारों के रहने के लिए जगह की ज़रूरत है? अगर परिवार में किसी की मौत हो जाती है, तो कुछ समय तक उन्हें इतना गहरा सदमा पहुँचता है कि वे यह भी फैसला नहीं कर पाते कि उन्हें क्या करना है, दूसरों से मदद माँगने की बात तो कोसों दूर रही। इसलिए जब आप देखते हैं कि उसे वाकई कुछ मदद की ज़रूरत है, तो उसके पूछने का इंतज़ार मत कीजिए बल्कि आप खुद पहल कीजिए। (1 कुरिन्थियों 10:24. 1 यूहन्‍ना 3:17, 18 से तुलना कीजिए।) एक स्त्री, जिसका पति गुज़र गया था, कहती है: “मुझसे मिलने आए बहुत सारे लोगों ने कहा: ‘अगर किसी मदद की ज़रूरत हो, तो मुझे ज़रूर बताना।’ लेकिन मेरी एक सहेली ने यह सब नहीं पूछा। वह सीधे हमारे सोने के कमरे में गई, बिस्तर पर से चादर उतारी और जो चादरें मेरे पति की मौत होने की वजह से गंदी हो गयी थीं, उन्हें धोया। एक और दोस्त ने बाल्टी में पानी भरा और साफ-सफाई की चीज़ें लेकर उस कालीन को रगड़कर साफ किया जिस पर मेरे पति ने उल्टी की थी। कुछ हफ्तों बाद, कलीसिया का एक प्राचीन अपने काम के कपड़ों में, हाथों में औज़ार लिए आया और उसने कहा: ‘मुझे मालूम है कि यहाँ किसी-न-किसी चीज़ की मरम्मत करने की ज़रूरत होगी। बताइए क्या करना है?’ फिर उसने हमारे दरवाज़े की मरम्मत की जो एक कब्ज़े पर लटका हुआ था और साथ ही घर में बिजली का काम भी किया। सचमुच मैं उस इंसान की कितनी कदर करती हूँ!”—याकूब 1:27 से तुलना कीजिए।

मेहमान-नवाज़ी दिखाइए:  बाइबल हमें याद दिलाती है: “पहुनाई करना न भूलना।” (इब्रानियों 13:2) खासकर जो लोग शोक कर रहे हैं, उन्हें मेहमान-नवाज़ी दिखाना नहीं भूलना चाहिए। “आप हमारे यहाँ कभी-भी आ जाइए” कहने के बजाय, एक तारीख और समय निश्‍चित कीजिए। अगर वे इंकार कर देते हैं, तो इतनी आसानी से हार मत मानिए। उन्हें प्यार से मनाने की ज़रूरत हो सकती है। हो सकता है वे इस डर से आपका निमंत्रण स्वीकार न करें कि कहीं वे दूसरों के सामने संयम न खो बैठें। या शायद ऐसे दुःख के समय दूसरों के साथ भोजन और संगति का आनंद लेने से उनमें दोष की भावना पैदा हो। बाइबल में ज़िक्र की गई स्त्री, लुदिया को याद कीजिए जो मेहमान-नवाज़ी के लिए जानी जाती थी। लूका कहता है कि लुदिया ने उसे और उसके साथियों को अपने घर आने का निमंत्रण दिया और फिर ‘वह उन्हें मनाकर ले गई।’—प्रेरितों 16:15.

धीरज और समझदारी से काम लीजिए:  दुःख मनानेवाले शुरू-शुरू में जो कहते हैं, उसे सुनकर बहुत ताज्जुब मत कीजिए। याद रखिए कि वे शायद गुस्सा और दोषी महसूस करते होंगे। अगर वे आप पर बरस पड़ते हैं, तो उनसे चिढ़ने के बजाय समझदारी और धीरज से पेश आइए। बाइबल कहती है: “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।”—कुलुस्सियों 3:12, 13.

खत लिखिए:  लोग अकसर इस बात को नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि शोक मना रहे व्यक्‍ति को सांत्वना देने के लिए उसे कोई खत लिखना या कार्ड भेजना कितना मददगार होता है। खत या कार्ड भेजने के फायदे क्या हैं? यह हमें सिंडी की इस बात से पता चलता है, जिसकी माँ कैंसर की वजह से गुज़र गई थी: “मेरे एक दोस्त ने मुझे बहुत ही प्यारा-सा खत लिखा। इससे मुझे काफी हिम्मत मिली क्योंकि मैं उसे बार-बार पढ़ सकती थी।” इस तरह हौसला दिलाने के लिए आप जो खत या कार्ड भेजते हैं, उसमें “चंद शब्द” लिखना काफी है मगर ये शब्द आपके दिल से होने चाहिए। (इब्रानियों 13:22, NW) आपका खत या कार्ड यह सबूत देगा कि आप उस व्यक्‍ति की परवाह करते हैं और कि उसके जिस अज़ीज़ की मौत हो चुकी है उसकी कुछ खास यादें आपने भी संजोकर रखी हैं या यह दिखा सकता है कि मरनेवाले का आपकी ज़िंदगी पर कितना असर हुआ है।

उनके साथ प्रार्थना कीजिए:  दुःखी लोगों के साथ और उनकी खातिर प्रार्थना करने की अहमियत को कम मत आँकिए। बाइबल कहती है: “धर्मी जन की प्रार्थना . . . से बहुत कुछ हो सकता है।” (याकूब 5:16) उदाहरण के लिए, जब वे सुनेंगे कि आप उनकी खातिर प्रार्थना कर रहे हैं, तो उन्हें अपने मन से दोष की भावना और दूसरी बुरी भावनाओं को दूर करने में मदद मिलेगी।—याकूब 5:13-15 से तुलना कीजिए।

क्या नहीं करना चाहिए . . .

अस्पताल में आपकी मौजूदगी से दुःखी लोगों को काफी हिम्मत मिल सकती है

शोक कर रहे व्यक्‍ति से इसलिए दूर मत रहिए क्योंकि आप नहीं जानते कि उनसे क्या कहना है या उनके लिए क्या करना है:  हम शायद अपने आप से कह सकते हैं, ‘मुझे पूरा यकीन है कि इस समय वे ज़रूर अकेले रहना चाहेंगे।’ लेकिन सच्चाई शायद यह हो सकती है कि हम सिर्फ इस डर से खुद को दूर रख रहे हैं कि कहीं हमारी बातों या हमारे व्यवहार से कोई गलती न हो जाए। लेकिन अगर एक दुःखी व्यक्‍ति के दोस्त, रिश्‍तेदार या मसीही भाई-बहन उससे दूर रहें तो वह और भी अकेला महसूस करेगा, इससे उसका दुःख और भी बढ़ जाएगा। याद रखिए कि सबसे सही शब्द और काम बहुत सादा और मामूली होते हैं। (इफिसियों 4:32) आपका उसके पास रहना ही उसे हिम्मत दिलाने के लिए काफी है। (प्रेरितों 28:15 से तुलना कीजिए।) टेरेसिया अपनी बेटी की मौत का दिन याद करते हुए कहती है: “एक ही घंटे के अंदर, अस्पताल का गलियारा हमारे दोस्तों से भर गया था; सभी प्राचीन और उनकी पत्नियाँ वहाँ हाज़िर थीं। कुछ बहनें तो बालों में कर्लर के साथ ही आ गईं और कुछ तो काम के कपड़े पहनी हुई थीं। खबर मिलते ही वे सब कुछ छोड़-छाड़कर हमारे पास दौड़े चले आए। उनमें से बहुतों ने हमें बताया कि वे नहीं जानते थे कि उन्हें हमसे क्या कहना है मगर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि उनका हमारे पास रहना ही बहुत बड़ी बात थी।”

उन पर यह दबाव मत डालिए कि वे शोक करना छोड़ दें:  हम शायद उनसे यह कहना चाहें, कि ‘बस, बस अब और मत रोइए।’ लेकिन सच तो यह है कि उनके लिए रोना ही बेहतर होगा। कैथरिन, अपने पति की मौत के बारे में याद करते हुए कहती है: “मुझे लगता है कि शोक करनेवालों को रोने से नहीं रोकना चाहिए और अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करने देना चाहिए।” उन्हें कैसा महसूस करना चाहिए, यह उन्हें बताने की इच्छा आपके अंदर पैदा हो सकती है मगर खुद को रोकिए। और ऐसा भी मत सोचिए कि आपको उनके सामने नहीं रोना चाहिए ताकि वे आपको देखकर रोने न लग जाएँ। इसके बजाय, बाइबल सुझाव देती है, “रोनेवालों के साथ रोओ।”—रोमियों 12:15.

जब तक कि वे तैयार नहीं होते तब तक उन्हें यह सलाह मत दीजिए कि वे मरे हुए व्यक्‍ति के कपड़े और उनकी निजी चीज़ें अपने पास से निकाल दें:  हमें शायद लगे कि अगर वे मरे हुए व्यक्‍ति की याद दिलानेवाली चीज़ें अपने पास से दूर कर दें, तो बेहतर होगा वरना उन्हें अपने दुःख पर काबू पाने में देर लगेगी। लेकिन “आँखों से दूर, दिल से दूर” यह कहावत इस मामले में ठीक नहीं बैठती। अपने अज़ीज़ की याद भुलाने में एक व्यक्‍ति को समय लग सकता है। बाइबल में कुलपिता याकूब के बारे में दिया गया ब्यौरा याद कीजिए कि जब उसे कायल कर दिया गया कि उसके जवान बेटे यूसुफ को किसी जंगली जानवर ने खा लिया है, तो उसने क्या किया। जब यूसुफ का लहू से रंगा लंबा वस्त्र, याकूब को दिया गया तो वह “अपने पुत्र के लिये बहुत दिनों तक विलाप करता रहा। और उसके सब बेटे-बेटियों ने उसको शान्ति देने का यत्न किया; पर उसको शान्ति न मिली।”—उत्पत्ति 37:31-35.

ऐसा मत कहिए, ‘आपका एक और बच्चा हो सकता है’:  एक माँ, जिसका एक बच्चा मर गया था, वह कहती है: “मुझे ऐसे लोगों पर बहुत गुस्सा आता था जो मुझसे कहते थे कि मेरा दूसरा बच्चा हो सकता है।” हो सकता है ऐसा कहने में उनके इरादे नेक हों, मगर एक दुःखी माँ या पिता से ऐसी बातें कहना कि मरे हुए बच्चे की जगह दूसरा बच्चा ले सकता है ‘तलवार की नाईं चुभ सकता है।’ (नीतिवचन 12:18) एक बच्चे की जगह दूसरा बच्चा कभी-भी नहीं ले सकता। क्यों नहीं? क्योंकि हर बच्चा अपने आप में अनोखा होता है।

मरनेवाले का ज़िक्र करने से खुद को मत रोकिए: एक माँ याद करते हुए कहती है: “बहुत-से लोग तो मेरे बेटे, जिमी का नाम तक अपनी ज़ुबान पर नहीं लाते थे या उसके बारे में बात नहीं करते थे। मैं कहना चाहूँगी कि इससे मेरे दिल को थोड़ी ठेस पहुँची।” इसलिए जब मरनेवाले का ज़िक्र होता है तो आप बात मत बदलिए। इसके बजाय शोक करनेवाले से पूछिए कि क्या वह अपने अज़ीज़ के बारे में कुछ बात करना चाहेगा। (अय्यूब 1:18, 19 और 10:1 से तुलना कीजिए।) शोक मनानेवाले कुछ लोगों को जब उनके दोस्त बताते हैं कि उसके अज़ीज़ के कौन-से खास गुण उन्हें बेहद पसंद थे तो यह सुनकर उन्हें अच्छा लगता है।—प्रेरितों 9:36-39 से तुलना कीजिए।

यह कहने में जल्दबाज़ी मत कीजिए कि ‘जो हुआ वह भले के लिए ही था’:  यह करार देने की कोशिश में कि शोक मनानेवालों के अज़ीज़ के मरने में भी कोई भलाई थी, ‘हताश लोगों को हमेशा तसल्ली’ नहीं मिलती। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, NW) अपनी माँ की मौत के बारे में याद करते हुए, एक जवान स्त्री ने कहा: “लोग कहते थे, ‘आपकी माँ को अभी कोई तकलीफ नहीं है’ या ‘कम-से-कम वह शांति में है।’ लेकिन मैं ऐसी बातें सुनना नहीं चाहती थी।” ऐसी बातें करने का मतलब दुःखी लोगों से यह कहना है कि आपको अफसोस नहीं करना चाहिए या आपका कुछ खास नुकसान नहीं हुआ है। लेकिन सच तो यह है कि शोक मनानेवाले मन-ही-मन बहुत दुःखी होंगे क्योंकि वे अपने अज़ीज़ की बहुत कमी महसूस करते हैं।

ऐसा न कहना ही बेहतर होगा, ‘मैं आपकी भावनाओं को समझ सकता हूँ’:  क्या आप सचमुच समझ सकते हैं? मिसाल के लिए, क्या आप एक ऐसी माँ का दुःख समझ सकते हैं जिसका बच्चा मर गया है, अगर आपने खुद ऐसा दुःख नहीं झेला हो? और अगर आपने झेला भी हो तो यह बात मन में रखिए कि दूसरे लोग ठीक वैसा ही महसूस नहीं कर सकते जैसा आपने महसूस किया है। (विलापगीत 1:12 से तुलना कीजिए।) इसके बजाय अगर सही लगे तो यह बताना ठीक रहेगा कि जब आपके अज़ीज़ की मौत हुई तो किस तरह आपने अपना दुःख झेला था। जब एक स्त्री की बेटी मर गई, तो एक और स्त्री ने, जिसकी अपनी बेटी मर गई थी, उसे बताया कि वह किस तरह अपनी भावनाओं से उबर पाई थी। इससे उस स्त्री को काफी दिलासा मिला। वह कहती है: “उस माँ ने, जिसकी बेटी मर चुकी थी, अपनी कहानी यह कहकर शुरू नहीं की, ‘मैं आपकी भावनाओं को समझ सकती हूँ।’ उसने सिर्फ इतना बताया कि उसने  सब कुछ कैसे झेला था और फिर मुझ पर छोड़ दिया ताकि मैं समझ सकूँ कि मेरा दुःख भी किस तरह उसी के जैसा है।”

शोक मनानेवाले की मदद करने के लिए आप में दया, समझदारी और गहरा प्यार होने की ज़रूरत है। दुःखी व्यक्‍ति के लिए इंतज़ार मत कीजिए कि वह खुद मदद के लिए आपके पास चला आएगा। सिर्फ यह मत कहिए, “अगर मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ तो . . .” इसके बजाय खुद जानने की कोशिश कीजिए कि आप किस तरह उसकी “कुछ” मदद कर सकते हैं और फिर सही कदम उठाने के लिए आगे बढ़िए।

अब भी कुछ सवाल बच गए हैं: पुनरुत्थान के बारे में बाइबल में दी गई आशा के बारे में क्या? यह आपके और मरनेवाले आपके अज़ीज़ के लिए क्या अर्थ रखता है? हम यह कैसे यकीन कर सकते हैं कि यह आशा सचमुच पूरी होगी?